Slide show
Ad Code
JSON Variables
Total Pageviews
Blog Archive
-
▼
2024
(491)
-
▼
March
(58)
- अग्निपुराण अध्याय १०४
- अग्निपुराण अध्याय १०३
- श्रीदेवीरहस्य पटल ५
- अग्निपुराण अध्याय १०२
- अग्निपुराण अध्याय १०१
- श्रीदेवीरहस्य पटल ४
- श्रीदेवीरहस्य पटल ३
- पंचांग भाग ५
- श्रीदेवीरहस्य पटल २
- देवीरहस्य पटल १
- जानकी द्वादशनामस्तोत्र
- जानकी अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र
- जानकी सहस्रनामस्तोत्र
- यक्षिणी साधना भाग ३
- यक्षिणी साधना भाग २
- शैवरामायण
- शैव रामायण अध्याय १२
- शैव रामायण अध्याय ११
- अग्निपुराण अध्याय १००
- अग्निपुराण अध्याय ९९
- अग्निपुराण अध्याय ९८
- अग्निपुराण अध्याय ९७
- अग्निपुराण अध्याय ९६
- शैव रामायण अध्याय १०
- शैव रामायण अध्याय ९
- शैव रामायण अध्याय ८
- शैव रामायण अध्याय ७
- राम स्तुति
- अद्भुतरामायण
- अद्भुत रामायण सर्ग २७
- अद्भुत रामायण सर्ग २६
- जानकी स्तवन
- सीता सहस्रनाम स्तोत्र
- शैव रामायण अध्याय ६
- शैव रामायण अध्याय ५
- अद्भुत रामायण सर्ग २४
- जानकी स्तुति
- अद्भुत रामायण सर्ग २३
- अद्भुत रामायण सर्ग २२
- अद्भुत रामायण सर्ग २१
- कमला स्तोत्र
- मातंगी स्तोत्र
- अग्निपुराण अध्याय ९५
- अद्भुत रामायण सर्ग २०
- अद्भुत रामायण सर्ग १९
- अद्भुत रामायण सर्ग १८
- पंचांग भाग ४
- शैव रामायण अध्याय ४
- शैव रामायण अध्याय ३
- अद्भुत रामायण सर्ग १७
- अद्भुत रामायण सर्ग १६
- शैव रामायण अध्याय २
- शैव रामायण अध्याय १
- श्रीराम स्तव
- अद्भुत रामायण सर्ग १४
- विश्वम्भर उपनिषद
- अद्भुत रामायण सर्ग १३
- अद्भुत रामायण सर्ग १२
-
▼
March
(58)
Search This Blog
Fashion
Menu Footer Widget
Text Widget
Bonjour & Welcome
About Me
Labels
- Astrology
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड
- Hymn collection
- Worship Method
- अष्टक
- उपनिषद
- कथायें
- कवच
- कीलक
- गणेश
- गायत्री
- गीतगोविन्द
- गीता
- चालीसा
- ज्योतिष
- ज्योतिषशास्त्र
- तंत्र
- दशकम
- दसमहाविद्या
- देवता
- देवी
- नामस्तोत्र
- नीतिशास्त्र
- पञ्चकम
- पञ्जर
- पूजन विधि
- पूजन सामाग्री
- मनुस्मृति
- मन्त्रमहोदधि
- मुहूर्त
- रघुवंश
- रहस्यम्
- रामायण
- रुद्रयामल तंत्र
- लक्ष्मी
- वनस्पतिशास्त्र
- वास्तुशास्त्र
- विष्णु
- वेद-पुराण
- व्याकरण
- व्रत
- शाबर मंत्र
- शिव
- श्राद्ध-प्रकरण
- श्रीकृष्ण
- श्रीराधा
- श्रीराम
- सप्तशती
- साधना
- सूक्त
- सूत्रम्
- स्तवन
- स्तोत्र संग्रह
- स्तोत्र संग्रह
- हृदयस्तोत्र
Tags
Contact Form
Contact Form
Followers
Ticker
Slider
Labels Cloud
Translate
Pages
Popular Posts
-
मूल शांति पूजन विधि कहा गया है कि यदि भोजन बिगड़ गया तो शरीर बिगड़ गया और यदि संस्कार बिगड़ गया तो जीवन बिगड़ गया । प्राचीन काल से परंपरा रही कि...
-
रघुवंशम् द्वितीय सर्ग Raghuvansham dvitiya sarg महाकवि कालिदास जी की महाकाव्य रघुवंशम् प्रथम सर्ग में आपने पढ़ा कि-महाराज दिलीप व उनकी प...
-
रूद्र सूक्त Rudra suktam ' रुद्र ' शब्द की निरुक्ति के अनुसार भगवान् रुद्र दुःखनाशक , पापनाशक एवं ज्ञानदाता हैं। रुद्र सूक्त में भ...
Popular Posts
मूल शांति पूजन विधि
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
पंचांग भाग ४
पञ्चाङ्ग देखना सीखें के जातक प्रकरण में अब तब आप भाग १, भाग २ और भाग ३ तथा नक्षत्र ज्ञान व मूल नक्षत्र और उसका शांति, मूल- शान्ति की सामग्री के विषय में ज्ञान प्राप्त कर चुके । अब पंचांग भाग ४ में जन्मपत्री लिखना तथा विभिन्न लग्नों में ग्रहों का फल का वर्णन किया जा रहा है।
पञ्चाङ्ग चतुर्थ भाग- जन्मपत्रिका
अथ जन्मपत्री
लिखना
ॐ श्रीगणेशाय
नमः ।।
यं ब्रह्म
वेदान्त विदो वदन्ति परं प्रधानं पुरुषं तथान्ये ।
विश्वेद्गतेः
कारणमीश्वरं वा तस्मै नमो विघ्नविनाशनाय ।। १ ।।
जननी जन्म
सौख्यानां वर्द्धिनी कुल संपदाम् ।
पदवी
पूर्वपुण्यानां लिख्यते जन्मपत्रिका ।। २ ।।
अथ शुभ
संवत्सरेऽस्मिन् श्रीनृपति विक्रमादित्य राज्ये संवत् २०३३ शाके शालिवाहनस्यं १८९८
उत्तरायणे वसन्त ऋतौ मासानां मासोत्तमेमासे फाल्गुनमासे शुक्ल पक्षे शुभतिथौ १४ चतुर्दशीयां
शुक्रवासरे घट्यः २४ पलानि २७ आश्लेषानाम नक्षत्रे ०९/२८/३० अतिगण्ड योगे ०९।३५ गर
नामकरणे १३ ।०९ तत्र दिनमान ११।४४ रात्रिप्रमाण १२।१४ कर्कार्किगतांशाः १९ शेषांशा
४८ तंत्रेष्टम् ३४ । ५७ तत्समये मीनलग्नोदये विप्रवंशे शांडिल्य गोत्रे पण्डित दशरथप्रसाद
दुबे तत्पुत्र पण्डित श्यामलाल दुबे शर्मा तत्पुत्र पं. सुंदरलाल दुबे तस्य गृहे
पुत्रो जातः आश्लेषा चतुर्थ, चरणे जन्मवंशोत्तस्य जन्मनाम डी॰पी॰ दुबे सचेश्वर कृपया
दीर्घायुष्मान् भवतु । तस्यराशिः कर्क, वर्ण विप्र, वश्य जलचर, योनिः मार्जार, राशीश चंद्र, गण राक्षस, नाड़ी अन्त्य, वर्ग सप्त, एते गुणा विवाहादौ व्यवहारादौ च विचारणीयाः । शुभम् भूयात्
।।
पंचांग भाग ४- अथ जन्म कुण्डली
पंचांग भाग ४- अथ चन्द्र कुण्डली
इसी
रीत्यानुसार, जन्म समय के आधार पर जन्मपत्री बना कर लिखनी चाहिए।
पंचांग भाग ४ - लग्न परीक्षा और ग्रहों का फल
विभिन्न लग्नों
में ग्रहों का फल नीचे दिया गया है।
लग्न परीक्षा और
ग्रहों का फल-
शब्द मेषे वृषे
सिंहे, मकरे च तथा तुले ।
अर्द्ध शब्दो
घंटे कन्या शेष शब्द विवर्जयेत् ॥
टीका- मेष,
वृष, सिंह, मकर और तुला- इन लग्नों में बालक का जन्म हो तो वह होते ही
रोवे और कुम्भ, कन्या में रो कर चुप हो जाय अर्थात् थोड़ा रोवे । अन्य लग्नों में बालक रोवे
नहीं ।
शीर्षोदये विलग्ने
मूर्धा प्रसवोऽन्यथोदये चरणौ ।
उभयोदये च
हस्तौ शुभदृष्टः शोभनोऽन्यथा कष्टः ॥
टीका- ५ । ६ ।
७ । ८ । ३ । ११ इन लग्नों में जन्म हो तो बालक शिर से पैदा हुआ। १२वें लग्न में
हाथों के बल पहले दोनों हाथ आयें । १ । २ । ४ । ९ । १० इन लग्नों में पैरों की तरफ
से बालक का जन्म कहे । लग्न पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो बिना कष्ट के हो और पाप
ग्रह की दृष्टि हो तो कष्ट से हुआ ऐसा कहे ।
मीने मेषे च
द्वे भार्ये चतुस्रो वृषकुम्भयोः ।
तुलायां
सप्तकन्यायां वाणाश्च धनुकर्कयोः ।
अन्य लग्ने
तथा तिस्रः सूतिकायां विधीयते ॥
टीका - मीन और
मेष लग्न में २ स्त्री । वृष और कुम्भ में ४ स्त्री । तुला और कन्या में ७ स्त्री
। धनु और कर्क में ५ स्त्री । अन्य लग्नों में बालक के जन्म .के. समय प्रसूति गृह
में ३ स्त्री उपस्थित थीं ऐसा कहे ।
शशि लग्ने
समाधात्री ज्येगृहेशे दिगम्बरम् ।
तिस्रो वै
मन्दिरे नार्यः बाला, वृद्धा युवास्तथा ॥
टीका- लग्न
में जहाँ चन्द्रमा पड़े, उस बीच में जितने ग्रह हों, उतनी बाला, वृद्धा तथा युवा स्त्रियों की उपस्थिति कहे ।
पापे च विधवा
नारी क्रूर ग्रहे कुमारिका ।
सौम्य ग्रहे च
सौभाग्या सूतिकायां विधीयते ॥
टीका- लग्न और
चन्द्रमा के बीच में जितने पाप ग्रह हों उतनी विधवा स्त्री कहे । जितने क्रूर ग्रह
हो उतनी कुमारी कहे और जितने शुभ ग्रह हों, उतनी सुहागिन स्त्रियाँ कहे !
यत्र राहुस्तत्र
शय्या मंगलः तत्र भङ्गदः ।
रविस्थाने
दीपकश्च शन्नौ लौहश्च जायते ॥
जहाँ राहु हो
वहाँ खाट कहे । जहाँ मंगल हो वहाँ पुरानी खाट या पावा फटी खाट
कहे । जहाँ सूर्य हो वहाँ दीपक का स्थान कहे और जहाँ शनिश्चर हो;
वहाँ लोहे की उपस्थिति कहे !
उदयस्थेऽपि वा
मंदे कुजे वाऽस्तं समागते ।
स्थिते वातः
क्षया नाथे शशांक सुत शुक्रयोः ॥
टीका- यदि शनि
लग्न में हो अथवा ७ वें मंगल हो या चन्द्रमा ३ । ६।२।७ इन राशियों का होय तो घर
में जन्म नहीं हुआ था ऐसा कहे ।
पंचांग चौथा भाग- राशियों के स्थान
राशि- १. सिर,
२. मुख, ३. स्तन, ४. हृदय, ५. उदर, ६. कंठ, ७. नाभि, ८. लिंग, ९. गुदा, १०. जंघा, ११. घुटना तथा १२. पैर की सूचक हैं । इनमें से जन्म के समय
जिस राशि में पापग्रह हो, उसी जगह बालक के शरीर पर तिल या लहसुन का निशान बतावे ।
सिंहे कन्या
धने मीने कर्कटे च तथा तुले ।
अंतरिक्षे भवेजन्म
शेषे भूमौ च जायते ॥
टीका- सिंह,
कन्या, धनु, मीन, कर्क, और तुला- इन लग्नों में बालक का जन्म शैय्या पर कहे या
हाथों पर,
अन्य लग्नों में पृथ्वी पर कहे ।
दशमे बुधजीवौ
च केन्द्रस्थाने यदा भवेत् ।
सूर्यश्च तथा
भौमश्च बालकस्य षडंगुलिः ॥
सव्यहस्तः तथा
चैव दक्षिणः करमेव च ।
वामहस्ते भवेद्राज्यं
सजातः कुलदीपकः॥
टीका- दशवें
स्थान बुध या गुरु हो या केन्द्र १ । ४ । ७ । १० में हो या सूर्य मंगल के संग में
हो तो बालक के ६ अंगुली कहे । बायें या दायें पैर में और बायें हाथ में ६ अंगुली
अच्छी होती हैं ।
तनुस्थाने यदा
चंन्द्रोऽथवा षष्ठे तथा भवेत् ।
बालकस्य
भवेजन्म तैलं दीपे न दृश्यते ॥
दशमे
शुक्रसौरी च पंचमे चैव चन्द्रमाः ।
तस्मिन् बाले
च जाते वै दीपकं परिपूर्णकम् ।
खण्ड दीपं तथा
बुधे अष्टमे च बृहस्पतौ ॥
टीका- तनु
स्थान में या छठे स्थान में चन्द्रमा हो तो दीपक में तेल नहीं था। शुक्र-शनि दसवें
स्थान हों और चन्द्रमा पाँचवें हो तो दीपक में तैल भरा हुआ था। बुध हो तो आधा दीपक
तेल से भरा हुआ कहे। अष्टम बृहस्पति हो तो तेल भरा नहीं था ऐसा कहे। जो लग्न के
आरम्भ में जन्म हो तो बत्ती पूरी थी और जो मध्य मे हो तो आधी और अन्त में हो तो
नहीं रही थी ऐसा कहे ।
चरलग्ने करे
दीपं स्थिरे तत्रैव संस्थितम् ।
द्विस्वभावे
तथा लग्ने दीपं हस्ते प्रचालयेत् ॥
टीका- जो
सूर्य चर राशि में हो या चर लग्न हो तो दीपक हाथ में उठाया हुआ कहे । स्थिर लग्न
में,
वहीं रक्खा हुआ कहे । द्विस्वभाव में,
उठा कर वहीं धर दिया या बत्ती डाली हो,
ऐसा कहना चाहिए ।
लग्नेन्दुमध्येशनिर्मिष्ठतैलं
सूर्योभवेत्तस्य घृतस्यदीपं ।
शेषे ग्रहे च
कटुतैलंदीपमेवं प्रसूतौ खलु दीपमाहुः ॥
टीका- जो लग्न
में चन्द्रमा या शनि हो तो दीपक का तैल मीठा कहे । सूर्य हो तो घी का कहे,
और कोई अन्य ग्रह हो तो कड़वे तेल का दीपक कहे ।
द्वादशे भवने
भौमे वामनेत्र विनश्यति ।
द्वादशे रवि
राहुश्च दक्षिणं चक्षु नाशयेत् ॥
टीका- १२ वे
स्थान में मंगल हो तो बाँया नेत्र बिगड़ा कहे और १० वें सूर्य- राहु हो तो दाहिनी
आँख का नाश कहे ।
शुक्रश्च तृतीये
स्थाने सिंहे मेषे बृहस्पतौ ।
दशमे अर्कभौमौ
च मूकौ भवति बालकः॥
टीका- शुक्र
से तीसरे स्थान में मेष या सिंह का गुरु और दशवें सूर्य या मंगल हो तो बालक गूंगा
हो ऐसा कहे ।
तुलाली कुम्भो
अकुलीर लग्ने वाच्यं प्रसूता गृह पूर्व द्वारे ।
कन्याधनुर्मीननृयुग्मलग्ने
स्यादुत्तरा पश्चिवतो वृषे च ।
मेषे च सिंहे
मकरे च याम्ये निगद्यते सौमुनि द्वारदेशः ॥
टीका- तुला,
वृश्चिक, कुम्भ, कर्क- इन सब लग्नों में से किसी में बालक जन्म हो तो जच्छा
के घर का दरवाजा पूर्व को बतावे । ६ । ९ । १२ में हो तो उत्तर की । २ में पश्चिम
को और १ । ५ । १० में दक्षिण दरवाजा कहें ।
रिपु स्थाने
यदा चन्द्र: षड्रात्रं नैव लंघते ।
अथवा षष्ठमासं
च जातकाय विचारयेत् ॥
टीका- जिसके
छठे स्थान में पाप ग्रह के साथ चन्द्रमा हो तो जातक को दिन तक कष्ट कहे अथवा वह ६
महीने तक जिये!
लग्नस्थाने
यदा सौरी रिपुस्थाने च चन्द्रमाः ।
कुजश्च दशमे
स्थाने मृतको जायते पिताः॥
टीका- लग्न
में शनि, छटें चन्द्रमा, १० वें
मंगल हो तो उसके पिता की मृत्यु हो या कष्ट हो ।
रवि मंगल वारः
स्यात् कृत्तिका भरणीयुता ।
श्लेषा छठ
आठें चौदस्या सो उपजे कन्या धिया ॥
आप मरे या माय
सतावे, कुलक्षय करे कलंक लगावे ॥
टीका- रवि,
शनि, मंगल- ये वार और कृत्तिका, भरणी आश्लेषा- ये नक्षत्र, ६ । ८ । १४ - ये तिथि जो इनमें कन्या का जन्म हो तो या तो
कन्या मरे या माता मरे या कुलक्षय हो या कहीं कलंक लगे ।
आदित्ये नवमे
तातो, माता चन्द्र चतुर्थके ।
भौमे च तृतीये
भ्राता स्यात् बुध तृतीये च मातुलः ॥
टीका- सूर्य
से नौवें स्थान में पिता को देखे । चन्द्रमा से चौथे स्थान माता को देखे । मंगल से
तीसरे स्थान भाई को देखे । बुध से तीसरे स्थान मामा को देखे । अच्छा ग्रह हो तो
अच्छा फल,
बुरा हो तो बुरा फल कहे ।
चौथ चतुर्दशी
नवमी जानो, रवि गुरु मंगल को पहिचानो ।
जो तीनों में
उत्तरा लहै, निश्चय बीज पराया कहै ॥
टीका- ४ । १४
। ९ ये तिथिः सूर्य गुरु, भौम- ये वार, और उत्तरा नक्षत्र में बालक का जन्म हो तो और का बिन्द कहे
।
चतुष्पद गते
भानौ शेषैर्वीर्य समन्वितैः।
द्वितनुस्थ: चक्ष्व
यमलौ भव कोशवेष्टिता ॥
टीका- सूर्य
चतुष्पद राशि १।२ । ९ परार्ध मकर पूर्वार्ध में होवे और सब ग्रह द्विस्वभाव में
बलवान होंय तो दो बालकों का जन्म कहे ।
षष्ठाष्टमे च मूर्तौ
च राहुश्चैव भवेद्यादि ।
चतुर्थवर्षेभवेन्मृत्युः
रक्षति यदि शंकरः॥
६।८।१२ राहु
हो तो चौथे वर्ष में मृत्यु कहे । महादेव भी रक्षा करें तो भी न जीवे ।
चतुर्थे च गतो
राहुः अथवा दशमे भवेत् ।
तस्य बालकस्य जन्मेषु
दशमासे न जीवति ॥
चौथे या दशवें
स्थान पर राहु हो तो दशवें महीने में कष्ट कहे ।
मीने च लग्ने
गुरु भार्गवौ च मेषे च सूर्यो मकरे कुजः स्यात् ।
महीपतिः क्षत्रधरोऽपि
बालः मान्यो भवेद्वापि धनाढ्यतां गतः ॥
जो मीन लग्न
हो और उसमें गुरु शुक्र पड़े हों और मेष राशि का सूर्य पड़े, मकर का मंगल पड़े तो वह बालक नृप हो या राजा का मंत्री हो
या धनाढ्य हो ।
लग्ने शुक्रो
बुधोयस्य केन्द्रे बृहस्पति ।
दशमेऽङ्गारको
यस्य स जातो कुलदीपकः ॥
टीका- लग्न
में शुक्र या बुध हो, केन्द्र १। ४ । ७ । १० में गुरु हो और दशम भाव में मंगल हो तो बालक कुल दीपक होता है ।
लग्ने शुक्रो
बुधो नास्ति नास्ति केन्द्रे बृहस्पतिः ।
दशमेङ्कारको
नास्ति स जातः किं करिष्यति ॥
टीका- लग्न
में शुक्र, बुध न हो और केन्द्र में गुरु भी न हो और १० वें मंगल भी न हो तो जातक दूसरों
पर आश्रित रहे ।
चतुर्थे
कर्मणि सोमः सुखेन प्रसवो भवेत् ।
त्रिकोणेऽस्तं
गतोः पापाः कष्टतः प्रसवो भवेत् ॥
टीका- लग्न से
४ । १० वा स्थान में चन्द्रमा हो तो माता को कष्ट न हो और जो ९ । ५ । ७ पाप ग्रह
हों तो माता को कष्ट हो ।
कृष्णपक्षे
दिवा जन्म शुक्ल पक्षे यदा निशि ।
षष्ठेऽष्टमे
भवेत् चन्द्रः सर्वारिष्टं निवारयेत् ॥
टीका- जो
कृष्ण पक्ष के दिन में और शुक्ल पक्ष की रात्रि में बालक का जन्म हो और ६ और ८ में
चन्द्रमा हो तो सब कष्ट दूर करे ।
अर्कसुतः कुजौ
राहुः पंचमस्थाः प्रसूतिर्वा ।
लशुनं वामकुक्षी
च गर्गाचार्येण भाषितम् ॥
टीका- शनि,
राहु, मंगल- ये ग्रह पांचवें स्थान में हों तो बाँई कोख में लहसुन
कहे गर्गाचार्य का ऐसा कहना है ।
सिंह लग्ने
यदा जाता: यामित्रे च शनैश्वरः।
ब्रह्मापुत्रोऽपि
संजातो म्लेच्छो भवति बालकः ॥
टीका- जो सिंह
लग्न में बालक जन्म हो और सातवें स्थान में शनि हो तो ब्राह्मण के यहां पैदा हुआ
बालक भी मलेच्छ होता है ।
लग्न स्थाने
यदा शौरिः षष्ठे भवति चन्द्रमाः ।
कुजश्च सप्तमे
स्थाने पिता तस्य न जीवति ॥
टीका-लग्न में
शनि,
६ चंद्रमा, ७ मंगल हो तो पिता की मृत्यु हो ।
दशमस्थाने यदा
भौमः शत्रुक्षेत्रस्थितो यदि ।
तथा तस्य
बालस्यं पिता शीघ्रं न जीवति ॥
टीका- १० वें
स्थान में मंगल हो और शत्रु की राशि में हो तो उस बालक का पिता शीघ्र मृत्यु को
प्राप्त हो ।
त्रिभिरुच्चैर्भवेद्राजा
त्रिभिः स्वस्थानि मन्त्रिणां ।
त्रिभिर्नीचैर्भवेद्दासः
त्रिभिरस्तैर्भवेत् शठः ॥
टीका- जिसके तीन
ग्रह उच्च के पड़े हों वह राजा होता है और जो तीन ग्रह अपने स्थान के हों तो
मंत्री और नीच के हों तो दास हो और जो ग्रह अस्त के पड़े हों तो मूर्ख होता है ।
जन्मलग्ने यदा
भौमश्चाष्टमे चं बृहस्पतिः।
वर्षे च
द्वादशे मृत्युः यदि रक्षति शंकरः ॥
टीका- जो जन्म
लग्न में मंगल हो और ८ में बृहस्पति हो तो बारह वर्ष में मृत्यु हो । शंकर भी
रक्षा करें तो भी न जीवे ।
चतुर्थे च यदा
राहुः षष्ठे चन्द्रोऽष्टमेऽपि वा ।
सद्य एव
भवेन्मृत्युः शंकरो यदि रक्षति ॥
टीका- चौथे
स्थान में राहु हो, ६, ८ चन्द्रमा हो तो बालक की तत्काल मृत्यु हो । महादेव भी
रक्षा करें तो भी न जीवे ।
लग्ने
क्रूरश्च भवने
क्रुर: पातलगे यदा।
दशमे भवने क्रूरः
कष्टे जीवति बालकः ॥
क्रूर गृह का लग्न
और क्रूर ग्रह चौथे या दशवें स्थान में हों तो भी बालक कष्ट से जीवे।
दशमे भवने राहुर्मातापित्रो:
प्रपीड़नम् ।
द्वादशे
वत्सरे मृत्यु: बालकस्य न संशयः ॥
दशवें स्थान
में राहु हों तो माता पिता को कष्ट और उसको १२ वें वर्ष मृत्युतुल्य अरिष्ट हो।
शनिक्षेत्रे
यदा भानुर्भानुक्षेत्रे यदा शनिः ।
द्वादशे
वत्सरे मृत्युर्बालकस्य न संशयः ॥
शनि के
क्षेत्र में सूर्य और सूर्य के क्षेत्र में शनि हो तो १२ वर्ष में अरिष्ट हो ('क्षेत्र' स्थान या घर को कहते हैं)।
मूर्तौ
शुक्रबुधौ यस्य केन्द्रे चैव बृहस्पतिः ।
दशमेऽङ्गारकश्चैव
स ज्ञेयः कुलदीपकः ॥
टीका- जिसके
जन्म लग्न में बुध, शुक्र हों, केन्द्र में गुरु हो और १० में स्थान मंगल हो तो वह बालक
कुल में दीपक हो ।
पंचमे च निशानाथो
त्रिकोणे यदि वाक्पति ।
दशमे च
महीपुत्रः परमायुः स जीवति ॥
टीका- लग्न से
चन्द्रमा ५ वें स्थान हो और त्रिकोण में वृहस्पति हो और ५। ९ । १० में मंगल हो तो
उसकी परमायु अर्थात् सौ वर्ष की आयु हो ।
धनस्थाने यदा
शौरिः सिंहकेयो धरात्मजः ।
शुक्रो गुरुः
सप्तमे वा अष्टमे रवि चन्द्रमाः ॥
ब्रह्मपुत्रो
भवेद्वापि वेश्यासु च सदा रतिः ।
प्राप्तो
विंशतितमे वर्षे म्लेच्छो भवति नान्यथा ॥
टीका- दूसरे
स्थान में शनि, राहु, मंगल हों और सातवें स्थान में शुक्र,
गुरु हों और ८ वें स्थान में रवि,
चन्द्र हों तो ब्राह्मण का पुत्र होने पर भी वेश्यागामी हो
। २० वर्ष की उम्र में म्लेच्छ हो जाये ।
अजे सिंहे
कुजे शौरिर्लग्ने तिष्ठति पंचमे ।
पितरं मातरं
हन्ति भ्रातरं हि शिशोः क्रमात् ॥
टीका- जो रवि,
राहु, मंगल, शनि- ये ग्रह १।५ स्थान में पड़े तो कष्ट देते हैं । शनि,
रवि हो तो पिता को कष्ट दे । राहु माता को,
मंगल भ्राता को और शनि बालक को कष्ट करता है ।
भौमक्षेत्रे
यदा जीवः षष्ठाष्टास्सु च चन्द्रमाः ।
वर्षेऽष्टमेऽपि
मृत्युर्वै ईश्वरो यदि रक्षति ॥
मंगल के क्षेत्र
में बृहस्पती हो और ६ । ८ स्थान में चन्द्रमा हो तो ८ वर्ष में बालक को कष्ट हो।
जो ईश्वर ही रक्षा करे तो ही बचे ।
दशमेऽपि यदा
राहुर्जन्मलग्ने यदा भवेत् ।
वर्षे तु
षोडशे ज्ञेयो बुधैर्मृत्युर्नरस्य च ॥
१० वें राहु
अथवा लग्न में राहु हो तो १६ वें वर्ष में अरिष्ट जानना ।
षष्ठे च भवने
भौमः राहुश्च सप्तमे भवेत् ।
अष्टमे च यदा
शौरिः तस्या भार्या न जीवति ॥
छठे स्थान में
मंगल हो,
सातवें स्थान में राहु हो, आठवें स्थान में शानि हो तो स्त्री को कष्ट हो । कन्या की
जन्मपत्री में पाप ग्रह अथवा क्रूर ग्रह यदि सातवें स्थान में हो तो ये वैधव्य योग
करते हैं। इनका देखना बहुत आवश्यक है।
पंचांग भाग ४- शुभ-अशुभ ग्रह देखना
चन्द्रमा,
बुध, बृहस्पति, शुक्र- ये शुभ ग्रह हैं और सूर्य, मंगल, शनि, केतु- ये पाप और क्रूर ग्रह हैं ।
शेष जारी............पञ्चाङ्ग भाग 5
Related posts
vehicles
business
health
Featured Posts
Labels
- Astrology (7)
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड (10)
- Hymn collection (37)
- Worship Method (32)
- अष्टक (55)
- उपनिषद (30)
- कथायें (127)
- कवच (61)
- कीलक (1)
- गणेश (25)
- गायत्री (1)
- गीतगोविन्द (27)
- गीता (34)
- चालीसा (7)
- ज्योतिष (33)
- ज्योतिषशास्त्र (86)
- तंत्र (182)
- दशकम (3)
- दसमहाविद्या (51)
- देवता (2)
- देवी (192)
- नामस्तोत्र (55)
- नीतिशास्त्र (21)
- पञ्चकम (10)
- पञ्जर (7)
- पूजन विधि (79)
- पूजन सामाग्री (12)
- मनुस्मृति (17)
- मन्त्रमहोदधि (26)
- मुहूर्त (6)
- रघुवंश (11)
- रहस्यम् (120)
- रामायण (48)
- रुद्रयामल तंत्र (117)
- लक्ष्मी (10)
- वनस्पतिशास्त्र (19)
- वास्तुशास्त्र (24)
- विष्णु (42)
- वेद-पुराण (691)
- व्याकरण (6)
- व्रत (23)
- शाबर मंत्र (1)
- शिव (56)
- श्राद्ध-प्रकरण (14)
- श्रीकृष्ण (22)
- श्रीराधा (2)
- श्रीराम (71)
- सप्तशती (22)
- साधना (10)
- सूक्त (30)
- सूत्रम् (4)
- स्तवन (109)
- स्तोत्र संग्रह (711)
- स्तोत्र संग्रह (6)
- हृदयस्तोत्र (10)
No comments: