मङ्गलकवचम्
मङ्गलकवचम् - मंगल की सूर्य से औसत दूरी लगभग २३ करोड़ कि॰मी॰ (१.५ ख॰इ॰) और कक्षीय अवधि ६८७ (पृथ्वी) दिवस लाल निशान के रूप में, पृथ्वी की कक्षा (नीली) के साथ दर्शाई गई है। मंगल की सूर्य से औसत दूरी लगभग २३ करोड़ कि॰मी॰ (१.५ ख॰इ॰) और कक्षीय अवधि ६८७ (पृथ्वी) दिवस है। मंगल पर सौर दिवस एक पृथ्वी दिवस से मात्र थोड़ा सा लंबा है : २४ घंटे, ३९ मिनट और ३५.२४४ सेकण्ड। एक मंगल वर्ष १.८८०९ पृथ्वी वर्ष के बराबर या १ वर्ष, ३२० दिन और १८.२ घंटे है। मंगल का अक्षीय झुकाव २५.१९ डिग्री है, जो कि पृथ्वी के अक्षीय झुकाव के बराबर है। परिणामस्वरूप, मंगल की ऋतुएँ पृथ्वी के जैसी है, हालांकि मंगल पर ये ऋतुएँ पृथ्वी पर से दोगुनी लम्बी है। वर्त्तमान में मंगल के उत्तरी ध्रुव की स्थिति ड़ेनेब तारे के करीब है।
इससे पूर्व आपने भौममङ्गलस्तोत्रम् व मंगल स्तोत्रम् पढ़ा। अब यहाँ श्रीमार्कण्डेयपुराण में वर्णित मङ्गलकवचम् का पठन करेंगे। जिसके पाठ से भूत,प्रेत,पिशाच का नाश, सर्वरोग का नाश, रोग नाश,बंदी बन्धमुक्त होता है तथा यह सर्वसम्पत्प्रदान करने वाला, सर्वसौभाग्य प्रदान करनेवाला और सर्वसिद्धि को देनेवाला है।
मङ्गलकवचम्
अस्य श्री अङ्गारककवचस्तोत्रमन्त्रस्य कश्यप ऋषिः,
अनुष्टुप् छन्दः, अङ्गारको देवता, भौमप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः ।
रक्ताम्बरो रक्तवपुः किरीटी चतुर्भुजो मेषगमो गदाभृत् ।
धरासुतः शक्तिधरश्च शूली सदा मम स्याद्वरदः प्रशान्तः ॥ १॥
अङ्गारकः शिरो रक्षेन्मुखं वै धरणीसुतः ।
श्रवौ रक्ताम्बरः पातु नेत्रे मे रक्तलोचनः ॥ २॥
नासां शक्तिधरः पातु मुखं मे रक्तलोचनः ।
भुजौ मे रक्तमाली च हस्तौ शक्तिधरस्तथा ॥ ३॥
वक्षः पातु वराङ्गश्च हृदयं पातु रोहितः ।
कटिं मे ग्रहराजश्च मुखं चैव धरासुतः ॥ ४॥
जानुजङ्घे कुजः पातु पादौ भक्तप्रियः सदा ।
सर्वाण्यन्यानि चाङ्गानि रक्षेन्मे मेषवाहनः ॥ ५॥
य इदं कवचं दिव्यं सर्वशत्रुनिवारणम् ।
भूतप्रेतपिशाचानां नाशनं सर्वसिद्धिदम् ॥ ६॥
सर्वरोगहरं चैव सर्वसम्पत्प्रदं शुभम् ।
भुक्तिमुक्तिप्रदं नॄणां सर्वसौभाग्यवर्धनम् ।
रोगबन्धविमोक्षं च सत्यमेतन्न संशयः ॥ ७॥
॥ इति श्रीमार्कण्डेयपुराणे मङ्गलकवचं सम्पूर्णम् ॥
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