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- अग्निपुराण अध्याय १०२
- अग्निपुराण अध्याय १०१
- श्रीदेवीरहस्य पटल ४
- श्रीदेवीरहस्य पटल ३
- पंचांग भाग ५
- श्रीदेवीरहस्य पटल २
- देवीरहस्य पटल १
- जानकी द्वादशनामस्तोत्र
- जानकी अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र
- जानकी सहस्रनामस्तोत्र
- यक्षिणी साधना भाग ३
- यक्षिणी साधना भाग २
- शैवरामायण
- शैव रामायण अध्याय १२
- शैव रामायण अध्याय ११
- अग्निपुराण अध्याय १००
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- अग्निपुराण अध्याय ९७
- अग्निपुराण अध्याय ९६
- शैव रामायण अध्याय १०
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- शैव रामायण अध्याय ८
- शैव रामायण अध्याय ७
- राम स्तुति
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- अद्भुत रामायण सर्ग २७
- अद्भुत रामायण सर्ग २६
- जानकी स्तवन
- सीता सहस्रनाम स्तोत्र
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मूल शांति पूजन विधि
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
पंचांग भाग ५
पञ्चाङ्ग देखना सीखें के जातक प्रकरण में अब तब आप भाग १, भाग २ और भाग ३ तथा नक्षत्र ज्ञान व मूल नक्षत्र और उसका शांति, मूल- शान्ति की सामग्री तथा भाग ४ के विषय में ज्ञान प्राप्त कर चुके । अब पंचांग भाग ५ में स्त्री कुण्डली के विभिन्न लग्नों में ग्रहों का फल का वर्णन किया जा रहा है।
पञ्चाङ्ग चतुर्थ भाग- स्त्री कुण्डली फलम्
Panchang chapter 5
पंचांग पाँचवाँ अध्याय
पञ्चाङ्ग भाग ५
सप्तमे
भार्गवे जाता कुलदोषकरी भवेत् ।
कर्कराशिस्थिते
भौमे शौरो भ्रमति वेश्मसु ।।
सातवें घर में
जिस स्त्री के शुक्र हो, वह कुल को दोष लगावे । कर्क राशि में मंगल या शनि हो तो
बन्ध्या हो या घर-घर वास करे ।
बाल्ये च
विधवा भौमे पतित्याज्या दिवाकरे ।
तस्मै शौरिः
पापदृष्टे कन्यैव समुपैष्यति ।।
जिस स्त्री के
७ वें स्थान पर भौम हो, उसको बाल-विधवा योग कहे, सूर्य हो तो पति का त्याग करे,
शनि हो या पाप ग्रह की दृष्टि हो तो कन्या व विवाह बड़ी
उम्र में हो ।
एक एवं सुरराज
पुरो वा केन्द्रगोऽपिनव पंचमगो वा ।
शुभ ग्रहस्य
विलोक्यतो वा शेषखेचरबले न किंवा ॥
जिस स्त्री के
में गुरु हो और केन्द्र १ । ४ । ७ । १० में हों या ९ । ५ में हों और शुभ ग्रहों की
उन पर दृष्टि हो तो फिर खोटे ग्रह कुछ नहीं कर सकते ।
विशेष- सूर्य से नवें स्थान पिता का,
चन्द्रमा से चौथे स्थान माता का मंगल से तीसरे स्थान भाई का,
शनि से आठवें स्थान मत्यु का, बुध से छठे स्थान रोगों का तथा मामा और शत्रु का,
गुरु से पाँचवें स्थान सन्तान का,
शुक्र से ७ वें स्थान स्त्री का हाल कहे । जो शुभ ग्रह पड़े
अच्छा कहे । पाप या क्रूर ग्रह पड़े तो खोटा कहे । यदि किसी स्थान का स्वामी दूसरे
स्थान को देखता हो तो उस स्थान के शुभ ग्रह की वृद्धि करेगा तथा पाप और क्रूर ग्रह
का नाश करेगा ।
मूर्ती करोति
विधवां दिनकृत कुजश्च राहुर्विनष्टतनयां रविजो दरिद्राम् ।
शुक्रः
शशाङ्कतनयश्च गुरुश्च साध्वीमायु: क्षयं प्रकुरुतेऽत्र च शर्व राशिः ॥
जिस स्त्री के
लग्न में सूर्य और मंगल हों, वह स्त्री विधवा होती है। और राहु केतु सन्तान का नाश करते
हैं,
शनि हो तो दरिद्रा होती है, शुक्र या बुध अथवा बृहस्पति होय तो साध्वी (भली) हो और
चन्द्रमा हो तो आयु कम करता है ।
कुर्वन्ति
भास्करशनैश्चर राहुभौमाः दारिद्र्यदुःखमतुलं सततं द्वितीये ।
वित्तेश्वरीमविधवां
गुरु शुक्रसौम्यः नारीं प्रभूततनयां कुरुते शशांकः ॥
सूर्य,
शनि, राहु, केतु और मंगल यह ग्रह दूसरे स्थान में स्थित हों तो वह
स्त्री अत्यन्त दरिद्रा और दुःखिता होती है । बृहस्पति,
शुक्र या बुध स्थित हों तो वह स्त्री सौभाग्यवती और अधिक
धनवती होनी चाहिए और चन्द्रमा बहुत पुत्रवती करता है ।
शुक्रेन्दुभौमगुरुसूर्यबुधस्तृतीये
कुर्युः सतीं बहुसुतां धनभोगिनीं च ।
कन्यां करोति
रविजो बहु वित्तयुक्ताम् पुष्टिं करोति नियतं खलु सैंहिकेयः ॥
जिस स्त्री के
तीसरे स्थान में शुक्र, चन्द्रमा, मंगल, बृहस्पति, सूर्य अथवा बुध इनमें से कोई ग्रह बैठा हो तो वह स्त्री
पतिव्रता,
अनेक पुत्रों वाली और धन सम्पन्न होती है। शनि बैठा हो तो
उसके विशेष धन होता है । उसी स्थान में राहु, केतु भी विद्यमान हों तो शरीर को पुष्ट करते हैं ।
स्वल्यं पयः
क्षितिजसूर्यसुते चतुर्थे सौभाग्यशीलरहितां कुरुते शशांकः ।
राहुः
सपत्निसहितां क्षिति वित्तलाभम् दद्यात्बुधः सुरगुरुर्भृगुजश्च सौख्यम् ॥
चतुर्थ स्थान में
मंगल अथवा सूर्य स्थित हो तो उस स्त्री के दुग्ध स्वल्प अर्थात् थोड़ा होता है ।
चन्द्रमा सौभाग्य और सुशीलता का नाश करता है। राहु, केतु हो तो उसके कन्या अधिक होती हैं और उसको भूमि धन का लाभ
होता है। बुध, बृहस्पति और शुक्र हो तो उसे अनेक प्रकार के सुख की प्राप्ति होती है।
नष्टात्मनां
रविकुजौ खलु पंचमस्थो, चन्द्रात्मजं बहुसुतां गुरुभार्गवौ च ।
राहुर्ददाति
मरणं रविजश्च रोगं, कन्यानिधानमुदरं कुरुते शशांकः ॥
पंचम स्थान
में यदि सूर्य अथवा मंगल हो तो संतान को कष्ट करता है । बुध,
बृहस्पति और शुक्र हो तो वह स्त्री अनेक पुत्रों वाली होती है । राहु,
केतु मरण करता है । शनिश्चर प्रबल रोग उत्पन्न करता है और
यदि चन्द्रमा उक्त स्थान में हो तो कन्या अधिक होती हैं ।
षष्ठे
शनैश्चरकुजौ रविराहुजीवाः, नारीं करोति सुभगां पतिसेविनीं च ।
चन्द्रः करोति
विधवामुशना दरिद्रां वेश्यां शशांकतनयः कलहः प्रियां वा ॥
जिस स्त्री के
छठे स्थान में शनिश्चर, सूर्य, राहु, केतु, बृहस्पति अथवा मंगल इनमें से कोई ग्रह बैठा हो तो वह स्त्री
सदाचारिणी और पति की अत्यन्त सेवा करने वाली होती है। छठे स्थान में चन्द्रमा हो
तो विधवा करता है और उक्त स्थान में शुक्र के स्थित होने से वह स्त्री दरिद्रा
होती है। यदि उस स्थान में बुध बैठा हो तो वह स्त्री वेश्या अथवा नित्य कलह करने
वाली होती है ।
सूर्याऽऽरशोरिशशिसौम्यगुरुश्च
शुक्रः नारीं करोति सततं निज जन्मलग्नात् ।
ईशेर्विहीनविधवां
च जरासमेतां सौन्दर्यभर्तु- सुखभोगयुतां क्रमेण ॥
जिस स्त्री के
सूर्य सप्तम हो तो वह पति को त्याग दे, मंगल सप्तम हो तो विधवा हो, शनि हो तो बहुत बड़ी का विवाह हो,
चन्द्रमा हो तो सुन्दर हो, बुध हो तो सौभाग्यवती, बृहस्पति हो तो सर्व सुख वाली,
शुक्र हो तो भोग भोगने वाली भाग्यवती हो ।
स्थानेऽष्टमे
गुरुबुधौ नियतं वियोगं मृत्युं शशांक श्रृगवश्चतथैव राहुः ।
सूर्यं करोति
विधवां सुभगां महीजः सूर्यात्मजो बहुसुतां पतिवल्लभां च ॥
जिस स्त्री के
अष्टम स्थान में बृहस्पति अथवा बुध बैठे हों उसका अपने पति से वियोग रहता है ।
सूर्य विधवा करता है, मंगल सदाचरण करने वाली बनाता है और शनिश्चर उस स्थान में हो
तो उसके पुत्र बहुत हों तथा वह स्त्री अपने पति की प्यारी होती है ।
चन्द्रात्मजो
भृगुदिवाकरसौम्यधिष्णाः धर्मस्थिता विदद्यते किल धर्मनिष्ठाम् ।
भौमोरुजं
सूर्यसुतश्च रण्डा नारी प्रसूततनयां कुरुते शशांकः ॥
जिस स्त्री के
बुध,शुक्र, सूर्य और
बृहस्पति नवम स्थान में हों तो उस स्त्री की बुद्धि धर्म आचरण करने वाली हो । मंगल
रोग उत्पन्न करता है, शनिश्चर विधवा करता है तथा चन्द्रमा सन्तान उत्पन्न करता है
!
राहुः करोति
विधवां यदि कर्मणि स्यात् पापे रतिं दिनकरश्चं शनैश्चरश्च ।
मृत्युं
कुजोऽर्थरहितां कुलटां च चन्द्रः शेषां ग्रहा धनवंती सुभगां च कुर्युः ॥
कर्म अथवा दशम
स्थान में जिस स्त्री के राहु स्थित हो वह विधवा होती है,
सूर्य और शनि पाप में प्रीति करते हैं,
मंगल धन का नाश और मृत्यु करता है,
चन्द्रमा उसी स्त्री को कुलटा,
पर-पुरुष से प्रीति एवं अन्य ग्रह धनवती'
और सुभगा करते हैं ।
आयुः स्थितश्च
तपनः कुरुते सुपुत्रां पुत्रार्थिनीं च महिजोऽर्थवतीं हि चन्द्रः ।
आयुष्मतीं
सुरगुरुश्च तथैव सौम्यो राहुः करोति विधवां भृगुरर्थयुक्ताम् ।।
जिस स्त्री के
ग्यारहवें स्थान में सूर्य हो तो वह सुपुत्रवती होती है,
उसी स्थान में मंगल पड़ा हो तो उसे पुत्र की सदैव अभिलाषा
बनी रहे । चन्द्रमा धनवती करता है । बृहस्पति आयु की वृद्धि करते हैं और बुध,
राहु, केतु विधवा कर देते हैं तथा शुक्र अनेक प्रकार से धन का लाभ
कराते हैं !
अन्तेगुरुर्हि
विधवां दिनकृद्दरिद्रां चन्द्रोधनव्ययकरीं कुलटां च राहुः ।
साध्वी भवेत्
भृगुबुधौ बहुपुत्र पौत्रान् प्राणप्रसक्त हृदयां सुहृदां कुजश्च ॥
बारहवें स्थान
में जिस स्त्री के बृहस्पति हों तो विधवा करते हैं । सूर्य दरिद्रा (धनहीन) कर
देता है। चन्द्रमा धन खर्च कराता है । राहु, केतु कुलटा (व्यभिचारिणी) करते हैं । यदि उस स्थान में
शुक्र अथवा बुध हो तो वह स्त्री साध्वी (पतिव्रता) होती है और मंगल अनेक
पुत्र-पौत्रों से युक्त करके सुहृदयी बनाता है ।
शेष जारी............पञ्चाङ्ग भाग 6
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