श्री लक्ष्मी नृसिंह द्वादशनाम स्तोत्रम्
क्रोध का
मूर्तिमान स्वरूप अर्थात भगवान श्री नरसिंह और शांति या सौम्यता का मूर्तिमान
स्वरूप अर्थात माँ लक्ष्मी। क्रोध व शांति परस्पर विपरीत शब्द है अर्थात की जहाँ
शांति होगी वहाँ क्रोध के लिए कोई स्थान नहीं है और जहाँ क्रोध होगा वहाँ शांति के
लिए कोई स्थान नहीं है। क्रोध और शांति दोनों अलग-अलग ध्रुव है एक उत्तर तो दूसरा
दक्षिण। क्रोध अर्थात तामस,यह तन्त्रोक्त विधा है और शांति या सौम्यता वैदिक विधा है और
यही इस विधा का पूजन या मंत्र क्रम भी है। परंतु श्री लक्ष्मी नृसिंह द्वादशनाम
स्तोत्रम् दोनों का सम्मिश्रण से बना है अतः यह स्तोत्र तन्त्रोक्त भी है तो
वैदोक्त भी। इस स्तोत्र के महिमा का गान करना सूर्य को दीपक दिखाने के बराबर है,इसे शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता बस प्रत्यक्ष अनुभव किया जा सकता
है। अतः इस स्तोत्र का अवश्य ही अनुष्ठान करें और देखें श्री लक्ष्मी नृसिंह द्वादशनाम स्तोत्रम् के
चमत्कार को।
श्री लक्ष्मी
नृसिंह द्वादशनाम स्तोत्रम् के लाभ- श्री लक्ष्मी नृसिंह द्वादशनाम स्तोत्रम् बहुत
शक्तिशाली स्तोत्र है। इसके रचयिता श्री वेद व्यास जी है। श्री लक्ष्मी नृसिंह स्तोत्रम्
में श्री लक्ष्मी नृसिंह के बारह नामों की महिमा बताया गया है। श्री लक्ष्मी
नृसिंह द्वादशनाम स्तोत्रम् का सौ बार उच्चारण करने से आपको बीमारियों और कारावास
से बाहर निकलने में मदद मिलेगी और इसे एक हजार बार दोहराने से आपको वह प्राप्त
करने में मदद मिलेगी जो आप चाहते हैं अर्थात मनोकामना पूर्ण होती है।
श्री लक्ष्मी नृसिंह द्वादशनाम स्तोत्रम् के अनुष्ठान की विधि-सर्वप्रथम गौरी-गणेश, नवग्रह सहित भगवान नरसिंह और माता लक्ष्मी का पूजन कर हाथ या आचमनी में जल लेकर नीचे लिखित विनियोग को पढ़ कर जल पृथ्वी पर छोड़ दें,तत्पश्चात शरीर के विभिन्न अंगों में इस भावना से की मेरे रोम-प्रतिरोम में भगवान नरसिंह और माता लक्ष्मी की शक्ति समाहित हो रही है न्यास करें। अब भगवान नरसिंह और माता लक्ष्मी का ध्यान कर श्री लक्ष्मी नृसिंह द्वादशनाम स्तोत्रम् का पाठ करें। यदि एक दिन में एक से अधिक बार स्तोत्र का पाठ करना हो तो विनियोग,न्यास व ध्यान को शुरू बार ही पाठ करें और शेष बार में केवल स्तोत्र ही पाठ करें। श्री लक्ष्मी नृसिंह द्वादशनाम स्तोत्रम् का पाठ बाधाओं के शांति के लिए नित्य पूजन आदि के समय भी किया जा सकता है जिससे की आपकी मनोकामना सिद्ध होगी।
अथ श्री लक्ष्मी नृसिंह द्वादशनाम स्तोत्रम्
विनियोग
अस्य श्री
लक्ष्मी नृसिंह द्वादशनाम स्तोत्र महामन्त्रस्य वेदव्यासो भगवान् ऋषिःअनुष्टुप्
छन्दः , श्री लक्ष्मीनृसिंहो देवता,
क्ष्रौं बीजम
श्री शक्ति: श्री लक्ष्मीनृसिंहप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।
न्यास
करन्यास
ॐ क्ष्रां अङ्गुष्ठाभ्यां नम: । ॐ क्ष्रीं तर्जनीभ्यां नम: । ॐ क्ष्रूं मध्यमाभ्यां नम: ।
ॐ
क्ष्रैं अनामिकाभ्यां नम: । ॐ
क्ष्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नम: ।
ॐ क्ष्रः करतल-करपृष्ठाभ्यां नम: ।
हृदयादिन्यास
ॐ क्ष्रां हृदयाय नम: । ॐ क्ष्रीं शिरसे स्वाहा । ॐ क्ष्रूं शिखायै वषट् ।
ॐ क्ष्रैं कवचाय हुम् ।
ॐ क्ष्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्
। ॐ
क्ष्रः अस्त्राय फट् ।
ध्यानं
लक्ष्मीशोभितवामभागममलं सिंहासने सुन्दरं
सव्ये चक्रधरं च निर्भयकरं वामेन चापं वरं ।
सर्वाधीशकृतान्तपत्रममलं श्रीवत्सवक्षःस्थलं
वन्दे देवमुनीन्द्र वंदितपदं लक्ष्मीनृसिंहं विभुम् ॥
स्तोत्रम्
प्रथमं तु
महाज्वालो द्वितीयं उग्र केसरी।
तृतीयं
वज्रदंष्ट्रश्च चतुर्थं तु विशारदः ॥१॥
पञ्चमं
नारसिंहश्च षष्ठः कश्यपमर्दनः।
सप्तमो रिपुहन्ता
च अष्टमो देववल्लभः॥२॥
ततः
प्रह्लादवरदो दशमोऽनंतहंतकः।
एकादशो
महारुद्रः द्वादशो करुणानिधि:॥३॥
द्वादशैतानि
नृसिंहस्य महात्मनः।
मन्त्रराज इति
प्रोक्तं सर्वपापविनाशनम् ॥४॥
क्षयापस्मारकुष्ठादि
तापज्वर निवारणम्।
राजद्वारे
महाघोरे संग्रामे च जलांतरे ॥५॥
गिरिगह्वरकारण्ये
व्याघ्रचोरामयादिषु।
रणे च मरणे
चैव शमदं परमं शुभम्॥६॥
शतमावर्तयेद्यस्तु
मुच्यते व्याधिबन्धनात्।
आवर्तयन्
सहस्रं तु लभते वाञ्छितं फलम् ॥७॥
इति: श्री लक्ष्मी नृसिंह द्वादशनाम स्तोत्रम् सम्पूर्ण।
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