गणेश चालीसा । Ganesh chalisa

गणेश चालीसा । Ganesh chalisa

चालीसा का तात्पर्य होता है कि किसी भी देवी-देवताओं के प्रसन्नार्थ चालीस दिन तक नियम पूर्वक स्तुति करना। गणेशचतुर्थी के समय हो या अन्य अवसर गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए पढ़े-श्री गणेश चालीसा।

गणेश चालीसा । Ganesh chalisa

गणेश चालीसा

Ganesh chalisa

श्रीगणेशचालीसा

गणेश चालीसा

गणेशचालीसा

अथ श्री गणेश चालीसा

दोहा...जय गणपति सदगुणसदन, कविवर बदन कृपाल ।

विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल ॥

चालीसा ..जय जय जय गणपति गणराजू ।

मंगल भरण करण शुभ काजू ॥

जय गजबदन सदन सुखदाता ।

विश्व विनायक बुद्घि विधाता ॥

वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन ।

तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन ॥

राजत मणि मुक्तन उर माला ।

स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला ॥

पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं ।

मोदक भोग सुगन्धित फूलं ॥

सुन्दर पीताम्बर तन साजित ।

चरण पादुका मुनि मन राजित ॥

धनि शिवसुवन षडानन भ्राता ।

गौरी ललन विश्व-विख्याता ॥

ऋद्घि-सिद्घि तव चंवर सुधारे ।

मूषक वाहन सोहत द्घारे ॥

कहौ जन्म शुभ-कथा तुम्हारी ।

अति शुचि पावन मंगलकारी ॥

एक समय गिरिराज कुमारी ।

पुत्र हेतु तप कीन्हो भारी ॥

भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा ।

तब पहुंच्यो तुम धरि द्घिज रुपा ॥

अतिथि जानि कै गौरि सुखारी ।

बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ॥

अति प्रसन्न है तुम वर दीन्हा ।

मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ॥

मिलहि पुत्र तुहि, बुद्घि विशाला ।

बिना गर्भ धारण, यहि काला ॥

गणनायक, गुण ज्ञान निधाना ।

पूजित प्रथम, रुप भगवाना ॥

अस कहि अन्तर्धान रुप है ।

पलना पर बालक स्वरुप है ॥

बनि शिशु, रुदन जबहिं तुम ठाना ।

लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना ॥

सकल मगन, सुखमंगल गावहिं ।

नभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं ॥

शम्भु, उमा, बहु दान लुटावहिं ।

सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं ॥

लखि अति आनन्द मंगल साजा ।

देखन भी आये शनि राजा ॥

निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं ।

बालक, देखन चाहत नाहीं ॥

गिरिजा कछु मन भेद बढ़ायो ।

उत्सव मोर, न शनि तुहि भायो ॥

कहन लगे शनि, मन सकुचाई ।

का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई ॥

नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ ।

शनि सों बालक देखन कहाऊ ॥

पडतहिं, शनि दृग कोण प्रकाशा ।

बोलक सिर उड़ि गयो अकाशा ॥

गिरिजा गिरीं विकल है धरणी ।

सो दुख दशा गयो नहीं वरणी ॥

हाहाकार मच्यो कैलाशा ।

शनि कीन्हो लखि सुत को नाशा ॥

तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो ।

काटि चक्र सो गज शिर लाये ॥

बालक के धड़ ऊपर धारयो ।

प्राण, मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ॥

नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे ।

प्रथम पूज्य बुद्घि निधि, वन दीन्हे ॥

बुद्घि परीक्षा जब शिव कीन्हा ।

पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ॥

चले षडानन, भरमि भुलाई ।

रचे बैठ तुम बुद्घि उपाई ॥

धनि गणेश कहि शिव हिय हरषे ।

नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे ॥

चरण मातु-पितु के धर लीन्हें ।

तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें ॥

तुम्हरी महिमा बुद्घि बड़ाई ।

शेष सहसमुख सके न गाई ॥

मैं मतिहीन मलीन दुखारी ।

करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी ॥

अब प्रभु दया दीन पर कीजै ।

अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै ॥

श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करै कर ध्यान ।

नित नव मंगल गृह बसै, लहे जगत सन्मान ॥

चौपाई - सम्वत अपन सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश ।

पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ति गणेश ॥

इति:श्री गणेश चालीसा ॥

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