श्रीकृष्णस्तोत्रम् बालकृत
जो प्रातःकाल उठकर इस परम पुण्यमय श्रीकृष्णस्तोत्रं
बालकृतम् अथवा दावानल संहरण स्तोत्रम् का पाठ करता है,
उसे जन्म-जन्म में कभी अग्नि से भय नहीं होता। शत्रुओं से घिर जाने
पर, दावानल में आ जाने पर, भारी
विपत्ति में पड़ने पर तथा प्राण संकट के समय इस स्तोत्र का पाठ करके मनुष्य सब
दुःखों से छुटकारा पा जाता है। इसमें संशय नहीं है। शत्रुओं की सेना क्षीण हो जाती
है और वह मनुष्य युद्ध में सर्वत्र विजयी होता है। वह इहलोक में श्रीहरि की भक्ति
और अन्त में उनके दास्य-सुख को अवश्य पा लेता है।
श्रीकृष्णस्तोत्रं बालकृतम् अथवा दावानल संहरण स्तोत्रम्
बाला ऊचुः -
यथा संरक्षितं ब्रह्मन्
सर्वापत्स्वेव नः कुलम् ।
तथा रक्षां कुरु
पुनर्दावाग्नेर्मधुसूदन ॥ १॥
त्वमिष्टदेवताऽस्माकं त्वमेव
कुलदेवता ।
स्रष्टा पाता च संहर्ता जगतां च
जगत्पते ॥ २॥
वह्निर्वा वरूणो वाऽपि चन्द्रो वा
सूर्य एव च ।
यमः कुबेरः पवन ईशानाद्याश्च देवताः
॥ ३॥
ब्रह्मेश-शेष-धर्मेन्द्रा
मुनीन्द्रा मनवः स्मृताः ।
मानवाश्च तथा दैत्या
यक्ष-राक्षस-किन्नराः ॥ ४॥
ये ये चराऽचराश्चैव सर्वे तव
विभूतयः ।
आविर्भावस्तिरोभावः सर्वेषां च
तवेच्छया ॥ ५॥
अभयं देहि गोविंद वह्निसंहरणं कुरु
।
वयं त्वां शरणं यामो रक्ष नः
शरणागतान् ॥ ६॥
इत्येवमुक्त्वा ते सर्वे
तस्थुर्ध्यात्वा पदाम्बुजम् ।
दूरीभूतस्तु दावाग्निः
श्रीकृष्णामृतदृष्टितः ॥ ७॥
दूरीभूते च दावाग्नौ ननृतुस्ते
मुदान्विताः ।
सर्वापदः प्रणश्यन्ति हरिस्मरणमात्रतः
॥ ८॥
इदं स्तोत्रं महापुण्यं
प्रातरूत्थाय यः पठेत् ।
वह्नितो न भवेत्तस्य भयं जन्मनि
जन्मनि ॥ ९॥
शत्रुग्रस्ते च दावाग्नौ विपत्तौ
प्राणसंकटे ।
स्तोत्रमेतत् पठित्वा तु मुच्यते
नाऽत्र संशयः ॥ १०॥
शत्रुसैन्यं क्षयं याति सर्वत्र
विजयी भवेत् ।
इह लोके हरेर्भक्तिमन्ते दास्यं
लभेध्रुवम् ॥ ११॥
॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्ते
श्रीकृष्णजन्मखण्डे बालकृतं
कृष्णस्तोत्रं अथवा दावानल संहरण
स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
श्रीकृष्णस्तोत्रं बालकृतम् अथवा दावानल संहरण स्तोत्रम् भावार्थ सहित
बाला ऊचुः ।।
यथा संरक्षितं ब्रह्मन्
सर्वापत्स्वेव नः कुलम् ।
तथा रक्षां कुरु
पुनर्दावाग्नेर्मधुसूदन ॥ १॥
ग्वालबाल बोले–
ब्रह्मन! मधुसूदन! आपने सब आपत्तियों में जैसे हमारे कुल की रक्षा
की है, उसी प्रकार फिर इस दावानल से हमें बचाइये।
त्वमिष्टदेवताऽस्माकं त्वमेव
कुलदेवता ।
स्रष्टा पाता च संहर्ता जगतां च
जगत्पते ॥ २॥
जगत्पते! आप ही हमारे इष्टदेवता हैं
और आप ही कुलदेवता। संसार की सृष्टि, पालन
और संहार करने वाले भी आप ही हैं।
वह्निर्वा वरूणो वाऽपि चन्द्रो वा
सूर्य एव च ।
यमः कुबेरः पवन ईशानाद्याश्च देवताः
॥ ३॥
ब्रह्मेश-शेष-धर्मेन्द्रा
मुनीन्द्रा मनवः स्मृताः ।
मानवाश्च तथा दैत्या
यक्ष-राक्षस-किन्नराः ॥ ४॥
ये ये चराऽचराश्चैव सर्वे तव
विभूतयः ।
आविर्भावस्तिरोभावः सर्वेषां च
तवेच्छया ॥ ५॥
अग्नि,
वरुण, चन्द्रमा, सूर्य,
यम, कुबेर, वायु,
ईशानादि देवता, ब्रह्मा, शिव, शेष, धर्म, इन्द्र, मुनीन्द्र, मनु,
मानव, दैत्य, यक्ष,
राक्षस, किन्नर तथा अन्य जो-जो चराचर प्राणी
हैं, वे सब-के-सब आपकी ही विभूतियाँ हैं। उन सबके आविर्भाव
और लय आपकी इच्छा से ही होते हैं।
अभयं देहि गोविंद वह्निसंहरणं कुरु
।
वयं त्वां शरणं यामो रक्ष नः
शरणागतान् ॥ ६॥
गोविन्द! हमें अभय दीजिये। और इस
अग्नि का संहार कीजिये। हम आपकी शरण में आये हैं। आप हम शरणागतों को बचाइये।
इत्येवमुक्त्वा ते सर्वे
तस्थुर्ध्यात्वा पदाम्बुजम् ।
दूरीभूतस्तु दावाग्निः
श्रीकृष्णामृतदृष्टितः ॥ ७॥
यों कहकर वे सब लोग श्रीकृष्ण के
चरणकमलों का चिन्तन करते हुए खड़े हो गये। श्रीकृष्ण की अमृतमयी दृष्टि पड़ते ही
दावानल दूर हो गया।
दूरीभूते च दावाग्नौ ननृतुस्ते
मुदान्विताः ।
सर्वापदः प्रणश्यन्ति
हरिस्मरणमात्रतः ॥ ८॥
फिर तो वे ग्वालबाल मोदमग्न होकर
नाचने लगे। क्यों न हो, श्रीहरि के
स्मरणमात्र से सब विपत्तियाँ नष्ट हो जाती हैं।
इदं स्तोत्रं महापुण्यं
प्रातरूत्थाय यः पठेत् ।
वह्नितो न भवेत्तस्य भयं जन्मनि
जन्मनि ॥ ९॥
जो प्रातःकाल उठकर इस परम पुण्यमय
स्तोत्र का पाठ करता है, उसे जन्म-जन्म में
कभी अग्नि से भय नहीं होता।
शत्रुग्रस्ते च दावाग्नौ विपत्तौ
प्राणसंकटे ।
स्तोत्रमेतत् पठित्वा तु मुच्यते
नाऽत्र संशयः ॥ १०॥
शत्रुओं से घिर जाने पर,
दावानल में आ जाने पर, भारी विपत्ति में पड़ने
पर तथा प्राण संकट के समय इस स्तोत्र का पाठ करके मनुष्य सब दुःखों से छुटकारा पा जाता
है। इसमें संशय नहीं है।
शत्रुसैन्यं क्षयं याति सर्वत्र
विजयी भवेत् ।
इह लोके हरेर्भक्तिमन्ते दास्यं
लभेध्रुवम् ॥ ११॥
शत्रुओं की सेना क्षीण हो जाती है
और वह मनुष्य युद्ध में सर्वत्र विजयी होता है। वह इहलोक में श्रीहरि की भक्ति और
अन्त में उनके दास्य-सुख को अवश्य पा लेता है।
इस प्रकार श्रीब्रह्मवैवर्त के श्रीकृष्णजन्मखण्ड से ग्वाल-बालकृत कृष्णस्तोत्र अथवा दावानल संहरण स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ ॥
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