बुधस्तोत्रम्

बुधस्तोत्रम्

बुधस्तोत्रम् - बुध इसी नाम के खगोलीय ग्रह के लिये भारतीय ज्योतिष शास्त्र में नियत एक ग्रह है। बुध चंद्रमा का तारा या रोहिणी से पुत्र कहलाता है। बुध को माल और व्यापारियों का स्वामी और रक्षक माना जाता है। बुध हल्के स्वभाव के, सुवक्ता और एक हरे वर्ण वाले कहलाते हैं। उन्हें कृपाण, फ़रसा और ढाल धारण किये हुए दिखाया जाता है और सवारी पंखों वाला सिंह बताते हैं। एक अन्य रूप में इन्हें राजदण्ड और कमल लिये हुए उड़ने वाले कालीन या सिंहों द्वारा खींचे गए रथ पर आरूढ दिखाया गया है। बुध का राज बुधवार दिवस पर रहता है। आधुनिक हिन्दी, उर्दु, तेलुगु, बंगाली, मराठी, कन्नड़ और गुजराती भाषाओं में सप्ताह के तीसरे दिवस को बुधवार कहा जाता है। बुध का विवाह वैवस्वत मनु की पुत्री इला से विवाह किया। इला से प्रसन्न होकर मित्रावरुण ने उसे अपने कुल की कन्या तथा मनु का पुत्र होने का वरदान दिया। कन्या भाव में उसने चन्द्रमा के पुत्र बुध से विवाह करके पुरूरवा नामक पुत्र को जन्म दिया। तदुपरान्त वह सुद्युम्न बन गयी और उसने अत्यन्त धर्मात्मा तीन पुत्रों से मनु के वंश की वृध्दि की जिनके नाम इस प्रकार हैं- उत्कल, गय तथा विनताश्व।

बुध ग्रह से मनोकामना सिद्धि के लिए बुधस्तोत्रम् का पाठ करें। पाठकों के लाभार्थ यहाँ तीन बुधस्तोत्रम् दिया जा रहा है । 

बुधस्तोत्रम्

बुधस्तोत्रम् १

पीताम्बर: पीतवपु किरीटी,चतुर्भुजो देवदु:खापहर्ता । 

धर्मस्य धृक सोमसुत: सदा मे,सिंहाधिरुढ़ो वरदो बुधश्च ।।१।। 

प्रियंगुकनकश्यामं रूपेणाप्रतिमं बुधम । 

सौम्यं सौम्यगुणोपेतं नमामि शशिनन्दनम ।।२।।                                

सोमसुनुर्बुधश्चैव सौम्य: सौम्यगुणान्वित: । 

सदा शान्त: सदा क्षेमो नमामि शशिनन्दनम ।।३।।                                       

उत्पातरूपी जगतां चन्द्रपुत्रो महाद्युति: । 

सूर्यप्रियकरोविद्वान पीडां हरतु मे बुधं ।।४।।                                       

शिरीषपुष्पसंकाशं कपिलीशो युवा पुन: । 

सोमपुत्रो बुधश्चैव सदा शान्तिं प्रयच्छतु ।।५।।                                              

श्याम: शिरालश्चकलाविधिज्ञ:,कौतूहली कोमलवाग्विलासी ।

रजोधिको मध्यमरूपधृक स्या-दाताम्रनेत्रो द्विजराजपुत्र: ।।६।। 

अहो चन्द्रासुत श्रीमन मागधर्मासमुदभव: । 

अत्रिगोत्रश्चतुर्बाहु: खड्गखेटकधारक: ।।७।।                                                            

गदाधरो नृसिंहस्थ: स्वर्णनाभसमन्वित: । 

केतकीद्रुमपत्राभ: इन्द्रविष्णुप्रपूजित: ।।८।।                                                                

ज्ञेयो बुध: पण्डितश्च रोहिणेयश्च सोमज: । 

कुमारो राजपुत्रश्च शैशवे शशिनन्दन: ।।९।।                                                          

गुरुपुत्रश्च तारेयो विबुधो बोधनस्तथा । 

सौम्य: सौम्यगुणोपेतो रत्नदानफलप्रद: ।।१०।।                                                       

एतानि बुधनामानि प्रात: काले पठेन्नर: । 

बुद्धिर्विवृद्धितां याति बुधपीडा न जायते ।।११।।                                                                    

(इति मंत्रमहार्णवे बुधस्तोत्रम)

 

बुधस्तोत्रम् २

अस्य श्रीबुधस्तोत्रमहामन्त्रस्य वसिष्ठ ऋषिः । अनुष्टुप्छन्दः ।

बुधो देवता । बुधप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ।

ध्यानम् ।

भुजैश्चतुर्भिर्वरदाभयासिगदं वहन्तं सुमुखं प्रशान्तम् ।

पीतप्रभं चन्द्रसुतं सुरेढ्यं सिम्हे निषण्णं बुधमाश्रयामि ॥

अथ बुधस्तोत्रम् ।

पीताम्बरः पीतवपुः पीतध्वजरथस्थितः ।

पीयूषरश्मितनयः पातु मां सर्वदा बुधः ॥ १॥

सिंहवाहं सिद्धनुतं सौम्यं सौम्यगुणान्वितम् ।

सोमसूनुं सुराराध्यं सर्वदं सौम्यमाश्रये ॥ २॥

बुधं बुद्धिप्रदातारं बाणबाणासनोज्ज्वलम् ।

भद्रप्रदं भीतिहरं भक्तपालनमाश्रये ॥ ३॥

आत्रेयगोत्रसञ्जातमाश्रितार्तिनिवारणम् ।

आदितेयकुलाराध्यमाशुसिद्धिदमाश्रये ॥ ४॥

कलानिधितनूजातं करुणारसवारिधिम् ।

कल्याणदायिनं नित्यं कन्याराश्यधिपं भजे ॥ ५॥

मन्दस्मितमुखाम्भोजं मन्मथायुतसुन्दरम् ।

मिथुनाधीशमनघं मृगाङ्कतनयं भजे ॥ ६॥

चतुर्भुजं चारुरूपं चराचरजगत्प्रभुम् ।

चर्मखड्गधरं वन्दे चन्द्रग्रहतनूभवम् ॥ ७॥

पञ्चास्यवाहनगतं पञ्चपातकनाशनम् ।

पीतगन्धं पीतमाल्यं बुधं बुधनुतं भजे ॥ ८॥

बुधस्तोत्रमिदं गुह्यं वसिष्ठेनोदितं पुरा ।

यः पठेच्छृणूयाद्वापि सर्वाभीष्टमवाप्नुयात् ॥ ९॥

    इति बुधस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।

 

 

बुधस्तोत्रम् ३

ॐ नमो बुधाय विज्ञाय सोमपुत्राय ते नमः ।

रोहिणीगर्भसम्भूत कुङ्कुमच्छविभूषित ॥ १॥

सोमप्रियसुताऽनेकशास्त्रपारगवित्तम ।

रौहिणेय नमस्तेऽस्तु निशाकामुकसूनवे ॥ २॥

पीतवस्त्रपरीधान स्वर्णतेजोविराजित ।

सुवर्णमालाभरण स्वर्णदानकरप्रिय ॥ ३॥

नमोऽप्रतिमरूपाय रूपानां प्रियकारिणे ।

विष्णुभक्तिमते तुभ्यं चेन्दुराजप्रियङ्कर ॥ ४॥

सिंहासनस्थो वरदः कर्णिकारसमद्युतिः ।

खड्गचर्मगदापाणिः सौम्यो वोऽस्तु सुखप्रदः ॥ ५॥

स्थिरासनो महाकायः सर्वकर्मावबोधकः ।

विष्णुप्रियो विश्वरूपो महारूपो महेश्वरः ॥ ६॥

बुधाय विष्णुभक्ताय महारूपधराय च ।

सोमात्मजस्वरूपाय पीतवस्त्रप्रियाय च ॥ ७॥

अग्रवेदी दीर्घश्मश्रुर्हेमाङ्गः कुङ्कुमच्छविः ।

सर्वज्ञः सर्वदः सर्वः सर्वपूज्यो ग्रहेश्वरः ॥ ८॥

सत्यवादी खड्गहस्तो ग्रहपीडानिवारकः ।

सृष्टिकर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः ॥ ९॥

एतानि बुधनामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत् ।

न भयं विद्यते तस्य कार्यसिद्धिर्भविष्यति ॥ १०॥

इत्येतत्स्तोत्रमुत्थाय प्रभाते पठते नरः ।

न तस्य पीडा बाधन्ते बुद्धिभाक्च भवेत्सुधीः ॥ ११॥

सर्वपापविनिर्मुक्तो विष्णुलोकं स गच्छति ।

बुधो बुद्धिप्रदाता च सोमपुत्रो महाद्युतिः ।

आदित्यस्य रथे तिष्ठन्स बुधः प्रीयतां मम ॥ १२॥

इति बुधस्तोत्रम् समाप्त ।

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