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कर्मकाण्ड

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पञ्चाङ्ग भाग १

पञ्चाङ्ग भाग

पञ्चाङ्ग भाग १- ज्योतिष सीखने के लिए सर्वप्रथम पंचांग का ज्ञान होना आवश्यक है,अतः यहाँ हम क्रमशः पञ्चाङ्ग देखना सीखेंगे । इस अंक में पहले जातक प्रकरण के विषय में दिया जा रहा है

पञ्चाङ्ग भाग १

पञ्चाङ्ग भाग १- पञ्चाङ्ग देखना सीखे

पञ्चाङ्ग (पंचांग) का अर्थ है- पाँच अंगो वाला। पंचांग में समय गणना के पाँच अंग हैं : वार , तिथि , नक्षत्र , योग , और करण।

अथ ज्योतिष सर्व संग्रह

पञ्चाङ्ग प्रथम भागजातक प्रकरण 

प्रणम्य परमात्मानं वक्रतुण्डं च शङ्करम् ।

समाहृत्यान्यग्रन्थेभ्यो लिख्यते सर्व संग्रहः ।

द्वादश मासों के नाम

मासश्चैत्रश्च वैशाखो ज्येष्ठश्वाषाढसंज्ञकः

श्रावणश्चैव भाद्राख्य आश्विनः कार्तिकस्तथा॥

मार्गशीर्षश्व पौषश्च माघश्च फाल्गुनस्तथा ।

पञ्चाङ्ग प्रथम भाग- जातक प्रकरण
  • चैत्र  को मधु और मीन भी कहते हैं।
  • वैशाख को माधव और मेष भी कहते हैं।
  • ज्येष्ठ  को शुक्र और वृष भी कहते हैं।
  • आषाढ़ को शुचि और मिथुन भी कहते हैं।
  • श्रावण को नभ और कर्क भी कहते हैं।
  • भाद्रपद को नभस्य और सिंह भी कहते हैं।
  • आश्विन को ईश व कन्या भी कहते हैं।
  • कार्तिक को ऊर्ज और तुला भी कहते हैं।
  • मार्गशीर्ष को सिंह और वृश्चिक भी कहते हैं।
  • पौष को सहस्य और धनु भी कहते हैं।
  • माघ को तप व मकर भी कहते हैं।
  • फाल्गुन को तपस्य व कुम्भ भी कहते हैं।

पञ्चाङ्ग भाग

सोलह तिथियों के नाम

१ प्रतिपदा,       २ द्वितीया, ३ तृतीया, ४ चतुर्थी, ५ पंचमी, ६ षष्ठी, ७ सप्तमी, ८ अष्टमी नवमी, १० दशमी,         ११ एकादशी, १२ द्वादशी, १३ त्रयोदशी, १४ चतुर्दशी, १५ पूर्णमासी और १६ अमावास्या- ये सोलह तिथियाँ होती हैं।

तिथियों की नन्दादि संज्ञा

१ प्रतिपदा, ६ षष्ठी और ११ एकादशी- ये नन्दा तिथि हैं ।

२ द्वितीया, ७ सप्तमी, और १२ द्वादशी- ये भद्रा तिथि हैं ।

३ तृतीया, ८ अष्टमी और १३ त्रयोदशी - ये जया तिथि हैं ।

४ चतुर्थी नवमी और १४ चतुर्दशी - ये रिक्ता तिथि हैं ।

५ पंचमी, १० दशमी, १५ पूर्णिमा तथा ३० अमावास्या- ये तिथियाँ 'पूर्णा' संज्ञक है |

सात वारों के नाम

रविवार, चन्द्रवार, भौमवार, बुधवार, गुरुवार. शुक्रवार, तथा शनिवार ये सात वारों (दिनों) के नाम हैं। रविवार को आदित्यवार या एतवार चन्द्रवार को सोमवार, भौमवार को मंगलवार, बुधवार को बुध, गुरुवार को बृहस्पतिवार, शुक्रवार को शुक्र तथा शनिवार को थावर भी कहते हैं । राहु और केतु ये दोनों सात बारों के ग्रहों के साथ में मिलकर नवग्रह कहलाते हैं।

एक महीन में दो पक्ष होते हैं- कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष ।

अन्धेरी रात को कृष्ण पक्ष कहते हैं और चाँदनी रात को शुक्ल पक्ष । महीने की शुरू की पड़वा से अमावास्या तक कृष्ण पक्ष एवं अमावास्या के बाद की पड़वा से पूर्णमासी तक शुक्ल पक्ष होता है । अन्धेरे पक्ष को बदी और उजाले पक्ष को सुदी भी कहते हैं ।

अट्ठाईस नक्षत्रों के नाम

१ अश्विनी, २ भरणी, ३ कृत्तिका, ४ रोहिणी, ५ मृगशिरा, ६ आर्द्रा, ७ पुनर्वसु८ पुष्य, ९ आश्लेषा१० मघा,            ११ पूर्वा फाल्गुनी, १२ उत्तरा फाल्गुनी, १३ हस्त, १४ चित्रा, १५ स्वाति, १६ विशाखा, १७ अनुराधा१८ ज्येष्ठा, १९ मूल,  २० पूर्वाषाढा, २१ उत्तराषाढा, २२ अभिजित् २३ श्रवण, २४ धनिष्ठा, २५ शतभिषा, २६ पूर्वाभाद्रपद, २७ उत्तराभाद्रपद और २८ रेवती- ये अट्ठाईस नक्षत्र हैं ।

नक्षत्रों के देवता- चक्र

नक्षत्र

अश्विनी

भरणी

कृत्तिका

रोहिणी

मृगशिरा

आर्द्रा

पुनर्वसु

देवता

आश्विनी- कुमार

यम

अग्नि

ब्रह्मा

चन्द्रमा

रुद्र

अदिति

नक्षत्र

पुष्य

आश्लेषा

मघा

पू. फा.

उ. फा.

हस्त

चित्रा

देवता

गुरु

सर्प

पितर

भग

अर्यमा

सूर्य

विश्वकर्मा

नक्षत्र

स्वाति

विशाखा

अनुराधा

ज्येष्ठा

मूल

पूर्वाषाढा

उ. षा.

देवता

वायु

इन्द्र अग्नि

मित्र

इन्द्र

निर्ऋति

जल

विश्वेदेव

नक्षत्र

अभिजित्

श्रवण

धनिष्ठा

शतभिषा

पू. भा.

उ. भा.

रेवती

देवता

विधि

विष्णु

वसु

वरुण

अजैकपाद

अहिर्बुध्न्य

पूषा

सत्ताईस योगों के नाम

विष्कुम्भः प्रीतिरायुष्मान् सौभाग्यः शोभनस्तथा ।

अतिगंड सुकर्मा च धृतिः शूलस्तथैव च ।।१।।

गंडो वृद्धिर्ध्रुवश्चैव व्याघातौ हर्षणस्तथा ।

वज्रं सिद्धिर्व्यतीपातो वरीयान् परिषः शिवः ।।२।।

सिद्धिः साध्यः शुभः शुक्लो ब्रह्म चैन्द्रोऽथवैधृतिः ।

सप्तविंशतिराख्याता नामतुल्यफलप्रदाः।।३।।

१ विषकुम्भ, २ . प्रीति, ३ आयुष्मान्, ४ सौभाग्य, ५ शोभन, ६ अतिगंड, ७ सुकर्मा, ८ धृति शूल, १० गंड, ११ वृद्धि, १२ ध्रुव, १३ व्याघात, १४ हर्षण, १५ वज्र, १६ सिद्धि, १७ व्यतीपात, १८ वरीयान्,  परिघ, २० शिव, २१ सिद्धि, २२ साध्य, २३ शुभ, २४ शुक्ल, २५ ब्रह्म, २६ ऐन्द्र और वैधृति- ये सत्ताईस योग हैं ।

छः ऋतुओं के नाम

(१) वसन्त, (२) ग्रीष्म, (३) वर्षा, (४) शरद, (५) हेमन्त और (६) शिशिर ।

एक-एक ऋतु दो महीने विद्यमान रहते हैं । जैसे- मीन-मेष के सूर्य यानी फाल्गुन, चैत्र में वसन्त ऋतु । वृष मिथुन के सूर्य यानी वैशाख, ज्येष्ठ में ग्रीष्म । कर्क- सिंह के सूर्य यानी आषाढ़, श्रावण में वर्षा । कन्या- तुला के सूर्य यानी भाद्रपद, आश्विन में शरद् । वृश्चिक धनु के सूर्य यानी कार्तिक अगहन में हेमन्त तथा मकर-कुम्भ के सूर्य यानी पौष, माघ में शिशिर ऋतु होती है ।

६ महीने सूर्य उत्तरायण और ६ महीने दक्षिणायन रहता है । उत्तरायण -सूर्य में देवताओं का दिन होता है और दक्षिणायन में रात होती है। इसी कारण जितने शुभ काम हैं वे उत्तरायण सूर्य में किए जाते हैं ।

माघ, फाल्गुन, चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ और आषाढ़- इन ६ महीनों में सूर्य उत्तरायण रहते हैं ।

श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीष और पौष- इन ६ महीनों में सूर्य दक्षिणायन रहते हैं।

इस प्रकार मकर के सूर्य से ६ मास उत्तरायण और कर्क के सूर्य से ६ दक्षिणायन के माने जाते हैं । 

आठ दिशाओं के स्वामी ग्रह

पंचांग भाग१- आठ दिशाओं के स्वामी ग्रह

'पूर्व दिशा का स्वामी सूर्य, आग्नेयकोण का शुक्रं, दक्षिण का मंगल, नैर्ऋत्य का राहु, पश्चिम का शनि, वायव्य का चन्द्रमा, उत्तर का बुध और ईशान कोण का स्वामी बृहस्पति है । इस प्रकार आठों दिशाओं के ये आठ स्वामी हैं।

एकादश करणों के नाम

१ बव, २ बालव, ३ कौलव, ४ तैतिल, ५ गर, ६ वणिज और ७ विष्टि ।

ये सात करण 'चर संज्ञक' हैं ।

८ शकुनि चतुष्पद, १० नाग, और ११ किंस्तुघ्न ।

ये चार करण 'स्थिर संज्ञक' हैं, इस प्रकार ११ करण हैं ।

करण बनाने की विधि

शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से गत तिथि को दूनी करे अर्थात् बीच की तिथि को दूना करे । यदि सात से अधिक हों तो सात का भाग दें, जो शेष रहें उन्हीं को बवादि करण जानना । जैसे- हमें कृष्ण पक्ष की द्वितीया के पहले तथा दूसरे दल का करण जानना है तो गत तिथि शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तक १६ हुई । इन्हें दूना किया तो ३२ हुए । इनमें ७ का भाग देने से ४ बचे। पहले दल में चौथा तैतिल करण हुआ तथा दूसरे में गर करण हुआ । इसी क्रम से सब तिथियों के करणों को जानो ।

शेष जारी............पञ्चाङ्ग भाग 2

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