बुधकवचम्
बुधकवचम्- ज्योतिष शास्त्र में बुध को एक शुभ ग्रह माना जाता है। किसी हानिकर या अशुभकारी ग्रह के संगम से यह
हानिकर भी हो सकता है। बुध मिथुन एवं कन्या राशियों का स्वामी है तथा कन्या राशि
में उच्च भाव में स्थित रहता है तथा मीन राशि में नीच भाव में रहता है। यह सूर्य
और शुक्र के साथ मित्र भाव से तथा चंद्रमा से शत्रुतापूर्ण और अन्य ग्रहों के
प्रति तटस्थ रहता है। यह ग्रह बुद्धि, बुद्धिवर्ग,
संचार, विश्लेषण, चेतना
(विशेष रूप से त्वचा), विज्ञान, गणित,
व्यापार, शिक्षा और अनुसंधान का प्रतिनिधित्व
करता है। सभी प्रकार के लिखित शब्द और सभी प्रकार की यात्राएं बुध के अधीन आती
हैं।
बुध तीन नक्षत्रों का स्वामी है: अश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती (नक्षत्र)। हरे रंग, धातु, पीतल और रत्नों में पन्ना बुध की प्रिय वस्तुएं हैं। इसके साथ जुड़ी दिशा उत्तर है, मौसम शरद ऋतु और तत्व पृथ्वी है।
बुधकवचम् का पाठ जातक बुध जब अशुभ प्रभाव दे रहा हो या बुध की दशा या अंतर्दशा के समय अशुभ परिणाम दे रहा हो उस समय बुध ग्रह कवच का पाठ करना लाभकारी होता हैं।
बुधकवचम्
अस्य श्रीबुधकवचस्तोत्रमन्त्रस्य
कश्यप ऋषिः,
अनुष्टुप् छन्दः,
बुधो देवता, बुधप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः ॥
बुधस्तु पुस्तकधरः कुङ्कुमस्य
समद्युतिः ।
पीताम्बरधरः पातु पीतमाल्यानुलेपनः
॥ १॥
कटिं च पातु मे सौम्यः शिरोदेशं
बुधस्तथा ।
नेत्रे ज्ञानमयः पातु श्रोत्रे पातु
निशाप्रियः ॥ २॥
घ्राणं गन्धप्रियः पातु जिह्वां
विद्याप्रदो मम ।
कण्ठं पातु विधोः पुत्रो भुजौ
पुस्तकभूषणः ॥ ३॥
वक्षः पातु वराङ्गश्च हृदयं
रोहिणीसुतः ।
नाभिं पातु सुराराध्यो मध्यं पातु
खगेश्वरः ॥ ४॥
जानुनी रौहिणेयश्च पातु
जङ्घेऽखिलप्रदः ।
पादौ मे बोधनः पातु पातु
सौम्योऽखिलं वपुः ॥ ५॥
एतद्धि कवचं दिव्यं
सर्वपापप्रणाशनम् ।
सर्वरोगप्रशमनं सर्वदुःखनिवारणम् ॥
६॥
आयुरारोग्यशुभदं
पुत्रपौत्रप्रवर्धनम् ।
यः पठेच्छृणुयाद्वापि सर्वत्र विजयी
भवेत् ॥ ७॥
॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्तपुराणे बुधकवचं सम्पूर्णम् ॥
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