शनि चालीसा
शनि चालीसा भगवान शनि को समर्पित एक
शक्तिशाली भक्ति गीत है, जो 40 छन्दों
से बनी है तथा उनके न्यायप्रिय और कर्मफलदाता स्वरूप की महिमा का वर्णन करती है।
शनि देव का प्रभाव व्यक्ति के जीवन में उसके कर्मों के आधार पर पड़ता है। यह
चालीसा उनके स्वरूप, उनकी कृपा और उनके द्वारा किए गए
कार्यों का गहन वर्णन करती है। शनि देव का श्याम वर्ण और उनका दिव्य स्वरूप शक्ति,
न्याय और दृढ़ता का प्रतीक है। वे कर्मों का फल देने वाले हैं और
उनका वाहन सिंह, गधा, कुत्ता, और हाथी उनकी विभिन्न शक्तियों का प्रतिनिधित्व करता है। उनकी कृपा से
भक्तों के सभी कष्ट दूर होते हैं और जीवन में स्थिरता, शांति, समृद्धि और सुरक्षा प्राप्त होती है। इस चालीसा में वर्णन है कि शनि देव
ने अपने न्यायप्रिय स्वभाव से कई राजा-महाराजाओं को उनके कर्मों के अनुसार फल
दिया। उन्होंने भगवान राम के जीवन में कठिनाईयां लाकर उन्हें महान बनने में मदद की
और पांडवों को महाभारत युद्ध में सीख दी। चालीसा में शनि देव की महिमा, उनके द्वारा किए गए महान कार्य, और उनके न्यायप्रिय
स्वरूप का वर्णन किया गया है। उनकी आराधना से भक्त को शांति, समृद्धि और जीवन में संतुलन प्राप्त होता है।
शनि चालीसा का पाठ करने के क्या लाभ
हैं?
शनि चालीसा का पाठ शनि ग्रह के अशुभ
प्रभावों को शांत करता है। शनि देव की कृपा से शत्रुओं का नाश होता है और सुरक्षा,
रोगों तथा मानसिक तनाव से मुक्ति मिलती है। जीवन की सभी बाधाओं को दूर होता है। व्यक्ति
को आत्मिक संतोष और शांति मिलती है। शनि देव व्यक्ति को सही दिशा में कर्म करने की
प्रेरणा देती है। अपने भक्तों को न्याय प्रदान करते हैं और जीवन में संतुलन लाते
हैं। इस चालीसा का नियमित पाठ धन और समृद्धि लाता है।
शनि चालीसा का पाठ किस दिन और किस
समय करना सबसे शुभ माना जाता है?
शनि चालीसा का पाठ नीले या काले अथवा
स्वच्छ वस्त्र पहनकर और काले कंबल के आसन में बैठकर प्रातःकाल या सूर्यास्त के समय
शनिवार या अमावस्या अथवा शनि जयंती जैसे शुभ दिनों से प्रारंभ करना सर्वोत्तम है। ग्रहण
के समय शनि देव के मंत्रों का जाप करना शुभ होता है। चालीसा का पाठ करने से पूर्व शनि
देव का पूजन करें। पूजा स्थल को स्वच्छ करें और शनि देव का चित्र या यंत्र स्थापित
करें। सरसों के तेल का लोहे का दीपक जलाकर पूजन प्रारंभ करें। काले तिल, नीले और
काले फूल, काला वस्त्र अर्पित करें। गुड़, उड़द और काले चने का भोग लगाएं। संभव हो तो
श्री शनि देव के बीज मंत्र:
"ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः
शनैश्चराय नमः।"
अथवा
ध्यान मंत्र:
"नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं
यमाग्रजम् ।
छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि
शनैश्चरम् ।"
अथवा
शनि गायत्री मंत्र:
"ॐ काकध्वजाय विद्महे खड्गहस्ताय
धीमहि। तन्नो मन्दः प्रचोदयात ।"
अलावा,
अन्य शनि गायत्री मंत्र:
"ॐ शनैश्चराय विद्महे
छायापुत्राय धीमहि। तन्नो शनिः प्रचोदयात ।"
अथवा
"ॐ शं शनैश्चराय नमः।" मंत्र
का जाप 108 बार करें। श्रद्धा और भक्ति से श्री शनि चालीसा का पाठ करें। पीपल
वृक्ष पर दीपक जलाकर शनि देव का आशीर्वाद प्राप्त करें। अंत में गरीबों और
जरूरतमंदों को दान करें।
श्री शनि चालीसा
Shri Shani Chalisa
शनिचालीसा
॥ दोहा ॥
जय गणेश गिरिजा सुवन,
मंगल करण कृपाल ।
दीनन के दुख दूर करि,
कीजै नाथ निहाल ॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु,
सुनहु विनय महाराज ।
करहु कृपा हे रवि तनय,
राखहु जन की लाज ॥
॥ चौपाई ॥
जयति जयति शनिदेव दयाला ।
करत सदा भक्तन प्रतिपाला ॥
चारि भुजा,
तनु श्याम विराजै ।
माथे रतन मुकुट छबि छाजै ॥
परम विशाल मनोहर भाला ।
टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला ॥
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके ।
हिय माल मुक्तन मणि दमके ॥
कर में गदा त्रिशूल कुठारा ।
पल बिच करैं अरिहिं संहारा ॥
पिंगल,
कृष्णो, छाया नन्दन ।
यम,
कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन ॥
सौरी,
मन्द, शनी, दश नामा ।
भानु पुत्र पूजहिं सब कामा ॥
जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं ।
रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं ॥
पर्वतहू तृण होई निहारत ।
तृणहू को पर्वत करि डारत ॥
राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो ।
कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो ॥
बनहूँ में मृग कपट दिखाई ।
मातु जानकी गई चुराई ॥
लखनहिं शक्ति विकल करिडारा ।
मचिगा दल में हाहाकारा ॥
रावण की गति-मति बौराई ।
रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई ॥
दियो कीट करि कंचन लंका ।
बजि बजरंग बीर की डंका ॥
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा ।
चित्र मयूर निगलि गै हारा ॥
हार नौलखा लाग्यो चोरी ।
हाथ पैर डरवायो तोरी ॥
भारी दशा निकृष्ट दिखायो ।
तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो ॥
विनय राग दीपक महं कीन्हयों ।
तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों
॥
हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी ।
आपहुं भरे डोम घर पानी ॥
तैसे नल पर दशा सिरानी ।
भूंजी-मीन कूद गई पानी ॥
श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई ।
पारवती को सती कराई ॥
तनिक विलोकत ही करि रीसा ।
नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा ॥
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी ।
बची द्रौपदी होति उघारी ॥
कौरव के भी गति मति मारयो ।
युद्ध महाभारत करि डारयो ॥
रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला ।
लेकर कूदि परयो पाताला ॥
शेष देव-लखि विनती लाई ।
रवि को मुख ते दियो छुड़ाई ॥
वाहन प्रभु के सात सुजाना ।
जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना ॥
जम्बुक सिंह आदि नख धारी ।
सो फल ज्योतिष कहत पुकारी ॥
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं ।
हय ते सुख सम्पति उपजावैं ॥
गर्दभ हानि करै बहु काजा ।
सिंह सिद्धकर राज समाजा ॥
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै ।
मृग दे कष्ट प्राण संहारै ॥
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी ।
चोरी आदि होय डर भारी ॥
तैसहि चारि चरण यह नामा ।
स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा ॥
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं ।
धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं ॥
समता ताम्र रजत शुभकारी ।
स्वर्ण सर्व सर्व सुख मंगल भारी ॥
जो यह शनि चरित्र नित गावै ।
कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै ॥
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला ।
करैं शत्रु के नशि बलि ढीला ॥
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई ।
विधिवत शनि ग्रह शांति कराई ॥
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत ।
दीप दान दै बहु सुख पावत ॥
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा ।
शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा ॥
॥ दोहा ॥
पाठ शनिश्चर देव को,
की हों ‘भक्त’ तैयार ।
करत पाठ चालीस दिन,
हो भवसागर पार ॥
॥ इति संपूर्णंम् ॥
श्री शनिदेव की आरती
शनि आरती
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी ।
सूर्य पुत्र प्रभु छाया महतारी ॥
जय जय श्री शनि देव....
श्याम अंग वक्र-दृष्टि चतुर्भुजा
धारी ।
नी लाम्बर धार नाथ गज की असवारी ॥
जय जय श्री शनि देव....
क्रीट मुकुट शीश राजित दिपत है
लिलारी ।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी ॥
जय जय श्री शनि देव....
मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी ।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी ॥
जय जय श्री शनि देव....
देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी ।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी
॥
जय जय श्री शनि देव भक्तन हितकारी ।।
श्री शनि चालीसा व आरती समाप्त ।।

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