Slide show
Ad Code
JSON Variables
Total Pageviews
Blog Archive
-
▼
2021
(800)
-
▼
May
(109)
- शनिरक्षास्तवः
- शनैश्चरस्तवराजः
- शनैश्चरस्तोत्रम्
- शनिस्तोत्रम्
- शनि स्तोत्र
- महाकाल शनि मृत्युंजय स्तोत्र
- शनैश्चरमालामन्त्रः
- शनिमङ्गलस्तोत्रम्
- शनि कवच
- शनि चालीसा
- शनिस्तुति
- शुक्रमङ्गलस्तोत्रम्
- शुक्राष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्
- शुक्रकवचम्
- शुक्रस्तवराज
- शुक्रस्तोत्रम्
- श्रीगुर्वाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्
- बृहस्पतिमङ्गलस्तोत्रम्
- बृहस्पतिस्तोत्रम्
- बृहस्पतिकवचम्
- बुधमङ्गलस्तोत्रम्
- बुधाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्
- बुधकवचम्
- बुधपञ्चविंशतिनामस्तोत्रम्
- बुधस्तोत्रम्
- ऋणमोचन स्तोत्र
- श्रीअङ्गारकाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्
- मङ्गलकवचम्
- अङ्गारकस्तोत्रम्
- मंगल स्तोत्रम्
- भौममङ्गलस्तोत्रम्
- चन्द्राष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्
- चन्द्राष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्
- चन्द्राष्टाविंशतिनामस्तोत्रम्
- सोमोत्पत्तिस्तोत्रम्
- चन्द्रमङ्गलस्तोत्रम्
- चन्द्रकवचम्
- चन्द्रस्तोत्रम्
- सूर्याष्टोत्तरशतनामस्तोत्र
- सूर्यसहस्रनामस्तोत्रम्
- सूर्यसहस्रनामस्तोत्रम्
- सूर्यसहस्रनामस्तोत्रम्
- आदित्यस्तोत्रम्
- सूर्यमण्डलस्तोत्रम्
- आदित्य हृदय स्तोत्र
- सूर्याष्टोत्तरशतनामस्तोत्र
- सूर्याष्टक
- सूर्याष्टकम्
- सूर्यकवच
- सूर्यकवचम्
- सूर्यस्तोत्र
- सूर्यस्तोत्रम्
- सूर्योपनिषद्
- सूर्यस्तुती
- हंसगीता २
- हंसगीता १
- ब्राह्मणगीता १५
- ब्राह्मणगीता १४
- ब्राह्मणगीता १३
- ब्राह्मणगीता १२
- ब्राह्मणगीता ११
- ब्राह्मणगीता १०
- ब्राह्मणगीता ९
- ब्राह्मणगीता ८
- ब्राह्मणगीता ७
- ब्राह्मणगीता ६
- ब्राह्मणगीता ५
- ब्राह्मणगीता ४
- ब्राह्मणगीता ३
- ब्राह्मणगीता २
- ब्राह्मणगीता १
- अनुगीता ४
- अनुगीता ३
- अनुगीता २
- अनुगीता १
- नारदगीता
- लक्ष्मणगीता
- अपामार्जन स्तोत्र
- गर्भ गीता
- गीता माहात्म्य अध्याय १८
- गीता माहात्म्य अध्याय १७
- गीता माहात्म्य अध्याय १६
- गीता माहात्म्य अध्याय १५
- गीता माहात्म्य अध्याय १४
- गीता माहात्म्य अध्याय १३
- गीता माहात्म्य अध्याय १२
- गीता माहात्म्य अध्याय ११
- गीता माहात्म्य अध्याय १०
- गीता माहात्म्य अध्याय ९
- गीता माहात्म्य अध्याय ८
- गीता माहात्म्य अध्याय ७
- गीता माहात्म्य अध्याय ६
- गीता माहात्म्य अध्याय ५
- गीता माहात्म्य अध्याय ४
- गीता माहात्म्य अध्याय ३
- गीता माहात्म्य अध्याय २
- गीता माहात्म्य अध्याय १
- गीता माहात्म्य
- श्रीमद्भगवद्गीता
- गरुडोपनिषत्
-
▼
May
(109)
Search This Blog
Fashion
Menu Footer Widget
Text Widget
Bonjour & Welcome
About Me
Labels
- Astrology
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड
- Hymn collection
- Worship Method
- अष्टक
- उपनिषद
- कथायें
- कवच
- कीलक
- गणेश
- गायत्री
- गीतगोविन्द
- गीता
- चालीसा
- ज्योतिष
- ज्योतिषशास्त्र
- तंत्र
- दशकम
- दसमहाविद्या
- देवी
- नामस्तोत्र
- नीतिशास्त्र
- पञ्चकम
- पञ्जर
- पूजन विधि
- पूजन सामाग्री
- मनुस्मृति
- मन्त्रमहोदधि
- मुहूर्त
- रघुवंश
- रहस्यम्
- रामायण
- रुद्रयामल तंत्र
- लक्ष्मी
- वनस्पतिशास्त्र
- वास्तुशास्त्र
- विष्णु
- वेद-पुराण
- व्याकरण
- व्रत
- शाबर मंत्र
- शिव
- श्राद्ध-प्रकरण
- श्रीकृष्ण
- श्रीराधा
- श्रीराम
- सप्तशती
- साधना
- सूक्त
- सूत्रम्
- स्तवन
- स्तोत्र संग्रह
- स्तोत्र संग्रह
- हृदयस्तोत्र
Tags
Contact Form
Contact Form
Followers
Ticker
Slider
Labels Cloud
Translate
Pages
Popular Posts
-
मूल शांति पूजन विधि कहा गया है कि यदि भोजन बिगड़ गया तो शरीर बिगड़ गया और यदि संस्कार बिगड़ गया तो जीवन बिगड़ गया । प्राचीन काल से परंपरा रही कि...
-
रघुवंशम् द्वितीय सर्ग Raghuvansham dvitiya sarg महाकवि कालिदास जी की महाकाव्य रघुवंशम् प्रथम सर्ग में आपने पढ़ा कि-महाराज दिलीप व उनकी प...
-
रूद्र सूक्त Rudra suktam ' रुद्र ' शब्द की निरुक्ति के अनुसार भगवान् रुद्र दुःखनाशक , पापनाशक एवं ज्ञानदाता हैं। रुद्र सूक्त में भ...
Popular Posts
अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
बृहस्पतिस्तोत्रम्
गुरुस्तोत्रम् अथवा
बृहस्पतिस्तोत्रम् - बृहस्पति, जिन्हें
"प्रार्थना या भक्ति का स्वामी" माना गया है, और
ब्राह्मनस्पति तथा देवगुरु (देवताओं के गुरु) भी कहलाते हैं, एक हिन्दू देवता एवं वैदिक आराध्य हैं। इन्हें शील और धर्म का अवतार माना जाता
है और ये देवताओं के लिये प्रार्थना और बलि या हवि के प्रमुख प्रदाता हैं। इस
प्रकार ये मनुष्यों और देवताओं के बीच मध्यस्थता करते हैं।
बृहस्पति हिन्दू देवताओं के गुरु
हैं और दैत्य गुरु शुक्राचार्य के कट्टर विरोधी रहे हैं। ये नवग्रहों के समूह के
नायक भी माने जाते हैं तभी इन्हें गणपति भी कहा जाता है। ये ज्ञान और वाग्मिता के
देवता माने जाते हैं। इन्होंने ही बार्हस्पत्य सूत्र की रचना की थी। इनका वर्ण
सुवर्ण या पीला माना जाता है और इनके पास दण्ड, कमल
और जपमाला रहती है। ये सप्तवार में बृहस्पतिवार के स्वामी माने जाते हैं। ज्योतिष
में इन्हें बृहस्पति (ग्रह) का स्वामी माना जाता है।
बृहस्पति(गुरु) ग्रह के पीड़ा को दूर
कर सर्वमनोकामना को सिद्ध करने वाले इस बृहस्पतिस्तोत्रम् का पाठ करें है।
बृहस्पतिस्तोत्रम्
पीताम्बर: पीतवपु: किरीटी,चतुर्भुजो देवगुरु: प्रशान्त: ।
दधाति दण्डं च कमण्डलुं च,तथाक्षसूत्रं वरदोsस्तु मह्यम ।।१।।
नम: सुरेन्द्रवन्द्याय देवाचार्याय ते नम: । नमस्त्वनन्तसामर्थ्यं देवासिद्धान्तपारग ।।२।।
सदानन्द नमस्तेस्तु नम: पीडाहराय च । नमो वाचस्पते तुभ्यं नमस्ते पीतवाससे ।।३।।
नमोsद्वितीयरूपाय लम्बकूर्चाय ते नम: । नम: प्रह्रष्टनेत्राय विप्राणां पतये नम: ।।४।।
नमो भार्गवशिष्याय विपन्नहितकारक: । नमस्ते सुरसैन्याय विपन्नत्राणहेतवे ।।५।।
विषमस्थस्तथा नृणां सर्वकष्टप्रणाशनम । प्रत्यहं तु पठेद्यो वै तस्य कामफलप्रदम ।।६।।
(इति मन्त्रमहार्णवे बृहस्पतिस्तोत्रम)
गुरुस्तोत्रम् अथवा बृहस्पतिस्तोत्रम्
अथ गुरुस्तोत्रम् ।
बृहस्पतिः सुराचार्यो दयावान्
शुभलक्षणः ।
लोकत्रयगुरुः श्रीमान्सर्वज्ञः
सर्वकोविदः ॥ १॥
सर्वेशः सर्वदाऽभीष्टः
सर्वजित्सर्वपूजितः ।
अक्रोधनो मुनिश्रेष्ठो नीतिकर्ता
गुरुः पिता ॥ २॥
विश्वात्मा विश्वकर्ता च
विश्वयोनिरयोनिजः ।
भूर्भुवःसुवरों चैव भर्ता चैव
महाबलः ॥ ३॥
पञ्चविंशतिनामानि पुण्यानि
नियतात्मना ।
वसता नन्दभवने विष्णुना कीर्तितानि
वै ॥ ४॥
यः पठेत् प्रातरुत्थाय प्रयतः
सुसमाहितः ।
विपरीतोऽपि भगवान्प्रीतो भवति वै
गुरुः ॥ ५॥
यश्छृणोति गुरुस्तोत्रं चिरं
जीवेन्न संशयः ।
बृहस्पतिकृता पीडा न
कदाचिद्भविष्यति ॥ ६॥
इति गुरुस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
बृहस्पतिस्तोत्रम्
अस्य श्रीबृहस्पतिस्तोत्रस्य
गृत्समद ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः,
बृहस्पतिर्देवता,
बृहस्पतिप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः ।
गुरुर्बृहस्पतिर्जीवः सुराचार्यो
विदांवरः ।
वागीशो धिषणो दीर्घश्मश्रुः
पीताम्बरो युवा ॥ १॥
सुधादृष्टिर्ग्रहाधीशो
ग्रहपीडापहारकः ।
दयाकरः सौम्यमूर्तिः सुरार्च्यः
कुङ्मलद्युतिः ॥ २॥
लोकपूज्यो लोकगुरुर्नीतिज्ञो
नीतिकारकः ।
तारापतिश्चाङ्गिरसो वेदवैद्यपितामहः
॥ ३॥
भक्त्या बृहस्पतिं स्मृत्वा
नामान्येतानि यः पठेत् ।
अरोगी बलवान् श्रीमान् पुत्रवान् स
भवेन्नरः ॥ ४॥
जीवेद्वर्षशतं मर्त्यो पापं नश्यति
नश्यति ।
यः पूजयेद्गुरुदिने
पीतगन्धाक्षताम्बरैः ॥ ५॥
पुष्पदीपोपहारैश्च पूजयित्वा
बृहस्पतिम् ।
ब्राह्मणान्भोजयित्वा च
पीडाशान्तिर्भवेद्गुरोः ॥ ६॥
॥ इति श्रीस्कन्दपुराणे बृहस्पतिस्तोत्रं
सम्पूर्णम् ॥
बृहस्पतिस्तोत्रम्
ॐ चराचरगुरुं नौमि गुरुं सर्वोपकारकम् ।
यस्य सङ्कीर्तनादेव क्षणादिष्टं
प्रजायते ॥ १॥
वृहस्पतिः सुराचार्यो नीतिज्ञो
नीतिकारकः ।
गुरुर्जीवोऽथ वागीशो वेदवेत्ता
विदांवरः ॥ २॥
सौम्यमूर्तिः सुधादृष्टिः पीतवासाः
पितामहः ।
अग्रवेदी
दीर्घश्मश्रुर्हेमाङ्गः कुङ्कुमच्छविः ॥ ३॥
सर्वज्ञः सर्वदः सर्वः सर्वपूज्यो
ग्रहेश्वरः ।
सत्यधामाऽक्षमाली च ग्रहपीडानिवारकः
॥ ४॥
पञ्चविंशतिनामानि गुरुं स्मृत्वा तु
यः पठेत् ।
आयुरारोग्यसम्पन्नो धनधान्यसमन्वितः
॥ ५॥
जीवेद्वर्षशतं साग्रं
सर्वव्याधिविवर्जितः ।
कर्मणा मनसा वाचा यत्पापं
समुपार्जितम् ॥ ६॥
तदेतत्पठनादेव
दह्यतेऽग्निरिवेन्धनम् ।
गुरोर्दिनेऽर्चयेद्यस्तु
पीतवस्त्रानुलेपनैः ॥ ७॥
धूपदीपोपहारैश्च विप्रभोजनपूर्वकम्
।
पीडाशान्तिर्भवेत्तस्य स्वयमाह
बृहस्पतिः ॥ ८॥
मेरुमूर्ध्नि समाक्रान्तो
देवराजपुरोहितः ।
ज्ञाता यः सर्वशास्त्राणां स गुरुः
प्रीयतां मम ॥ ९॥
इति बृहस्पतिस्तोत्रम् ।
Related posts
vehicles
business
health
Featured Posts
Labels
- Astrology (7)
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड (10)
- Hymn collection (38)
- Worship Method (32)
- अष्टक (54)
- उपनिषद (30)
- कथायें (127)
- कवच (61)
- कीलक (1)
- गणेश (25)
- गायत्री (1)
- गीतगोविन्द (27)
- गीता (34)
- चालीसा (7)
- ज्योतिष (32)
- ज्योतिषशास्त्र (86)
- तंत्र (182)
- दशकम (3)
- दसमहाविद्या (51)
- देवी (190)
- नामस्तोत्र (55)
- नीतिशास्त्र (21)
- पञ्चकम (10)
- पञ्जर (7)
- पूजन विधि (80)
- पूजन सामाग्री (12)
- मनुस्मृति (17)
- मन्त्रमहोदधि (26)
- मुहूर्त (6)
- रघुवंश (11)
- रहस्यम् (120)
- रामायण (48)
- रुद्रयामल तंत्र (117)
- लक्ष्मी (10)
- वनस्पतिशास्त्र (19)
- वास्तुशास्त्र (24)
- विष्णु (41)
- वेद-पुराण (691)
- व्याकरण (6)
- व्रत (23)
- शाबर मंत्र (1)
- शिव (54)
- श्राद्ध-प्रकरण (14)
- श्रीकृष्ण (22)
- श्रीराधा (2)
- श्रीराम (71)
- सप्तशती (22)
- साधना (10)
- सूक्त (30)
- सूत्रम् (4)
- स्तवन (109)
- स्तोत्र संग्रह (711)
- स्तोत्र संग्रह (6)
- हृदयस्तोत्र (10)
No comments: