श्री शनि चालीसा
श्री शनि चालीसा- शनि (Saturn), सूर्य से छठां ग्रह है तथा बृहस्पति के बाद सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह हैं। औसत व्यास में पृथ्वी से नौ गुना बड़ा शनि एक गैस दानव है। जबकि इसका औसत घनत्व पृथ्वी का एक आठवां है, अपने बड़े आयतन के साथ यह पृथ्वी से 95 गुने से भी थोड़ा बड़ा है। इसका खगोलिय चिन्ह ħ है।
शनि और सूर्य के बीच की औसत दूरी
1.4 अरब किलोमीटर से अधिक (9 एयू) है। 9.69 किमी/सेकंड की एक औसत परिक्रमण गति के
साथ,
यह सूर्य के चारों ओर एक घुमाव पूर्ण करने के लिए, शनि के 10,759 पृथ्वी दिवस लेता हैं (या लगभग 29½ वर्ष)।
शनि और सूर्य के बीच की औसत दूरी
1.4 अरब किलोमीटर से अधिक (9 एयू) है। 9.69 किमी/सेकंड की एक औसत परिक्रमण गति के
साथ, सूर्य के चारों ओर एक घुमाव पूर्ण करने के लिए, यह
शनि के 10,759 पृथ्वी दिवस लेता हैं (या लगभग 29½ वर्ष)। शनि
की दीर्घवृत्ताकार कक्षा पृथ्वी के परिक्रमा तल के सापेक्ष 2.48° झुकी हुई है।
0.056 की विकेन्द्रता के कारण, शनि और सूर्य के बीच की दूरी
उपसौर और अपसौर के बीच लगभग 15.5 करोड़ किलोमीटर से भिन्न होती है, जो उसके परिक्रमण मार्ग के साथ-साथ ग्रह के सूर्य से क्रमशः निकटतम और
सबसे दूर के बिंदु हैं।
शनि पर दृश्यमान आकृतियां
भिन्न-भिन्न दरों पर घूमती है जो कि अक्षांश पर निर्भर करती है और ये बहुल घूर्णन
अवधियां विभिन्न क्षेत्रों के लिए आवंटित की गई है (जैसे बृहस्पति के मामले में की
गई): प्रणाली I का काल 10घंटे 14मिनट 00सेकंड
(844.3°/ दिन) है और भूमध्यरेखीय क्षेत्र सम्मिलित करता हैं, जो दक्षिणी भूमध्यरेखीय पट्टी के उत्तरी किनारे से लेकर उत्तरी
भूमध्यरेखीय पट्टी के दक्षिणी किनारे तक विस्तारित है। शनि के बाकी सभी अक्षांश
10घंटे 38मिनट 25.4सेकंड (810.76°/दिन) की एक घूर्णन अवधि के साथ आवंटित किए गए है
जो कि प्रणाली II है। प्रणाली III, वॉयजर
दौरे के दौरान ग्रह से उत्सर्जित रेडियो उत्सर्जन पर आधारित है। इसका 10घंटे
39मिनट 22.4सेकंड (810.8°/दिन) का एक काल है। चुंकि यह प्रणाली II के बेहद करीब है, इसने उसका काफी हद तक अतिक्रमण
किया हुआ है।
आंतरिक ढांचे के घूर्णन काल का एक
सटीक मान रहस्य रह गया है। 2004 में जब शनि तक पहुंच हुई,
कैसिनी ने पाया कि शनि का रेडियो घूर्णन काल काफी बढ़ा हुआ है,
लगभग 10घंटे 45मीनट 45सेकंड (± 36 सेकंड) तक।
मार्च 2007 में, यह पाया गया था कि ग्रह से निकले रेडियो
उत्सर्जन की घटबढ़ शनि के घूर्णन की दर से मेल नहीं खाती। यह अंतर शनि के चंद्रमा
एनसेलेडस पर गीजर गतिविधि की वजह से हो सकता है। इस गतिविधि द्वारा शनि की कक्षा
में उत्सर्जित हुई जल वाष्प चार्ज हो जाती है और शनि के चुंबकीय क्षेत्र पर एक
खींचाव पैदा करती है, जो उसके घूर्णन को ग्रह के घूर्णन की
अपेक्षा थोड़ा धीमा कर देती है। शनि के घूर्णन का नवीनतम आकलन कैसिनी, वॉयजर और पायनियर से मिले विभिन्न मापनों के एक संकलन पर आधारित है,
जिसकी सूचना सितंबर 2007 में मिली थी और यह 10घंटे, 32मिनट, 35सेकंड है।
शनि ग्रह की शांति के लिए
नित्य-प्रति शनि स्तुति कर श्री शनि चालीसा का पाठ कर शनि आरती करें ।
श्री शनि चालीसा
दोहा
जय गणेश गिरिजा सुवन मंगल करण कृपाल
।
दीनन के दुख दूर करि कीजै नाथ निहाल
॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु सुनहु विनय
महाराज ।
करहु कृपा हे रवि तनय राखहु जनकी
लाज ॥
जयति जयति शनिदेव दयाला । करत सदा
भक्तन प्रतिपाला ॥
चारि भुजा तनु श्याम विराजै । माथे
रतन मुकुट छबि छाजै ॥
परम विशाल मनोहर भाला । टेढ़ी
दृष्टि भृकुटि विकराला ॥
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके । हिये माल
मुक्तन मणि दमकै ॥
कर में गदा त्रिशूल कुठारा । पल बिच
करैं अरिहिं संहारा ॥
पिंगल कृष्णो छाया नन्दन । यम
कोणस्थ रौद्र दुख भंजन ॥
सौरी मन्द शनी दश नामा । भानु पुत्र
पूजहिं सब कामा ॥
जापर प्रभु प्रसन्न हवैं जाहीं ।
रंकहुँ राव करैं क्शण माहीं ॥
पर्वतहू तृण होइ निहारत । तृणहू को
पर्वत करि डारत ॥
राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो ।
कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो ॥
बनहूँ में मृग कपट दिखाई । मातु
जानकी गई चुराई ॥
लषणहिं शक्ति विकल करिडारा । मचिगा
दल में हाहाकारा ॥
रावण की गति-मति बौराई । रामचन्द्र
सों बैर बढ़ाई ॥
दियो कीट करि कंचन लंका । बजि बजरंग
बीर की डंका ॥
नृप विक्रम पर तुहिं पगु धारा ।
चित्र मयूर निगलि गै हारा ॥
हार नौंलखा लाग्यो चोरी । हाथ पैर
डरवायो तोरी ॥
भारी दशा निकृष्ट दिखायो । तेलहिं
घर कोल्हू चलवायो ॥
विनय राग दीपक महँ कीन्हयों । तब
प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों ॥
हरिश्चंद्र नृप नारि बिकानी । आपहुं
भरें डोम घर पानी ॥
तैसे नल पर दशा सिरानी । भूंजी-मीन
कूद गई पानी ॥
श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई । पारवती
को सती कराई ॥
तनिक वोलोकत ही करि रीसा । नभ उड़ि
गयो गौरिसुत सीसा ॥
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी । बची
द्रौपदी होति उघारी ॥
कौरव के भी गति मति मारयो । युद्ध
महाभारत करि डारयो ॥
रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला । लेकर
कूदि परयो पाताला ॥
शेष देव-लखि विनति लाई । रवि को मुख
ते दियो छुड़ाई ॥
वाहन प्रभु के सात सुजाना । जग
दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना ॥
जम्बुक सिंह आदि नख धारी । सो फल
ज्योतिष कहत पुकारी ॥
गज वाहन लक्श्मी गृह आवैं । हय ते
सुख सम्पत्ति उपजावैं ॥
गर्दभ हानि करै बहु काजा । सिंह
सिद्धकर राज समाजा ॥
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै । मृग
दे कष्ट प्राण संहारै ॥
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी । चोरी
आदि होय डर भारी ॥
तैसहि चारी चरण यह नामा । स्वर्ण
लौह चाँदि अरु तामा ॥
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं । धन जन
सम्पत्ति नष्ट करावैं ॥
समता ताम्र रजत शुभकारी । स्वर्ण
सर्व सुख मंगल भारी ॥
जो यह शनि चरित्र नित गावै । कबहुं
न दशा निकृष्ट सतावै ॥
अद्भूत नाथ दिखावैं लीला । करैं
शत्रु के नशिब बलि ढीला ॥
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई । विधिवत
शनि ग्रह शांति कराई ॥
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत । दीप दान
दै बहु सुख पावत ॥
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा । शनि
सुमिरत सुख होत प्रकाशा ॥
दोहा
पाठ शनीश्चर देव को कीन्हों विमल तैयार
।
करत पाठ चालीस दिन हो भवसागर पार ॥
जो स्तुति दशरथ जी कियो सम्मुख शनि
निहार ।
सरस सुभाष में वही ललिता लिखें सुधार ।
श्री शनि चालीसा
श्री शनिदेव जी की आरती
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी ।
सूरज के पुत्र प्रभू छाया महतारी ॥
जय॥
श्याम अंक वक्र दृष्ट चतुर्भुजा
धारी ।
नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी ॥
जय॥
किरिट मुकुट शीश रजित दिपत है
लिलारी ।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी ॥
जय॥
मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी ।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी
॥ जय॥
देव दनुज ऋषी मुनी सुमरिन नर नारी ।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी ॥ जय॥
श्री शनि चालीसा व आरती समाप्त
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