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- अग्निपुराण अध्याय १०१
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- श्रीदेवीरहस्य पटल २
- देवीरहस्य पटल १
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- जानकी सहस्रनामस्तोत्र
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- यक्षिणी साधना भाग २
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- शैव रामायण अध्याय ११
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- अग्निपुराण अध्याय ९६
- शैव रामायण अध्याय १०
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श्रीदेवीरहस्य पटल ५
रुद्रयामलतन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्यम्
के पटल ५ में मन्त्रोद्धार के पश्चात देवी,
वैष्णव और शाक्त मन्त्रों के उत्कीलन के विषय में बतलाया गया है।
रुद्रयामलतन्त्रोक्तं श्रीदेवीरहस्यम् पञ्चमः पटल: मन्त्रोत्कीलनविधिः
Shri Devi Rahasya Patal 5
रुद्रयामलतन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्य पाँचवाँ पटल
रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्यम्
पञ्चम पटल
देवी रहस्य पटल ५ मन्त्रोत्कीलन विधि
अथ पञ्चमः पटल:
मन्त्रोत्कीलनमहत्त्वम्
श्रीभैरव उवाच
अथ वक्ष्ये महत्तत्त्वं मन्त्राणां
परमार्थदम् ।
येन विज्ञातमात्रेण विद्या सिध्यति
सत्त्वरम् ॥ १ ॥
उत्कीलनविधिं वक्ष्ये
सर्वमन्त्ररहस्यकम् ।
अदातव्यमभक्तेभ्यो नाख्येयं यस्य
कस्यचित् ॥ २ ॥
शाक्तानां देवि मन्त्राणां शैवानां
च विशेषतः ।
वैष्णवानां मनूनां तु
वक्ष्याम्युत्कीलनं परम् ॥३॥
मन्त्रोत्कीलन का महत्त्व- श्री
भैरव ने कहा कि अब मैं उस श्रेष्ठ तत्त्व का वर्णन करता हूँ,
जो मन्त्रों के परमार्थ का दाता है। इस तत्त्व के ज्ञान से विद्या
की सिद्धि सत्वर होती है। सभी मन्त्रों के रहस्य उत्कीलनविधि का वर्णन करता हूँ।
इस विधि को अभक्तों को नहीं बतलाना चाहिये और न ही जिस किसी को बतलाना चाहिये।
शाक्त देवीमन्त्रों के, विशेष रूप से शैव मन्त्रों के और
वैष्णव मन्त्रों के उत्कीलन की विधि का निरूपण करता हूँ।।१-३।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ बालामन्त्रोत्कीलनमन्त्रः
प्रथमं देवि बालायात्र्यक्षर्याः
शृणु पार्वति ।
वाणीमन्ते त्रिरुच्चार्य
भवेदुत्कीलनं मनोः ॥४॥
बाला मन्त्रोत्कीलन मन्त्र - हे
पार्वति सर्वप्रथम देवी बाला त्रिपुरा के त्र्यक्षर मन्त्र का उत्कीलन सुनो। बाला
मन्त्र 'ऐं क्लीं सौं' के बाद तीन बार 'ऐं' के उच्चारण से इसका उत्कीलन होता है। मन्त्र
है-ऐं क्लीं सौः ऐं ऐं ऐं ।। ४ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ त्रिपुरभैरवीमन्त्रोत्कीलनमन्त्रः
अन्त्यकूटं वदेदादौ द्विर्देवि जपसिद्धये
।
भवेत् त्रिपुरभैरव्या मनोरुत्कीलनं
परम् ॥ ५ ॥
त्रिपुरभैरवी मन्त्रोत्कीलन —
त्रिपुरभैरवी के पञ्चदशी मन्त्र में तीन कूट हैं – वाग्भव कूट =
कएईलह्रीं, कामराजकूट= ह्सकहलह्रीं और शक्तिकूट= सकलह्रीं इस
मन्त्र के उत्कीलन के लिये अन्तिम कूट सकलह्रीं को पहले दो बार कहकर वाग्भव और
कामराज कूट का उच्चारण करना चाहिये उत्कीलन मन्त्र होता है-सकलह्रीं सकलह्रीं कएईलह्रीं
हसकहलह्रीं। इस उत्कीलन से जप में सिद्धि होती है ।। ५ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ षोडशीमन्त्रोत्कीलनमन्त्रः
कूटत्रयाणां प्रथमं वर्णं वर्णं
समुद्धरेत् ।
जपेच्छ्रीषोडशाक्षर्या भवेदुत्कीलनं
मनोः ॥६॥
षोडशी मन्त्रोत्कीलन - षोडशी के
तीनों कूटों में से प्रथम कूट के पाँच अक्षरों के साथ अलग-अलग षोड़शी मन्त्र के जप
से उत्कीलन होता है, जैसे—
क श्री क ए ई ल ह्रीं हसकहलह्रीं ।
ए श्री क ए ई ल ह्रीं हसकहलह्रीं।
ई श्रीं क ए ई ल ह्रीं हसकहलह्रीं।
ल श्री क ए ई ल हीं हसकहलह्रीं।
ह्रीं श्रीं क ए ई ल ह्रीं हसकहलह्रीं।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ कालिकामन्त्रस्य
निष्कीलत्वकथनम्
अथ वक्ष्ये रहस्यं ते कालिकाया
महेश्वरि ।
निष्कीलिता स्याद्विद्येयं
द्वाविंशत्यक्षरी परा ॥७॥
कालिका मन्त्रोत्कीलन- हे महेश्वरि
! अब मैं कालिका के द्वाविशाक्षर मन्त्र के रहस्य को बतलाता हूँ। इस मन्त्र को
उत्कीलित करने की आवश्यकता नहीं है; क्योंकि
यह स्वयं ही निष्कीलित है।।७।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ भद्रकालीमन्त्रोत्कीलनमन्त्रः
भद्रिकां प्रथमं दद्यादन्ते
कालीत्रयं वदेत् ।
भद्रकालीमनोर्देवि भवेदुत्कीलनं तथा
॥८ ॥
भद्रकाली मन्त्रोत्कीलन-भद्रकाली का
मन्त्र है- क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं भैं भद्रकालि भैं ह्रीं ह्रीं
हूं हूं क्रीं क्रीं क्रीं स्वाहा। इस मन्त्र को उत्कीलित करने के लिये मन्त्र के
शुरु में भद्रिका 'भैं' लगाये और अन्त में 'क्रीं क्रीं क्रीं" जोड़े।
उत्कीलन मन्त्र होगा- भैं क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं भैं भद्रकालि भैं
ह्रीं ह्रीं हूं हूं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं ॥८॥
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ राजमातङ्गिनीमन्त्रोत्कीलनमन्त्रः
ठद्वयान्ते परां दद्यात् जपेत्
साधकसत्तमः ।
भवेदुत्कीलनं देवि राजमातङ्गिनीमनोः
॥ ९ ॥
राजमातङ्गिनी मन्त्रोत्कीलन-मन्त्र
है - ॐ ह्रीं राजमातङ्गिनि मम सर्वार्थसिद्धिं देहि देहि फट् स्वाहा। इसके
मन्त्रान्त में 'स्वाहा' के बाद ह्रीं जोड़कर जप करने से इसका उत्कीलन होता है ।।९।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ भुवनेश्वरीमन्त्रोत्कीलनमन्त्रः
विश्वान्ते सकलां दद्याज्जपेत्
पार्वति जापकः ।
मनोः श्रीभुवनेश्वर्याः
स्यादुत्कीलनमुत्तमम् ॥ १० ॥
भुवनेश्वरी मन्त्रोत्कीलन-मन्त्र
है- ह्रीं भुवनेश्वर्यै नमः। इस मन्त्र में 'नमः'
के बाद 'ह्रीं' जोड़कर
जप करने से इसका उत्कीलन होता है ।। १० ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ तारामंत्रोत्कीलनमन्त्रः
वधूमादौ पठेदन्ते तारं जप्त्वा च
पार्वति ।
अयमुत्कीलनो मन्त्रस्तारायाः समुदाहृतः
॥ ११ ॥
तारा मन्त्रोत्कीलन- तारा का मन्त्र
है - ॐ ह्रीं स्त्रीं हूं फट्। इसे उत्कीलित करने के लिये इसके पहले 'स्त्री' लगाकर और अन्त 'ॐ'
जोड़कर जप किया जाता है। जैस-स्त्रीं ॐ ह्रीं स्त्रीं हूं फट् ॐ ।।
११।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ छिन्नमस्तामन्त्रोत्कीलनमन्त्रः
मात्रां द्वादशिकीमादौ
जपेन्मन्त्रस्य पार्वति ।
छिन्नशीर्षामनोरेष स्यादुत्कीलनक:
परः ।।१२।।
छिन्नशीर्षा मन्त्रोत्कीलन-मन्त्र
है- श्रीं ह्रीं ह्रीं ऐं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा। इस मन्त्र को
उत्कीलित करने के लिये इसके पहले 'ऐं'
लगाकर जप करना चाहिये ।। १२ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ सुमुखीमन्त्रोत्कीलनमन्त्रः
मायामादौ वनान्ते च वाग्भवं साधको
जपेत् ।
सुमुख्या मन्त्रराजस्य भवेदुत्कीलनं
तथा ॥१३॥
सुमुखी मन्त्रोत्कीलन- सुमुखी
मन्त्र है-ऐं क्लीं उच्छिष्टचाण्डालिनि सुमुखि देवि महापिशाचिनि ह्रीं ठः ठः ठः
स्वाहा। इस मन्त्र को उत्कीलित करने के लिये मन्त्र के पहले 'ह्रीं' और स्वाहा के बाद 'ऐं'
जोड़कर जप करना चाहिये ।।१३।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ सरस्वतीमन्त्रोत्कीलनमन्त्रः
वाग्भवं प्रथमं दद्याद्विश्वान्ते
प्रणवं जपेत् ।
सरस्वतीमनोर्देवि मन्त्रोऽस्त्युत्कीलनाभिधः
॥ १४ ॥
सरस्वती मन्त्रोत्कीलन—सरस्वती मन्त्र है - ॐ ह्रीं ऐं ह्रीं ॐ सरस्वत्यै नमः। इस मन्त्र के पहले
'ऐं' और अन्त में 'ॐ' लगाकर जप करने से इसका उत्कीलन होता है, जैसे- ऐं ॐ ह्रीं ऐं ह्रीं ॐ सरस्वत्यै नमः ॐ ।। १४ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ अन्नपूर्णा
मन्त्रोत्कीलनमन्त्रः
विश्वमादौ जपेद् देवि वनान्ते मदनं
पठेत् ।
अन्नपूर्णामनोरेष स्यादुत्कीलनको मनुः
॥ १५ ॥
अन्नपूर्णा मन्त्रोद्धार - मन्त्र
है - ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं नमो भगवति महेश्वरि अन्नपूर्णे स्वाहा। इस मन्त्र के
पहले 'नमः' और अन्त में 'क्लीं'
लगाकर जप करने से उत्कीलन होता है ।। १५ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ महालक्ष्मीमन्त्रोत्कीलनमन्त्रः
रमामादौ मनोर्दद्यात्
पद्मत्रयमथाञ्चले ।
महालक्ष्मीमनोर्देवि मन्त्रोऽस्त्युत्कीलनाभिधः
॥ १६ ॥
महालक्ष्मी मन्त्रोत्कीलन-मन्त्र है
- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं सौः महालक्ष्मि प्रसीद प्रसीद श्री ठः ठः ठः स्वाहा। इस
महालक्ष्मी मन्त्र के पहले 'श्रीं' और अन्त में 'स्वाहा' के बाद 'ठः ठः ठः' लगाकर जप करने से इसका उत्कीलन होता है।।
१६ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ शारिकामन्त्रोत्कीलनमन्त्रः
सिन्धुरं सञ्जपेदादौ मायामन्ते महेश्वरि
।
शारिकामन्त्रराजस्य स्यादुत्कीलनको
मनुः ॥ १७ ॥
शारिका मन्त्रोत्कीलन -
शारिकामन्त्र है - ॐ ह्रीं श्रीं हूं फ्रां आं शां शारिकायै नमः । इस मन्त्र के
पहले 'फ्रां' और अन्त में नमः के बाद 'ह्रीं' लगाकर जप करने से इसका उत्कीलन होता है
।।१७।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ शारदामन्त्रोत्कीलनमन्त्रः
वनमादौ च नामाग्रे तारं दत्त्वा
जपेच्छिवे ।
शारदामन्त्रराजस्य
मन्त्रोऽस्त्युत्कीलनाभिधः ॥ १८ ॥
शारदा मन्त्रोत्कीलन- शारदामन्त्र
है - ॐ ह्रीं क्लीं सः नमो भगवत्यै शारदायै ह्रीं स्वाहा। इसके पहले 'स्वाहा' और शारदायै के पहले 'ॐ'
लगाकर जप करने से इसका उत्कीलन होता है ।। १८ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ इन्द्राक्षीमन्त्रोत्कीलनमन्त्रः
शक्तिबीजं पठेदादौ ठद्वयान्ते च
मन्मथम् ।
इन्द्राक्षीमन्त्रराजस्य
स्यादुत्कीलनको मनुः ।। १९ ।।
इन्द्राक्षी मन्त्रोद्धार –
इन्द्राक्षी मन्त्र है - ॐ श्रीं ह्रीं ऐं सौः क्ली इन्द्राक्षि
वज्रहस्ते फट् स्वाहा। इसके पहले 'सौ' और
अन्त में 'क्लीं' लगाकर जप करने से
इसका उत्कीलन होता है ।। १९ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ बगलामुखीमन्त्रोत्कीलनमन्त्रः
मृद्वीजं च मनोरादौ वनान्ते प्रणवं
जपेत् ।
मन्त्रोऽयं बगलामुख्या
मन्त्रोत्कीलनसिद्धिदः ॥ २० ॥
बगला मन्त्रोद्धार –
बगलामन्त्र है - ॐ ह्रीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय
स्तम्भय जिह्वां कीलय कीलय ह्रीं ॐ स्वाहा। इसके पहले 'ह्रीं'
और अन्त में स्वाहा के बाद 'ॐ' लगाकर जप करने से उत्कीलन होता है।। २० ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ महातुरीमन्त्रोत्कीलनमन्त्रः
त्रिः पठेदश्मरीप्रान्ते प्रणवं
साधकोत्तमः ।
तुरीमन्त्रस्य मन्त्रोऽयमुत्कीलनफलप्रदः
॥ २१ ॥
महातुरी मन्त्रोत्कीलन —
मन्त्र है - ॐ श्रुं त्रौं त्रों महातुर्यै नमः । इस मन्त्र के अन्त
में 'नमः' के बाद तीन ॐ अर्थात् 'ॐ ॐ ॐ' लगाकर जप करने से इसका उत्कीलन होता है ।। २१
।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ महाराज्ञीमन्त्रोत्कीलनमन्त्रः
वह्निमादौ तथा चान्ते तारं दत्त्वा
महेश्वरि ।
जपेन्मन्त्रं महाराज्ञी
मनूत्कीलनसिद्धये ॥ २२ ॥
महाराज्ञी मन्त्रोत्कीलन –
दक्षिण काली का महाराज्ञी मन्त्र है - ॐ ह्रीं श्रीं रां क्लीं सौः
भगवत्यै राज्ञ्यै स्वाहा। इस मन्त्र के पहले 'रां' और अन्त में 'ॐ' लगाकर जप करने
से उत्कीलन होता है।। २२ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ ज्वालामुखीमन्त्रोत्कीलनमन्त्रः
रमामादौ जपेद् देवि मन्त्रान्ते
सकलां जपेत् ।
ज्वालामुखी मनोरेष
मन्त्रोऽस्त्युत्कीलनक्षमः ॥ २३ ॥
ज्वालामुखी मन्त्रोद्धार –
मन्त्र है - ॐ ह्रीं श्रीं ज्वालामुखि मम सर्वशत्रून् भक्षय 'भक्षय हूं फट् स्वाहा। इस मन्त्र के पहले 'श्रीं'
और अन्त में 'ह्रीं' लगाकर
जप करने से इसका उत्कीलन होता है।। २३ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ भीड़ामन्त्रोत्कीलनमन्त्रः
वेदीबीजं पठेदादौ नामान्ते प्रणवं
जपेत् ।
भीडामन्त्रस्य
मन्त्रोऽयमुत्कीलनफलप्रदः ॥२४॥
भीड़ा मन्त्रोत्कीलन- भीड़ा भगवती
का मन्त्र है - ॐ ह्रीं श्रीं ह्स्रै ऐं क्लीं सौः भीड़ा भगवति हंसरूपिणि स्वाहा।
इस मन्त्र के पहले 'ह्स्रै' और भीड़ा भगवति नाम के बाद 'ॐ' लगाकर जप करने से इसका उत्कीलन होता है। उत्कीलन मन्त्र ऐसा होगा- ह्स्रै
ॐ श्रीं ह्स्रै ऐं क्लीं सौः भीड़ा भगवति ॐ हंसरूपिणि स्वाहा ।। २४ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ कालरात्रिमन्त्रोत्कीलनमन्त्रः
विश्वान्ते वाग्भवं दद्यात् काममादौ
जपेत् प्रिये ।
कालरात्रिमनोर्देवि स्यादुत्कीलनको
मनुः ॥ २५ ॥
कालरात्रि मन्त्रोत्कीलन-मन्त्र है
- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं कालरात्रि सर्वं वश्यं कुरु कुरु वीर्यं देहि देहि
गणेश्वर्यै नमः । इस मन्त्र के पहले 'क्लीं'
और अन्त में नमः के बाद 'ऐं' लगाकर जप करने से इसका उत्कीलन होता है ।। २५ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ भवानीमन्त्रोत्कीलनमन्त्रः
तारत्रयं पठेदन्ते मा त्रयं प्रथमं
जपेत् ।
भवानीमन्त्रराजस्य मन्त्रोऽयं
कीलदोषनुत् ॥ २६ ॥
भवानी मन्त्रोत्कीलन-मन्त्र है - ॐ
श्रीं श्रीं ॐ ॐ ह्रीं श्रीं श्रीं हूं फट् । इस मन्त्र के पहले 'श्रीं श्रीं श्रीं' और अन्त में फट् के बाद 'ॐ ॐ ॐ' लगाकर जप करने से इसका उत्कीलन होता है।। २६
।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ बज्रयोगिनीमन्त्रोत्कीलनमन्त्रः
परामन्ते जपेद् देवि
वज्रयोगेश्वरीमनोः ।
उत्कीलनाख्यो मन्त्रोऽयं
मन्त्रसिद्धिफलप्रदः ॥ २७ ॥
वज्रयोगिनी मन्त्रोत्कीलन मन्त्र है
- ॐ ह्रीं वज्रयोगिन्यै स्वाहा। इसके अन्त में स्वाहा के बाद 'ह्रीं' लगाकर जप करने से इसका उत्कीलन होता है।
उत्कीलित होने के पश्चात् ही यह मन्त्र सिद्धिप्रद और फलप्रदायक होता है ।। २७ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ धूम्रवाराहीमन्त्रोत्कीलनमन्त्रः
मठमादौ जपेद् देवि ठद्वयान्ते हरं
तथा ।
वाराहीमन्त्रराजस्य
मन्त्रोऽस्त्युत्कीलनाभिधः ॥ २८ ॥
वाराही मन्त्रोत्कीलन-मन्त्र है-ऐं
ग्लौं लं ऐं नमो भगवति वार्तालि वाराहि देवते वराहमुखि ऐं ग्लौं ठः ठः फट् स्वाहा।
इस मन्त्र के पहले 'ग्लौ' और ठः ठः के बाद फट् लगाकर जप करने से इसका उत्कीलन होता है ।। २८ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ सिद्धलक्ष्मीमन्त्रोत्कीलनमन्त्रः
हरितं प्रथमं देवि विश्वान्ते
वाग्भवं जपेत् ।
सिद्धलक्ष्मीर्मनोर्देवि
मन्त्रोऽस्त्युत्कीलनाभिधः ॥ २९ ॥
सिद्धलक्ष्मी मन्त्रोत्कीलन-मन्त्र
है - ॐ श्रीं श्रीं ह्रीं ह्सौः ऐं क्लीं सौः सिद्धलक्ष्म्यै नमः । इस मन्त्र के
पहले 'हसौ' और नमः के बाद 'ऐं'
लगाकर जप करने से इसका उत्कीलन होता है ।। २९ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ कुलवागीश्वरीमन्त्रोत्कीलनमन्त्रः
वेश्यामादौ वनान्ते च डिम्बबीजं
जपेच्छिवे ।
उत्कीलनाख्यो मन्त्रोऽयं
कुलवागीश्वरमनोः ॥ ३० ॥
कुलवागीश्वरी मन्त्रोत्कीलन मन्त्र
है - ॐ क्लीं ह्रां श्रीं हूं झं झषहस्ते कुलवागीश्वरि ऐं ठः झं ठः स्त्रीं ठः
स्वाहा। इस मन्त्र के पहले 'हस्रै' और स्वाहा के बाद 'ह्रीं' लगाकर
जप करने से इसका उत्कीलन होता है ।। ३० ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ पद्मावतीमन्त्रोत्कीलनमन्त्रः
वीचिबीजं जपेदादौ ठद्वयान्ते च
तारकम् ।
पद्मावतीमनोर्देवि
मन्त्रोऽस्त्युत्कीलनाभिधः ॥ ३१ ॥
पद्मावती मन्त्रोत्कीलन-मन्त्र है -
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लूं पद्मावति मम वरं देहि देहि फट् स्वाहा। इस मन्त्र के
पहले 'ब्लूं' और अन्त में 'त्रों'
लगाकर जप करने से इसका उत्कीलन होता है।। ३१ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ कुब्जिकामन्त्रोत्कीलनमन्त्रः
वागुरां सञ्जपेदादौ वनान्ते सकलां
जपेत् ।
कुब्जिकामन्त्रराजस्य मन्त्रोऽयं कीलदोषहत्
॥ ३२ ॥
कुब्जिका मन्त्रोत्कीलन- मन्त्र है
- ॐ श्रीं श्रीं कुब्जिके देवि ह्रीं ठः स्वाहा। इस मन्त्र के पहले और अन्त में 'ह्रीं' लगाकर जप करने से इसका उत्कीलन होता है ।। ३२
।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ गौरीमन्त्रोत्कीलनमन्त्रः
मठमादौ मनोर्देवि प्रणवं
ठद्वयाञ्चले ।
मन्त्रं जपेदयं मन्त्रो
गौरीमन्त्रस्य कीलहृत् ॥ ३३ ॥
गौरी मन्त्रोत्कीलन- मन्त्र है - ॐ
श्रीं ह्रीं ग्लौं गं गौरि गीं स्वाहा। इस मन्त्र के पहले 'ग्लौं' और अन्त में 'ॐ'
लगाकर जप करने से इसका उत्कीलन होता है ।। ३३ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ खेचरीमन्त्रोत्कीलनमन्त्रः
शक्तिमन्ते जपेद्विश्वं प्रथमं पैरमेश्वरि
।
खेचरीमन्त्रराजस्य स्यादुत्कीलनको मनुः
॥ ३४ ॥
खेचरी मन्त्रोत्कीलन-मन्त्र है-मलह्रीं
सौः खेचर्यै नमः । इस मन्त्र के पहले 'नमः'
और अन्त में 'सौ' लगाकर
जप करने से इसका उत्कीलन होता है।। ३४ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ नीलसरस्वतीमन्त्रोत्कीलनमन्त्रः
कूर्चमादौ मनोरन्ते व्योषं दत्त्वा
जपेच्छिवे ।
मनोर्नीलसरस्वत्याः स्यादुत्कीलनको
मनुः ॥ ३५ ॥
नीलसरस्वती मन्त्रोत्कीलन-मन्त्र है
- ॐ ह्रां ऐं हूं नीलसरस्वति फट् स्वाहा। इस मन्त्र के पहले 'हूं फट्' और अन्त में 'ह्रां'
लगाकर जप करने से इसका उत्कीलन होता है ।। ३५ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ पराशक्तिमन्त्रोत्कीलनमन्त्रः
शक्तिमादौ मनोर्देवि वासनामञ्चले
जपेत् ।
पराशक्तेर्मनोर्देवि कीलदोषापहो
मनुः ।। ३६ ।।
पराशक्ति मन्त्रोत्कीलन-मन्त्र है -
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं सौः ह्सौः पराशक्त्यै ऐं स्वाहा। इस मन्त्र के पहले 'सौ' और अन्त में 'ऐं' लगाकर जप करने से इसका उत्कीलन होता है ।। ३६ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ निष्कीलितशैवमन्त्र
निष्कीलितशैवमन्त्राणां
पुरश्चरणेनैव बीजमन्त्राणां त्रिरावृत्त्या वा सिद्धत्वम्
श्री भैरव उवाच
अधुना शैवमन्त्राणां केचिद् देवि
मनूत्तमाः ।
निष्कीलिता मया ख्याताः केचित्
पार्वति कीलिताः ॥ ३७ ॥
निष्कीलित और कीलित शैव मन्त्र -
श्री भैरव ने कहा कि हे देवि! कतिपय शैव मन्त्र कीलित नहीं हैं और कतिपय कीलित हैं,
निष्कीलित मन्त्र पुरश्चरण से सिद्ध होते हैं। कीलित मन्त्रों को
आदि बीज की तीन आवृत्ति जप करने से उत्कीलित करना पड़ता है ।। ३७।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ निष्कीलितशैवमन्त्राः
महेश्वरः शिवो रुद्रो महादेवः
करालकः ।
विकरालः शिवो शर्वो मृडः
पशुपतिस्तथा ॥ ३८ ॥
पिनाकी गिरिशो भीमः कुमारः
प्रमथाधिपः ।
क्रोधेश ईश ईशानि कपाली क्रूरभैरवः
॥ ३९ ॥
संहार ईश्वरो भर्गो रुरुः
कालाग्निभैरवः ।
एते मन्त्रा महादेवि
कीलदोषविवर्जिताः ॥ ४० ॥
पुरश्चरणमात्रेण फलं दास्यन्ति
सत्वरम् ।
अथवा देवदेवेशि वक्ष्ये तत्त्वं
परात् परम् ॥ ४१ ॥
निष्कीलित शैव मन्त्र - जिन देवताओं
के मन्त्र कीलित नहीं है, वे है— महेश्वर, शिव, रुद्र, महादेव, कराल, विकराल, शिव, रुद्र, शर्व, मृड, पशुपति, पिनाकी, गिरीश, भीम, कुमार, प्रमथाधिप, क्रोधेश, ईश,
ईशान, कपाली, क्रूर भैरव,
संहार, ईश्वर, भर्ग,
रुरु और कालाग्नि भैरव। इन मन्त्रों का वर्णन पहले किया जा चुका है।
इनके हे देवताओं के पूर्व वर्णित मन्त्र पुरश्चरणमात्र से शीघ्र सिद्ध हो जाते
हैं। देवदेवेशि ! अब मैं परात्पर तत्त्व का वर्णन करता हूँ ।। ३८-४१ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ कीलितशैवमन्त्राः
एतेषां शैवमन्त्राणां श्रुत्वा
गोप्यतमं कुरु ।
मन्त्रादिबीजं देवेशि प्रतिमन्त्रं
जपेत् सुधीः ॥ ४२ ॥
त्रिवारं साधको येन भवेदुत्कीलनं
मनोः ।
मृत्युञ्जयोऽमृतेशानो बटुको
नीलकण्ठकः ॥ ४३ ॥
सद्योजातो गणेशश्च देवेशोऽघोर भैरवः
।
महाकालो महादेवि कामेश्वर इति
प्रिये ॥ ४४ ॥
एते मन्त्रा मया देवि कीलिता
मन्त्रसिद्धये ।
एतेषां शृणु मन्त्राणां
देवेश्युत्कीलनं परम् ॥४५ ॥
येनोच्चारणमात्रेण मन्त्रसिद्धिः
प्रजायते ।
कीलित शैव मन्त्र - निम्नलिखित
मन्त्रों को सुनने के पश्चात् अत्यन्त गुप्त रखना चाहिये। इन मन्त्रों के आदि बीज
का प्रति मन्त्र तीन बार जप करने से इनका उत्कीलन होता है। इन मन्त्रों में
मृत्युञ्जय, अमृतेश, बटुक,
नीलकण्ठ, सद्योजात, गणेश,
देवेश, अघोर भैरव, महाकाल
कामेश्वरमन्त्र आते हैं।
ये सभी शैव मन्त्र कीलित हैं। हे
देवि! इनके उत्कीलन की विधि को सुनो। इनके उच्चारणमात्र से ही मन्त्रसिद्धि हो
जाती है।। ४२-४५ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ मृत्युञ्जयमन्त्रोत्कीलनम्
हृज्जबीजं जपेदादौ अन्ते शक्तिं
जपेत् प्रिये ॥४६॥
श्रीमृत्युञ्जय मन्त्रस्य
मन्त्रोऽस्त्युत्कीलनाभिधः ।
मृत्युञ्जय मन्त्रोत्कीलन —
मृत्युञ्जय मन्त्र है - ॐ जूं सः मां पालय पालय सः जूं ॐ। इसके पहले
जूं और अन्त में सौः लगाकर जप करने से यह उत्कीलित होता है ।।४६ ॥
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ अमृतेश्वरमन्त्रोत्कीलनम्
तारमन्ते जपेदादौ शक्तिं मन्त्रस्य
पार्वति ॥ ४७ ॥
अमृतेश्वरमन्त्रस्य स्यादयं
कीलदोषहृत् ।
अमृतेश्वर मन्त्रोत्कीलन –
मन्त्र है - ॐ जूं फट् अमृतेशाय नमः । इस मन्त्र के पहले 'सौ' और अन्त में 'ॐ' लगाकर जप करने से इसके कील दोष का नाश होता है ।। ४७ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ वटुकभैरवमन्त्रोत्कीलनम्
परमादौ जपेदन्ते प्रणवं साधकोत्तमः
॥ ४८ ॥
मन्त्रो वटुकमन्त्रस्य स्यादयं कीलनाशकः
।
वटुक मन्त्रोत्कीलन-मन्त्र है - ॐ
ह्रीं वटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं इस मन्त्र के पहले 'ह्रीं' और अन्त में 'ॐ'
लगाकर जप करने से यह उत्कीलित होता है ।।४८ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ नीलकण्ठमन्त्रोत्कीलनम्
हरितं प्रथमं दत्त्वा मन्त्रान्ते च
शिवं जपेत् ॥ ४९ ॥
दुर्गाशिवस्य मन्त्रोऽयं नीलकण्ठस्य
कीलनुत् ।
नीलकण्ठ मन्त्रोत्कीलन-मन्त्र है -
ॐ ह्सौः ह्रां नीलकण्ठाय नमः । इस मन्त्र के पहले 'ह्सौ;' और अन्त में 'गं'
लगाकर जप करने से यह कील दोष से मुक्त हो जाता है ।। ४९ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ सद्योजातमन्त्रोत्कीलनम्
शिवमादौ जपेदन्ते तारं पार्वति साधकः
॥ ५० ॥
उग्रताराशिवस्यायं मन्त्रो
मन्त्रस्य कीलहृत् ।
सद्योजात मन्त्रोत्कीलन-मन्त्र है -
ॐ ह्रां गं सद्योजाताय नमः। इस मन्त्र के पहले 'गं' और अन्त में 'ॐ' लगाकर जप करने से यह कील दोष से विमुक्त होता है ॥ ५० ॥
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ महागणपतिमन्त्रोत्कीलनम्
मायामन्ते जपेद् देवि शिवमादौ च
साधकः ॥ ५१ ॥
महागणपतेर्मन्त्रो मनोरुत्कीलनाभिधः
।
महागणपति मन्त्रोत्कीलन मन्त्र है-
ह्रीं गं ह्रीं गणपतये नमः। इसके पहले 'गं'
और अन्त में 'ह्रीं' लगाकर
जप करने से यह कौल दोष से मुक्त होता है ।। ५१ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ अघोर
भैरवमन्त्रोत्कीलनम्
विश्वमादौ मनोर्देवि मात्रादिं
चाञ्चले जपेत् ॥५२॥
अघोर भैरवस्यायं मनोरुत्कीलनो मनुः
।
अघोर मन्त्रोत्कीलन-मन्त्र है –
ॐ अघोरेभ्योऽथ घोरेभ्यो घोरघोरतरेभ्यः
।
सर्वेभ्यः सर्वशर्वेभ्यो
नमस्तेऽस्तु रुद्ररूपेभ्यः ।।
इस मन्त्र के पहले 'नमः' और अन्त में 'अं' लगाकर जप करने से यह कील दोष से मुक्त होता है ।।५२ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ महाकालमन्त्रस्य
निष्कीलनत्वम्
एषामपि महाकालो निष्कीलित इति
स्मृतः ॥ ५३ ॥
अस्य मन्त्रप्रसादेन सर्वे
निष्कीलिताः शिवे।
महाकाल मन्त्रोत्कीलन महाकाल का
मन्त्र भी कीलन दोष से रहित कहा गया है। हे शिवे! इस मन्त्र के प्रसाद से समस्त
शैव मन्त्र निष्कीलित हो जाते हैं ।।५३ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ कामेश्वरमन्त्रोत्कीलनम्
कामेशकूटत्रयतः प्रथमार्णत्रयं
जपेत् ।। ५४ ।।
श्रीवद्याशिवमन्त्रस्य
स्यादुत्कीलनको मनुः ।
कामेश्वर मन्त्रोत्कीलन-मन्त्र
है-ऐं क्लीं सौः ॐ श्रीं ह्रीं कामेश्वर ह्रीं श्रीं ॐ सौः क्लीं ऐं । कामेश
मन्त्र के तीन कूटों में से प्रत्येक कूट के साथ 'ऐं क्लीं सौः' लगाकर जप करने से श्रीविद्या के शिव
कामेश्वर के मन्त्र का उत्कीलन हो जाता है ।।५४।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ वैष्णवमन्त्रोत्कीलनकथनम्
अथाहं वैष्णवानां ते मन्त्राणां
वच्मि पार्वति ॥ ५५ ॥
उत्कीलनमनून् येषां जपमात्राच्छिवं
भजेत् ।
वैष्णव मन्त्रों का उत्कीलन—श्री भैरव ने कहा कि हे पार्वति! अब मैं वैष्णव मन्त्रों के उत्कीलन
मन्त्रों का वर्णन करता हूँ, जिसके जपमात्र से शिवत्व
प्राप्त हो जाता है ।। ५५ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ लक्ष्मीनारायणमन्त्रोत्कीलनम्
हरितं प्रथमं दद्यादन्ते प्रणवमीश्वरि
॥५६ ।।
लक्ष्मीनारायणस्यायं स्यादुत्कीलनको
मनुः ।
लक्ष्मीनारायण मन्त्रोत्कीलन मन्त्र
है - ॐ ह्रीं ह्सौः ह्रीं श्रीं लक्ष्मीनारायणाय नमः इस मन्त्र के पहले 'हसौः' और अन्त में 'ॐ' लगाकर जप करने से यह कीलदोष से विमुक्त होता है ।। ५६ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ राधाकृष्णमन्त्रोत्कीलनम्
शक्तिमादौ मनोरन्ते वाग्भवं साधको
जपेत् ॥ ५७ ॥
श्रीराधकृष्णमन्त्रस्य मन्त्रोऽयं
कीलदोषहृत् ।
राधाकृष्ण मन्त्रोत्कीलन —
मन्त्र है - ॐ श्रीं ऐं क्लीं सौः रां राधाकृष्णाय हूं फट् स्वाहा।
इसके पहले 'सौ' और अन्त में 'ऐं' लगाकर जप करने से यह कील दोष से मुक्त होता है
।। ५७ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ विष्णुमन्त्रोत्कीलनम्
परायुगं जपेदन्ते विश्वमादौ जपेन्मनोः
॥५८॥
विष्णुमन्त्रस्य मन्त्रोऽयं
स्यादुत्कीलनकाभिधः ।
विष्णु मन्त्रोत्कीलन —
मन्त्र है - ॐ ह्रीं ह्रीं ॐ विष्णवे नमः । इस मन्त्र के पहले 'नमः' और अन्त में 'ह्रीं ह्रीं'
लगाकर जप करने से यह कीलदोष से मुक्त होता है ।। ५८ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ लक्ष्मीनृसिंहमन्त्रोत्कीलनम्
स्मरमादौ जपेदन्ते नृबीजं
साधकोत्तमः ॥५९॥
लक्ष्मीनृसिंहमन्त्रस्य मन्त्रोऽयं
कीलदोषहत् ।
लक्ष्मीनृसिंह मन्त्रोत्कीलन-मन्त्र
है - ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं सौः श्रीं नरसिंहदेवाय ऐं फट् । इस मन्त्र के पहले 'क्ली' और अन्त में 'क्षी'
लगाकर साधकोत्तम जब जप करता है तब इसके कील दोष का परिहार होता है
।। ५९ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ लक्ष्मीवराहमन्त्रोत्कीलनम्
तारमन्ते रमामादौ जपेत् साधकसत्तमः
॥ ६० ॥
लक्ष्मीवराहमन्त्रस्य भवेदुत्कीलनं
परम् ।
लक्ष्मीवराह मन्त्रोत्कीलन-मन्त्र
है - ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं नमः लक्ष्मीवराहाय नमः । इस मन्त्र के पहले 'श्रीं' और अन्त में 'ॐ'
लगाकर जप करने से इसका श्रेष्ठ उत्कीलन होता है।। ६० ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ भार्गवराममन्त्रोत्कीलनम्
कूर्चबीजं जपेदादौ मन्त्रान्ते
पद्मयुग्मकम् ॥ ६१ ॥
मनोर्भार्गवरामस्य भवेदुत्कीलनं
शिवे ।
भार्गव परशुराम मन्त्रोत्कीलन-
मन्त्र है - ॐ ह्रीं ह्रीं श्रीं जं श्रीं जामदग्न्याय स्वाहा। इस मन्त्र के आदि
में 'हूँ' और अन्त में 'ठः ठः'
लगाकर जप करने करने से यह कील दोष से रहित होता है ।। ६१ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ सीताराममन्त्रोत्कीलनम्
परामन्ते रमामादौ जपेत् पार्वति
सिद्धये ॥६२॥
श्रीसीतारामभद्रस्य
मनोर्मन्त्रोऽस्ति कीलहृत् ।
सीताराम मन्त्रोत्कीलन मन्त्र है -
ॐ ह्रीं श्रीं श्रीसीताराम प्रसीद प्रसीद स्वाहा। इस मन्त्र के आदि में 'श्री' और अन्त में 'ह्रीं'
लगाकर जप करने से यह कील दोष से मुक्त होता है ।। ६२ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ जनार्दनमन्त्रोत्कीलनम्
मामन्ते प्रथमं मां च जपेत् पार्वति
साधकः ॥६३॥
जनार्दनमनोर्मन्त्रः
स्यादुत्कीलनकाभिधः ।
जनार्दन मन्त्रोत्कीलन-मन्त्र है -
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं जनार्दनाय नमः इस मन्त्र के आदि और अन्त में 'श्रीं' लगाकर जप करने से उत्कीलन होता है।। ६३ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ विश्वक्सेनमन्त्रोत्कीलनम्
लक्ष्मीमादौ परामन्ते
सकृदुच्चारयेत् सुधीः ॥ ६४ ॥
विश्वक्सेनमनोर्देवि स्यादुत्कीलनको
मनुः ।
विश्वक्सेन मन्त्रोद्धार –
मन्त्र है - ॐ ह्रीं ह्रीं श्रीविश्वक्सेनाय हूं ठः ठः ठः स्वाहा।
इस मन्त्र के पहले 'श्रीं' और अन्त में
'ह्रीं' लगाकर जप करने से यह कील दोष
से मुक्त होता है ।। ६४ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ वासुदेवमन्त्रोत्कीलनम्
काममादौ च मन्त्रान्ते तारं देवि
जपेत् सुधीः ॥ ६५ ॥
वासुदेवमनोर्मन्त्रः
स्यादुत्कीलनकाभिधः ।
वासुदेव मन्त्रोत्कीलन —
मन्त्र है - ॐ ह्रीं श्रीं ऐं क्लीं लक्ष्मीवासुदेवाय नमः। इस मन्त्र
के पहले 'क्लीं' और अन्त में 'ॐ' लगाकर जप करने से यह कील दोष से मुक्त होता है ।।
६५ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल ५ पटलोपसंहारः
इति तत्त्वं महादेवि मन्त्राणां
परमार्थदम् ।
तव स्नेहेन कथितं नाख्येयं
ब्रह्मवादिभिः ॥ ६६ ॥
मन्त्रों के परमार्थप्रदायक तत्त्व
का विवेचन हे महादेवि! पूर्ण हुआ। तुम्हारे स्नेह के कारण मैंने इसका वर्णन किया।
इसे ब्रह्मवादियों को भी नहीं बतलाना चाहिये ।। ६६ ।।
इति श्रीरुद्रयामले तन्त्रे
श्रीदेवीरहस्ये मन्त्रोत्कीलनविधिनिरूपणं नाम पञ्चमः पटलः ॥५॥
इस प्रकार रुद्रयामल तन्त्रोक्त
श्रीदेवीरहस्य की भाषा टीका में मन्त्रोत्कीलनविधि नामक पञ्चम पटल पूर्ण हुआ।
आगे जारी............... रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्य पटल 6
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