षष्ठी पूजन - हलषष्ठी व्रत पूजन विधि Halashashthi pujan

षष्ठी पूजन - हलषष्ठी व्रत पूजन विधि

भगवती षष्ठी देवी शिशुओं की अधिष्ठात्री देवी हैं। मूल प्रकृति के छठे अंश से यह प्रकट हुई हैं तभी से इनका नाम षष्ठी देवी पड़ा है। भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को, भगवान श्री बलराम जी के जन्मोत्सव के अवसर पर माताऐं संतान प्राप्ति, संतान की दीर्घायु, संतान की स्वास्थ्य कामना से व्रत रखती है,इसी से यह देवी हलछठ माता तथा यह व्रत हलषष्ठी व्रत पूजन तथा अन्य अवसरों पर षष्ठी पूजन कहलाती है । 

षष्ठी माता की कथा और हलषष्ठी व्रत कथा के लिए सम्पूर्ण हलषष्ठी व्रत कथा पढ़े। 

ॐ ह्रीं षष्ठी देव्यै स्वाहा यह षष्ठी माता का अष्टाक्षर मंत्र है। 

षष्ठी पूजन की महिमा बताते हुए श्रीमद् देवी भागवत पुराण में लिखा है कि- 

काकबंध्या च या नारी मृतवत्सा च या भवेत्। वर्षश्रुत्वा लभेत्पुत्र षष्ठीदेवी प्रसादत:।। 

रोगयुक्ते च बाले च पिता माता श्रृणोति चेत्। सासेन मुच्यते बाल: षष्ठीदेवी प्रसादत:।। 

अर्थात् षष्ठी माता के पूजन से जो स्त्री काकबंध्या या मृतवत्सा या जिनको कोई संतान ही न हो,उन्हे भी स्वस्थ,निरोगी व दीर्घजीवी संतान की प्राप्ति होती है। 

माता षष्ठी अपने योगबल से शिशुओं के पास सदैव अप्रत्यक्ष रुप से विद्यमान रहती हैं। वह उनकी रक्षा करने के साथ उनका भरण-पोषण भी करती हैं। बच्चों को स्वप्न में कभी रुलाती हैं, कभी हंसाती हैं, कभी खिलाती हैं तो कभी दुलार करती हैं। अपना अभूतपूर्व वात्सल्य छोटे बच्चों को प्रदान करती है। बिल्ली इनकी सवारी है और बालक को गोद में ले रखा है ऐसा इनका स्वरूप है।

षष्ठी पूजन - हलषष्ठी व्रत पूजन विधि Halashashthi pujan

अथ षष्ठी पूजन - हलषष्ठी व्रत पूजन विधि 

यदि षष्ठी माता का पूजन अन्य अवसरों पर कर रहे हों तो सामान्य अक्षत या पीला चाँवल, गाय का दूध ,दही घी का प्रयोग करें। हलषष्ठी व्रत पूजन के अवसर पर कर रहे हों तो अक्षत के लिए पसहर चाँवल तथा  दूध ,दही घी भैंस का ही उपयोग में लाएँ और नैवेद्य में लाई, भुना या सूखा महुआ, सतनाजा (चना, जौ, गेहूं, धान, अरहर, मक्का तथा मूंग), होली की राख, होली पर भूने हुए चने के होरा तथा जौ की बालें चढ़ाएं।

पूजन प्रारम्भ-

सबसे पहले पवित्रीकरण , स्वस्त्ययन व संकल्प करें। संकल्प मंत्र में-

ॐ विष्णु................. .......अहं संतान प्राप्ति काम: या  मम संतान क्षेमस्थौर्य आयुरारोग्य ऐश्वरर्याभिवृद्ध्यर्थ काम: षष्ठी व्रत पूजन या  हलषष्ठी व्रत पूजन (पूजनं) करिष्ये  - इन मंत्रों के लिए डी पी कर्मकांड भाग- १ देखें। इसके बाद  गौरी- गणपति पूजन डी पी कर्मकांडभाग- २ अनुसार करें। फिर नवग्रह  पूजन डी पी कर्मकांड भाग- ५ अनुसार करें। अब सगरी (बनावटी तालाब) में वरुण देव का पूजन डी पी कर्मकांड भाग- ३ अनुसार करें। तत्पश्चात्  भगवान शिव ,माता पार्वती,गणेशजी व कार्तिकेय का पूजन करें । अब पुनः श्री कृष्ण और बलराम जी का पूजन करें । यहाँ केवल पूजन मंत्र दिया जा रहा है। इनका पंचोपचार या लब्धोपचार विधि से पूजन के लिए  डी पी कर्मकांड की सीरीज का अवलोकन करें।  

भगवान शिव पूजन मंत्र

ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारूचंद्रावतंसं रत्नाकल्पोज्ज्वलांग परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम् । 

पद्मासीनं समन्तात् स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानंविश्वाद्यं विश्वबीजं निखिलभय हरं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रम् । 

ॐ शिवाय नमः, पंचोपचार या लब्धोपचार पूजनम्  समर्पयामि ।

माता पार्वती- पूजन मंत्र

सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोस्तु ते ।। 

ॐ अम्बे अम्बिकेऽम्बालिके न मा नयति कश्चन । ससस्त्यश्वकः सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीम् ॥ 

ॐ पार्वती देव्यै नमः, पंचोपचार या लब्धोपचार पूजनम्  समर्पयामि ।

गणेशजी का पूजन मंत्र

खर्वं स्थूलतनुं गजेन्द्रवदनं लम्बोदरं सुन्दरं प्रस्यन्दन्मदगन्धलुब्धमधुपव्यालोलगण्डस्थलम् ।

दन्ताघातविदारितारिरुधिरैः सिन्दूरशोभाकरं वन्दे शैलसुतासुतं गणपतिं सिद्धिप्रदं कामदम् ॥ 

ॐ श्री गणेशाय नमः, पंचोपचार या लब्धोपचार पूजनम्  समर्पयामि ।

कार्तिकेय- पूजन मंत्र

योगीश्वरो महासेनः कार्तिकेयोऽग्निनन्दनः। स्कंदः कुमारः सेनानी स्वामी शंकरसंभवः॥ 

गांगेयस्ताम्रचूडश्च ब्रह्मचारी शिखिध्वजः। तारकारिरुमापुत्रः क्रोधारिश्च षडाननः॥

ॐ स्कंदाय नमः पंचोपचार या लब्धोपचार पूजनम्  समर्पयामि ।

श्री कृष्ण - पूजन मंत्र

कस्तुरी तिलकम ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम। नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले, वेणु करे कंकणम॥ 

सर्वांगे हरिचन्दनम सुललितम, कंठे च मुक्तावलि। गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते, गोपाल चूडामणी॥ 

ॐ श्री कृष्णचन्द्राय नमः पंचोपचार या लब्धोपचार पूजनम्  समर्पयामि ।

श्री बलराम जी - पूजन मंत्र

देवादिदेव भगवन् कामपाल नमोऽस्तुत ते। नमोऽनन्तातय शेषाय साक्षादरामाय ते नम: ।। 

धराधराय पूर्णाय स्वचधाम्ने सीरपाणये। सहस्त्राशिरसे नित्यंम नम: संकर्षणाय ते ।। 

ॐ संकर्षणाय नम: पंचोपचार या लब्धोपचार पूजनम्  समर्पयामि ।

अब षष्ठी माता-पूजन या  हलषष्ठी व्रत का पूजन विधि प्रारम्भ करें-

षष्ठी माता पूजन के लिए अक्षत व पुष्प लेकर

ध्यानम् - 

षष्ठांशां प्रकृते: शुद्धां सुप्रतिष्ठाण्च सुव्रताम्। सुपुत्रदां च शुभदां दयारूपां जगत्प्रसूम्।। 

श्वेतचम्पकवर्णाभां रत्नभूषणभूषिताम्। पवित्ररुपां परमां देवसेनां परां भजे।। 

ॐ श्री षष्ठी देव्यै नम: ध्यानम्  समर्पयामि। (अक्षत व पुष्प चढ़ा दे )

आसनम् -- 

ॐ अनेकरत्नसंयुक्तं नानामणिसमन्वितम् । कार्तस्वरमयं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ ॐ श्री षष्ठी देव्यै नम: आसनम्  समर्पयामि । आसनार्थे अक्षतान् समर्पयामि ।(अक्षत चढ़ा दे )

पाद्यम्

ॐ गङ्गादिसर्वतीर्थेभ्यो मया प्रार्थनयाहृतम् । तोयमेतत्सुखस्पर्शं पाद्यार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥ 

ॐ श्री षष्ठी देव्यै नम: पाद्यं समर्पयामि । (जल चढ़ाये ) 

अर्ध्यम्

ॐ गन्धपुष्पाक्षतैर्युक्तमर्ध्यं सम्पादितं मया । गृहाण त्वं महादेवि प्रसन्ना भव सर्वदा ॥ 

ॐ श्री षष्ठी देव्यै नम: अर्ध्यं समर्पयामि ।( जल से  अर्ध्य समर्पित करे )

मधुपर्क:

ॐ यन्मधुनो मधव्यं परमर्ठ० रूपमन्नाद्यम् । 

तेनाहं मधुनो मधव्येन परमेण रूपेणाद्यान्नेन परमो मधव्योऽन्नादोऽसानि ॥ 

दधिमध्वाज्यसंयुक्तं पात्रयुग्मसमन्वितम् । मधुपर्कं गृहाण त्वं वरदा भव शोभने ॥ 

ॐ श्री षष्ठी देव्यै नम: मधुपर्कं समर्पयामि ।(दही,घी और शहद मिलाकर मधुपर्कं बनाकर अर्पित करे)

आचमनम्

आचम्यतां त्वया देवि भक्तिं मे ह्यचलां कुरु । ईप्सितं मे वरं देहि परत्र च पराङ्गतिम् ॥ 

ॐ श्री षष्ठी देव्यै नम: आचमनीयं जलं समर्पयामि ।(जल चढ़ाये )

स्नानम्

ॐ जाह्नवीतोयमानीतं शुभं कर्पूरसंयुतम् । स्नापयामि सुरश्रेष्ठे त्वां पुत्रादिफलप्रदाम् ॥ 

ॐ श्री षष्ठी देव्यै नम: स्नानीयं जलं समर्पयामि ।( जल से स्नान कराएं )

पञ्चामृतस्नानम्

ॐ पञ्च नद्य: सरस्वतीमपियन्ति सस्रोतस: । सरस्वती तु पञ्चधा सो देशेऽभवत्सरित् ॥ 

पयो दधि घृतं क्षौद्रं सितया च समन्वितम् । पञ्चामृतमनेनाद्य कुरु स्नानं दयानिधे ॥ 

ॐ श्री षष्ठी देव्यै नम: पञ्चामृतस्नानं समर्पयामि । पञ्चामृतस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि । 

आचमनीयं जलं समर्पयामि।(पञ्चामृत से स्नान कराकर शुध्द जल से स्नान कराये तथा आचमन के लिये जल चढा़ये )

शुद्धोदकस्नानम्

ॐ शुद्धबाल: सर्व्वशुद्धबालो मणिवालस्त ऽआश्विना: । 

श्येत: श्येताक्षोऽरुणस्ते रुद्राय पशुपतये कर्ण्णा वामा  ऽअवलिप्ता रौद्द्रा नभोरूपा: पार्ज्जन्या: ॥ परमानन्दबोधाब्धनिमग्ननिजमूर्तये । साङ्गोपाङ्गमिदं स्नानं कल्पयाम्यहमीशिते । 

ॐ श्री षष्ठी देव्यै नम: शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि । 

शुद्धोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।( शुध्द जल से स्नान कराये तथा आचमन के लिये जल चढा़ये)

वस्त्रम्

ॐ सुजातो ज्ज्योतिषा सह शर्म्म व्वरूथ मासदत्स्व: । व्वासो ऽअग्ने व्विश्वरूपर्ठ० संव्ययस्व व्विभावसो ॥ 

वस्त्रञ्च सोमदैवात्यं लज्जायास्तु निवारणम् । मया निवेदितं भक्त्या गृहाण परमेश्वरि ॥ 

ॐ श्री षष्ठी देव्यै नम: वस्त्रं समर्पयामि । 

आचमनीयं जलं समर्पयामि ।(वस्त्र चढा़ये तथा आचमन के लिये जल चढा़ये )

उपवस्त्रम्

ॐ यामाश्रित्य महामाया जगत्सम्मोहिनी सदा । तस्यै ते परमेशायै कल्पयाम्युत्तरीयकम् ॥ 

ॐ श्री षष्ठी देव्यै नम: उपवस्त्रं समर्पयामि । 

आचमनीयं जलं समर्पयामि ।(उपवस्त्र या मौलिधागा या पोता चढा़ये तथा आचमन के लिये जल चढा़ये )             

यज्ञोपवीवम्

ॐ उपैतु मां देवसख: कीर्तिश्च मणिना सह । प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रे ऽस्मिन् कीर्तिं वृद्धिं ददातु मे ॥ 

स्वर्णसूत्रमयं दिव्यं ब्रह्मणा निर्मितं पुरा । उपवीतं मया दत्तं गृहाण परमेश्वरि ॥ 

ॐ श्री षष्ठी देव्यै नम:  यज्ञोपवीतं समर्पयामि । 

यज्ञोपवीतान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि । ( यज्ञोपवीत सम्रर्पित करे तथा आचमन के लिये जल चढा़ये )

सौभाग्यसूत्रम्

ॐ सौभाग्यसूत्रं वरदे ! सुवर्ण-मणि-संयुतम् । कण्ठे बध्नामि देवेशि ! सौभाग्यं देहि मे सदा ॥ 

ॐ हरिद्रा कुङ्कुमं चैव सिन्दूरादिसमन्वितम् । सौभाग्यद्रव्यमेतद्वै गृहाण परमेश्वरि ॥ 

ॐ श्री षष्ठी देव्यै नम: सौभाग्यद्रव्यं समर्पयामि । (श्रृंगार सामान सम्रर्पित करे)

हरिद्राचूर्णम्

ॐ तत्सूर्यस्य देवत्वं तन्महित्वं मध्या कर्तोर्व्विततर्ठ० सं जभार । 

वदेदयुक्त हरित: सधस्थादाद्रात्री । व्वासस्तनुते सिमस्मै ॥ 

हरिद्रारञ्जिते देवि सुख-सौभाग्यदायिनि । तस्मात्त्वां पूजयाम्यत्र मुखं शान्तिं प्रयच्छ मे ॥ 

ॐ श्री षष्ठी देव्यै नम:  हरिद्राचूर्णं समर्पयामि ।( हरिद्राचूर्णं सम्रर्पित करे)

गन्ध: चन्दनम्

ॐ गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् । ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥ 

श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढयं सुमनोहरम्  विलेपनं च देवेशि चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ॥ 

ॐ श्री षष्ठी देव्यै नम: गन्धं समर्पयामि ।(चन्दन लगावें)

अक्षता:

ॐ अक्षन्नमीमदन्त ह्यव प्प्रिया ऽअधूषत् । अस्तोषत स्वभानवो व्विप्प्रा नविष्ठया मती वोजान्विन्द्रते हरी ॥

अक्षतान्निर्मलान् दिव्यान् कुङ्कुमाक्तान् सुशोभनान् । गृहाणेमान् महादेवि प्रसीद परमेश्वरि ॥ 

ॐ श्री षष्ठी देव्यै नम: अक्षतान् समर्पयामि ।( अक्षत चढा़ये )

कुङ्कुमम्

कुङ्कुमं कान्तिदं दिव्यं कामिनीकामसम्भवम् । कुङ्कुमेनार्चिते देवि प्रसीद परमेश्वरि ॥ 

ॐ श्री षष्ठी देव्यै नम: कुङ्कुमं समर्पयामि ।( कुमकुम निवेदित करें )

सिन्दूरम्

ॐ सिन्धोरिव प्राद्ध्वने शूधनासो  व्वातप्प्रमिय: पतयन्ति वह्वा: । 

घृतस्य धारा ऽअरुषो न व्वाजी  काष्ठा भिन्दन्नूर्मिभि: पिन्वमान: ॥ 

सिन्दूरमरुणाभासं जपा-कुसुम-सन्निभम् । पूजितासि मया देवि प्रसीद परमेश्वरि । 

ॐ श्री षष्ठी देव्यै नम:  सिन्दूरं समर्पयामि ।( सिन्दूरचढा़ये )

नानापरिमलद्रव्याणि

ॐ अहिरिव भोगै: पर्व्वेति बाहुँ ज्ज्याया हेतिं परिबाधमान: । 

हस्तघ्नो व्विश्वा व्वयुनानि व्विद्वान् पुमान् पुमा सं परिपातु व्विश्वत: ॥ 

अवीरं च गुलालं च हरिद्रादिसमन्वितम् । नानापरिमलं द्रव्यं गृहाण परमेश्वरि ॥ 

ॐ श्री षष्ठी देव्यै नम: नानापरिमलद्रव्याणि समर्पपामि । (विविध परिमलद्रव्य चढ़ाये)

दूर्वाङ्कुरा:

ॐ काण्डात्काण्डात्प्ररोहन्ती परुष: परुषस्परि । एवा नो दूर्व्वे प्प्रतनु सहस्रेण शतेन च ॥ 

दूर्बादले श्यामले त्वं महीरूपे हरिप्रिये । दूर्वाभिराभिर्भवती पूजयामि सदा शिवे ॥ 

ॐ श्री षष्ठी देव्यै नम: दूर्वाङ्कुरान् समर्पयामि । (दूर्वा दल चढ़ाये)

बिल्वपत्राणि

ॐ नमो बिल्मिने च कवचिने च नमो व्वर्म्मिणे च व्वरूथिने च नम: 

श्श्रुताय च श्श्रुतसेनाय च  नमो दुन्दुब्भ्याय चाहनन्याय च ॥ 

अमृतोद्भव: श्रीवृक्षो महादेवप्रिय: सदा । बिल्वपत्रं प्रयच्छामि पवित्रं ते सुरेश्वरि ॥ 

ॐ श्री षष्ठी देव्यै नम: बिल्वपत्राणि समर्पयामि ।( बिल्वपत्र चढ़ाये )

पुष्पमाला

ॐ सुरभि: पुष्पनिचयै: ग्रथितां शुभमालिकाम् । ददामि तव शोभार्थं गृहाण परमेश्वरि ॥ 

ॐ श्री षष्ठी देव्यै नम: पुष्पम् च पुष्पमालां समर्पयामि ।( पुष्प व  पुष्पमाला चढ़ाये)

सुगन्धिद्रब्यम्

ॐ चन्दनागुरुकर्पूरै: संयुतं कुङ्कुमं तथा । कस्तूर्यादिसुगन्धांश्च सर्वाङ्गेषु विलेपनम् ॥ 

ॐ श्री षष्ठी देव्यै नम: सुगन्धिद्रव्यं समर्पयामि ।( सुगन्धित द्र्व्य चढ़ाये )

धूप:

ॐ धूरसि धूर्व्व धूर्व्वन्तं धूर्व्व तं वोऽस्मान् धूर्व्वति तं धूर्व्व यं व्वयं धूर्व्वाम: । 

देवानामसि व्वह्नितमर्ठ० सस्नितमं पप्प्रितमं जुष्टतमं देवहूतमम् ॥ 

दशाङ्गुग्गुलं धूपं चन्दनागुरुसंयुतम् । समर्पितं मया भक्त्या महादेवि प्रगृह्यताम् ॥ 

ॐ श्री षष्ठी देव्यै नम: धूपमाघ्रापयमि । आचमनीयं जलं समर्पयामि ।( धूप दें तथा आचमन के लिये जल चढा़ये )

दीप:

ॐ चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षो: सूर्व्वो ऽअजायत । श्रोञ्राद् व्वायुश्च प्प्राणश्च मुखादग्निरजायत ॥ 

घृतवर्तिसमायुक्तं महातेजो महोज्ज्वलप् । दीपं दास्यामि देवेशि सुप्रीता भव सर्वदा ॥ 

ॐ श्री षष्ठी देव्यै नम: दीपं सर्शयामि ।(दीप या अगरबत्ती दिखलाये)

नैवेद्यम्

ॐ अन्नं बहुविधं स्वादु रसै: षड्भि: समन्वितम् । नैवेद्यं गृह्यतां देवि भक्तिं मे ह्यचलां कुरु ॥ 

ॐ प्राणाय स्वाहा । ॐ अपानाय स्वाहा । ॐ व्यानाय स्वाहा । ॐ समानाय स्वाहा ।ॐ उदानाय स्वाहा । 

ॐ श्री षष्ठी देव्यै नम:  नैवेद्यं निवेदयामि । मध्ये-मध्ये आचमनीयं जलं समर्पयामि । 

उत्तरापोशनार्थे च जलं समर्पयामि । 

पुनराचमनीयं जलं समर्पयामि ।(नैवेद्य निवेदित करे, तदनन्तर आचमन के लिये जल चढ़ाये )

करोद्वर्त्तनम् (गन्ध:)

ॐ करोद्वर्त्तनकं देवि ! सुगन्धै: परिवासितै: । गृहीत्वा मे वरं देहि परत्र च परां गतिम् ॥ 

ॐ श्री षष्ठी देव्यै नम:  करोद्वर्त्तनार्थे गन्धं समर्पयामि । हस्तप्रक्षालनार्थं जलं समर्पयामि ।(चन्दन का चढ़ाये)

ऋतुफलानि

ॐ वा: फलिनीर्व्वा ऽअफला ऽअपुष्पावाश्च पुष्पिणी: । बृहस्पतिप्प्रसूतास्तानो मुञ्चन्त्वर्ठ० हस: ॥ 

नारिकेलं च नारिङ्गं कलिङ्गं मञ्जिरं तथा । उर्वारुकं च देवेशि फलान्येतानि गृह्मताम् ॥ 

ॐ श्री षष्ठी देव्यै नम: ऋतुफलानि समर्पयामि ।(ऋतुफल या नारियल चढ़ाये)                                               

ताम्बूलम् (एला-लवंगसहितं पूंगीफलम्)

ॐ उत स्मास्य द्द्रवतस्तुरण्यत: पर्ण्णन्न वेरनुवाति प्प्रगर्द्धिन: । 

श्येनस्येव द्ध्रजतो ऽअङ्कसम्परिदधि- क्राब्ण: सहोर्ज्जा तरित्रत: स्वाहा ॥ 

एला-लवङ्ग-कस्तूरी-कर्पूरै: पुष्पवासिताम् । वीटिकां मुखवासार्थमर्पयामि सुरेश्वरि ॥ 

ॐ श्री षष्ठी देव्यै नम: मुखवासार्थे ताम्बूलं समर्पयामि ।( पान सुपारी चढ़ाये )

दक्षिणा

ॐ हिरण्यगर्ब्भ: समवर्त्तताग्ग्रे भूतस्य जात: पतिरेक ऽआसीत् । 

स दाधार पृथिवीं द्यामुते मां कस्मै देवाय हविषा व्विधेम ॥ 

पूजाफलसमृद्धयर्थं तवाग्रे परमेश्वरि । अर्पितं तेन मे प्रीता पूर्णान् कुरु मनोरथान् ॥ 

ॐ श्री षष्ठी देव्यै नम:  दक्षिणां समर्पयामि ।( द्रव्य-दक्षिणा चढ़ाये )

आरार्तिक्यम्

ॐ इदर्ठ० हवि: प्रजननं मे ऽअस्तु दशवीरर्ठ० सर्व्वगणर्ठ० स्वस्तये । 

आत्मसनि प्रजासनि पशुसनि लोकसन्यभयसनि । अग्नि: प्रजां बहुलां मे करोत्त्वन्नं पयो रेतो ऽअस्मासु धत्त ॥

ॐ अग्निर्द्देवता व्वातो देवता सूर्व्वो देवता चन्द्रमा देवता  व्वसवो देवता रुद्द्रा देवताऽऽदित्या देवता मरुतो देवता व्विश्वे देवा देवता बृहस्पतिर्द्देवतेन्द्रो देवता व्वरूणो देवता ॥ 

ॐ श्री षष्ठी देव्यै नम: आरार्तिक्यम् समर्पयामि । ( दीपक से आरती करे )

मन्त्रपुष्पाञ्जलि:

ॐ वज्ञेन यज्ञमयन्त देवास्तानि धर्म्माणि प्रथमान्यासन् । ते ह नाकं महिमान: सचन्त वत्र पूर्व्वे साध्या: सन्ति देवा: ॥ ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने । नमो वयं वैश्रबणाय कुर्महे । स मे कामान् कामकामाय मह्यम् । कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु । कुवेराय वैश्रवणाय महाराजाय नम: ॥ ॐ स्वस्ति । साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं पारमेष्टयं  राज्यं महाराज्यमाधिपत्यमयं सर्वान्तपर्यायी स्यात् , सार्वभौम: सार्वायुष आन्तादापरार्धात्, पृथिव्यै समुद्रपर्यन्ताया एकराडिति ॥ तदप्येष श्लोकोऽभिगीतो मरुत: परिवेष्टारो मरुत्तस्यावसन् गृहे ।                       आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवा: सभासद इति ॥ 

ॐ व्विश्वतश्चक्षुरुत व्विश्वतो मुखो व्विश्वतो बाहुरुत व्विश्वतस्पात् । सम्बाहुभ्यां धमति सम्पतत्त्रैर्द्यावाभूमी जनयन्देव ऽएक: ॥ 

सेवन्तिकावकुल-चम्पक-पाटलाब्जै: पुन्नाग-जाति-करवीर-रसाल-पुष्पै: । 

बिल्व-प्रवाल-तुलसीदल-मञ्जरीभि: त्वां पूजयामि जगदीश्वरि मे प्रसीद ॥  

ॐ श्री षष्ठी देव्यै नम: पुष्पाञ्जलिं समर्पयामि ।(पुष्प अर्पित करें)

प्रदक्षिणा

ॐ ये तीर्थांनि प्रचरन्ति सृका हस्ता निषङ्गिण: । तेषां सहस्रयोजनेऽव धन्वानि तन्मसि ॥ 

यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च । तानि तानि प्रणश्यन्ति प्रदक्षिणपदे पदे ॥ 

ॐ श्री षष्ठी देव्यै नम: प्रदक्षिणां समर्पयामि ।( हलषष्ठी व्रत का पूजन हो तो छः बार प्रदक्षिणा करे )

प्रणाम:

गंगाद्वारे कुशावर्ते विल्वके नीलेपर्वते । स्नात्वा कनखले देवि हरं लब्धवती पतिम्‌ ॥ 

ललिते सुभगे देवि-सुखसौभाग्य दायिनि । अनन्तं देहि सौभाग्यं मह्यं, तुभ्यं नमो नमः ॥ 

ॐ नमस्ते सर्वहितार्थायै जगदाधारहेतवे । साष्टाङ्गोऽयं प्रणामस्ते प्रसन्नेन मया कृत: ॥ 

ॐ श्री षष्ठी देव्यै नम:  नमस्कारं समर्पयामि ।( प्रणाम करे )

क्षमाप्रार्थना

आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् । पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि ॥ 

मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि । यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे ॥ 

कर्मणा मनसा वाचा पूजनं यन्मया कृतम् । तेन तुष्टिं समासाद्य प्रसीद परमेश्वरि ॥ 

पापोऽहं पापकर्माऽहं पापात्मा पापसम्भव: । पाहि मां सर्वदा मात: सर्वापापहरा भव ॥ 

ॐ श्री षष्ठी देव्यै नम: क्षमाप्रार्थना समर्पयामि ।(अक्षत व पुष्प लेकर समर्पित करें)                   

षष्ठी स्तुति:

नमो देव्यै महादेव्यै सिद्ध्यै शान्त्यै नमो नम:। शुभायै देवसेनायै षष्ठी देव्यै नमो नम: ।। 

वरदायै पुत्रदायै धनदायै नमो नम:। सुखदायै मोक्षदायै षष्ठी देव्यै नमो नम:।। 

शक्ते: षष्ठांशरुपायै सिद्धायै च नमो नम:। मायायै सिद्धयोगिन्यै षष्ठी देव्यै नमो नम:।। 

पारायै पारदायै च षष्ठी देव्यै नमो नम:। सारायै सारदायै च पारायै सर्व कर्मणाम।। 

बालाधिष्ठात्री देव्यै च षष्ठी देव्यै नमो नम:। कल्याणदायै कल्याण्यै फलदायै च कर्मणाम। 

प्रत्यक्षायै च भक्तानां षष्ठी देव्यै नमो नम:।। 

पूज्यायै स्कन्दकांतायै सर्वेषां सर्वकर्मसु। देवरक्षणकारिण्यै षष्ठी देव्यै नमो नम:।। 

शुद्ध सत्त्व स्वरुपायै वन्दितायै नृणां सदा। हिंसा क्रोध वर्जितायै षष्ठी देव्यै नमो नम:।। 

धनं देहि प्रियां देहि पुत्रं देहि सुरेश्वरि। धर्मं देहि यशो देहि षष्ठी देव्यै नमो नम:।। 

भूमिं देहि प्रजां देहि देहि विद्यां सुपूजिते। कल्याणं च जयं देहि षष्ठी देव्यै नमो नम:।।

त्वमेव माता च पिता त्वमेव  त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव । त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव त्वमेव सर्वं मम देव देव ॥(पुनः पुष्प अर्पित करें)

सम्पूर्ण हलषष्ठी व्रत कथा पढ़े-

 

इति षष्ठी पूजन - हलषष्ठी व्रत पूजन विधि: ।


Post a Comment

0 Comments