भौममङ्गलस्तोत्रम्
भौममङ्गलस्तोत्रम्-मंगल ग्रह
सौरमंडल में सूर्य से चौथा ग्रह है। इसके तल की आभा रक्तिम है,
जिस वजह से इसे "लाल ग्रह" के नाम से भी जाना जाता है।
सौरमंडल के ग्रह दो तरह के होते हैं - "स्थलीय ग्रह" जिनका तल आभासीय
होता है और "गैसीय ग्रह" जो अधिकतर गैस से निर्मित हैं। पृथ्वी की तरह,
मंगल भी एक स्थलीय धरातल वाला ग्रह है। इसका वातावरण विरल है। इसकी
सतह देखने पर चंद्रमा के गर्त और पृथ्वी के ज्वालामुखियों, घाटियों,
रेगिस्तान और ध्रुवीय बर्फीली चोटियों की याद दिलाती है। सौरमंडल का
सबसे अधिक ऊँचा पर्वत, ओलम्पस मोन्स मंगल पर ही स्थित है।
साथ ही विशालतम कैन्यन वैलेस मैरीनेरिस भी यहीं पर स्थित है। अपनी भौगोलिक
विशेषताओं के अलावा, मंगल का घूर्णन काल और मौसमी चक्र
पृथ्वी के समान हैं। इस ग्रह पर जीवन होने की संभावना को हमेशा से परिकल्पित किया
गया है। मंगल के दो चन्द्रमा, फो़बोस और डिमोज़ हैं, जो छोटे और अनियमित आकार के हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि यह 5261 यूरेका के
समान, क्षुद्रग्रह है जो मंगल के गुरुत्व के कारण यहाँ फंस
गये होंगे। मंगल को पृथ्वी से नंगी आँखों से देखा जा सकता है। इसका आभासी परिमाण
-2.9 तक पहुँच सकता है और यह् चमक सिर्फ शुक्र, चन्द्रमा और
सूर्य के द्वारा ही पार की जा सकती है, यद्यपि अधिकांश समय
बृहस्पति, मंगल की तुलना में नंगी आँखों को अधिक उज्जवल
दिखाई देता है। भौम अर्थात् मङ्गल का यह स्तोत्रम् जातक की मंगल ग्रह से सम्बंधित
दोषों को दूर कर शुभ परिणाम देते हैं ।
भौममङ्गलस्तोत्रम्
भौमो
दक्षिणदिक्-त्रिकोणयमदिग्-विघ्नेश्वरो रक्तभः ।
स्वामी वृश्चिकमेषयोः
सुरगुरुश्चार्कः शशी सौहृदः ॥ १॥
ज्ञोऽरिः षट् त्रिफलप्रदश्च वसुधा
स्कन्दौ क्रमाद्देवते
भारद्वाजकुलोद्भवः क्षितिसुतः
कुर्यात्सदामङ्गलम् ॥ २॥
प्रार्थना
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्
।
पूजां नैव हि जानामि क्षमस्व
परमेश्वर ॥ १॥
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं
सुरेश्वर ।
यत्पूजितं मया देव परिपूर्णं तदस्तु
मे ॥ २॥
कुज कुप्रभवोऽपि त्वं मङ्गलः
परिगद्यसे ।
अमङ्गलं निहत्याशु सर्वदा यच्छ
मङ्गलम् ॥ ३॥
अनया पूजया भौमदेवः प्रीयताम् ।
ॐ अङ्गारकाय नमः ॐ लोहिताय नमः ॐ
भौमाय नमः ।
ॐ शान्तिः ॐ शान्तिः ॐ शान्तिः ॐ ॥
इति श्रीभौममङ्गलस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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