देवीरहस्य
देवीरहस्य में नित्य कृत्य प्रदीपन और क्रमसूत्र —- दोनों का वर्णन यामलीय उपासना की सर्वांगीण दृष्टि से किया गया है। नित्य कृत्य में ब्राह्म मुहूर्त में शय्यात्याग के पश्चात् करणीय सभी कर्मों का वर्णन व्यवस्थित रूप में किया गया है। शय्या-त्याग के पश्चात् से लेकर शयनकाल तक की पूरी प्रक्रिया एवं दिनचर्याओं का क्रम निर्दिष्ट करते हुये उनका साङ्गोपाङ्ग विवेचन इसमें किया गया है।
देवीरहस्यम्
तन्त्रशास्त्र मनुष्य को सुख की
प्राप्ति और दुःख की निवृत्ति का मार्ग दिखाता है। भारतीय दर्शन के सभी विषय
तन्त्रशास्त्र में वर्णित हैं। महर्षि अरविन्द के अनुसार- 'तन्त्र व्यक्तित्व के विकास में निहित विभिन्न प्रकार के वैशिष्ट्य तथा
पद्धतियों का एकीभाव है।' यह तन्त्रशास्त्र आगम, यामल एवं तन्त्र के रूप में तीन भागों में विभक्त है, जैसा कि कहा भी गया है—
तन्त्रशास्त्रं प्रधानं त्रिधा
विभक्तं आगमयामलतन्त्रभेदतः ।
आगम के सम्बन्ध में कहा गया है कि-
आगतं पञ्चवक्त्रात्तु गतं च
गिरिजानने।
मतं च वासुदेवस्य
तस्मादागममुच्यते।।
आगमशास्त्र शिव के मुख से आगत,
गिरिजा के मुख में गत एवं विष्णु द्वारा समर्थित होने के कारण ही 'आगम' नाम से अभिहित किया जाता है।
तन्त्रशास्त्र में यामल अत्यन्त
महत्त्वपूर्ण माने गये हैं। यह स्वयं शिव शिवारूप युगल देवताओं द्वारा कथित होने
के अधिक उपादेय माना जाता है। यामल साहित्य की शृङ्खला अत्यन्त विशाल है। उसमें भी
रुद्रयामल की विशिष्टता सर्वोपरि है। ब्रह्मयामल और विष्णुयामल के बाद उपदिष्ट
होने के कारण इसे 'उत्तरतन्त्र'
नाम से अभिहित किया जाता है। रुद्रयामल के नाम से उद्धृत ग्रन्थों
और ग्रन्थांशों की संख्या अगणित है। उन्हीं में से संगृहीत यह 'देवीरहस्य' नामक एक अद्भुत ग्रन्थरत्न भी है।
देवी रहस्य
देवीरहस्य रुद्रयामल के अन्तर्गत ६०
पटलों में वर्णित है। यह कौल सम्प्रदाय का ग्रन्थ है। पूर्वार्द्ध
और उत्तरार्द्ध के रूप में इसके दो भाग हैं। पूर्वार्द्ध के पच्चीस
पटलों में शाक्त मत के मुख्य-मुख्य तत्त्वों पर प्रकाश डाला गया है एवं
उत्तरार्द्ध के पैंतीस पटलों में विभिन्न देवियों की पूजाविधियों का सविधि वर्णन
है।
श्रीदेवीरहस्य पटल
देवीरहस्य पूर्वार्द्ध
देवीरहस्य उत्तरार्द्ध
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