बुधपञ्चविंशतिनामस्तोत्रम्
बुधपञ्चविंशतिनामस्तोत्रम्- चंद्रमा
के गुरु थे देवगुरु बृहस्पति। बृहस्पति की पत्नी तारा चंद्रमा की सुंदरता पर मोहित
होकर उनसे प्रेम करने लगी। तदोपरांत वह चंद्रमा के संग सहवास भी कर गई एवं
बृहस्पति को छोड़ ही दिया। बृहस्पति के वापस बुलाने पर उसने वापस आने से मना कर
दिया,
जिससे बृहस्पति क्रोधित हो उठे तब बृहस्पति एवं उनके शिष्य चंद्र के
बीच युद्ध आरंभ हो गया। इस युद्ध में दैत्य गुरु शुक्राचार्य चंद्रमा की ओर हो गये
और अन्य देवता बृहस्पति के साथ हो लिये। अब युद्ध बड़े स्तर पर होने लगा। क्योंकि
यह युद्ध तारा की कामना से हुआ था, अतः यह तारकाम्यम कहलाया।
इस वृहत स्तरीय युद्ध से सृष्टिकर्त्ता ब्रह्मा को भय हुआ कि ये कहीं पूरी सृष्टि
को ही लील न कर जाए, तो वे बीच बचाव कर इस युद्ध को रुकवाने
का प्रयोजन करने लगे। उन्होंने तारा को समझा-बुझा कर चंद्र से वापस लिया और
बृहस्पति को सौंपा। इस बीच तारा के एक सुंदर पुत्र जन्मा जो बुध कहलाया। चंद्र और
बृहस्पति दोनों ही इसे अपना बताने लगे और स्वयं को इसका पिता बताने लगे यद्यपि
तारा चुप ही रही। माता की चुप्पी से अशांत व क्रोधित होकर स्वयं बुद्ध ने माता से
सत्य बताने को कहा। तब तारा ने बुध का पिता चंद्र को बताया।
दूसरे मत से तारा बृहस्पति की पत्नी
थी। चंद्र उनके सौंदर्य से मोहित होकर विवाह प्रस्ताव दिया तो वे ठुकरा दिया। इससे
चंद्र क्रोधित हो परे और बलपूर्वक उनका बलात्कार किया।इस बलात्कार के कारण तारा
गर्भवती हुई ओर बुध का जन्म हुआ।
चंद्र ने बालक बुध को रोहिणी और कृत्तिका नक्षत्र-रूपी अपनी पत्नियों को सौंपा। इनके लालन पालन में बुध बड़ा होने लगा। बड़े होने पर बुध को अपने जन्म की कथा सुनकर शर्म व ग्लानि होने लगी। उसने अपने जन्म के पापों से मुक्ति पाने के लिये हिमालय में श्रवणवन पर्वत पर जाकर तपस्या आरंभ की। इस तप से प्रसन्न होकर विष्णु भगवान ने उसे दर्शन दिये। उसे वरदान स्वरूप वैदिक विद्याएं एवं सभी कलाएं प्रदान कीं। एक अन्य कथा के अनुसार बुध का लालन-पालन बृहस्पति ने किया व बुध उनका पुत्र कहलाया।
बुध पंचविंशति नाम स्तोत्रम् पद्म पुराणा के अन्तर्गतम् से लिया गया हैं ! जब किसी भी जातक की कुंडली में बुध ग्रह नीच का होकर या गोचर में बुरा प्रभाव दे रहा हो या बुध ग्रह की दशा और अन्तर्दशा में बुरा फ़ल दे तो दिए गये बुध पंचविंशति नाम स्तोत्रम् का रोजाना जाप करने से बुध सम्बन्धित हो रही परेशानी से निजात मिलेगा !
बुधपञ्चविंशतिनामस्तोत्रम्
अस्य
श्रीबुधपञ्चविंशतिनामस्तोत्रस्य प्रजापतिरृषिः,
त्रिष्टुप् छन्दः,
बुधो देवता, बुधप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः ॥
बुधो बुद्धिमतां श्रेष्ठो
बुद्धिदाता धनप्रदः ।
प्रियङ्गुकलिकाश्यामः कञ्जनेत्रो
मनोहरः ॥ १॥
ग्रहोपमो रौहिणेयो नक्षत्रेशो
दयाकरः ।
विरुद्धकार्यहन्ता च सौम्यो
बुद्धिविवर्धनः ॥ २॥
चन्द्रात्मजो विष्णुरूपी ज्ञानी
ज्ञो ज्ञानिनायकः ।
ग्रहपीडाहरो
दारपुत्रधान्यपशुप्रदः ॥ ३॥
लोकप्रियः सौम्यमूर्तिर्गुणदो
गुणिवत्सलः ।
पञ्चविंशतिनामानि बुधस्यैतानि यः
पठेत् ॥ ४॥
स्मृत्वा बुधं सदा तस्य पीडा सर्वा
विनश्यति ।
तद्दिने वा पठेद्यस्तु लभते स
मनोगतम् ॥ ५॥
॥ इति श्रीपद्मपुराणे बुधपञ्चविंशतिनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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