अष्टलक्ष्मी स्तोत्रं
माता लक्ष्मी को धन,
वैभव, समृद्धि और सौभाग्य की अधिष्ठात्री देवी
माना गया है। लेकिन लक्ष्मी जी केवल भौतिक धन ही नहीं, बल्कि
जीवन के हर पहलू में सौभाग्य और संतुलन प्रदान करती हैं। इन्हीं दिव्य गुणों को
दर्शाने के लिए माता लक्ष्मी के आठ स्वरूपों की स्तुति की जाती है, जिन्हें अष्ट लक्ष्मी स्तोत्रं कहा जाता है।
अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम्
हमारे शास्त्रों में ऐसे अनेक अनुष्ठानों एवं स्तोत्रों का उल्लेख है जिनसे दरिद्रता से मुक्ति मिलती है। “अष्ट लक्ष्मी स्तोत्रम्” एक पावन स्तोत्र है जिसमें इन आठ स्वरूपों— १.आद्य लक्ष्मी (आदि लक्ष्मी), २. धन लक्ष्मी, ३. धान्य लक्ष्मी, ४. गज लक्ष्मी, ५. संतान लक्ष्मी, ६. विजय लक्ष्मी, ७. विद्या लक्ष्मी और ८. धैर्य लक्ष्मी, की स्तुति की जाती है। इसे पढ़ने से न केवल भौतिक सुख-समृद्धि प्राप्त होती है, बल्कि मानसिक और आत्मिक शांति भी मिलती है। लक्ष्मी प्राप्ति हेतु इस दुर्लभ स्तोत्र का नित्य श्रद्धापूर्वक पाठ करने से मनुष्य को स्थिरलक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम्
Ashta Laxmi stotram
अष्ट लक्ष्मी स्तोत्र
।।अथ श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम्।।
आद्य लक्ष्मी (आध्यात्मिक
समृद्धि)
सुमनस वन्दित सुन्दरि माधवि,
चन्द्र सहोदरि हेममये,
मुनिगण वन्दित मोक्षप्रदायिनि,
मंजुल भाषिणी वेदनुते।
पंकजवासिनी देव सुपूजित,
सद्गुण वर्षिणी शान्तियुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
आद्य लक्ष्मी परिपालय माम् ।। १ ।।
देवी तुम सभी भले मनुष्यों (सु-मनस)
के द्वारा वन्दित, सुंदरी, माधवी (माधव की पत्नी), चन्द्र की बहन, स्वर्ण (सोना) की मूर्त रूप, मुनिगणों द्वारा पूजित,
मोक्ष देने वाली, मृदु और मधुर शब्द कहने वाली,
वेदों के द्वारा प्रशंसित हो। कमल के पुष्प में निवास करने वाली और
सभी देवों के द्वारा पूजित, अपने भक्तों पर सद्गुणों की
वर्षा करने वाली, शान्ति से परिपूर्ण और मधुसूदन की प्रिय हे
देवी आदि लक्ष्मी! तुम्हारी जय हो, जय हो, तुम मेरा पालन करो।
धनलक्ष्मी (वित्तीय सुख)
धिमिधिमि धिन्दिमि धिन्दिमि,
दिन्धिमि दुन्धुभि नाद सुपूर्णमये,
घुमघुम घुंघुम घुंघुंम घुंघुंम,
शंख निनाद सुवाद्यनुते।
वेद पुराणेतिहास सुपूजित,
वैदिक मार्ग प्रदर्शयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
धनलक्ष्मी रूपेणा पालय माम् ।। २ ।।
दुन्दुभी (ढोल) के धिमि-धिमि स्वर
से तुम परिपूर्ण हो, घुम-घुम-घुंघुम की
ध्वनि करते हुए शंखनाद से तुम्हारी पूजा होती है, वेद,
पुराण और इतिहास के द्वारा पूजित देवी तुम भक्तों को वैदिक मार्ग
दिखाती हो, मधुसूदन की प्रिय हे देवी विद्या लक्ष्मी!
तुम्हारी जय हो, जय हो, तुम मेरा पालन
करो।
विद्यालक्ष्मी (ज्ञान और शिक्षा)
प्रणत सुरेश्वर भारति भार्गवि,
शोकविनाशिनि रत्नमये,
मणिमय भूषित कर्णविभूषण,
शान्ति समावृत हास्यमुखे।
नवनिधि दायिनि कलिमलहारिणि,
कामित फलप्रद हस्तयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
विद्यालक्ष्मी सदा पालय माम् ।। ३ ।।
[भक्तों!] सुरेश्वरि को,
भारति, भार्गवी, शोक का
विनाश करने वाली, रत्नों से शोभित देवी को प्रणाम करो,
विद्यालक्ष्मी के कर्ण (कान) मणियों से विभूषित हैं, उनके चेहरे का भाव शांत और मुख पर मुस्कान है। देवी तुम नव निधि प्रदान
करती हो, कलि युग के दोष हरती हो, अपने
वरद हस्त से मनचाहा वर देती हो, मधुसूदन की प्रिय हे देवी
विद्या लक्ष्मी! तुम्हारी जय हो, जय हो, तुम मेरा पालन करो।
धान्यलक्ष्मी (अन्न और
अन्नपूर्णता)
अयिकलि कल्मष नाशिनि कामिनी,
वैदिक रूपिणि वेदमये,
क्षीर समुद्भव मंगल रूपणि,
मन्त्र निवासिनी मन्त्रयुते।
मंगलदायिनि अम्बुजवासिनि,
देवगणाश्रित पादयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
धान्यलक्ष्मी परिपालय माम् ।। ४ ।।
हे धान्यलक्ष्मी,
तुम प्रभु की प्रिय हो, कलि युग के दोषों का
नाश करती हो, तुम वेदों का साक्षात् रूप हो, तुम क्षीरसमुद्र से जन्मी हो, तुम्हारा रूप मंगल
करने वाला है, मंत्रो में तुम्हारा निवास है और तुम मन्त्रों
से ही पूजित हो। तुम सभी को मंगल प्रदान करती हो, तुम अम्बुज
(कमल) में निवास करती हो, सभी देवगण तुहारे चरणों में आश्रय
पाते हैं, मधुसूदन की प्रिय हे देवी धान्य लक्ष्मी! तुम्हारी
जय हो, जय हो, तुम मेरा पालन करो।
धैर्यलक्ष्मी (सहनशीलता व
आत्मबल)
जयवरवर्षिणी वैष्णवी भार्गवि,
मन्त्रस्वरूपिणि मन्त्रमये,
सुरगण पूजित शीघ्र फलप्रद,
ज्ञान विकासिनी शास्त्रनुते।
भवभयहारिणी पापविमोचिनी,
साधु जनाश्रित पादयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
धैर्यलक्ष्मी परिपालय माम् ।। ५ ।।
हे वैष्णवी,
तुम विजय का वरदान देती हो, तुमने भार्गव ऋषि
की कन्या के रूप में अवतार लिया, तुम मंत्रस्वरुपिणी हो
मन्त्रों बसती हो, देवताओं के द्वारा पूजित हे देवी तुम
शीघ्र ही पूजा का फल देती हो, तुम ज्ञान में वृद्धि करती हो,
शास्त्र तुम्हारा गुणगान करते हैं। तुम सांसारिक भय को हरने वाली,
पापों से मुक्ति देने वाली हो, साधू जन
तुम्हारे चरणों में आश्रय पाते हैं, मधुसूदन की प्रिय हे
देवी धैर्य लक्ष्मी! तुम्हारी जय हो, जय हो, तुम मेरा पालन करो।
संतानलक्ष्मी (संतान सुख)
अयि खगवाहिनि मोहिनी चक्रिणि,
राग विवर्धिनि ज्ञानमये,
गुणगणवारिधि लोकहितैषिणि,
सप्तस्वर भूषित गाननुते।
सकल सुरासुर देवमुनीश्वर,
मानव वन्दित पादयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
सन्तानलक्ष्मी परिपालय माम् ।। ६ ।।
गरुड़ तुम्हारा वाहन है,
मोह में डालने वाली, चक्र धारण करने वाली,
राग (संगीत) से तुम्हारी पूजा होती है, तुम
ज्ञानमयी हो, तुम सभी शुभ गुणों का समावेश हो, तुम समस्त लोक का हित करती हो, सप्त स्वरों के गान
से तुम प्रशंसित हो। सभी सुर (देवता), असुर, मुनि और मनुष्य तुम्हारे चरणों की वंदना करते हैं, मधुसूदन
की प्रिय हे देवी संतान लक्ष्मी! तुम्हारी जय हो, जय हो,
तुम मेरा पालन करो।
विजयलक्ष्मी (जीवन में
सफलता)
जय कमलासिनि सद्गति दायिनि,
ज्ञान विकासिनी ज्ञानमये,
अनुदिनमर्चित कुन्कुम धूसर,
भूषित वसित वाद्यनुते।
कनकधरास्तुति वैभव वन्दित,
शंकरदेशिक मान्यपदे,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
विजयलक्ष्मी परिपालय माम् ।। ७ ।।
कमल के आसन पर विराजित देवी
तुम्हारी जय हो, तुम भक्तों के ब्रह्मज्ञान को
बढाकर उन्हें सद्गति प्रदान करती हो, तुम मंगलगान के रूप में
व्याप्त हो, प्रतिदिन तुम्हारी अर्चना होने से तुम कुंकुम से
ढकी हुई हो, मधुर वाद्यों से तुम्हारी पूजा होती है। तुम्हारे
चरणों के वैभव की प्रशंसा आचार्य शंकर और देशिक ने कनकधारा स्तोत्र में की है,
मधुसूदन की प्रिय हे देवी विजय लक्ष्मी! तुम्हारी जय हो, जय हो, तुम मेरा पालन करो।
गजलक्ष्मी / राज लक्ष्मी (राजसिक
ऐश्वर्य)
जय जय दुर्गति नाशिनि कामिनि,
सर्वफलप्रद शास्त्रमये,
रथगज तुरगपदाति समावृत,
परिजन मण्डित लोकनुते।
हरिहर ब्रह्म सुपूजित सेवित,
ताप निवारिणी पादयुते,
जय जय हे मधुसूदन कामिनी,
गजरूपेणलक्ष्मी परिपालय माम् ।। ८ ।।
हे दुर्गति का नाश करने वाली विष्णु
प्रिया,
सभी प्रकार के फल (वर) देने वाली, शास्त्रों
में निवास करने वाली देवी तुम जय-जयकार हो, तुम रथों,
हाथी-घोड़ों और सेनाओं से घिरी हुई हो, सभी
लोकों में तुम पूजित हो। तुम हरि, हर (शिव) और ब्रह्मा के
द्वारा पूजित हो, तुम्हारे चरणों में आकर सभी कष्ट समाप्त हो
जाते हैं, मधुसूदन की प्रिय हे देवी गज लक्ष्मी! तुम्हारी जय
हो, जय हो, तुम मेरा पालन करो।
अष्टलक्ष्मी स्तोत्र महात्म्य
अष्टलक्ष्मी नमस्तुभ्यं वरदे
कामरूपिणि ।
विष्णु वक्ष:स्थलारूढ़े भक्त मोक्ष
प्रदायिनी ।।
शंख चक्रगदाहस्ते विश्वरूपिणिते
जय:।
जगन्मात्रे च मोहिन्यै मंगलम् शुभ मंगलम् ।।
जो वर देने वाली, इच्छानुसार रूप
धारण करने वाली, भगवान विष्णु के वक्षस्थल पर विराजमान, भक्तों को मोक्ष प्रदान
करने वाली, जगत की माता, मोह को हरने वाली, और
शुभ मंगलप्रदा हैं। जिनके हाथों में शंख,
चक्र और गदा है और जो विश्वरूप हैं, हे अष्टलक्ष्मी!
आपकी जय हो,आपको मेरा नमस्कार है।
।।इति श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम् सम्पूर्णम्।।

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