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मूल शांति पूजन विधि कहा गया है कि यदि भोजन बिगड़ गया तो शरीर बिगड़ गया और यदि संस्कार बिगड़ गया तो जीवन बिगड़ गया । प्राचीन काल से परंपरा रही कि...
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रघुवंशम् द्वितीय सर्ग Raghuvansham dvitiya sarg महाकवि कालिदास जी की महाकाव्य रघुवंशम् प्रथम सर्ग में आपने पढ़ा कि-महाराज दिलीप व उनकी प...
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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
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मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
लान्गूलोपनिषत्
इस लान्गूलोपनिषत् को श्रीरामचन्द्र
ने, श्रीमहादेव ने तथा श्रीवीरभद्र ने कहा
व त्रिसन्ध्य पाठ करने का उपदेश किया है । इस लान्गूलोपनिषत् के पाठ से हनुमान जी
की सिद्धि तथा उनसे साधक की सभी मनोवांक्षित की प्राप्ति होती है।
अथ लान्गूलोपनिषत् प्रारम्भ:
ॐ अस्य
श्रीअनन्तघोरप्रलयज्वालाग्निरौद्रस्य वीरहनुमत्साध्यसाधनाघोरमूलमन्त्रस्य ईश्वर
ऋषिः । अनुष्टुप् छन्दः । श्रीरामलक्ष्मणौ देवता । सौं बीजम् । अञ्जनासूनुरिति
शक्तिः । वायुपुत्र इति कीलकम् । श्रीहनुमत्प्रसादसिद्ध्यर्थं
भूर्भुवस्स्वर्लोकसमासीन-तत्वम्पदशोधनार्थं जपे विनियोगः ।
ॐ भूः नमो भगवते
दावानलकालाग्निहनुमते अङ्गुष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ भुवः नमो भगवते चण्डप्रतापहनुमते
तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ स्वः नमो भगवते चिन्तामणिहनुमते
मध्यमाभ्यां नमः ।
ॐ महः नमो भगवते पातालगरुडहनुमते
अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ जनः नमो भगवते
कालाग्निरुद्रहनुमते कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ॐ तपः सत्यं नमो भगवते
भद्रजातिविकटरुद्रवीरहनुमते
करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ भूः नमो भगवते
दावानलकालाग्निहनुमते हृदयाय नमः ।
ॐ भुवः नमो भगवते चण्डप्रतापहनुमते
शिरसे स्वाहा ।
ॐ स्वः नमो भगवते चिन्तामणिहनुमते
शिखायै वषट् ।
ॐ महः नमो भगवते पातालगरुडहनुमते
कवचाय हुम् ।
ॐ जनः नमो भगवते
कालाग्निरुद्रहनुमते नेत्रत्रयाय वौषट् ।
ॐ तपः सत्यं नमो भगवते
भद्रजातिविकटरुद्रवीरहनुमते अस्त्राय फट् ।
अथ ध्यानम् ।
वज्राङ्गं पिङ्गनेत्रं
कनकमयलसत्कुण्डलाक्रान्तगण्डं
दम्भोलिस्तम्भसारप्रहरणविवशीभूतरक्षोऽधिनाथम्
।
उद्यल्लाङ्गूलघर्षप्रचलजलनिधिं
भीमरूपं कपीन्द्रं
ध्यायन्तं रामचन्द्रं प्लवगपरिवृढं
सत्वसारं प्रसन्नम् ॥
इति मानसोपचारैः सम्पूज्य ।
ॐ नमो भगवते दावानलकालाग्निहनुमते
जयश्रियो जयजीविताय
धवलीकृतजगत्त्रय वज्रदेह वज्रपुच्छ
वज्रकाय वज्रतुण्ड
वज्रमुख वज्रनख वज्रबाहो वज्ररोम
वज्रनेत्र वज्रदन्त वज्रशरीर
सकलात्मकाय भीमकर पिङ्गलाक्ष उग्र
प्रलयकालरौद्र वीरभद्रावतार
शरभसालुवभैरवदोर्दण्ड लङ्कापुरीदाहन
उदधिलङ्घन
दशग्रीवकृतान्त सीताविश्वास
ईश्वरपुत्र अञ्जनागर्भसम्भूत
उदयभास्करबिम्बानलग्रासक देवदानवऋषिमुनिवन्द्य
पाशुपतास्त्रब्रह्मास्त्रबैलवास्त्रनारायणास्त्रकालशक्तिकास्त्रदण्डकास्त्र-
पाशाघोरास्त्रनिवारण
पाशुपतास्त्रब्रह्मास्त्रबैलवास्त्रनारायणास्त्रमृड
सर्वशक्तिग्रसन ममात्मरक्षाकर
परविद्यानिवारण आत्मविद्यासंरक्षक
अग्निदीप्त अथर्वणवेदसिद्धस्थिरकालाग्निनिराहारक
वायुवेग मनोवेग
श्रीरामतारकपरब्रह्मविश्वरूपदर्शन
लक्ष्मणप्राणप्रतिष्ठानन्दकर
स्थलजलाग्निमर्मभेदिन् सर्वशत्रून्
छिन्धि छिन्धि मम वैरिणः
खादय खादय मम सञ्जीवनपर्वतोत्पाटन
डाकिनीविध्वंसन
सुग्रीवसख्यकरण निष्कलङ्क
कुमारब्रह्मचारिन् दिगम्बर सर्वपाप
सर्वग्रह कुमारग्रह सर्वं छेदय छेदय
भेदय भेदय
भिन्धि भिन्धि खादय खादय टङ्क टङ्क
ताडय ताडय मारय मारय
शोषय शोषय ज्वालय ज्वालय हारय हारय
नाशय नाशय
अतिशोषय अतिशोषय मम सर्वं च हनुमन्
रक्ष रक्ष
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं हुं फट् घे घे
स्वाहा ॥
ॐ नमो भगवते चण्डप्रतापहनुमते
महावीराय सर्वदुःखविनाशनाय
ग्रहमण्डलभूतमण्डलप्रेतपिशाचमण्डलसर्वोच्चाटनाय
अतिभयङ्करज्वर-माहेश्वरज्वर-विष्णुज्वर-ब्रह्मज्वर-
वेताळब्रह्मराक्षसज्वर-पित्तज्वर-श्लेष्मसान्निपातिकज्वर-विषमज्वर-
शीतज्वर-एकाहिकज्वर-द्व्याहिकज्वर-त्रैहिकज्वर-चातुर्थिकज्वर-
अर्धमासिकज्वर-मासिकज्वर-षाण्मासिकज्वर-सांवत्सरिकज्वर-
अस्थ्यन्तर्गतज्वर-महापस्मार-श्रमिकापस्मारांश्च
भेदय भेदय
खादय खादय ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं हुं
फट् घे घे स्वाहा ॥
ॐ नमो भगवते चिन्तामणिहनुमते
अङ्गशूल-अक्षिशूल-शिरश्शूल-
गुल्मशूल-उदरशूल-कर्णशूल-नेत्रशूल-गुदशूल-कटिशूल-
जानुशूल-जङ्घाशूल-हस्तशूल-पादशूल-गुल्फशूल-वातशूल-
पित्तशूल-पायुशूल-स्तनशूल-परिणामशूल-परिधामशूल-
परिबाणशूल-दन्तशूल-कुक्षिशूल-सुमनश्शूल-सर्वशूलानि
निर्मूलय निर्मूलय
दैत्यदानवकामिनीवेतालब्रह्मराक्षसकोलाहल-
नागपाशानन्तवासुकितक्षककार्कोटकलिङ्गपद्मककुमुदज्वलरोगपाश-
महामारीन् कालपाशविषं निर्विषं कुरु
कुरु
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं हुं फट् घे घे
स्वाहा ॥
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ग्लां ग्लीं
ग्लूं ॐ नमो भगवते पातालगरुडहनुमते
भैरववनगतगजसिंहेन्द्राक्षीपाशबन्धं
छेदय छेदय
प्रलयमारुत कालाग्निहनुमन् श्रृङ्खलाबन्धं
विमोक्षय विमोक्षय
सर्वग्रहं छेदय छेदय मम
सर्वकार्याणि साधय साधय
मम प्रसादं कुरु कुरु मम प्रसन्न
श्रीरामसेवकसिंह भैरवस्वरूप
मां रक्ष रक्ष ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं
ह्रां ह्रीं क्ष्मौं भ्रैं श्रां श्रीं
क्लां क्लीं क्रां क्रीं ह्रां
ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः ह्रां ह्रीं हुं ख ख
जय जय मारण मोहन घूर्ण घूर्ण दम दम
मारय मारय वारय वारय
खे खे ह्रां ह्रीं ह्रूं हुं फट् घे
घे स्वाहा ॥
ॐ नमो भगवते कालाग्निरौद्रहनुमते
भ्रामय भ्रामय लव लव
कुरु कुरु जय जय हस हस मादय मादय
प्रज्वलय प्रज्वलय
मृडय मृडय त्रासय त्रासय साहय साहय
वशय वशय
शामय शामय
अस्त्रत्रिशूलडमरुखड्गकालमृत्युकपालखट्वाङ्गधर
अभयशाश्वत हुं हुं अवतारय अवतारय
हुं हुं अनन्तभूषण
परमन्त्र-परयन्त्र-परतन्त्र-शतसहस्र-कोटितेजःपुञ्जं
भेदय भेदय अग्निं बन्धय बन्धय वायुं
बन्धय बन्धय
सर्वग्रहं बन्धय बन्धय
अनन्तादिदुष्टनागानां द्वादशकुल-
वृश्चिकानामेकादशलूतानां विषं हन हन
सर्वविषं बन्धय बन्धय
वज्रतुण्ड उच्चाटय उच्चाटय
मारणमोहनवशीकरणस्तम्भन-
जृम्भणाकर्षणोच्चाटनमिलनविद्वेषणयुद्धतर्कमर्माणि
बन्धय बन्धय
ॐ कुमारीपदत्रिहारबाणोग्रमूर्तये
ग्रामवासिने अतिपूर्वशक्ताय
सर्वायुधधराय स्वाहा अक्षयाय घे घे
घे घे ॐ लं लं लं घ्रां
घ्रौं स्वाहा ॐ ह्लां ह्लीं ह्लूं
हुं फट् घे घे स्वाहा ॥
ॐ श्रां श्रीं श्रूं श्रैं श्रौं
श्रः ॐ नमो भगवते
भद्रजातिविकटरुद्रवीरहनुमते टं टं
टं लं लं लं लं
देवदत्तदिगम्बराष्टमहाशक्त्यष्टाङ्गधर
अष्टमहाभैरवनव-
ब्रह्मस्वरूप दशविष्णुरूप
एकादशरुद्रावतार द्वादशार्कतेजः
त्रयोदशसोममुख वीरहनुमन्
स्तम्भिनीमोहिनीवशीकरिणीतन्त्रैकसावयव
नगरराजमुखबन्धन
बलमुखमकरमुखसिंहमुखजिह्वामुखानि
बन्धय बन्धय स्तम्भय स्तम्भय व्याघ्रमुखसर्ववृश्चिकाग्नि-
ज्वालाविषं निर्गमय निर्गमय
सर्वजनवैरिमुखं बन्धय बन्धय
पापहर वीर हनुमन् ईश्वरावतार
वायुनन्दन अञ्जनासुत बन्धय बन्धय
श्रीरामचन्द्रसेवक ॐ ह्रां ह्रां
ह्रां आसय आसय ह्लीं ह्लां घ्रीं क्रीं
यं भैं म्रं म्रः हट् हट् खट् खट्
सर्वजन-विश्वजन-शत्रुजन-
वश्यजन-सर्वजनस्य दृशं लं लां श्रीं
ह्रां ह्रीं मनः स्तम्भय
स्तम्भय भञ्जय भञ्जय अद्रि ह्रीं व
हीं हीं मे सर्व हीं हीं
सागरहीं हीं वं वं
सर्वमन्त्रार्थाथर्वणवेदसिद्धिं कुरु कुरु स्वाहा ।
श्रीरामचन्द्र उवाच । श्रीमहादेव
उवाच । श्रीवीरभद्रस्तौ उवाच ।
त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नर ॥
॥ इत्याथर्वणरहस्ये लाङ्गूलोपनिषत् सम्पूर्णम् ॥
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