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कर्मकाण्ड

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श्रीदेवीरहस्य पटल २

श्रीदेवीरहस्य पटल २

रुद्रयामलतन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्यम् के पटल २ में देवी, वैष्णव और शाक्तमन्त्रनिरूपण अंतर्गत शाक्तमन्त्रोद्धार के विषय में बतलाया गया है।

श्रीदेवीरहस्य पटल २

रुद्रयामलतन्त्रोक्तं श्रीदेवीरहस्यम् द्वितीयः पटलः

Shri Devi Rahasya Patal 2

रुद्रयामलतन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्य दूसरा पटल

रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्यम् द्वितीय पटल

श्रीदेवीरहस्य पटल २ शाक्तमन्त्रोद्धारः

अथ द्वितीयः पटलः

'देवी वैष्णव- शाक्तमन्त्रनिरूपणप्रस्तावः

श्रीभैरव उवाच

अधुना कथयिष्यामि मन्त्रान् साङ्गान् महेश्वरि।

देवीनां वैष्णवाञ्छाक्ताञ्छेवांस्त्वं शृणु पार्वति ॥ १ ॥

श्री भैरव ने कहा कि हे महेश्वरि! अब मैं देवियों के वैष्णव, शाक्त, शैव मन्त्रों का साङ्गोपाङ्ग वर्णन करता हूँ, उन्हें सुनो ।। १ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २ शाक्त मन्त्र देवता

त्रिपुरा त्र्यक्षरी बाला तथा त्रिपुरभैरवी ।

कालिका भद्रकाली च मातङ्गी भुवनेश्वरी ॥ २ ॥

उग्रतारा छिन्नशीर्षा सुमुखी च सरस्वती ।

अन्नपूर्णा महालक्ष्मीः शारिका शारदा ततः ॥ ३ ॥

इन्द्राक्षी बगला तुर्या राज्ञी ज्वालामुखी तथा ।

भीडा च कालरात्रिश्च भवानी वज्रयोगिनी ॥४॥

वाराही सिद्धलक्ष्मीश्च कुलवागीश्वरी ततः ।

पद्मावती कुब्जिका च गौरी श्रीखेचरी ततः ॥ ५ ॥

नीलसरस्वती देवि पराशक्तिस्ततः स्मृता ।

एतासां देवि साङ्गानां शक्तीनां वचम्यहं मनून् ॥ ६ ॥

शाक्त मन्त्र देवता-जिन देवियों के मन्त्रों का वर्णन कर रहा हूँ, उनके नाम इस प्रकार हैत्रिपुरा बाला त्र्यक्षरी, त्रिपुरसुन्दरी, कालिका, भद्रकाली, मातंगी, भुवनेश्वरी, उग्रतारा, छिन्नशीर्षा, सुमुखी, सरस्वती, अन्नपूर्णा, महालक्ष्मी, शारिका, शारदा, इन्द्राक्षी,बगला, तुर्या, राज्ञी, ज्वालामुखी, भीड़ा, कालरात्रि, भवानी, वज्रयोगिनी, वाराही, सिद्धलक्ष्मी, कुलवागीश्वरी, पद्मावती, कुब्जिका, गौरी, खेचरी, नीलसरस्वती, पराशक्ति । इन शक्तियों के मन्त्रों का उनके अङ्गों सहित आगे वर्णन किया जायगा ।। २-६।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २ शैवमन्त्रदेवता

शैवान् मन्त्रांस्ततो वक्ष्ये यथावच्छृणु पार्वति ।

मृत्युञ्जयोऽमृतेशानो वटुकोऽपि महेश्वरः ॥७॥

शिवः सदाशिवो रुद्रो महादेवः करालकः ।

विकरालो नीलकण्ठः शर्वः पशुपतिर्मृडः ॥८ ॥

पिनाकी गिरिशो भीमो गणेशः प्रमथाधिपः ।

कुमारः क्रोधनश्चेशः कपाली क्रूरभैरवः ॥ ९ ॥

संहार ईश्वरो भर्गो रुरुः कालाग्निरव्ययः ।

अघोरश्च महाकालः कामेश्वर इति स्मृतः ॥ १० ॥

शैव मन्त्र देवता - हे पार्वति! अब शैव मन्त्रों का विवरण देता हूँ, यथावत् सुनो।

जिनके मन्त्रों का वर्णन आगे किया जायेगा, वे हैंमृत्युञ्जय, अमृतेश, बटुक, महेश्वर, शिव, सदाशिव, रुद्र, महादेव, कराल, विकराल, नीलकण्ठ, शर्व, पशुपति, मृड, पिनाकी, गिरीश, भीम, गणेश, प्रमथाधिप, कुमार, क्रोधीश, कपाली, क्रूरभैरव, संहार, ईश्वर, भर्ग, रुरु, कालाग्नि, अघोर, महाकाल और कामेश्वर ।। ७-१०।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २ वैष्णवमन्त्रदेवता

वैष्णवाञ्छृणु देवेशि मन्त्रांस्तन्त्रेषु गोपितान् ।

येन श्रवणमात्रेण मन्त्री विष्णुपदं व्रजेत् ॥ ११ ॥

लक्ष्मीनारायणो राधाकृष्णो विष्णुर्नृसिंहकः ।

वराहो जामदग्न्यश्च सीतारामो जनार्दनः ॥ १२ ॥

विश्वक्सेनो वासुदेव इत्येवं दश वैष्णवाः ।

मन्त्रा अत्युत्तमा देवि जप्याः साधकसत्तमैः ॥ १३ ॥

वैष्णव मन्त्र देवता-मन्त्र-तन्त्रों में गुप्त जिन वैष्णव मन्त्रों का वर्णन आगे किया जायगा, उनका नाम सुनो। इनके श्रवणमात्र से साधक वैष्णव पद को प्राप्त कर लेता है। लक्ष्मीनारायण, राधाकृष्ण, विष्णु, नृसिंह, वराह, जामदग्न्य, सीताराम, जर्नादन, विश्वक्सेन, वासुदेव - ये ही दश वैष्णव हैं। इनके मन्त्र अति उत्तम हैं। श्रेष्ठ साधक इनका जप करते हैं ।। ११-१३।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २ शाक्तशैववैष्णवमन्त्रोद्धारः

एतेषां शाक्तशैवानां वैष्णवानां महेश्वरि ।

उद्धारान् वच्मि मन्त्राणां श्रुत्वा गोपय यत्नतः ॥ १४ ॥

शाक्त- शैव-वैष्णव मन्त्रों का उद्धार- हे महेश्वरि ! अब मैं इन शाक्त- शैव-वैष्णव मन्त्रों के उद्धार का वर्णन करता हूँ। इसे सुनकर यत्नपूर्वक गुप्त रखना चाहिये। सर्वप्रथम शाक्त मन्त्रों के उद्धार का वर्णन करता हूँ ।। १४ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २ बालामन्त्रोद्धारः

वाग्भवं कामराजश्च शक्तिर्मध्येऽभिधं न्यसेत् ।

नमोऽन्ते देवि बालाया मन्त्रोऽयं चाष्टवर्णकः ॥ १५ ॥

प्रकाशम्-  'ऐं क्लीं सौः बालायै नमः' इति बाला ।

बाला त्रिपुरा का मन्त्र - इस श्लोक के उद्धार करने पर बाला त्रिपुरा का अष्टाक्षर मन्त्र बनता है-ऐं क्लीं सौः बालायै नमः ।। १५ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २ पञ्चदशाक्षरी मन्त्रोद्धारः

वेधोबीजमधोऽध्यर्णमधो जिष्णुस्तम परा ।

छविः शक्तिः शिरः कान्तिस्तमो माया शरत् शिरः ॥ १६ ॥

तमो मायाञ्चले देव्या मन्त्रः पञ्चदशाक्षरः ।

स्पष्टम्— 'कएईलह्रीं हसकहलह्रीं सकलह्रीं' इति ।

त्रिपुरा का पञ्चदशी मन्त्र - इस श्लोक के उद्धार करने पर ललिता महात्रिपुर-सुन्दरी का पंचदशी मन्त्र बनता हैक ए ई ल ह्रीं ह स क ल ह्रीं सकल ह्रीं ।। १६ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २ षोडशीमन्त्रोद्धारः

लक्ष्मीःपरा मदनवाग्भवशक्तियुक्ता

तारं च भूतिकमले कथितापि विद्या ।

शक्त्यादिकं तु विपरीततया च प्रोक्तः

श्रीषोडशाक्षरविधिः शिवमस्तु पूर्णः ॥ १७ ॥

स्पष्टम् — 'श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौः ॐ ह्रीं श्रीं कएईलह्रीं  हसकहलह्रीं सकलह्रीं सौः ऐं क्लीं ह्रीं श्री' इति ।

षोडशी मन्त्र - इस श्लोक के उद्धार करने पर षोडशी महात्रिपुरसुन्दरी का षोडशाक्षर मन्त्र स्पष्ट होता हैश्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौः ॐ ह्रीं श्रीं कएईलह्रीं हसकहलह्रीं सकलह्रीं सौः ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं । इसमें कएईलह्रीं को एक अक्षर, हसकहलह्रीं को एक अक्षर और सकलह्रीं को एक अक्षर मानने पर सोलह अक्षर होते हैं ।। १७ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २ त्रिपुरामन्त्रोद्धारः

देवि वक्ष्याम्यहं गुह्यं त्रिपुराया रहस्यकम् ।

नित्यायाः शक्तयः पूज्या वाग्भवीकामशक्तयः । १८ ॥

तारमायारमाबीजैर्नाम मध्येऽञ्चलेऽश्मरी ।

मन्त्रोऽयं सर्वशक्तीनां सर्वसाधारणो मतः ।। १९ ।।

त्रिपुरापूजने देवि पृथग् जाप्ये पृथङ्मनुः ।

हे देवि! मैं तुम्हें त्रिपुरसुन्दरी के एक गुप्त रहस्य को बतलाता हूँ। इनकी नित्या शक्तियों की पूजा होती है, जो वाग्भव कूट, काम कूट और शक्ति कूट के पन्द्रह अक्षरों की प्रतिनिधि हैं। इन नित्याओं की संख्या पन्द्रह है। सर्वसाधारण मत से सभी शक्तियों के मन्त्र ॐ ह्रीं श्रीं के बाद चतुर्थ्यन्त नाम और नमः से बनते हैं। जैसे—'ॐ ह्रीं श्रीं कामेश्वर्यै नमः' यह कामेश्वरी नित्या का मन्त्र है। त्रिपुरा-पूजन के मन्त्र अलग हैं और जप के मन्त्र अलग हैं। । १८ - १९ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २ दक्षिणकालिकामन्त्रोद्धारः

कालीत्रयं कूर्चयुग्मं लज्जायुग्मं समुच्चरेत् ॥ २० ॥

दक्षिणे कालिके चेति पुनर्बीजानि पूर्ववत् ।

ठद्वयं स्यान्मनोरन्ते मन्त्रोऽयं भुवनेश्वरः ॥ २१ ॥

द्वाविंशत्यक्षरी विद्या विद्याराज्ञी प्रकीर्तिता ।

स्पष्टम्— 'क्रीक्रींक्रीं हूंहूं ह्रींह्रीं दक्षिणे कालिके क्रींक्रींकी हूंहूं ह्रींह्रीं स्वाहा' इति काली।

काली मन्त्र ( बाईस अक्षरों का विद्याराज्ञी )मन्त्र श्लोक के उद्धार करने पर कालीत्रय=  क्रींक्रींक्रीं, कूर्चयुग्मं=  हूं हूं, लज्जायुग्मं=  ह्रीं ह्रीं, दक्षिणे कालिके, तब क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं के बाद ठद्वयं=  स्वाहा से दक्षिणकाली का विद्याराज्ञी मन्त्र बनता है। वह बाईस अक्षर का मन्त्र है- क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा ।। २०-२१।।

काल्याद्याः शक्तयः पूज्याः कालीबीजेन केवलम् ।

अन्यथा सिद्धिहानिः स्यात् कालिकापूजने परम् ॥ २२ ॥

काली आदि शक्तियों की पूजा केवल क्रीं बीज से होती है। काली पूजन में ऐसा नहीं करने से हानि होने की सम्भावना रहती है।। २०-२२।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २ भद्रकालीमन्त्रोद्धारः

कालीत्रयं कूर्चयुग्मं लज्जायुग्मं च भद्रिकाम् ।

भद्रकालिपदं ब्रूयाद् बीजानि प्रतिलोमतः ॥ २३ ॥

ठद्वयेन समायुक्तो भद्रकाली महामनुः ।

प्रकाशम्— 'क्रींक्रींक्रीं हूंहूं ह्रींहीं भैं भद्रकालि भैं ह्रींह्रीं हूंहूं क्रींक्रींक्रीं स्वाहा' इति काली ।

कालीकूर्चपराबीजैः परिवारादिशक्तयः ।

पूजनीया महादेवि भद्रकालीसमर्चने ॥ २४ ॥

भद्रकाली का मन्त्र - श्लोकों के उद्धार करने पर कालीत्रय = क्रीं क्रीं क्रीं, कूर्चयुग्म = हूं हूं, लज्जायुग्म=  ह्रीं ह्रीं, भद्रिका= भैं, भद्रकालि के बाद बीजों को प्रतिलोम रूप में रखने से और ठद्वयं=  स्वाहा लगाने से भद्रकाली का महामन्त्र बनता है, जो निम्नवत् है-

क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं भैं भद्रकालि भैं ह्रीं ह्रीं हूं हूं क्रीं क्रीं क्रीं स्वाहा।

परिवारशक्तियों की पूजा 'क्री हूं ह्रीं' बीजों से होती है।। २३-२४।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २ मातङ्गीमन्त्रोद्धारः

तारं परां समुद्धृत्य राजमातङ्गिनीति च ।

मम सर्वार्थसिद्धिं च देहि युग्मं समुद्धरेत् ॥ २५ ॥

तुरगं ठद्वयं चान्ते मन्त्रोऽयं राजवल्लभः ।

प्रकाशम् – 'ॐ ह्रीं राजमातङ्गिनि मम सर्वार्थसिद्धिं देहि देहि फट् स्वाहा' इति मातङ्गी ।

तारेण पूज्या देवेशि शक्तय: परिवारगाः ॥ २६ ॥

मातंगी मन्त्र - श्लोकों के उद्धार करने पर तार = ॐ, परा=  ह्रीं, राजमांतगिनी मम सर्वार्थसिद्धि, देहि देहि फट् स्वाहा को एक साथ करने से मातंगी का राजवल्लभ मन्त्र बनता है। मन्त्र है-

ॐ ह्रीं राजमातङ्गिनि मम सर्वार्थसिद्धि देहि देहि फट् स्वाहा।

इनकी आवरणशक्तियों की पूजा केवल ॐ से होती है।। २५-२६ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २ भुवनेश्वरीमन्त्रोद्धारः

मायाबीजं नाम मध्ये नमो मन्त्राञ्चले वदेत् ।

एकाक्षरीयं विदिता भुवने भुवनेश्वरी ॥२७॥

प्रकाशम् — 'ह्रीं' भुवनेश्वर्यै नमः' इति भुवनेश्वरी ।

मायाबीजेन सम्पूज्याः पूजाकालेऽत्र शक्तयः ।

भुवनेश्वरी मन्त्र - श्लोक का उद्धार करने पर मायाबीज 'ह्रीं' के बाद 'भुवनेश्वर्य' तब 'नमः' लगाने से भुवनेश्वरी का मन्त्र 'ह्रीं भुवनेश्वर्यै नमः' बनता है। इनका एकाक्षरी मन्त्र चौदहों भुवनों में सर्वविदित है। पूजा के समय इनकी शक्तियों का पूजन ह्रीं बीज से किया जाता है।। २७।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २ उग्रतारामन्त्रोद्धारः

तारं परां वधूं कूर्च तुरगं सकलाञ्चले ॥ २८ ॥

सार्धपञ्चाक्षरी तारा भवसागरतारिणी ।

स्पष्टम्— 'डों ह्रीं स्त्री हूं फट्' इत्युग्रतारा।

तारकान्तातटैः पूज्याः शक्तयश्चक्रमध्यगाः ॥ २९ ॥

तारा मन्त्रोद्धार - इस श्लोक के उद्धार करने पर तार= ॐ, परा = ह्रीं, वधू = स्त्रीं, कूर्च = हूं, तुरगं=  फट् को एकत्र करने पर भवसागरतारिणी तारा का साढ़े पाँच अक्षरों का मन्त्र यह बनता हैॐ ह्रीं स्त्रीं हूं फट् ।

चक्रगत आवरण शक्तियों की पूजा ॐ स्त्रीं बीज से होती है ।। २८-२९।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २ छिन्नमस्तामन्त्रोद्धारः

लक्ष्मीं लज्जां तथा मायां मात्रां द्वादशिकीमथ ।

वज्रवैरोचनीये द्वे माये फट् स्वाहया युते ॥ ३० ॥

स्पष्टम्— 'श्रीं ह्रीं ह्रीं ऐं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहां' इति छिन्नमस्ता।

मायायुग्मेन संपूज्याः शक्तय: परिवारगाः ।

छिन्नमस्तिका मन्त्रोद्धार-लक्ष्मी= श्रीं, लज्जा= ह्रीं, माया= हृीं, मात्रा द्वादशिकी= ऐं, वज्रवैरोचनीये द्वे माये ह्रीं ह्रीं ऐं वज्रवैरोचनीये ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा। छिन्नमस्ता के इस मन्त्र में सत्रह अक्षर है। आवरणशक्तियों की पूजा मायायुग्म ह्रीं ह्रीं से होती है ।। ३० ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २ सुमुखीमन्त्रोद्धारः

वाग्भवं कामराजं च तथोच्छिष्टपदं वदेत् ॥३१ ।।

चण्डालिनीति प्रोच्चार्य सुमुखीदेवि चोद्धरेत् ।

महापिशाचिनि चेति मायाणं पङ्कजत्रयम् ॥ ३२ ॥

वह्निजायाञ्चलो मन्त्रो गोपनीयो महेश्वरि ।

स्पष्टाम्— 'ऐं क्लीं उच्छिष्टचण्डालिनि सुमुखिदेवि महापिशाचिनि ह्रीं ठः ठः ठः स्वाहा' इति सुमुखी।

वाक्कामबीजैः सम्पूज्याः शक्तयोऽन्याः परस्परम् ॥३३॥

सुमखी मन्त्रोद्धार- वाग्भव= ऐं, कामराज= क्लीं, उच्छिष्टचण्डालिनि सुमुखी देवि महापिशाचिनि मायार्ण= ह्रीं पंकजत्रय=  ठः ठः ठः और वह्निजाया= स्वाहा के संयोग से सुमुखी का मन्त्र जो बनता है, वह है-ऐं क्लीं उच्छिष्टचण्डालिनि सुमुखी देवि महापिशाचिनि ह्रीं ठः ठः ठः स्वाहा। आवरणशक्तियों का पूजन वाक् कामबीज ऐं क्लीं से होता है ।। ३१-३३।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २ सरस्वतीमन्त्रोद्धारः

तारं माया च वाग्बीजं परा तारं महेश्वरि ।

सरस्वत्यै जगन्मन्त्रः प्रसिद्धोऽयं शिवाक्षरः ॥ ३४ ॥

स्पष्टं यथा- 'ॐ ह्रीं ऐं ह्रीं ॐ सरस्वत्यै नमः' इति सरस्वती ।

तारमायाक्षरैः पूज्या देव्यो देवीसमीपगाः ।

सरस्वती मन्त्रोद्धार-तार = ॐ, माया= ह्रीं, वाग्बीज= ऐं, परा= ह्रीं, तार = ॐ सरस्वत्यै, जगन्मन्त्र= नमः को मिलाने से सरस्वती के ग्यारह अक्षरों का यह मन्त्र बनता है - ॐ ह्रीं ऐं ह्रीं ॐ सरस्वत्यै नमः आवरण शक्तियों का पूजन तार मायाक्षर ॐ ह्रीं से होता है ।। ३४ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २ अन्नपूर्णामन्त्रोद्धारः

तारं परापि कमला कामं विश्वं ततो वदेत् ॥ ३५ ॥

भगवति माहेश्वरि चान्नपूर्णे च ठद्वयम् ।

स्पष्टम्— 'ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं नमो भगवति माहेश्वरि अन्नपूर्णे स्वाहा' इति अन्नपूर्णा ।

आदिबीजद्वयेनैव पूज्या देव्याः समीपगाः ॥ ३६ ॥

अन्नपूर्णा मन्त्रोद्धार- तार= ॐ, परा= ह्रीं कमला= श्रीं, काम = क्लीं, विश्व = नमः, भगवती माहेश्वरि अन्नपूर्णे और ठद्वय= स्वाहा को एकत्र करने से अन्नपूर्णां का मन्त्र बनता है। इसमें बीस अक्षर हैं। मन्त्र स्पष्ट हैॐ ह्रीं श्रीं क्लीं नमो भगवति माहेश्वरि अन्नपूर्णे स्वाहा। आदि बीजद्वय ॐ ह्रीं से इनके आवरण देवताओं का पूजन होता है।। ३५-३६ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २ महालक्ष्मीमन्त्रोद्धारः

तारं परां रमां कामं वाग्भवं शक्तिबीजकम् ।

महालक्ष्मि प्रसीदेति युग्मं मा पङ्कजत्रयम् ॥३७॥

स्वाहान्तोऽयं महामन्त्रो महालक्ष्मीपदप्रदः ।

प्रकाशम् 'ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं सौः महालक्ष्मि प्रसीद प्रसीद श्रीं ठः ठः ठः स्वाहा' इति महालक्ष्मी।

आदिबीजत्रयेणैव पूज्याः परमशक्तयः ।। ३८ ।।

महालक्ष्मी मन्त्रोद्धार-तार= ॐ, परा=ह्रीं, रमा= श्रीं, काम = क्लीं, वाग्भव= ऐं, शक्ति= सौं महालक्ष्मि प्रसीदयुग्म= प्रसीद प्रसीद पङ्कजत्रय = ठः ठः ठः और स्वाहा के संयोग से महालक्ष्मी का वरप्रदायक महामन्त्र बनता है। मन्त्र है- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं सौः महालक्ष्मि प्रसीद प्रसीद श्रीं ठः ठः ठः स्वाहा आदि बीजत्रय ॐ ह्रीं श्रीं से आवरणशक्तियों का पूजन होता है।। ३७-३८।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २ शारिकामन्त्रोद्धारः

तारं मायां श्रियं कूर्चं सिन्धुरं शर्म प्रोच्चरेत् ।

नामाश्मरी मनोरन्ते मन्त्रोऽयं भुवि दुर्लभः ॥ ३९ ॥

स्पष्टम्— 'ॐ श्रीं हूं फ्रां आं शां शारिकायै नमः' इति शारिका ।

मायया पूजयेद् देवीः परिवारगताः शिवे ।

शारिका मन्त्रोद्धार-तार= ॐ, माया=ह्रीं, श्रियं= श्रीं, कूर्च = हूं, सिन्धुर= फ्रां, शर्म = आं, रेत = शां, नाम= शारिकायै, अश्मरी= नमः के योग से शारिका देवी का यह मन्त्र बनता है - ॐ ह्रीं श्रीं हूं फ्रां आं शां शारिकायै नमः । यन्त्र आवरणों में देवी की पूजा माया = ह्रीं से होती है ।। ३९ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २ शारदामन्त्रोद्धारः

तारं माया स्मरः शक्तिरश्मरी नाम संवदेत् ॥४०॥

भगवत्यै शारदायै मनोरन्ते परा वनम् ।

स्पष्टम्- 'ॐ ह्रीं क्लीं सः नमो भगवत्यै शारदायै ह्रीं स्वाहा' इति शारदा ।

तारकामैः शिवे पूज्याः शक्तयः परमार्थदाः ॥ ४१ ॥

शारदा मन्त्रोद्धार-तार=ॐ, माया = ह्रीं स्मरः = क्लीं, शक्ति= सः, अश्मरी= नमः, भगवत्यै शारदायै, परा= ह्रीं, वनम्= स्वाहा के योग से शारदा का यह मन्त्र बनता है - ॐ ह्रीं क्लीं सः नमो भगवत्यै शारदायै ह्रीं स्वाहा परमार्थप्रदा शक्तियों का पूजन ॐ क्लीं से होता है ।। ४०-४१ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २ इन्द्राक्षीमन्त्रोद्धारः

प्रणवं कमलां मायां वाग्भवं शक्तिमन्मथौ ।

इन्द्राक्षि वज्रहस्ते च हरमन्तेऽग्निवल्लभा ॥ ४२ ॥

मूलम्- 'ॐ श्रीं ह्रीं ऐं सौः क्लीं इन्द्राक्षि वज्रहस्ते फट् स्वाहा' इति इन्द्राक्षी ।

आदिबीजत्रयेणैताः पूज्याः श्रीचक्रदेवताः ।

इन्द्राक्षी मन्त्रोद्धार- प्रणव= ॐ, कमला= श्रीं, माया = ह्रीं वाग्भव= ऐं, शक्ति= सौः, मन्मथ = क्लीं, इन्द्रासि वज्रहस्ते, हर= फट्, अग्निवल्लभा स्वाहा के योग से इन्द्राक्षी का यह मन्त्र बनता है - ॐ श्रीं ह्रीं ऐं सौः क्लीं इन्द्राक्षि वज्रहस्ते फट् स्वाहा । इनकी आवरणशक्तियों का पूजन आदि बीजत्रय ॐ श्रीं ह्रीं' से होता है ।। ४२ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २ बगलामुखीमन्त्रोद्धारः

तारं मृत्स्नां च देवेशि बगलामुखि सर्व च ॥ ४३ ॥

दुष्टानां वाचं मुखकं पदं स्तम्भय युग्मकम् ।

जिह्वां कीलय युग्मं च मृत्तारं ठद्वयं मनुः ॥ ४४ ॥

प्रकाशम्— 'ॐ ह्रीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय स्तम्भय जिह्वां कीलय कीलय ह्रीं ॐ स्वाहा' इति बगलामुखी ।

बीजद्वयेन सम्पूज्याः परिवारगताः पराः ।

बगला मन्त्रोद्धार-तार= ॐ, मृत्स्ना = ह्रीं, बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय स्तम्भय, जिह्वां कीलय कीलय, मृत्= ह्रीं तार= ॐ, ठद्वयं= स्वाहा के योग से बगलामुखी का मन्त्र बनता है। इसमें छत्तीस अक्षर होते हैं। ॐ ह्रीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय स्तम्भय जिह्वां कीलय कीलय ह्रीं ॐ स्वाहा। आवरण शक्तियों का पूजन केवल 'ॐ ह्रीं' से यथाक्रम होता है ।। ४३-४४ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २ महातुरीमन्त्रोद्धारः

प्रणवस्तारका ज्योतिस्तारा मध्येऽभिधं न्यसेत् ॥ ४५ ॥

अन्तेऽश्मरी महादेवि मन्त्रोऽयं शत्रुसूदनः ।

प्रकाशम् – 'ॐ त्रुं त्रौं त्रों महातुर्यै नमः' इति महातुरी ।

प्रणवेनार्चयेद् देवि परिवारान् यथाक्रमम् ॥४६ ।।

महातुरी मन्त्रोद्धार- प्रणव= ॐ, तारका=त्रुं, ज्योति=त्रौं, तारा= त्रों, महातुर्यै, अश्मरी नमः के योग से महातुरी देवी का मन्त्र बनता है - ॐ त्रुं त्रौं त्रों महातुर्य नमः। यह मन्त्र दशाक्षर है। यह शत्रुओं का विनाशक है यन्त्रार्चन में आवरण देवियों का पूजन यथाक्रम केवल ॐ से होता है।।४५-४६ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २ महाराज्ञीमन्त्रोद्धारः

तारं परा रमा वह्निः कामः शक्तिः षडक्षरः ।

भगवत्यै च राज्ञ्यै च माया ठद्वयमञ्चले ॥४७॥

प्रकाशम्- 'ॐ ह्रीं श्रीं रां क्लीं सौः भगवत्यै राज्ञ्यै ह्रीं स्वाहा' इति महाराज्ञी ।

ताराग्निभ्यां शिवे देवीपरिवारान् समर्चयेत् ।

महाराज्ञी मन्त्रोद्धार-तार= ॐ, परा= ह्रीं, रमा= श्रीं, वह्नि=रां, काम= क्लीं, शक्ति= सौः, षडक्षर = भगवत्यै राज्ञ्यै, माया= ह्रीं, ठद्वय= स्वाहा के योग से महाराज्ञी का मन्त्र बनता है। मन्त्र है - ॐ ह्रीं श्रीं रां क्लीं सौः भगवत्यै राज्ञ्यै ह्रीं स्वाहा। यह पन्द्रह अक्षरों का मन्त्र है।

यन्त्रार्चन में आवरण देवियों का पूजन 'ॐ रां से होता है ।। ४७ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २ ज्वालामुखीमन्त्रोद्धारः

तारं लज्जां श्रियं चैव ज्वालामुखि ममेति च ॥ ४८ ॥

सर्वशत्रून् भक्षय द्विरन्ते कूर्चं हरं पयः ।

प्रकाशम्— 'ॐ ह्रीं श्रीं ज्वालामुखि मम सर्वशत्रून् भक्षय भक्षय हूं फट् स्वाहा' इति ज्वालामुखी।

तारेण पूजयेद् देवि परिवारगताः पराः ॥४९॥

ज्वालामुखी मन्त्रोद्धार-तार= ॐ, लज्जा = ह्रीं, श्रियं= श्रीं ज्वालामुखि, मम सर्वशत्रून् भक्षय भक्षय, कूर्च हरं= हूं फट्, पयः= स्वाहा के योग से मन्त्र का स्वरूप यह बनता है - ॐ ह्रीं श्रीं ज्वालामुखि मम सर्वशत्रून् भक्षय भक्षय हुं फट् स्वाहा। यन्त्रार्चन में आवरणशक्तियों का पूजन केवल ॐ से होता है।। ४८-४९ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २ भीड़ामन्त्रोद्धारः

तारं परा रमा वेदी चन्द्रमन्मथशक्तयः ।

भीडाभगवतीत्येवं हंसरूपिणि ठद्वयम् ॥५०॥

स्पष्टं यथा- 'ॐ ह्रीं श्री हस्र ऐं क्लीं सौः भीडाभगवति हंसरूपिणि स्वाहा' इति भीडा ।

परमाणैर्देवेशि परिवारान् प्रपूजयेत् ।

भीड़ा भगवती मन्त्रोद्धार-तार= ॐ, परा= ह्रीं, रमा= श्रीं, वेदी= हौं, चन्द्र = ऐं, मन्मथ = क्लीं शक्ति= सौः, भीड़ा भगवति हंसरूपिणि ठद्वय स्वाहा के संयोग से यह मन्त्र बनता है - ॐ ह्रीं श्रीं हस्रैं ऐं क्लीं सौः भीड़ा भगवति हंसरूपिणि स्वाहा। यन्त्रार्चन में आवरण देवियों का पूजन परारमार्ण = 'ह्रीं श्रीं' से होता है ।। ५० ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २ कालरात्रिमन्त्रोद्धारः

प्रणवं वासना माया मन्मथः कमला ततः ॥ ५१ ॥

मध्ये नामाञ्चले सर्व वश्यं कुरुद्वयं वदेत् ।

वीर्यं देहि पुनर्नाम गणेश्वर्याश्मरी स्मृता ॥५२॥

प्रकाशम् —'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं कालरात्रि सर्वं वश्यं कुरु कुरु वीर्यं देहि देहि गणेश्वर्यै नमः' इति कालरात्री ।

तारचन्द्रेणं सम्पूज्य परिवारांस्ततो यजेत् ।

कालरात्री मन्त्रोद्धार-प्रणव= ॐ, वासना=ऐं, माया= ह्रीं, मन्मथ = क्लीं, कमला = श्रीं, कालरात्रि सर्वं वश्यं कुरु कुरु वीर्यं देहि देहि, गणेश्वर्यै अश्मरी= नमः के योग से यह मन्त्र बनता है - ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं कालरात्रि सर्व वश्यं कुरु कुरु वीर्यं देहि देहि गणेश्वर्यै नमः : यह उन्नीस अक्षरों का मन्त्र हैं। यन्त्रार्चन में आवरण देवियों का पूजन तार चन्द्र = ॐ ऐं से होता है ।।५१-५२।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २ भवानीमन्त्रोद्धारः

तारं रमा रमा तारं तारं माया रमा रमा ॥५३॥

हूंफडन्तः समाख्यातो मन्त्रः सर्वार्थसाधकः ।

प्रकाशम् 'ॐ श्रीं श्रीं ॐ ॐ ह्रीं श्रीं श्रीं हूं फट्' इति भवानी ।

माबीजैः पूजयेद् देवि परिवारगताः पराः ॥ ५४ ॥

भवानी मन्त्रोद्धार-तार = ॐ, रमा रमा = श्रीं श्रीं, तारं तारं = ॐ ॐ, माया = ह्रीं, रमा रमा= श्रीं श्रीं, हूँ फट् के योग से भवानी का दशाक्षर मन्त्र बनता है। मन्त्र है - ॐ श्रीं श्रीं ॐ ॐ ह्रीं श्रीं श्रीं हूँ फट् । यन्त्रार्चन में आवरण शक्तियों की पूजा 'श्रीं' से होती है।।५३-५४।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २ वज्रयोगिनीमन्त्रोद्धारः

पराण वज्रयोगिन्यै ठद्वयं प्रणवादितः ।

मन्त्रोऽयं सर्वसिद्धीशः साधकानां जयप्रदः ॥ ५५ ॥

मूलम्— 'ॐ ह्रीं वज्रयोगिन्यै स्वाहा' इति वज्रयोगिनी ।

मायाबीजेन देवेशि परिवारान् समर्चयेत् ।

वज्रयोगिनी मन्त्रोद्धार प्रणवादि = ॐ, परार्ण= ह्रीं, वज्रयोगिन्यै, ठद्वय=स्वाहा को मिलाकर वज्रयोगिनी का मन्त्र बनता है। मन्त्र है - ॐ ह्रीं वज्रयोगिन्यै स्वाहा ।

यह मन्त्र सभी सिद्धियों का स्वामी है और साधकों को जयप्रदायक है।। ५५ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २ धूम्रवाराहीमन्त्रोद्धारः

चन्द्रवाहीकमोहार्णचन्द्रा मध्येऽभिधं न्यसेत् ॥ ५६ ॥

चन्द्रो मठं पद्मयुग्मं हरं नीरमयं मनुः ।

वासनामोहबीजेन पूजयेत् परिवारगान् ॥ ५७ ॥

मूलम्— 'ऐं ग्लौं लं ऐं नमो भगवति वार्तालि वाराहि देवते वराहमुखि ऐं ग्लौं ठः ठः फट् स्वाहा' इति धूम्रवाराही।

धूम्रवाराही मन्त्रोद्धारचन्द्र= ऐं, वाह्रीक= ग्लौं, मोहार्ण= लं, चन्द्र= ऐं, नमो भगवति वार्तालि वाराहि देवते वराहमुखी, चन्द्र= ऐं, मठ = ग्लौं, पद्मयुग्म = ठः ठः, हर = फट्, नीरमयं= स्वाहा के योग से मन्त्र का स्वरूप यह होता है-ऐं ग्लौं लं ऐं नमो भगवति वार्तालि वाराहि देवते वराहमुखि ऐं ग्लौं ठः ठः फट् स्वाहा । यन्त्रार्चन में आवरण देवियों का पूजन वासना ऐं और मोह लं=ऐं लं से होता है ।। ५६-५७।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २ सिद्धलक्ष्मीमन्त्रोद्धारः

तारं रमायुगं माया हरितं चन्द्रमन्मथौ ।

शक्तिर्नामाश्मरीमन्त्रः सिद्धलक्ष्म्या उदाहृतः ॥ ५८ ॥

प्रकाशम्— 'ॐ श्रीं श्रीं ह्रीं हसौः ऐं क्लीं सौः सिद्धलक्ष्म्यै नमः' इति सिद्धलक्ष्मी ।

रमया पूजयेदन्याः परिवारगताः शिवे।

सिद्धलक्ष्मी मन्त्रोद्धार-तार= ॐ, रमायुगं= श्रीं श्रीं, माया= ह्रीं, हरितं= ह्सीं, चन्द्र= ऐं, मन्मथ= क्लीं, शक्ति= सौः, नाम= सिद्धलक्ष्म्यै, अश्मरी= नमः के योग से सिद्धलक्ष्मी का यह मन्त्र बनता है। मन्त्र है - ॐ श्रीं श्रीं ह्रीं ह्सौः ऐं क्लीं सौः सिद्धलक्ष्म्यै नमः ।

यन्त्रार्चन में आवरण शक्तियों का पूजन 'श्रीं' से होता है ।। ५८ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २ कुलवागीश्वरीमन्त्रोद्धारः

तारं कामो डिम्बलक्ष्मीः कूर्च कांक्षाभिधं ततः ॥ ५९ ॥

चन्द्रः पद्मः स्पृहा पद्मो वेश्या पद्मो वनं मनुः ।

प्रकाशम्- 'ॐ क्लीं ह्रां श्रीं हूं झं झषहस्ते कुलवागीश्वरि ऐं ठः झं ठः स्त्रीं ठः स्वाहा' इति कुलवागीश्वरी ।

कामेन पूजयेद् देवि परिवारान् यथाक्रमम् ॥ ६० ॥

कुलवागीश्वरी मन्त्रोद्धार-तार= ॐ, काम= क्लीं, डिम्ब= हां, लक्ष्मी= श्रीं, कूर्च= हूँ, कांक्षा= झं, अभिधं= झष, हस्ते कुलवागीश्वरि, चन्द्र= ऐं, पद्म= ठः, स्पृहा= झं, पद्म= ठः, वेश्या=स्त्रीं, पद्म= ठः, वनं= स्वाहा के योग से यह मन्त्र ऐसा होता है-'ॐ क्लीं ह्रां श्रीं हूं झं झषहस्ते कुलवागीश्वरि ऐं ठः झं ठः स्त्रीं ठः स्वाहा।' आवरण देवियों का पूजन क्लीं से होता है।।५९-६०।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २ पद्मावतीमन्त्रोद्धारः

तारं परा रमा कामा वीची पद्मावतीति च ।

मम वरं देहि युग्मं हरं नीरमयं मनुः ॥६१ ॥

परया पूजयेद् देवी परिवारगताः पराः ।

प्रकाशम्— 'ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लूं पद्मावति मम वरं देहि देहि फट् स्वाहा' इति पद्मावती ।

पद्मावती मन्त्रोद्धार-तार= ॐ, परा= ह्रीं, रमा= श्रीं, काम= क्लीं, वीची= ब्लूं, पद्मावति मम वरं देहि देहि हर फट्, नीरमयं= स्वाहा के योग से बना पद्मावती का मन्त्र यह है-

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लूं पद्मावति मम वरं देहि देहि फट् स्वाहा यन्त्रार्चन में आवरण देवियों का पूजन ह्रीं बीज से होता है ।। ६१ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २ कुब्जिकामन्त्रोद्धारः

तारं रमा वागुराणं नाम मध्ये ततः परा ॥६२॥

पद्मो वनमयं मन्त्रः सर्वसिद्धिफलप्रदः ।

वागुरार्णेन देवेशि पूजयेत् परिवारगाः ॥६३ ॥

प्रकाशम् – 'ॐ श्रीं श्रीं कुब्जिके देवि ह्रीं ठः स्वाहा' इति कुब्जिका ।

कुब्जिका मन्त्रोद्वार - तार= ॐ, रमा= श्रीं, वागुराण= प्रीं, कुब्जिके देवि, परा= ह्रीं, पद्म= ठः, वन= स्वाहा के योग से कुब्जिका मन्त्र यह होता है - ॐ श्रीं श्रीं कुब्जिके देवि ह्रीं ठः स्वाहा यन्त्रार्चन में वागुरार्ण 'प्री' बीज से आवरण शक्तियों की पूजा की जाती है ।। ६२-६३।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २ गौरीमन्त्रोद्धारः

प्रणवं कमला माया वाह्लीकं च शिवं ततः ।

गौरि शर्वो वनं देवि मन्त्रः सर्वार्थसिद्धिदः ॥६४॥

स्पष्टम्— 'ॐ श्रीं ह्रीं ग्लौं गं गौरि गीं स्वाहा' इति गौरी ।

रमया परिवाराश्च पूजयेत् साधकोत्तमः ।

गौरी मन्त्रोद्धार प्रणव= ॐ, कमला= श्रीं, माया= ह्रीं, वाह्रीक= ग्लौं, शिवं= गं, शर्वो=गीं, वनम्= स्वाहा के योग से बना गौरी का मन्त्र यह है - ॐ श्रीं ह्रीं ग्लौ गं गौरि गीं स्वाहा । हे देवि! यह दशाक्षर मन्त्र सर्वसिद्धिप्रदायक हैं। साधक श्रेष्ठ को आवरण देवियों का पूजन 'श्रीं' बीज से करना चाहिये ।। ६४ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २ खेचरीमन्त्रोद्धारः

भेकी तमः परा शक्तिः खेचर्यै चाश्मरी ततः ॥ ६५ ॥

मन्त्रोऽयं खेचरो नाम खेचरत्वप्रदायकः ।

परया पूजयेद् देवी: परिवारगताः प्रिये ॥ ६६ ॥

स्पष्टम्— 'मलह्रीं सौः खेचर्यै नमः' इति खेचरी ।

खेचरी मन्त्रोद्धार- भेकी= म, तमः= ल, परा= ह्रीं, शक्ति= सौं, खेचर्यै, अश्मरी= नमः के योग से खेचरी का मन्त्र बनता है। मन्त्र है-मलह्रीं सौः खेचर्यै नमः। यह मन्त्र आकाश-गमन की क्षमता प्रदान करता है। यन्त्रपूजन में आवरण शक्तियों का अर्चन ह्रीं बीज से होता है।। ६५-६६ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २ नीलसरस्वतीमन्त्रोद्धारः

तारं व्योषं वाग्भवं च कूर्चं नीलसरस्वति ।

हरं नीरं मनोरन्ते मन्त्रोऽयं वाक्प्रदायकः ॥ ६७ ॥

व्योषेण पूजयेद् देवि परिवारा यथाविधि ।

प्रकाशम्— 'ॐ ह्रां ऐं हूं नीलसरस्वति फट् स्वाहा' इति नीलसरस्वती ।

नील सरस्वती मन्त्रोद्धार-तार= ॐ व्योष=ह्रां, वाग्भव= ऐं, कूर्च= हूं, नील सरस्वती फट् स्वाहा के योग से नील सरस्वती का मन्त्र बनता है। मन्त्र है - ॐ ह्रां ऐं हूं नील सरस्वती फट् स्वाहा यन्त्रार्चन में आवरण शक्तियों का पूजन 'ह्रां' बीज से होता है।। ६७ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २ पराशक्तिमन्त्रोद्धारः

तारं रमा परा कामः शक्तिर्वस्त्रं ततोऽभिधम् ॥ ६८ ॥

वाग्भवं ठद्वयं देवि मन्त्रराजोऽयमीरितः ।

प्रकाशम् ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं सौः ह्सौः पराशक्त्यै ऐं स्वाहा' इति पराशक्तिः ।

मूलेन पूजयेदन्या देवीस्तत्परिवारगाः ।। ६९ ।।

परा शक्ति मन्त्रोद्धार-तार= ॐ, रमा= श्रीं, परा=ह्रीं, काम=क्लीं, शक्ति= सौः, वस्त्र ह्सौः अभिधं पराशक्त्यै, वाग्भव= ऐं, ठद्वय= स्वाहा के योग से परा शक्ति का मन्त्र बनता है। हे देवि! यह मन्त्रराज है। यन्त्र- अर्चन में आवरण देवियों का पूजन पूरे मूल मन्त्र से होता है - ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं सौः हसौः पराशक्त्यै ऐ स्वाहा।। ६८-६९ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २ पटलोपसंहार

इत्येष शाक्तमन्त्राढ्यः पटलो देवदुर्लभः ।

अधुना ते मनून् शैवान् वक्ष्यामि शृणु पार्वति ॥ ७० ॥

इदं रहस्यं परमं तव भक्त्या प्रकाशितम् ।

गुह्यातिगुह्यगुप्तं च गोपनीयं स्वयोनिवत् ॥ ७१ ॥

शाक्त मन्त्र से पूर्ण यह पटल देवताओं को भी दुर्लभ है। हे पार्वति ! अब शैव मन्त्रों का वर्णन सुनो। तुम्हारी भक्ति के वश में होकर इस परम रहस्य को मैंने प्रकाशित किया है। यह गुह्य से गुह्य और गुप्त है। अपनी योनि के समान इसे गुप्त रखना चाहिये ।।७०-७१।।

इति श्रीरुद्रयामले तन्त्रे श्रीदेवीरहस्ये शाक्तमन्त्रोद्धारनिरूपणं नाम द्वितीयः पटलः ॥ २ ॥

इस प्रकार रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्री देवीरहस्य की भाषाटीका में शाक्तमन्त्रोद्धार नामक द्वितीय पटल पूर्ण हुआ।

आगे जारी............... रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्य पटल 3

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