हनुमत्पञ्चरत्न स्तोत्र

हनुमत्पञ्चरत्न स्तोत्र

श्रीमदाद्यशंकराचार्यकृत इस श्रीहनुमत्पञ्चरत्न स्तोत्र का जो नित्य पाठ करता है, उसके सारे कष्ट श्रीहनुमानजी हर लेते हैं और वह इस लोक में चिर-काल तक समस्त भोगों को भोगकर श्रीरामजी के दिव्य लोक को जाता है।

हनुमत्पञ्चरत्न स्तोत्र

श्रीमदाद्यशंकराचार्यकृतं श्रीहनुमत्पञ्चरत्नस्तोत्रम्

वीताखिलविषयेच्छं जातानन्दाश्रुपुलकमत्यच्छम् ।

सीतापतिदूताद्यं वातात्मजमद्य भावये हृद्यम् ॥१॥

जिनके हृदय से समस्त विषयों की इच्छा दूर हो गयी है, (श्रीराम के प्रेम में विभोर हो जाने के कारण) जिनके नेत्रों में आनन्द के आँसू और शरीर में रोमाञ्च हो रहे हैं, जो अत्यन्त निर्मल हैं, सीतापति श्रीरामचन्द्रजी के प्रधान दूत हैं, मेरे हृदय को प्रिय लगनेवाले उन पवनकुमार हनुमानजी का मैं ध्यान करता हूँ॥१॥

तरुणारुणमुखकमलं करुणारसपूरपूरितापाङ्गम् ।

संजीवनमाशासे मञ्जुलमहिमानमञ्जनाभाग्यम् ॥२॥

बाल रवि के समान जिनका मुखकमल लाल है, करुणारस के समूह से जिनके लोचन-कोर भरे हुए हैं, जिनकी महिमा मनोहारिणी है, जो अञ्जना के सौभाग्य हैं, जीवनदान देनेवाले उन हनुमानजी से मुझे बड़ी आशा है॥२॥

शम्बरवैरिशरातिगमम्बुजदलविपुललोचनोदारम् ।

कम्बुगलमनिलदिष्टं बिम्बज्वलितोष्ठमेकमवलम्बे ॥३॥

जो कामदेव के बाणों को जीत चुके हैं, जिनके कमलपत्र के समान विशाल एवं उदार लोचन हैं, जिनका शङ्ख के समान कण्ठ और बिम्बफल के समान अरुण ओष्ठ हैं, जो पवन के सौभाग्य हैं, एकमात्र उन हनुमानजी की ही मैं शरण लेता हूँ॥३॥

दूरीकृतसीतार्तिः प्रकटीकृतरामवैभवस्फूर्तिः।

दारितदशमुखकीर्तिः पुरतो मम भातु हनुमतो मूर्तिः॥४॥

जिन्होंने सीताजी का कष्ट दूर किया और श्रीरामचन्द्रजी के ऐश्वर्य की स्फूर्ति को प्रकट किया, दशवदन रावण की कीर्ति को मिटानेवाली वह हनुमानजी की मूर्ति मेरे सामने प्रकट हो॥४॥

वानरनिकराध्यक्षं दानवकुलकुमुदरविकरसदृक्षम् ।

दीनजनावनदीक्षं पवनतपःपाकपुञ्जमद्राक्षम् ॥५॥

जो वानर-सेना के अध्यक्ष हैं, दानवकुलरूपी कुमुदों के लिये सूर्य को किरणों के समान हैं, जिन्होंने दीनजनों की रक्षा की दीक्षा ले रखी है, पवनदेव की तपस्या के परिणामपुञ्ज उन हनुमानजी का मैंने दर्शन किया॥५॥

एतत् पवनसुतस्य स्तोत्रं यः पठति पञ्चरत्नाख्यम् ।

चिरमिह निखिलान् भोगान् भुक्त्वा श्रीरामभक्तिभाग् भवति ॥६॥

पवनकुमार श्रीहनुमानजी के इस 'पञ्चरत्न' नामक स्तोत्र का जो पाठ करता है, वह इस लोक में चिर-काल तक समस्त भोगों को भोगकर श्रीरामभक्ति का भागी होता है॥६॥

॥ इति श्रीमदाद्यशङ्कराचार्यकृतं हनुमत्पञ्चरत्नस्तोत्रम् ॥

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