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श्रीरामोत्तरतापिनीयोपनिषद्

श्रीरामोत्तरतापिनीयोपनिषद्

इससे पूर्व में आपने श्रीरामोत्तरतापिनीयोपनिषद् का प्रथम भाग पढ़ा अब इससे आगे इस भाग-२ में श्रीराम के ४७ मंत्र एवं उनका महत्व का वर्णन है।

श्रीरामोत्तरतापिनीयोपनिषद्

श्रीरामोत्तरतापिनीयोपनिषत्

श्रीराम के ४७ मंत्र एवं उनका महत्व

अथ हैनं भरद्वाजो याज्ञवल्क्यमुवाचाथ

कैर्मन्त्रैः स्तुत: श्रीरामचन्द्रः प्रीतो भवति ।

स्वात्मानं दर्शयति तन्नो ब्रूहि भगवन्निति ।।१।।

तदुपरान्त भरद्वाज मुनि ने उन प्रसिद्ध याज्ञवल्क्य से पूछा- 'हे भगवन् ! जिन मंत्रों के द्वारा स्तुति करने पर श्रीराम प्रसन्न होते हैं और अपने स्वरूप का प्रत्यक्ष दर्शन कराते हैं- आप उन मंत्रों का हमें उपदेश करें'। (१)

स होवाच याज्ञवल्क्य:

पूर्व सत्यलोके श्रीरामचन्द्रेणैवं शिक्षितो

ब्रह्मा पुनरेतया गाथया नमस्करोति ।। २।।

तब याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया- 'जिस प्रकार श्रीराम ने शंकरजी को वरदान देते समय काशी का महत्व बताया था, उसी प्रकार उन्होंने किसी समय ब्रह्माजी को वैसा ही उपदेश किया था। उनका उपदेश सुन ब्रह्माजी ने उनका निम्न गद्यमयी भाषा में नमस्कार किया था (२)।

विश्वरूपधरं विष्णुं नारायणमनामयम् ।

पूर्णानन्दकविज्ञानं परं ब्रह्मस्वरूपिणम् ।

मनसा संस्मरन्ब्रह्मा तुष्टाव परमेश्वरम् ।। ३।।

जो सम्पूर्ण विश्व के आधार महाविष्णु हैं, रोग-शोक से रहित नारायण हैं, परिपूर्ण आनन्दघन, विज्ञान के आश्रय हैं, परमप्रकाश रूप हैं- उन परमेश्वर श्रीराम की स्तुति ब्रह्माजी ने मन ही मन उनको प्रणाम करके इस प्रकार की- (३)।

४/१. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान्

द्वैतपरमानन्दात्मा यत्परं ब्रह्म भूर्भुवः स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान् हैं। वे अद्वितीय परमानन्द स्वरूप आत्मा हैं। जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, र्भुवः, स्व: - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (१)।

[नोट : भगवान् शब्द का अर्थ- जिसमें सम्पूर्ण ऐश्वर्य, सम्पूर्ण धर्म, सम्पूर्ण यश, सम्पूर्ण श्री, सम्पूर्ण ज्ञान और सम्पूर्ण वैराग्य- यह छ: हों उसे भगवान् कहा जाता है।]

४/२. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

यश्चाखण्डैकरसात्मा भूर्भुवः स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान् हैं। वे अखण्ड स्वरूप परमात्मा हैं। जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, भुवः, स्वः - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (२)।

४/३. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

यश्च ब्रह्मानन्दामृतं भूर्भुव: स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान् हैं। वे आनन्दमय अमृतमय ब्रह्मानन्द स्वरूप हैं। जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, भुवः, स्वः - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (३)।

४/४. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

यस्तारकं ब्रह्म भूर्भुवः स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान् हैं। वे तारक ब्रह्म हैं। जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, भुवः, स्वः - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (४)।

४/५. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

यो ब्रह्मा विष्णुरीश्वरो यः सर्वदेवात्मा

भूर्भुवः स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान् हैं। वे ब्रह्मा, विष्णु और शिव हैं। वे सर्वदेवमय परमात्मा हैं। जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, र्भुवः, स्व: - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (५)।

४/६. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

ये सर्वे वेदाः साङ्गा: सशाखा: सपुराणा

भूर्भुवः स्वस्तस्मै वै नमो नमः।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान् हैं। वे अंगों सहित सम्पूर्ण वेद, उनकी शाखाएं, पुराण तथा भू आदि जो तीनों लोक हैं उन सबके रूप में प्रतिष्ठित हैं। जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, र्भुवः, स्वः यह तीनों भू आदि जो तीनों लोक हैं उन सबके रूप में प्रतिष्ठित हैं। जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, भुवः, स्व: - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (६)।

४/७. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

यो जीवात्मा भूर्भुवः स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान् हैं। वे जीवात्मा स्वरूप हैं। जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, भुवः, स्व: - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (७)।

४/८. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

यः सर्वभूतान्तरात्मा भूर्भुवः स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान् हैं। वे सम्पूर्ण प्राणियों एवं भूतों की अन्र्तात्मा हैं। जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, भुवः, स्वः - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (८)।

४/९. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

ये देवासुरमनुष्यादिभावा भूर्भुवः स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान् हैं। वे देवता, असुर और मनुष्य आदि जातियों के रूप में विराजमान हैं। जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, भुवः, स्व: - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (९)।

४/१०. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

ये मत्स्यकूर्माद्यवतारा भूर्भुवः स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान् हैं। उन्होंने मत्स्य, कच्छप आदि अवतार लिये थे। जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, भुवः, स्व: - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (१०)।

४/११. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

यश्च प्राणो भूर्भुवः स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान् हैं। वे (जीव के) प्राण स्वरूप हैं। जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, भुव:, स्व: - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (११)।

४/१२. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

योऽन्त:करणचतुष्टयात्मा भूर्भुव: स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान् हैं। वे मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार- इन चार प्रकार के अन्त:करणों में स्थित चेतन आत्मा हैं। जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, भुवः, स्वः - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (१२)।

४/१३. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

यश्च यमो भूर्भुव: स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान् हैं। वे यम आदि स्वरूप हैं। जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, र्भुवः, स्वः - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (१३)।

४/१४. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

यश्चान्तको भूर्भुवः स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान् हैं। वे 'अन्तक' (शिव) स्वरूप हैं। जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, र्भुवः, स्व: - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (१४)।

४/१५. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

यश्च मृत्यु भूर्भुव: स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान् हैं। वे मृत्यु स्वरूप हैं। जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, भुवः, स्वः - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (१५)।

४/१६. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

यश्चामृतं भूर्भुव: स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान् हैं। वे अमृत स्वरूप हैं। जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, भुवः, स्वः - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (१६)।

४/१७. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

यानि पञ्चमहाभूतानि भूर्भुवः स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान् हैं। वे पञ्चमहाभूत (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) स्वरूप हैं। जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, र्भवः, स्वः - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (१७)।

४/१८. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

यः स्थावरजङ्गमात्मा भूर्भुवः स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान् हैं। वे स्थावर-जङमरूपी संसार की आत्मा हैं। (यानि कि चराचर जगत स्वरूप हैं।) जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, भुवः, स्व: - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (१८)।

४/१९. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

ये च पञ्चाग्नयो भूर्भुवः स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान् हैं। वे आहवनीय आदि पाँच अग्नि स्वरूप हैं। जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, भुवः, स्व: - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (१९)।

[नोट : अग्नि के पाँच रूप निम्न है- गार्हपत्य, आहवनीय, दक्षिणाग्नि, सभ्य एवं आवसथ्य। अथवा सूर्य, विजली, पृथ्वी की अग्नि, गृहपति एवं पुरोहित।]

४/२०. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

या: सप्तव्याहृतयो भूर्भुवः स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान् हैं। वे भूः आदि सात महाव्याहृतियाँ स्वरूप हैं। (ये निम्न हैं- भू:, भुवः, स्व:, महः, जनः, तपः, सत्यम:)। जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, भुवः, स्व: - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (२०)।

४/२१. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

या विद्या भूर्भुव: स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान् हैं। वे विद्या स्वरूप हैं। जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, र्भुवः, स्वः - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (२१)।

४/२२. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

या सरस्वती भूर्भुवः स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान् हैं। वे सरस्वती के रूप हैं। जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, भुवः, स्वः - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (२२)।

४/२३. ॐ यो ह वे श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

या लक्ष्मी: भूर्भुव: स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान हैं। वे लक्ष्मी स्वरूप हैं। जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, र्भुवः, स्वः - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (२३)।

४/२४. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

या गौरी भूर्भुवः स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान् हैं। वे गौरी (पार्वती) स्वरूप हैं। जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, भुवः, स्व: - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार हे (२४)।

४/२५. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

या जानकी भूर्भुवः स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान् हैं। वे जानकी (सीता) स्वरूप हैं। जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, भुवः, स्व: - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (२५)।

४/२६. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

यश्च त्रैलोक्यं भूर्भुवः स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान् हैं। वे त्रिलोकी- भूः, भुव: और स्वः - स्वरूप हैं। जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म भी हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (२६)।

४/२७. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

यः सूर्यः भूर्भुव: स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान् हैं। वे सूर्यदेव स्वरूप हैं। जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, भुवः, स्वः - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (२७)।

४/२८. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

यः सोमः भूर्भुवः स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान् हैं। वे चन्द्रदेव स्वरूप हैं। जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, भुवः, स्वः - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (२८)।

४/२९. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

यानि च नक्षत्राणि भूर्भुवः स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान् हैं। वे समस्त नक्षत्रगण स्वरूप हैं। जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, भुवः, स्व: - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (२९)।

४/३०. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

ये च नवग्रहा: भूर्भुव: स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान् हैं। वे नवग्रह स्वरूप हैं।

(नवग्रह निम्न है- सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु, केतु)।

जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, भुवः, स्व: - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (३०)।

४/३१. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

ये चाष्टौ लोकपाला: भूर्भुवः स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान् हैं। वे आठों लोकपालों के स्वरूप हैं।

(८ लोकपाल निम्न हैं- इन्द्र, अग्नि, यम, नर्ऋति, वरुण, वायु, कुबेर, ईश)।

जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, भव: स्व: - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (३१)।

४/३२. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

ये चाष्टौ वसवः भूर्भुवः स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान् हैं। वे आठ वसु स्वरूप हैं।

(८ वसु निम्न हैं- कुबेर, शिव, विष्णु, सूर्य, जल, अग्नि, रत्न, सोना)।

जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, भुवः, स्व: - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (३२)।

४/३३. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

ये चैकादश रुद्राः भूर्भुव: स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान् हैं। वे ११ रूद्र स्वरूप हैं।

(११ रूद्र निम्न हैं- मन्यु, मनु, महिनस, महान्, शिव, ऋतध्वज्, उग्ररेता, भव, काल, वामदेव, धृतव्रत- श्रीमदभागवत, ३/१२/१२)।

जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, भुवः, स्व: - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार हे (३३)।

४/३४. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

ये द्वादशादित्या: भूर्भुवः स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान हैं। वे १२ आदित्य स्वरूप हैं।

(१२ आदित्य अदिति के निम्न पुत्र हैं- सूर्य, इन्द्र, वामन, विष्णु एवं ८ वसु जिनका नाम पद संख्या ३१ में वर्णित है)।

जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, भुवः, स्वः - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (३४)।

४/३५. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

यश्च भूतं भव्यं भविष्यत् भूर्भुवः स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान् हैं। वे भूतकाल, वर्तमानकाल एवं भविष्यकाल स्वरूप हैं। जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, र्भुवः, स्वः - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (३५)।

४/३६. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

यश्च ब्रह्माण्डस्यान्तर्बहिर्व्याप्नोति विराड्

भूर्भुवः स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।

[४/३६. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

यद्ब्रह्माण्डस्य बहियाप्तम् भूर्भुवः स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।]

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान् हैं। वे विराट परमेश्वर स्वरूप इस ब्रह्माण्ड के भीतर एवं बाहर सब जगह व्याप्त हैं। जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, भुवः, स्व: - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (३६)।

४/३७. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

यो हिरण्यगभ: भूर्भुव: स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान हैं। वे हिरण्यगर्भ (ब्रह्मा एवं विष्णु) के स्वरूप हैं। जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, भुवः, स्व: - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (३७)।

४/३८. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

या प्रकृति: भूर्भुव: स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान हैं। वे प्रकृति स्वरूप हैं। जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, भुवः, स्वः यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (३८)। स्वः - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (३८)।

४/३९. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

यश्चोङ्कारः भूर्भुवः स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान् हैं। वे ओंकार (ॐ) स्वरूप हैं। जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, र्भुवः, स्वः - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (३९)।

४/४०. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

याश्चतस्रोर्धमात्रा: भूर्भुव: स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान् हैं। वे चार अर्द्धमात्रा स्वरूप हैं। जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, भुवः, स्व: - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (४०)।

४/४१. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

यश्च परमपुरुष: भूर्भुव: स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान् हैं। वे परमपुरुष स्वरूप हैं। जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, भुव:, स्व: - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (४१)।

४/४२. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

यश्च महेश्वरः भूर्भुवः स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान् हैं। वे महेश्वर (भगवान् शिव) स्वरूप हैं। जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, भुवः, स्व: - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (४२)।

४/४३. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

यश्च महादेवः भूर्भुवः स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान् हैं। वे महादेव (भगवान् शिव अथवा देवताओं में सर्वश्रेष्ठ) स्वरूप हैं। जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, भुवः, स्वः - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (४३)।

४/४४. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

य ॐ नमो भगवते वासुदेवाय महाविष्णुः

भूर्भुवः स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान् हैं। वे 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' इस द्वादश अक्षर मंत्र से प्रणाम करने योग्य भगवान् विष्णु स्वरूप हैं। जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, भुवः, स्व: - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (४४)।

४/४५. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

यः परमात्मा भूर्भुवः स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान् हैं। वे परमात्मा हैं। जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, भुवः, स्व: - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (४५)।

४/४६. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवान् 

यो विज्ञानात्मा भूर्भुवः स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान् हैं। वे विज्ञानात्मा स्वरूप हैं। जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, भुवः, स्वः - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (४६)।

४/४७. ॐ यो ह वै श्रीरामचन्द्रः स भगवानद्वैतपरमानन्दआत्मा ।

य: सच्चिदानन्दाद्वैतैकचिदात्मा भूर्भुव: स्वस्तस्मै वै नमो नमः ।

ॐ जो जगत प्रसिद्ध श्रीरामचन्द्र हैं वे निश्चय ही भगवान् हैं। वे सच्चिदानन्द, अद्वैत परमानन्द आत्मा स्वरूप हैं। जो सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म तथा भू, र्भुवः, स्वः - यह तीनों लोक हैं वह सब भी वो ही हैं। उन श्रीरामचन्द्रजी को निश्चय ही मेरा बारम्बार नमस्कार है (४७)।

५. इति तान्ब्रह्माबवित ।

सप्तचत्वारिंशन्मन्त्रैर्नित्यं देवं स्तुवध्वम् ।

ततो देवः प्रीतो भवति । स्वात्मानं दर्शयति ।

तस्माद्य एतैर्मन्वैर्नित्यं देवं स्तौति स देवं पश्यति ।

सोऽमृतत्वं च गच्छतिती महोपनिषत् ।।५।।

जो ब्रह्मवेत्ता इन ४७ मंत्रों के अनुसार प्रतिदिन श्रीराम की उपासना करता है, स्तवन करता है उस पर वे प्रसन्न होते हैं। वह भगवान् का प्रत्यक्ष दर्शन करता है। वह अमृत तत्त्व को प्राप्त होता है। वह मुक्त होकर परमात्मा को प्राप्त होते हैं (३)।

इस प्रकार श्रीरामोत्तरतापिनीयोपनिषद् का भाग-२ समाप्त हुआ।

शेष जारी.............. श्रीरामोत्तरतापिनीयोपनिषद् अंतिम भाग

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