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- भैरवी स्तोत्र
- अग्निपुराण अध्याय ८७
- अग्निपुराण अध्याय ८६
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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
तारा कवच
यह तारा कवच सभी कामनाओं को प्रदान करनेवाला
है ।
तारा कवचम्
Tara kavacham
अथ तारा कवच
भैरव उवाच
दिव्यं हि कवचं देवि तारायाः
सर्व्वकामदम् ।
श्रृणुष्व परमं तत्तु तव स्नेहात्
प्रकाशितम् ॥
भैरव ने कहा- हे देवि !
तारादेवी का दिव्यकवच सर्वकामप्रद और परमश्रेष्ठ है । तुम्हारे प्रति स्नेह के
कारण ही उसको कहता हूं ।
तारा कवच
अक्षोभ्य ऋषिरित्यस्य
छन्दस्त्रिष्टुबुदाहृतम् ।
तारा भगवती देवी मंत्रसिद्धौ
प्रकीर्त्तितम् ॥
इस कवच के ऋषि अक्षोभ्य,
छंद, त्रिष्टुप् देवता भगवती तारा और
मंत्रसिद्धि में इसका विनियोग है ।
ओंकारो मे शिरः पातु ब्रह्मरूपा
महेश्वरी ।
ह्रीङ्कारः पातु ललाटे बीजरूपा
महेश्वरी ॥
स्त्रीङ्कारः पातु वदने लज्जारूपा
महेश्वरी ।
हुङ्कार पातु हृदये तारिणी
शक्तिरूपधृक् ॥
ॐ ब्रह्मरूपा महेश्वरी मेरे मस्तक
की,
ह्रीं बीजरूपा महेश्वरी ललाट की, स्त्रीं
लज्जारूपा महेश्वरी मुख की, और हुँ शक्तिरूपधारिणी तारिणी
मेरे हृदय की रक्षा करें ।
फट्कारः पातु सर्व्वांगे सर्वसिद्धि
फलप्रदा ।
खर्वा मां पातु देवेशी गण्डयुग्मे
भयापहा ॥
लम्बोदरी सदा स्कन्धयुग्मे पातु
महेश्वरी ।
व्याघ्र चर्मावृता कटिं पातु देवी
शिवप्रिया ॥
फट् सर्वसिद्धि फलप्रदा सर्वांगस्वरूपिणी
भयनाशिनी खर्वा- देवी दोनों कपोल की, महेश्वरी
लम्बोदरी देवी दोनों कंधे, और व्याघ्रचर्मावृता शिवप्रिया
मेरी कटि (कमर) की रक्षा करे ।
पीनोन्नतस्तनी पातु पार्श्वयुग्मे
महेश्वरी ।
रक्तवर्तुलनेत्रा च कटिदेशे सदावतु
॥
ललज्जिह्वा सदा पातु नाभौ मां
भुवनेश्वरी ।
करालास्या सदा पातु लिङ्ग देवी
हरप्रिया ॥
पीनोन्नतस्तनी महेश्वरी दोनों
पार्श्व की रक्तगोलनेत्रवाली कटि की, ललजिह्वा
भुवनेश्वरी नाभि, और करालवदना हरप्रिया मेरे लिंग- स्थान की
सदा रक्षा करे ।
विवादे कलहे चैव अग्नौ च रणमध्यतः ।
सर्व्वदा पातु मां देवी झिण्टीरूपा
वृकोदरी ॥
झिन्टीरूपा वृकोदरी देवी विवाद में
कलह में अग्निमध्य में और रणमध्य में सदा मेरी रक्षा करे ।
सर्व्वदा पातु मां देवी स्वर्गे मर्त्ये
रसातले ।
सर्वास्त्रभूषिता देवी
सर्व्वदेवप्रपूजिता ॥
क्रीं क्रीं हुं हुं फट् २ पाहि
पाहि समन्ततः ॥
सब देवताओं करके पूजित सर्वास्त्र से
विभूषित देवी मेरी स्वर्ग मर्त्य और रसातल में रक्षा करें। "क्रीं क्रीं हुं
हुं फट् फट्" यह क्रीं बीज मेरी सब ओर से रक्षा करें।
कराला घोरदशना भीमनेत्रा वृकोदरी ।
अट्टहासा महाभागा विघूर्णित
त्रिलोचना ॥
लम्बोदरी जगद्धात्री डाकिनी
योगिनीयुता ।
लज्जारूपा योनिरूपा विकटा देवपूजिता
।।
पातु मां चण्डी मातंगी ह्युग्रचण्डा
महेश्वरी ॥
महाकराल घोरदांतोंवाली भयंकर नेत्र
और भेड़िये के समान उदरवाली, जोर से
हँसनेवाली महाभागवाली, घूर्णित नेत्रवाली, लम्बायमान उदरवाली, जगत्की माता, डाकिनी योगिनियों से युक्त, लज्जारूप, योनिरूप, विकट तथा देवताओं से पूजित, उग्रचण्डी, महेश्वरी मातंगी मेरी रक्षा करें ।
जले स्थले चान्तरिक्षे तथा च
शत्रुमध्यतः ।
सर्व्वतः पातु मां देवी खड्गहस्ता
जयप्रदा ।।
खड्ग हाथ में लिये जय देनेवाली देवी
मेरी जल में, स्थल में, शून्य में; शत्रुमध्य में और अन्यान्य सब स्थानों में
रक्षा करें ।
तारा कवच महात्म्य
कवचं प्रपठेद्यस्तु
धारयेच्छृणुयादपि ।
न विद्यते भयं तस्य त्रिषु लोकेषु
पार्व्वति ।
जो पुरुष इस कवच को पढ़ते हैं धारण
करते हैं,
या सुनते हैं, हे पार्वती ! तीनों लोकों में
कहीं भी उनको भय नहीं रहता॥
इति श्रीताराकवचं संपूर्णम् ।
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