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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
शनिमङ्गलस्तोत्रम्
शनिमङ्गलस्तोत्रम्- खगोल विज्ञान के
अनुसार शनि का व्यास १२०५०० किमी, १० किमी प्रति
सेकंड की औसत गति से यह सूर्य से औसतन डेढ़ अरब किमी. की दूरी पर रहकर यह ग्रह २९
वर्षों में सूर्य का चक्कर पूरा करता है। गुरु शक्ति पृथ्वी से ९५ गुना अधिक और
आकार में बृहस्पती के बाद इसी का नंबर आता है। अपनी धूरी पर घूमने में यह ग्रह नौ
घंटे लगाता है।
पुराणों के अनुसार : इनके सिर पर
स्वर्णमुकुट, गले में माला तथा शरीर पर नीले
रंग के वस्त्र और शरीर भी इंद्रनीलमणि के समान। यह गिद्ध पर सवार रहते हैं। इनके
हाथों में धनुष, बाण, त्रिशूल रहते
हैं। शनि के फेर से देवी-देवताओं को तो छोड़ो शिव को भी बैल बनकर जंगल-जंगल भटकना
पड़ा। रावण को असहाय बनकर मौत की शरण में जाना पड़ा। शनि को सूर्य का पुत्र माना
जाता है। उनकी बहन का नाम देवी यमुना है।
वैसे तो शनि के संबंध में कई कथाएं
है। ब्रह्मपुराण के अनुसार इनके पिता ने चित्ररथ की कन्या से इनका विवाह कर दिया।
इनकी पत्नी परम तेजस्विनी थी। एक रात वे पुत्र-प्राप्ति की इच्छा से इनके पास
पहुंचीं,
पर ये श्रीकृष्ण के ध्यान में निमग्न थे। पत्नी प्रतीक्षा करके थक
गई। उसका ऋतुकाल निष्फल हो गया। इसलिए पत्नी ने क्रुद्ध होकर शनिदेव को शाप दे
दिया कि आज से जिसे तुम देख लोगे, वह नष्ट हो जाएगा। लेकिन
बाद में पत्नी को अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ, किंतु शाप के
प्रतीकार की शक्ति उसमें न थी, तभी से शनि देवता अपना सिर
नीचा करके रहने लगे। क्योंकि ये नहीं चाहते थे कि इनके द्वारा किसी का अनिष्ट हो।
मान्यता है कि सूर्य है राजा,
बुध है मंत्री, मंगल है सेनापति, शनि है न्यायाधीश, राहु-केतु है प्रशासक, गुरु है अच्छे मार्ग का प्रदर्शक, चंद्र है माता और
मन का प्रदर्शक, शुक्र है- पति के लिए पत्नी और पत्नी के लिए
पति तथा वीर्य बल। जब समाज में कोई व्यक्ति अपराध करता है तो शनि के आदेश के तहत
राहु और केतु उसे दंड देने के लिए सक्रिय हो जाते हैं। शनि की कोर्ट में दंड पहले
दिया जाता है, बाद में मुकदमा इस बात के लिए चलता है कि आगे
यदि इस व्यक्ति के चाल-चलन ठीक रहे तो दंड की अवधि बीतने के बाद इसे फिर से खुशहाल
कर दिया जाए या नहीं।
शनि को पसंद नहीं है जुआ-सट्टा
खेलना,
शराब पीना, ब्याजखोरी करना, परस्त्री गमन करना, अप्राकृतिक रूप से संभोग करना,
झूठी गवाही देना, निर्दोष लोगों को सताना,
किसी के पीठ पीछे उसके खिलाफ कोई कार्य करना, चाचा-चाची,
माता-पिता, सेवकों और गुरु का अपमान करना,
ईश्वर के खिलाफ होना, दांतों को गंदा रखना,
तहखाने की कैद हवा को मुक्त करना, भैंस या
भैसों को मारना, सांप, कुत्ते और कौवों
को सताना। शनि के मूल मंदिर जाने से पूर्व उक्त बातों पर प्रतिबंध लगाएं ।
शनि के अशुभ प्रभाव के कारण मकान या
मकान का हिस्सा गिर जाता है या क्षति ग्रस्त हो जाता है,
नहीं तो कर्ज या लड़ाई-झगड़े के कारण मकान बिक जाता है। अंगों के
बाल तेजी से झड़ जाते हैं। अचानक आग लग सकती है। धन, संपत्ति
का किसी भी तरह नाश होता है। समय पूर्व दांत और आंख की कमजोरी।
शनि की स्थिति यदि शुभ है तो
व्यक्ति हर क्षेत्र में प्रगति करता है। उसके जीवन में किसी भी प्रकार का कष्ट
नहीं होता। बाल और नाखून मजबूत होते हैं। ऐसा व्यक्ति न्यायप्रिय होता है और समाज
में मान-सम्मान खूब रहता हैं।
कुंडली के प्रथम भाव यानी लग्न में
हो तो भिखारी को तांबा या तांबे का सिक्का कभी दान न करें अन्यथा पुत्र को कष्ट
होगा। यदि आयु भाव में स्थित हो तो धर्मशाला का निर्माण न कराएं। अष्टम भाव में हो
तो मकान न बनाएं, न खरीदें। उपरोक्त
उपाय किसी जानकार से पूछकर ही करें।
उपाय : सर्वप्रथम भगवान भैरव की
उपासना करें। शनि की शांति के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप भी कर सकते हैं। तिल,
उड़द, भैंस, लोहा,
तेल, काला वस्त्र, काली
गौ, और जूता दान देना चाहिए। कौवे को प्रतिदिन रोटी खिलाएं।
छायादान करें, अर्थात कटोरी में थोड़ा-सा सरसो का तेल लेकर
अपना चेहरा देखकर शनि मंदिर में अपने पापो की क्षमा मांगते हुए रख आएं। दांत साफ
रखें। अंधे-अपंगों, सेवकों और सफाईकर्मियों से अच्छा व्यवहार
रखें।
शनि से ही हमारा कर्म जीवन संचालित
होता है। दशम भाव को कर्म, पिता तथा राज्य का
भाव माना गया है। एकादश भाव को आय का भाव माना गया है। अतः कर्म, सत्ता तथा आय का प्रतिनिधि ग्रह होने के कारण कुंडली में शनि का स्थान
महत्वपूर्ण माना गया है।
शनि ग्रह का परिचय इस प्रकार है:-
देवता- भैरव जी
गोत्र- कश्यप
जाति- क्षत्रिय
रंग- श्याम नीला
वाहन- भैंसा,
गीद्ध
दिशा- वायव्य
वस्तु- लोहा,
फौलाद
पोशाक- जुराब,
जूता
पशु- भैंस या भैंसा
वृक्ष- कीकर,
आक, खजूर का वृक्ष
राशि- बु.शु.रा.। सू,
चं.मं.। बृह.
भ्रमण- अढ़ाई वर्ष
नक्षत्र- अनुराधा,
पुष्य, उत्तरा, भाद्रपद
शरीर के अंग- दृष्टि,
बाल, भवें, कनपटी
व्यापार- लुहार,
तरखान, मोची
विशेषता- मूर्ख,
अक्खड़, कारीगर
गुण- देखना,
भालना, चालाकी, मौत,
बीमारी
शक्ति- जादू मंत्र देखने-दिखाने की
शक्ति,
मंगल के साथ हो तो सर्वाधिक बलशाली।
राशि- मकर और कुंभ का स्वामी। तुला
में उच्च का और मेष में नीच का माना गया है। ग्यारहवां भाव पक्का घर।
अन्य नाम- यमाग्रज,
छायात्मज, नीलकाय, क्रुर
कुशांग, कपिलाक्ष, अकैसुबन, असितसौरी और पंगु इत्यादि।
शनि ग्रह की पीडा से निवारण के लिये शनि मंत्र -
विनियोग:-शन्नो देवीति मंत्रस्य
सिन्धुद्वीप ऋषि: गायत्री छंद:, आपो देवता,
शनि प्रीत्यर्थे जपे विनियोग:।
अथ देहान्गन्यास:-शन्नो शिरसि (सिर),
देवी: ललाटे (माथा).अभिषटय मुखे (मुख), आपो
कण्ठे (कण्ठ), भवन्तु हृदये (हृदय), पीतये
नाभौ (नाभि), शं कट्याम (कमर), यो:
ऊर्वो: (छाती), अभि जान्वो: (घुटने), स्त्रवन्तु
गुल्फ़यो: (गुल्फ़), न: पादयो: (पैर)।
अथ करन्यास:-शन्नो देवी:
अंगुष्ठाभ्याम नम:।अभिष्टये तर्ज्जनीभ्याम नम:। आपो भवन्तु मध्यमाभ्याम नम:.पीतये
अनामिकाभ्याम नम:। शंय्योरभि कनिष्ठिकाभ्याम नम:। स्त्रवन्तु न: करतलकरपृष्ठाभ्याम
नम:।
अथ ह्रदयादिन्यास:-शन्नो देवी
ह्रदयाय नम:।अभिष्टये शिरसे स्वाहा.आपो भवन्तु शिखायै वषट।पीतये कवचाय हुँ(दोनो
कन्धे)।शंय्योरभि नेत्रत्राय वौषट। स्त्रवन्तु न: अस्त्राय फ़ट।
ध्यानम:-
नीलाम्बर: शूलधर: किरीटी
गृद्ध्स्थितस्त्रासकरो धनुश्मान।
चतुर्भुज: सूर्यसुत: प्रशान्त:
सदाअस्तु मह्यं वरदोअल्पगामी॥
शनि गायत्री:- ॐ कृष्णांगाय
विद्य्महे रविपुत्राय धीमहि तन्न: सौरि: प्रचोदयात।
वेद मंत्र:-
ॐ प्राँ प्रीँ प्रौँ स: भूर्भुव:
स्व: औम शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये शंय्योरभिस्त्रवन्तु न:।
ॐ स्व: भुव: भू: प्रौं प्रीं प्रां
औम शनिश्चराय नम:।
जप मंत्र :- ॐ प्रां प्रीं प्रौं स:
शनिश्चराय नम:। नित्य २३००० जाप प्रतिदिन।
ध्यान:-
नीलाञ्जन समाभासम् रविपुत्रम्
यमाग्रजम्।
छायार्मातण्ड सम्भूतम् तं नमामि
शनैश्चरम्॥
शनि बीज मन्त्र –
ॐ प्राँ प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय
नमः ॥
मन्त्र- ।।ॐ शं शनैश्चराय नमः।।
शनि ग्रह की शांति पूजन के अंत में शनिमङ्गलस्तोत्रम्
का पाठ करें ।
शनिमङ्गलस्तोत्रम्
मन्दः कृष्णनिभस्तु पश्चिममुखः
सौराष्ट्रकः काश्यपः ।
स्वामी नक्रभकुम्भयोर्बुधसितौ
मित्रे समश्चाऽङ्गिराः ॥ १॥
स्थानं पश्चिमदिक् प्रजापति यमौ
देवौ धनुष्यासनः ।
षट्त्रिस्थः शुभकृच्छनी रविसुतः
कुर्यात्सदा मङ्गलम् ॥ २॥
प्रार्थना
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्
।
पूजां नैव हि जानामि क्षमस्व
परमेश्वर ॥
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं
सुरेश्वर ।
यत्पूजितं मया देव परिपूर्णं तदस्तु
मे ॥
कोणनीलाञ्जनप्रख्यं
मन्दचेष्टाप्रसारिणम् ।
छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि
शनैश्चरम् ॥
ॐ अनया पूजया शनैश्चरः प्रीयताम् ।
ॐ मन्दाय नमः ॐ घटनाथाय नमः ॐ
शनैश्चराय नमः ।
ॐ शान्तिः ॐ शान्तिः ॐ शान्तिः ॐ ॥
इति श्रीशनिमङ्गलस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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