पूजन विधि, ज्योतिष, स्तोत्र संग्रह, व्रत कथाएँ, मुहूर्त, पुजन सामाग्री आदि

लांगूलास्त्र शत्रुंजय हनुमत् स्तोत्रं

लांगूलास्त्र शत्रुंजय हनुमत् स्तोत्रं

यह श्री लांगूलास्त्र शत्रुंजय हनुमत् स्तोत्रं भगवान हनुमान को समर्पित है और उनका पूंछ ही लाँगूलास्त्र है। इसका पाठ विशेषरूप से शत्रुओं के विनाश और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए किया जाता है। इसके अतिरिक्त इसका पाठ करने से जीवन के सभी संकट दूर होते हैं। भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। पाठ का तरीका: शत्रुञ्जय नाम से विख्यात इस स्तोत्र का अश्वत्थ (पीपल) के पेड़ के नीचे बैठकर पाठ या साधना करने से हनुमान जी की कृपा से साधक के सभी शत्रु शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं और आनंद प्रदान करता है तथा हनुमान जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह स्तोत्र हनुमान जी की विभिन्न गुणों, अदम्य शक्ति, वीरता, संकटमोचन और उनके शत्रुओं पर विजय का बखान करता है। इसके प्रत्येक श्लोक में लोलल्लाङ्गूलपातेन ममाऽरातीन् निपातय आया है जिसका अर्थ है कि उनके ऊँची लहरदार पूंछ के कंपन मात्र से ही शत्रुओं का नाश हो जाता है, वैसे ही मेरे सारे शत्रुओं का नाश हो जाए।

लांगूलास्त्र शत्रुंजय हनुमत् स्तोत्रं

श्रीलाङ्गूलास्त्रशत्रुञ्जय हनुमत्स्तोत्रम्

Langulastra Hanumat stotra

श्री लांगूलास्त्र शत्रुञ्जय हनुमत् स्तोत्र

लांगूलास्त्र स्तोत्र

॥ लाङ्गूलास्त्रशत्रुञ्जय हनुमत्स्तोत्रम् ॥

लोकाभीरामं रणरङ्गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंश नाथम् ।

कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये ॥

जो सारे लोकों में सुंदर हैं, युद्धभूमि में धीर हैं, जिनके नेत्र कमल के समान हैं, जो रघुकुल के नाथ हैं, जो करुणा के स्वरूप और भंडार हैं, उन श्रीरामचंद्र की मैं शरण लेता हूँ।

ॐ हनुमन्तं महावीरं वायुतुल्यपराक्रमम् ।

मम कार्यार्थमागच्छ प्रणमामि मुहुर्मुहुः ॥

हे महावीर हनुमान, हे वायु के समान वेग वाले, मेरे कार्य की सिद्धि के लिए आओ, मैं आपको बार-बार प्रणाम करता हूँ।

श्री लाङ्गूलास्त्र शत्रुञ्जय हनुमत् स्तोत्रं

विनियोगः

ॐ अस्य हनुमञ्च्छत्रुञ्जयस्तोत्रमालामन्त्रस्य श्रीरामचन्द्र ऋषिः नाना छन्दांसि श्रीमन्महावीरो हनुमान्देवता मारुतात्मज ह्रों इति बीजम् अञ्जनीसूनु ह्स्फ्रें इति शक्तिः ॐ हांहांहां इति कीलकम्  श्रीरामभक्त ह्रां इति प्राणः श्रीरामलक्ष्मणानन्दकर ह्रांह्रींह्रूं इति जीवः ममारातिपराजयनिमित्त शत्रुञ्जयस्तोत्रमालामन्त्रजपे विनियोगः ॥ (बीजादौ सर्वत्र संयोज्य)

ॐ इस हनुमत् शत्रुञ्जय स्तोत्रमाला मंत्र के ऋषि श्री रामचंद्र हैं, विभिन्न छन्द, श्री महावीर हनुमान देवता हैं, मारुतात्मज ह्रों बीज हैं, अंजनीसूनु हस्फ्रें शक्ति हैं, ॐ हांहांहां कीलक,  श्री रामभक्त प्राणशक्ति हैं, श्री राम लक्ष्मणानंदकर ह्रांह्रींह्रूं जीव हैं, अपने शत्रुओं के पराजय के निमित्त इस शत्रुंजय स्तोत्रमाला मंत्र के जप के लिए विनियोग हैं। (बीज के आरंभ में सर्वत्र संयोज्य)                   

अथ करन्यासः

ॐ ऐं श्रीं ह्रांह्रींह्रूं स्फें ख्फें ह्सौं ह्स्ख्फ्रेंह्सौं नमो हनुमते अङ्गुष्ठाभ्यां नमः ॥

ॐ ऐं श्रीं ह्रांह्रींह्रूं स्फें ख्फें ह्सौं ह्स्ख्फ्रें ह्सौं नमो रामदूताय तर्जनीभ्यां नमः ॥

ॐ ऐं श्रीं ह्रांह्रींह्रूं स्फें ख्फें ह्सौं ह्स्ख्फ्रें ह्सौं नमो लक्ष्मणप्राणदात्रे मध्यमाभ्यां नमः ॥

ॐ ऐं श्रीं ह्रांह्रींह्रूं स्फें ख्फें ह्सौं ह्स्ख्फ्रें ह्सौं नमो अञ्जनीसूनवे अनामिकाभ्यां नमः ॥

ॐ ऐं श्रीं ह्रांह्रींह्रूं स्फें ख्फें ह्सौं ह्स्ख्फ्रें ह्सौं नमो सीताशोकविनाशाय कनिष्ठिकाभ्यां नमः ॥

ॐ ऐं श्रीं ह्रांह्रींह्रूं स्फें ख्फें ह्सौं ह्स्ख्फ्रें ह्सौं नमो लङ्काप्रासादभञ्जनाय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ॥

अथ हृदयादिषडङ्गन्यासः

ॐ ऐं श्रीं ह्रांह्रींह्रूं स्फें ख्फें ह्सौं ह्स्ख्फ्रें ह्सौं नमो हनुमते हृदयाय नमः ॥

ॐ ऐं श्रीं ह्रांह्रींह्रूं स्फें ख्फें ह्सौं ह्स्ख्फ्रें ह्सौं नमो रामदूताय शिरसे स्वाहा ॥

ॐ ऐं श्रीं ह्रांह्रींह्रूं स्फें ख्फें ह्सौं ह्स्ख्फ्रें ह्सौं नमो लक्ष्मणप्राणदात्रे शिखायै वषट् ॥

ॐ ऐं श्रीं ह्रांह्रींह्रूं स्फें ख्फें ह्सौं ह्स्ख्फ्रें ह्सौं नमो अञ्जनीसूनवे कवचाय हुम् ॥

ॐ ऐं श्रीं ह्रांह्रींह्रूं स्फें ख्फें ह्सौं ह्स्ख्फ्रें ह्सौं नमो सीताशोकविनाशिने नेत्रत्रयाय वौषट् ॥

ॐ ऐं श्रीं ह्रांह्रींह्रूं स्फें ख्फें ह्सौं ह्स्ख्फ्रें ह्सौं नमो लङ्काप्रासादभञ्जनाय अस्त्राय फट् ॥

अथ ध्यानम्

ॐ ध्यायेद्बालदिवाकरद्युतिनिभं देवारिदर्पापहं

देवेन्द्रप्रमुखैः प्रशस्तयशसं देदीप्यमानं ऋचा ।

सुग्रीवादिसमस्तवानरयुतं सुव्यक्ततत्त्वप्रियं

संरक्तारुणलोचनं पवनजं पीताम्बरालङ्कृतम् ॥

उगते सूरज की तरह चमकने वाले, देवताओं के शत्रु (राक्षसों) के अहंकार को नष्ट करने वाले, देवराज इंद्र जैसे देवताओं द्वारा प्रशंसित, ऋचाओं (श्लोकों) से देदीप्यमान रहने वाले, सुग्रीव आदि सभी वानरों से घिरे हुए, स्पष्ट तत्व को प्रिय मानने वाले, लाल और अरुण (लाल-नारंगी) लाल आँखों वाले, और पीताम्बरधारी, पवनपुत्र (हनुमानजी) का मैं ध्यान करता हूँ।

मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्

वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शिरसा नमामि ॥

मन की गति के समान तेज, वायु के समान वेग वाले, इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने वाले, बुद्धिमानों में सर्वश्रेष्ठ, पवनपुत्र, वानरों के प्रमुख और श्री राम के दूत, हनुमानजी को मैं सिर झुकाकर नमस्कार करता हूँ। 

वज्राङ्गपिङ्गकेशाढ्यं स्वर्णकुण्डलमण्डितम् ।

नियुद्ध उपसङ्गात्रं पारावारपराक्रमम् ॥

वामहस्तगदायुक्तं पाशहस्तकमण्डलुम् ।

उद्यद्दक्षिणदोर्दण्डं हनुमन्तं विचिन्तयेत् ॥

वज्र के समान पीले बालों से युक्त, सोने के कुण्डलों से सुशोभित, युद्ध में कुशल, समुद्र के समान बल वाले, बाएँ हाथ में गदा तथा हाथ में पाश और कमंडल धारण करने वाला, जिनकी दाहिनी भुजा ऊपर उठी हुई है, मैं उन हनुमानजी का ध्यान करता हूँ। 

इति ध्यात्वा अरेमल्लचटखेत्युच्चारणेऽथवा तोडरमल्लचटखेत्युच्चारणे कपिमुद्रां प्रदर्शयेत् ॥

इस प्रकार ध्यान करने के बाद, "अरेमल्लचटखे" या "तोडरमल्लचटखे" मंत्र का जाप करना चाहिए और कपि (वानर) मुद्रा प्रदर्शित करनी चाहिए।

श्री लांगूलास्त्र शत्रुञ्जय हनुमत् स्तोत्र

अथ मन्त्रः

ॐ ऐं श्रीं ह्रांह्रींह्रूं स्फ्रें ख्फ्रें ह्सौं ह्स्ख्फ्रें ह्सौं नमो हनुमते त्रैलोक्याक्रमणपराक्रम श्रीरामभक्त मम परस्य च सर्वशत्रून् चतुवर्णसम्भवान् पुंस्त्रीनपुंसकान् भूतभविष्यद्वर्तमानान् नानादूरस्थसमीपस्थान् नानानामधेयान् नानासङ्करजातिजान् कलत्रपुत्रमित्रभृत्यबन्धुसुहृत्समेतान् पशुशक्तिसहितान् धनधान्यादिसम्पत्तियुतान् राज्ञो राजपुत्रसेवकान् मन्त्रीसचिवसखीन् आत्यन्तिकक्षणेन त्वरया एतद्दिनावधि नानोपायैर्मारय मारय शस्त्रैश्छेदय छेदय अग्निना ज्वालय ज्वालय दाहय दाहय अक्षयकुमारवत्पादतलाक्रमणेनान शिलातलेन त्रोटय त्रोटय घातय घातय वध वध भूतसङ्घैः सह भक्षय भक्षय क्रूद्धचेतसा नखैर्विदारय विदारय देशादस्मादुच्चाटय उच्चाटय पिशाचवत् भ्रंशय भ्रंशय भ्रामय भ्रामय भयातुरान् विसंज्ञान् सद्यः कुरु कुरु भस्मीभूतान् उद्धूलय उद्धूलय भक्तजनवत्सल सीताशोकापहारक सर्वत्र मामेनं च रक्ष रक्ष हांहांहां हुंहुंहुं घेघेघे हुं फट् स्वाहा ॥

ॐ नमो हनुमते महाबलपराक्रमाय महाविपत्तिनिवारकाय भक्तजनमनःकामनाकल्पद्रुमाय दुष्टजनमनोरथस्तम्भनाय प्रभञ्जनप्राणप्रियाय स्वाहा ॥

ॐ ह्रांह्रींह्रूंह्रैंह्रौंह्रः मम शत्रून् शूलेन छेदय छेदय अग्निना ज्वालय ज्वालय दाहय दाहय उच्चाटय उच्चाटय हुं फट् स्वाहा ॥

॥ इति मन्त्रं पठित्वा पुनर्ध्यायेत् ॥

इस मंत्र को पढ़ने के उपरांत पुनः ध्यान करें।

ध्यानम्

श्रीमन्तं हनुमन्तमार्तरिपुभिद्भूभृत्तटभ्राजितं

चाल्पद्वालधिबन्धवैरिनिचयं चामीकराद्रिप्रभम् ।

अष्टौ रक्तपिशङ्गनेत्रनलिनं भ्रूभङ्गभङ्गस्फुरत्

प्रोद्यच्चण्डमयूखमण्डलमुखं दुःखापहं दुःखिनाम् ॥

कौपीनं कटिसूत्रमौञ्ज्यजिनयुग्देहं विदेहात्मजा-

प्राणाधीशपदारविन्दनिरतं स्वान्तःकृतान्तं द्विषाम् ।

शत्रुओं को जीतने वाले और शत्रुओं के समूह का नाश करने वाले, श्री हनुमानजी पर्वत की चोटी पर विराजमान हैं और सोने के पर्वत के समान प्रतीत होते हैं।उनकी आठ लाल-भूरी कमल जैसी आँखें, जो भौंहों की वक्रता में चमकती हैं। प्रज्वलित और शक्तिशाली सूर्य-किरणों के समान मुख वाले, जो दुखियों के दुखों को हरते हैं। जो कौपीन (लंगोट), कटिसूत्र (कमरबंद), मौञ्जी (मूंज की करधनी) और मृगचर्म (हिरण की खाल) से देह को ढके हुए हैं। जो श्रीसीताराम जी के चरणों में नित्य रत हैं और अपने शत्रुओं का नाश करते हैं।

ध्यात्वैवं समराङ्गणस्थितमथानीय स्वहृत्पङ्कजे

सम्पूज्याखिलपूजनोक्तविधिना सम्प्रार्थयेत् प्रार्थितम् ॥

इस प्रकार ध्यान करके कि वे युद्ध के मैदान में स्थित हैं। आप अपने हृदय में स्थित हनुमान जी का ध्यान करके, स्थापित विधि के अनुसार पूजा और प्रार्थना करें।

इति ध्यात्वा स्तोत्रं पठेत् ।

इस प्रकार ध्यान करके स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।

श्री लाँगूलास्त्र शत्रुंजय हनुमान स्तोत्र

हनुमन्नञ्जनीसूनो महाबलपराक्रम ।

लोलल्लाङ्गूलपातेन ममारातीन्निपातय ॥ १॥

हे हनुमानजी! अंजनी के पुत्र, महान बल और पराक्रम वाले, अपनी लहराती हुई पूंछ के प्रहार से मेरे शत्रुओं का नाश करें।

मर्कटाधिप मार्तण्डमंडलग्रासकारक ।

लोलल्लाङ्गूलपातेन ममारातीन्निपातय ॥ २॥

हे वानरों के राजा और मंडलाकार सूर्य को निगलने वाले, हनुमान जी! अपनी लहराती हुई पूंछ के प्रहार से मेरे शत्रुओं का नाश करें।

अक्षक्षपण पिङ्गाक्ष क्षितिजासुक्षयङ्कर ।

लोलल्लाङ्गूलपातेन ममारातीन्निपातय ॥ ३॥

हे अक्षकुमार के क्षय करने वाले, भूरी (पिंगाक्ष) आँखों वाले, और पृथ्वी पर दुश्मनों का विनाश करने वाले, हनुमान जी! अपनी लहराती हुई पूंछ के प्रहार से मेरे शत्रुओं का नाश करें। 

रुद्रावतारसंसारदुःखभारापहारक ।

लोलल्लाङ्गूलपातेन ममारातीन्निपातय ॥ ४॥

हे रुद्र के अवतार, सांसारिक कष्टों के बोझ को हटा देनेवाले, कठिनाइयों को दूर करने वाले, हनुमान जी! अपनी लहराती हुई पूंछ के प्रहार से मेरे शत्रुओं का नाश करें।

श्रीरामचरणाम्भोजमधुपायितमानस ।

लोलल्लाङ्गूलपातेन ममारातीन्निपातय ॥ ५॥

जिनका मन श्रीराम के कमल जैसे चरणों रूपी कमल पर मँडराता है। ऐसे हनुमान जी! अपनी लहराती हुई पूंछ के प्रहार से मेरे शत्रुओं का नाश करें।

वालिकालरदक्लान्तसुग्रीवोन्मोचनप्रभो ।

लोलल्लाङ्गूलपातेन ममारातीन्निपातय ॥ ६॥

हे बाली के कारण दुखी और क्लान्त हुए सुग्रीव को मुक्त करने वाले, प्रभासमान, हनुमान जी! अपनी लहराती हुई पूंछ के प्रहार से मेरे शत्रुओं का नाश करें।

सीताविरहवारीशभग्नसीतेशतारक ।

लोलल्लाङ्गूलपातेन ममारातीन्निपातय ॥ ७॥

राम के विरह में दुखी और टूटी हुई सीताजी को उनकी पीड़ा से मुक्ति दिलानेवाले, हे हनुमान जी! अपनी लहराती हुई पूंछ के प्रहार से मेरे शत्रुओं का नाश करें।

रक्षोराजप्रतापाग्निदह्यमानजगद्वन ।

लोलल्लाङ्गूलपातेन ममारातीन्निपातय ॥ ८॥

राक्षसों के राजा (रावण) के तेज की अग्नि से जलते हुए संसार वन जलने से बचानेवाले, हे हनुमान जी! अपनी लहराती हुई पूंछ के प्रहार से मेरे शत्रुओं का नाश करें।

ग्रस्ताशेषजगत्स्वास्थ्य राक्षसाम्भोधिमन्दर ।

लोलल्लाङ्गूलपातेन ममारातीन्निपातय ॥ ९॥

सब कुछ खा जाने वाले, जगत के स्वास्थ्य को नष्ट करने वाले राक्षसों के समुद्र और मंदार पर्वत का संहार करने वाले, हे हनुमान जी! अपनी लहराती हुई पूंछ के प्रहार से मेरे शत्रुओं का नाश करें।

पुच्छगुच्छस्फुरद्वीर जगद्दग्धारिपत्तन ।

लोलल्लाङ्गूलपातेन ममारातीन्निपातय ॥ १०॥

अपनी पूंछ के विशाल और शक्तिशाली स्पंदनों से शत्रु के नगरों को जलाकर और सारे संसार को कष्ट पहुंचाने वाले उन राक्षसों को नष्ट करने वाले, हे हनुमान जी! अपनी लहराती हुई पूंछ के प्रहार से मेरे शत्रुओं का नाश करें।  

जगन्मनोदुरुल्लङ्घ्यपारावारविलङ्घन ।

लोलल्लाङ्गूलपातेन ममारातीन्निपातय ॥ ११॥

समुद्र को सहज ही पार कर संसार को विस्मित करने वाले, हे हनुमान जी! अपनी लहराती हुई पूंछ के प्रहार से मेरे शत्रुओं का नाश करें।  

स्मृतमात्रसमस्तेष्टपूरक प्रणतप्रिय ।

लोलल्लाङ्गूलपातेन ममारातीन्निपातय ॥ १२॥

स्मरण मात्र से सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करने वाले और शरणागत भक्तों के प्रिय, हे हनुमान जी! अपनी लहराती हुई पूंछ के प्रहार से मेरे शत्रुओं का नाश करें।  

रात्रिञ्चरचमूराशिकर्तनैकविकर्तन ।

लोलल्लाङ्गूलपातेन ममारातीन्निपातय ॥ १३॥

रात में घूमने वाले राक्षसों की सेना के समूह को काटने और उनका संहार करने वाले, हे हनुमान जी! अपनी लहराती हुई पूंछ के प्रहार से मेरे शत्रुओं का नाश करें।  

जानकीजानकीजानिप्रेमपात्र परन्तप ।

लोलल्लाङ्गूलपातेन ममारातीन्निपातय ॥ १४॥

हे जानकीनाथ के प्रेमपात्र, शत्रुओं को तपाने और परास्त करने वाले, हे हनुमान जी! अपनी लहराती हुई पूंछ के प्रहार से मेरे शत्रुओं का नाश करें।  

भीमादिकमहावीरवीरावेशावतारक ।

लोलल्लाङ्गूलपातेन ममारातीन्निपातय ॥ १५॥

हे भीम जैसे महावीर और वीर के अवतार, हनुमान जी! अपनी लहराती हुई पूंछ के प्रहार से मेरे शत्रुओं का नाश करें।  

वैदेहीविरहाक्रान्तरामरोषैकविग्रह ।

लोलल्लाङ्गूलपातेन ममारातीन्निपातय ॥ १६॥

हे वैदेही के वियोग में व्याकुल राम के क्रोध विग्रह, हनुमान जी! अपनी लहराती हुई पूंछ के प्रहार से मेरे शत्रुओं का नाश करें।  

वज्राङ्गनखदंष्ट्रेश वज्रिवज्रावगुण्ठन ।

लोलल्लाङ्गूलपातेन ममारातीन्निपातय ॥ १७॥

वज्र के समान मजबूत नाखून और दांतों वाले, वज्र से भी अजेय/अभेद्य, हे हनुमान जी! अपनी लहराती हुई पूंछ के प्रहार से मेरे शत्रुओं का नाश करें।  

अखर्वगर्वगन्धर्वपर्वतोद्भेदनस्वर ।

लोलल्लाङ्गूलपातेन ममारातीन्निपातय ॥ १८॥

अपने तीव्र स्वर से अखर्व, गर्व, गंधर्व और पर्वतों का भी भेदन करने वाले, हे हनुमान जी! अपनी लहराती हुई पूंछ (लम्बुलस्त्र) के प्रहार से मेरे शत्रुओं का नाश करें।  

लक्ष्मणप्राणसन्त्राण त्राततीक्ष्णकरान्वय ।

लोलल्लाङ्गूलपातेन ममारातीन्निपातय ॥ १९॥

लक्ष्मण के प्राण बचाने वाले और शत्रुओं को परास्त करने के लिए तीक्ष्ण और मजबूत हाथ वाले, हे हनुमान जी! अपनी लहराती हुई पूंछ (लम्बुलस्त्र) के प्रहार से मेरे शत्रुओं का नाश करें।  

रामादिविप्रयोगार्त भरताद्यार्तिनाशन ।

लोलल्लाङ्गूलपातेन ममारातीन्निपातय ॥ २०॥

श्रीराम के वियोग से पीड़ित और भरत आदि भाइयों के कष्टों को दूर करने वाले, हे हनुमान जी! अपनी लहराती हुई पूंछ के प्रहार से मेरे शत्रुओं का नाश करें।  

द्रोणाचलसमुत्क्षेपसमुत्क्षिप्तारिवैभव ।

लोलल्लाङ्गूलपातेन ममारातीन्निपातय ॥ २१॥

द्रोणाचल पर्वत को उठाने वाले और दुश्मनों के वैभव को नष्ट करने वाले, हनुमान जी! अपनी लहराती हुई पूंछ के प्रहार से मेरे शत्रुओं का नाश करें।  

सीताऽऽशीर्वादसम्पन्न समस्तावयवाक्षत ।

लोललांगूलपातेन ममारातीन्निपातय ॥ २२॥

सीता के आशीर्वाद से परिपूर्ण और अपने सभी अंगों में अक्षुण्ण, हे हनुमान जी! अपनी लहराती हुई पूंछ के प्रहार से मेरे शत्रुओं का नाश करें।  

श्री लांगूलास्त्र शत्रुञ्जय हनुमत् स्तोत्र फलश्रुति:

इत्येवमश्वत्थतलोपविष्टः शत्रुञ्जयं नाम पठेत्स्वयं यः।

स शीघ्रमेवास्तसमस्तशत्रुः प्रमोदते मारूतजप्रसादात् ॥२३॥

जो कोई अश्वत्थ (पीपल) के पेड़ के नीचे बैठकर, शत्रु को जीतने वाले (शत्रुञ्जय) हनुमान जी के लाङ्गूलास्त्र शत्रुञ्जय हनुमत् स्तोत्र का स्वयं पाठ करता है, वह शीघ्र ही सभी शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर, पवनपुत्र हनुमानजी की कृपा से आनंदित होता है।

इति श्रीलांगूलास्त्र शत्रुञ्जयं हनुमत्स्तोत्रम् ॥

ध्यान दें: इस तरह के पाठ या साधना करने से पहले किसी विद्वान या गुरु से सलाह लेना उचित होता है। साथ ही, पवित्रता और शुद्धता का ध्यान रखना महत्वपूर्ण है।

Post a Comment

Previous Post Next Post