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- यक्षिणी साधना भाग २
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श्रीदेवीरहस्य पटल ४
रुद्रयामलतन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्यम्
के पटल ४ में देवी, वैष्णव और शाक्तमन्त्रनिरूपण
अंतर्गत वैष्णवमन्त्रोद्धार के विषय में बतलाया गया है।
रुद्रयामलतन्त्रोक्तं श्रीदेवीरहस्यम् चतुर्थः पटलः वैष्णवमन्त्रोद्धारः
Shri Devi Rahasya Patal 4
रुद्रयामलतन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्य चौथा पटल
रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्यम्
चतुर्थ पटल
श्रीदेवीरहस्य पटल ४ वैष्णवमन्त्रोद्धारः
अथ चतुर्थः पटलः
वैष्णवमन्त्रोद्धारः
श्रीभैरव उवाच
अधुना कथयिष्यामि
वैष्णवांस्तत्त्वतो मनून् ।
येषां स्मरणमात्रेण
दीक्षितोऽदीक्षितो भवेत् ॥ १ ॥
मन्त्रोद्धारं प्रवक्ष्यामि
लक्ष्मीनारायणस्य ते ।
अष्टसिद्धिप्रदं सद्यः साधकानां
सुदुर्लभम् ॥ २ ॥
वैष्णव मन्त्रोद्धार - श्री भैरव ने
कहा कि अब मैं वैष्णव मन्त्र के तत्त्वों का वर्णन करता हूँ,
जिसके स्मरणमात्र से अदीक्षित भी दीक्षित हो जाता है। तुम्हारे
समक्ष मैं लक्ष्मीनारायण मन्त्र का उद्धार करता हूँ, जिससे
साधकों को दुर्लभ अष्टसिद्धियों की शीघ्र ही प्राप्ति हो जाती है।। १-२ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ४ लक्ष्मीनारायणमन्त्रोद्धारः
तारं परा च हरितं परा
लक्ष्मीस्ततोऽभिधम् ।
लक्ष्मीनारायणायेति विश्वमन्ते मनुः
स्मृतः ॥ ३ ॥
लक्ष्मीनारायण मन्त्रोद्धार-तार= ॐ, परा=
ह्रीं, हरित= ह्सौः, परा= ह्रीं, लक्ष्मी= श्री, लक्ष्मीनारायणाय, विश्व नमः के योग से यह मन्त्र बनता है। मन्त्र यह है - ॐ ह्रीं ह्सौः
ह्रीं श्रीं लक्ष्मीनारायणाय नमः ।। ३ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ४ राधाकृष्णमन्त्रोद्धारः
तारं रमा
वाग्भवकामशक्तिर्मायाग्निराधेति पदं वदेच्च ।
कृष्णाय कूर्चं हरठद्वयं
स्याच्छ्रीकृष्णमन्त्रो मनुराजमौलिः ॥४॥
राधाकृष्ण मन्त्रोद्धार-तार= ॐ, रमा= श्री, वाग्भव= ऐं, काम =
क्ली, शक्ति= सौ, माया =ह्रीं, अग्निरां, राधाकृष्णाय कूर्च= हूं, हर फट्, ठद्वय= स्वाहा के योग से यह मन्त्र बनता है।
मन्त्र है - ॐ श्रीं ऐं क्लीं सौः ह्रीं रां राधाकृष्णाय हूँ फट् स्वाहा। यह
मन्त्र कृष्णमन्त्रराज की मौली है।।४।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ४ विष्णुमन्त्रोद्धारः
तारं परायुगं तारं विष्णवे
विश्वमञ्चले ।
देवदेवस्य मन्त्रोऽयं विष्णोस्तव
समीरितः ॥ ५ ॥
विष्णु मन्त्रोद्धार-तार = ॐ, परायुग= ह्रीं ह्रीं, तार = ॐ, विष्णवे नमः के योग से विष्णुमन्त्र बनता है। मन्त्र है - ॐ ह्रीं ह्रीं ॐ
विष्णवे नमः । देवदेव का यह मन्त्र विष्णुस्तोत्र कहा जाता है ।। ५ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ४ लक्ष्मीनृसिंहमन्त्रोद्धारः
तारं रमा भूतिजवाक्स्मराश्च
शक्तिर्नृबीजं नरसिंहदेवम् ।
तुर्याङ्कितं वाक् तटफवनं ते
प्रोक्तो हि लक्ष्मीनरसिंहमन्त्रः ॥ ६ ॥
लक्ष्मी नृसिंह मन्त्रोद्धार-तार= ॐ,
रमा= श्री, भूति = ह्रीं, वाक् = ऐं, स्मर = क्लीं, शक्ति
= सौः क्षौं, नरसिंहदेवाय, वाक् ऐं,
तट फट् के योग से निर्मित मन्त्र है - ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं सौः
क्षौ नरसिंहदेवाय ऐं फट्।।६।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ४ लक्ष्मीवराहमन्त्रोद्धारः
तारं रमार्ण सकला स्मरश्च
लक्ष्मीवराहायपदं वदेत् तु ।
अन्तेऽश्मरी वैष्णवधामदायी
लक्ष्मीवराहस्य मनुः स्मृतस्ते ॥ ७ ॥
लक्ष्मीवराह मन्त्रोद्धार-तार= ॐ,
रमार्ण= श्री, सकला= ह्रीं, स्मर= क्लीं, लक्ष्मीवराह, अश्मरी
नमः के योग से लक्ष्मीवराह का मन्त्र बनता है। मन्त्र है – ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं
लक्ष्मीवराहाय नमः। यह मन्त्र वैकुण्ठ धाम में वास दिलाता है।।७।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ४ परशुराममन्त्रोद्धारः
तारं परा भूति रमा कुचार्णं
श्रीजामदग्न्याय सरोजयुग्मम् ।
आपस्तथान्ते गदितोऽयमीढ्यो यथेष्टदो
भार्गवराममन्त्रः ॥ ८ ॥
परशुराम मन्त्रोद्धार - तार= ॐ, परा= ह्रीं, भूति= ह्रीं, रमा=
श्री, कुचार्ण = जं, श्रीजामदग्न्याय,
आप स्वाहा के योग से परशुराम मन्त्र बनता है। मन्त्र है- ॐ ह्रीं
ह्रीं श्रीं जं श्रीजामदग्न्याय स्वाहा। यह मन्त्र सब तरह से स्तुत्य है और यथेष्ट
को प्रदान करने वाला है। ८॥
श्रीदेवीरहस्य पटल ४ सीताराममन्त्रोद्धारः
तारं परा रमा लक्ष्मीसीतारामेति
संवदेत् ।
प्रसीद-युगमापोऽन्ते मन्त्रोऽयं
मुक्तिकारणम् ॥ ९ ॥
सीताराम मन्त्रोद्धार-तार= ॐ, परा= ह्रीं, रमा= श्री,
लक्ष्मी= श्री, सीताराम प्रसीद प्रसीद, आप स्वाहा के योग से मन्त्र बनता है - ॐ ह्रीं श्रीं श्रीं सीताराम प्रसीद
प्रसीद स्वाहा। यह मन्त्र मोक्षप्रद है ।। ९ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ४ जनार्दनमन्त्रोद्धारः
तारं मा भूतिमा माख्यां
वदेज्जनार्दनाय च ।
विश्वमन्ते मनोर्देवि मन्त्रोऽयं
रिपुसूदनः ॥ १० ॥
जर्नादन मन्त्रोद्धार-तार = ॐ, मां= श्री, भूति=ह्रीं, मां =श्री, जनार्दनाय, विश्वम् = नमः के योग से मन्त्र बनता है
- ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं जनार्दनाय नमः यह मन्त्र शत्रुसंहारक है ।।१०।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ४ लक्ष्मीविश्वक्सेनमन्त्रोद्धारः
तारं परायुगं लक्ष्मीविश्वक्सेनाय
संवदेत् ।
कूचं पद्मत्रयं नीरं वैष्णवानां
सुदुर्लभः ॥ ११ ॥
लक्ष्मीविश्वक्सेन मन्त्रोद्धार-तार=
ॐ परायुग्म = ह्रीं ह्रीं, लक्ष्मी= श्रीं,विश्वक्सेनाय, कूर्च= हूँ, पद्मत्रय=
ठः ठः ठः, नीर स्वाहा के योग से निर्मित मन्त्र यह है - ॐ
ह्रीं ह्रीं श्रीं विश्वक्सेनाय हूं ठः ठः ठः स्वाहा। यह वैष्णवों का अत्यन्त
दुर्लभ मन्त्र है ।। ११ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ४ लक्ष्मीवासुदेवमन्त्रोद्धारः
तारं परा रमा वाणी कामो लक्ष्मीपदं
वदेत् ।
वासुदेवाय विश्वं स्यान्मन्त्रोऽयं
भोगमोक्षदः ॥ १२ ॥
लक्ष्मीवासुदेव मन्त्रोद्धार-तार= ॐ, परा= ह्रीं, रमा= श्री, वाणी=
ऐं, काम = क्लीं, लक्ष्मीवासुदेवाय,
विश्वम् = नमः के योग से बना मन्त्र है - ॐ ह्रीं श्रीं ऐं क्लीं
लक्ष्मी वासुदेवाय नमः यह मन्त्र भोग और मोक्षप्रदायक है ।। १२ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ४ पटलोपसंहारः
इदं तत्त्वतमं गुह्यं रहस्यं परमाद्भुतम्
।
वैष्णवानां च सर्वस्वं गोपनीयं स्वयोनिवत्
॥ १३ ॥
श्री भैरव कहते हैं कि हे देवि! यह
सर्वश्रेष्ठ तत्त्व गुह्य, रहस्यमय एवं
अत्यन्त आश्चर्यजनक है। वैष्णवों का सर्वस्व है। अपनी योनि के समान इसे गुप्त रखना
चाहिये ।। १३ ।।
इति श्रीरुद्रयामले तन्त्रे
श्रीदेवीरहस्ये वैष्णवमन्त्रोद्धारनिरूपणं नाम चतुर्थः पटलः ॥४॥
इस प्रकार रुद्रयामल तन्त्रोक्त
श्रीदेवीरहस्य की भाषा टीका में वैष्णव मन्त्रोद्धार नामक चतुर्थ पटल पूर्ण हुआ।
आगे जारी............... रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्य पटल 5
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