अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम्

अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम्

हमारे शास्त्रों में ऐसे अनेक अनुष्ठानों एवं स्तोत्रों का उल्लेख है जिनसे दरिद्रता से मुक्ति मिलती है। यहां लक्ष्मी प्राप्ति हेतु दुर्लभ 'अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम्दिया जा रहा है। इसके नित्य श्रद्धापूर्वक पाठ करने से मनुष्य को स्थिरलक्ष्मी की प्राप्ति होती है।


अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम्

अथ श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम्

१. आद्य लक्ष्मी

सुमनस वन्दित सुन्दरि माधविचन्द्र सहोदरि हेममये,

मुनिगण वन्दित मोक्षप्रदायिनिमंजुल भाषिणी वेदनुते।

पंकजवासिनी देव सुपूजितसद्गुण वर्षिणी शान्तियुते,

जय जय हे मधुसूदन कामिनीआद्य लक्ष्मी परिपालय माम्।।१।।

 

धान्यलक्ष्मी

अयिकलि कल्मष नाशिनि कामिनीवैदिक रूपिणि वेदमये,

क्षीर समुद्भव मंगल रूपणिमन्त्र निवासिनी मन्त्रयुते।

मंगलदायिनि अम्बुजवासिनिदेवगणाश्रित पादयुते,

जय जय हे मधुसूदन कामिनीधान्यलक्ष्मी परिपालय माम्।।२।।

 

धैर्यलक्ष्मी

जयवरवर्षिणी वैष्णवी भार्गविमन्त्रस्वरूपिणि मन्त्रमये,

सुरगण पूजित शीघ्र फलप्रदज्ञान विकासिनी शास्त्रनुते।

भवभयहारिणी पापविमोचिनीसाधु जनाश्रित पादयुते,

जय जय हे मधुसूदन कामिनीधैर्यलक्ष्मी परिपालय माम्।।३।।

 

गजलक्ष्मी

जय जय दुर्गति नाशिनि कामिनिसर्वफलप्रद शास्त्रमये,

रथगज तुरगपदाति समावृतपरिजन मण्डित लोकनुते।

हरिहर ब्रह्म सुपूजित सेवितताप निवारिणी पादयुते,

जय जय हे मधुसूदन कामिनीगजरूपेणलक्ष्मी परिपालय माम्।।४।।

 

संतानलक्ष्मी

अयि खगवाहिनि मोहिनी चक्रिणिराग विवर्धिनि ज्ञानमये,

गुणगणवारिधि लोकहितैषिणिसप्तस्वर भूषित गाननुते।

सकल सुरासुर देवमुनीश्वरमानव वन्दित पादयुते,

जय जय हे मधुसूदन कामिनीसन्तानलक्ष्मी परिपालय माम्।।५।।

 

विजयलक्ष्मी

जय कमलासिनि सद्गति दायिनिज्ञान विकासिनी ज्ञानमये,

अनुदिनमर्चित कुन्कुम धूसरभूषित वसित वाद्यनुते।

कनकधरास्तुति वैभव वन्दितशंकरदेशिक मान्यपदे,

जय जय हे मधुसूदन कामिनीविजयलक्ष्मी परिपालय माम्।।६।।

 

विद्यालक्ष्मी

प्रणत सुरेश्वर भारति भार्गविशोकविनाशिनि रत्नमये,

मणिमय भूषित कर्णविभूषणशान्ति समावृत हास्यमुखे।

नवनिधि दायिनि कलिमलहारिणिकामित फलप्रद हस्तयुते,

जय जय हे मधुसूदन कामिनीविद्यालक्ष्मी सदा पालय माम्।।७।।

 

धनलक्ष्मी

धिमिधिमि धिन्दिमि धिन्दिमिदिन्धिमि दुन्धुभि नाद सुपूर्णमये,

घुमघुम घुंघुम घुंघुंम घुंघुंमशंख निनाद सुवाद्यनुते।

वेद पुराणेतिहास सुपूजितवैदिक मार्ग प्रदर्शयुते,

जय जय हे मधुसूदन कामिनीधनलक्ष्मी रूपेणा पालय माम्।।८।।

 

अष्टलक्ष्मी नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि।

विष्णु वक्ष:स्थलारूढ़े भक्त मोक्ष प्रदायिनी।।

शंख चक्रगदाहस्ते विश्वरूपिणिते जय:।

जगन्मात्रे च मोहिन्यै मंगलम् शुभ मंगलम्।।

।।इति श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम् सम्पूर्णम्।।

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