श्रीदेवीरहस्य पटल २४

श्रीदेवीरहस्य पटल २४  

रुद्रयामलतन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्यम् के पटल २४ में माला मन्त्रादि शोधन विधि का निरूपण के विषय में बतलाया गया है।

श्रीदेवीरहस्य पटल २४

रुद्रयामलतन्त्रोक्तं श्रीदेवीरहस्यम् चतुर्विंशः पटलः मालाशोधनमन्त्राः

Shri Devi Rahasya Patal 24 

रुद्रयामलतन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्य चौबीसवाँ पटल

रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्यम् चतुर्विंश पटल

श्रीदेवीरहस्य पटल २४ मालाशोधन विधि निरूपण

अथ चतुर्विंशः पटलः

मालाशोधन प्रस्तावः

श्रीभैरव उवाच

शृणुष्वावहिता भूत्वा मालाशोधनमुत्तमम् ।

येन शोधनमात्रेण माला सिद्ध्यति सत्फला ॥ १ ॥

मालाशोधन प्रस्ताव श्री भैरव ने कहा हे देवि! अब सावधानीपूर्वक उत्तम मालाशोधन का वर्णन सुनो, जिससे शोधन करते ही माला सत्फलों की सिद्धि देने वाली हो जाती है ।। १ ।।

श्रीदेव्युवाच

माला कीदृग्विधा नाथ क्रियते कौलिकोत्तमैः ।

कियत्फला कियत्संख्या सर्व मे वक्तुमर्हसि ॥ २ ॥

श्री देवी ने कहा कि हे नाथ! उत्तम कौलिक माला किससे बनावे कितने दानों की माला किस वस्तु की बनावे - यह सब मुझे बतलाइये ।। २ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २४- मालाया अक्षसंख्या

श्री भैरव उवाच

नवान्ता वर्णिता संख्या कालोऽयं द्वादशावधिः ।

माला जपस्य देवेशि रहस्यमिदमैश्वरम् ॥३॥

कालात्मा सविता प्रोक्तो वल्लभे जपदेवता ।

द्वादशात्मा स सविता तदन्तावृत्तिरीरिता ॥४॥

माला रविफला प्रोक्ता संख्यया कौलिकेश्वरि ।

आवर्तयेच्च नवधा तामेव जपसिद्धये ॥ ५ ॥

माला में मणियों की संख्या- श्री भैरव ने कहा- अङ्कों की संख्या नव होती है, काल बारह तक है। हे देवेशि ! माला जप का यह रहस्य ईश्वरीय है। सूर्य काल की आत्मा है, जप का देवता है। सूर्य द्वादशात्मा है। इसलिये द्वादश आवृत्ति करनी चाहिये। हे कौलिकेश्वरि ! माला को रविफला कहा गया है अर्थात् इसमें बारह मनके होते हैं और इसकी नव आवृत्ति से जप की सिद्धि होती है अर्थात् १०८ मणियों की माला बनानी चाहिये ।। ३-५ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २४- मालारहस्यकथनम्

अथान्तर्गुह्यमाचक्षे तव स्नेहेन पार्वति ।

मालारहस्य सर्वस्वं नाख्येयं यस्य कस्यचित् ॥ ६ ॥

रुद्राणां तु शतं चैकं भैरवाष्टकयोजितम् ।

कृत्वा मेरुं महारुद्रं जपमाला विनिर्मिता ॥७॥

न हन्याद् भैरवान् रुद्रैः रुद्रांश्च भैरवैस्तथा ।

अन्यथा जपहानिः स्याद्रुद्रस्य वचनं यथा ॥ ८ ॥

अष्टोत्कृष्टशतं देवि गोलकानां मुखं मुखे ।

पायुं पायौ निबध्नीयात् सूत्रे मन्त्रमनुस्मरन् ॥ ९ ॥

ऊर्ध्वं मेरुं महाकेतुं निबध्य कुलसुन्दरि ।

शङ्खमुक्ताप्रवालार्करुद्राक्षवरवीरुधाम् ॥ १० ॥

मणिकाञ्चनपद्माक्षनृदन्तानां यथाक्रमम् ।

मालारहस्य - मालारहस्य गुह्य है, तुम्हारे स्नेहवश इसे मैं बतलाता हूँ। माला के इस रहस्य को पूर्ण रूप से किसी को भी नहीं बतलाना चाहिये। सौ रुद्र, आठ भैरव, महारुद्र एवं एक को मेरु मानकर एक सौ नव मनकों की माला बनती है। रुद्रों के द्वारा भैरवों का और भैरवों के द्वारा रुद्रों का हनन नहीं करना चाहिये। अन्यथा जप में हानि होती है ऐसा रुद्र का कथन है। एक सौ आठ गोल मनकों को मुख से मुख और पूँछ से पूँछ जोड़कर सूत्र में माला गूंथनी चाहिये। गूंथते समय मन्त्र का स्मरण करते रहना चाहिये। एक सौ आठ दानों के ऊपर मेरु बाँधना चाहिये, जो महाकेतु के समान हो। शङ्ख, मोती, मूँगा, अर्क, रुद्राक्ष, वरवीरुध, मणि, सोना, कमलगट्टा, नरदन्त के गोल मनकों की माला बनावे।।६-१०।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २४- मालामेरूनिरूपणम्

सर्वेषां गोलकानां च मेरुं रुद्राक्षमाचरेत् ॥ ११ ॥

नरदन्तविरोधानां मेरुं वाजिरदं चरेत् ।

षण्मासेनाक्षसूत्राणां शोधनं साधकश्चरेत् ॥ १२ ॥

ततो जपेन्महाविद्यां कौलिको जपमालया ।

गुणैस्त्रिभिस्त्रिरावर्त्य षट्त्रिंशत्तत्त्वगोलकान् ॥ १३ ॥

तारं मेरुं विदध्यात्तु तत्त्वमालासु कौलिकः ।

अष्टोत्कृष्टशते प्रौढा मालेयं देवि दुर्लभा ।। १४ ।।

प्रणवान्तरिता वर्णा देवि लोमानुलोमतः ।

वर्णिता मातृकामाला वेदादिहविराश्रिता ॥ १५ ॥

तारद्वयं स्वरान्ते च दद्याल्लोमानुलोमतः ।

तारद्वयं च वर्गान्त वर्णाद्यन्ते च तद्द्द्वयम् ।। १६ ।।

विधाय तुरगं मेरुं जपेच्छक्त्यर्णमालया ।

तारकामैः सम्मुटिता मालेयं गुरुवल्लभा ॥ १७ ॥

मेरू निरूपणसभी प्रकार की मणियों में मेरु रुद्राक्ष का बनावे। नरदन्त की माला में मेरु अश्वदन्त का लगावे। छः महीनों के बाद पद्माक्षमाला के सूत्रों का शोधन करे शोधन करके ही साधक माला से महाविद्या का जप करे। माला मनकों के बीच में साढ़े तीन लपेटी की गाँठ लगावे छत्तीस तत्त्वों के रूप में छत्तीस मनकों को मानकर तीन आवृति में छत्तीसों तत्त्व आते हैं। इस प्रकार १०८ मनकों में ३६ तत्त्वों की तीन आवृत्ति होती है। मेरु को ''कार मानना चाहिये। इस प्रकार तत्त्वमाला बनती है। १०८ दानों की माला दुर्लभ होती है। अनुलोम-विलोमरूप में दो वर्णों के बीच में प्रणव लगाकर जिस वर्णमाला पर जप किया जाता है, उसमें वेदादि हवि का वास होता है। प्रत्येक वर्ण के पहले और बाद में दो-दो प्रणव लगाकर और आठ वर्गों के आद्य वर्णों में ॐ लगाकर माला कल्पित करे। उसमें 'फट्' को मेरु बनावे इसे शक्तिमाला कहते हैं। ॐ क्लीं से सम्पुटित वर्णमाला गुरु को प्रिय है ।। ११-१७।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २४- देवविशेषे मालाविशेषः

देवदेवस्य देवेशि स्वतन्त्रस्य महेशितुः ।

षडाननोद्धवास्ताराः षट् षडाम्नायसूचकाः ॥ १८ ॥

चतुर्णामाश्रमाणां तु शङ्खार्कवरवीरुधाम् ।

रुद्राक्षाणां प्रकुर्वीत मालां सर्वार्थसिद्धिदाम् ।।१९।।

मुक्ताप्रवालसद्रत्न-हेमपद्माक्षशालिनाम् ।

पूर्वाम्नायादिभेदानां मालां कुर्याद्यथाक्रमम् ॥ २० ॥

लोमानुलोमवर्णानां द्वयोत्कृष्टशतं शिवे ।

तारकामेन संयोज्य ब्रह्मोत्कृष्टशतं शिवे ॥ २१ ॥

क्षः सुमेरुं नियोज्यादौ वर्णलोमानुलोमकैः ।

स्वरवर्गयशाँल्लान्तान् योजयेत् परमेश्वरि ॥ २२ ॥

श्रीशिवाक्षरमालेयं वर्णिता स्नेहतो मया ।

श्रीमहाषोडशीविद्यागुरूनादाय पार्वति ॥ २३ ॥

षट्त्रिंशत्तत्त्वमात्राभिर्योजयेत् सप्तभिर्ग्रहैः ।

शिवामालेयमाख्याता शिवसायुज्यसिद्धये ॥ २४ ॥

पञ्चषष्ट्यक्षरीवर्णांश्चत्वारिंशतिभैरवैः।

त्र्यधिकैयजयेन्माला भैरवीयमुदाहृता ॥ २५ ॥

देवता के अनुरूप माला- हे देवेशि ! देवदेव महेश्वर स्वतन्त्र हैं। उनके छः मुखों से छ: प्रणव निकले, जो षडाम्नायों के सूचक हैं। चारो आश्रमों के लिये शङ्ख, अर्क, करवीर, वीरुध और रुद्राक्ष की माला सर्वार्थसिद्धिदायिका कही गई है। पूर्वाम्नायादि भेदों से क्रमानुसार मोती, मूंगा, रत्न, सोना एवं पद्माक्ष की माला प्रशस्त कही गई है। पचास मातृका को अनुलोम-विलोम करने पर एक सौ होता है। ब्रह्मोत्कृत माला बनाने के लिये वर्णों के साथ ॐ लगाकर जप करे। वर्णों के विलोमानुलोम माला में सुमेरु 'क्ष' को माना जाता है स्वर १६. वर्ग ८, य र ल व श ष स ह ळ के योजन से शिवाक्षर माला बनती है। महाषोडशी माला बनाने के लिये छत्तीस तत्त्वात्मक वर्णों के साथ सात ग्रहों के वर्णों को भी जोड़ना चाहिये। यह शिवमाला शिवसायुज्य सिद्धि देती है। पैंसठ अक्षरी वर्णों के साथ चालीस भैरववर्णों के योजन से भैरवी माला बनती है।। १८-२५ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २४- करमालानिर्णयः

अनामिकाद्वयं पर्व कनिष्ठादिक्रमेण तु ।

तर्जनीमूलपर्यन्तं करमालेयमाहृता ॥ २६ ॥

दशांशं सञ्जपेद् देवि केवलं करमालया ।

अनामिकाद्वयं पर्व कनिष्ठादिक्रमेण तु ।। २७ ।।

तर्जनीमूलपर्यन्तं जपेद् द्वादशपर्वसु ।

कनिष्ठिकाचतुष्पर्वानामापर्वत्रयं तथा ॥ २८ ॥

मध्यमापर्व देव्येकं तर्जन्याश्च चतुष्टयम् ।

संयोज्य सञ्जपेद् विद्यां मन्त्री द्वादशपर्वसु ॥ २९ ॥

शक्तिमालेयमाख्याता त्यक्त्वा पर्वचतुष्टयम् ।

दुर्गावृत्त्या जपेद् देवि सहस्राद्ययुतावधि ॥ ३० ॥

करमाला - अनामिका के दूसरे पोर से प्रारम्भ करके दो, कनिष्ठा के तीन पोर, अनामिका का तीसरा पर्व, मध्यमा के तीन पोर और तर्जनी का मूल पर्व मिलाने से १० मनकों की माला बनती है। इसे करमाला कहते हैं। करमाला से केवल दशांश जप करे। अनामिका के दो पर्व, कनिष्ठा के तीन पर्व, अनामिका का एक पर्व, मध्यमा का तीन पर्व और तर्जनी के तीन पर्व के योजन से बारह पर्वो की माला बनती है। इस माला से भी जप करना चाहिये। कनिष्ठा के चार पर्व, अनामिका के तीन पर्व, मध्यमा का एक पर्व और तर्जनी के चार पर्व का योजन करके साधक बारह पर्वो पर जप करे। इनमें से चार पर्वों को छोड़ देने से यह शक्तिमाला होती है। इस माला पर दुर्गावृत्ति से जप एक हजार या दस हजार करना चाहिये ।। २६-३०।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २४- कुलिकत्यागकथनम्

दिक्पालाश्च गृहाश्चाष्टौ सन्ति षोडशपर्वसु ।

प्रलम्बपर्वत्रितये त्रयो देवाः समाहिताः ॥ ३१ ॥

क्रूरग्रहौ च मन्दारौ दिक्पालौ यमनिर्ऋती।

कुलिकश्चेति विख्यातो जपहानिकरो मतः ॥ ३२ ॥

कुलिकं सन्त्यजेद् देवि मन्त्री करजपे सदा ।

कनिष्ठामूलपर्वादिक्रमेण करगाः सुराः ॥३३॥

तान् शृणुष्व महादेवि यथावद्वर्ण्यते मया ।

ईशानोऽग्निर्निर्ऋतिश्च वायुरिन्द्रो यमस्तथा ॥ ३४॥

वरुणश्च कुबेरश्च सूर्यः सोमो बुधो गुरुः ।

सितराद्वारसौरान्ता ब्रह्मविष्णुमहेश्वराः ॥ ३५ ॥

जयसिद्धिकरा देवि सकलाः करदेवताः ।

कुलिकं सन्त्यजेद् देवि जपकाले स्वसिद्धये ॥ ३६ ॥

कुलिको मुद्गरो ज्ञेयो मुद्गरे तु महद्भयम् ।

मुद्गरोल्लङ्घने शक्तिर्महारुद्रस्य केवलम् ॥३७॥

कुलिकं च महाकेतुं मेरुरूपं न लङ्घयेत् ।

अन्यथा देवि मन्त्री च देवताशापमाप्नुयात् ॥ ३८ ॥

कुलिक का त्याग - सोलह पर्व आठ दिक्पालों के गृह हैं। तीन पर्वो में तीनों देवता का वास है। क्रूर ग्रहों में शनि, दिक्पालों में यम और निर्ऋतिये तीनों कुलिक नाम से विख्यात है। इनका जप हानिकारक होता है। हे देवि! करमाला के जप में साधक कुलिक का त्याग करे। कनिष्ठा मूलपर्वादि क्रम से हाथ में देवता रहते हैं। महादेवि! उसे आप सुनिये, मैं वर्णन करता हूँ। ईशान, अग्नि, निर्ऋति, वायु, इन्द्र, यम, वरुण, कुबेर, सूर्य, चन्द्र, बुध, गुरु, शुक्र, राहु, शनि, ब्रह्मा, विष्णु, महेश का वास हाथ में होता है। ये सभी देवता जयसिद्धिकारक होते हैं। अपनी सिद्धि के लिये जपकाल में कुलिक का त्याग करना चाहिये। कुलिक को मुद्गर कहा जाता है। मुद्गर महाभयजनक है। केवल शक्ति और महारुद्र के जप में मुद्गर का लङ्घन किया जा सकता है। कुलिक महाकेतु रूप में सुमेरु है। इसका लङ्घन कभी न करे; अन्यथा साधक को देवता शाप देते हैं ।। ३१-३८ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २४- मालाशोधनकथनम्

अथ षाण्मासिकी शुद्धिं मालानां ते ब्रवीम्यहम् ।

यया सिद्धिर्भवेद् देवि देवानामपि दुर्लभा ।। ३९ ।।

मालाशोधनकाले तु गत्वा प्रेतालयं सुधीः ।

विधाय भस्मना स्नानं जलेन मन्त्रितेन वा ॥४०॥

तत्र स्नात्वोपविश्याथ कृत्वा विष्टरशोधनम् ।

भूतशुद्धिक्रमोपेतं प्राणार्पणविधिं ततः ।। ४९ ।।

देहशुद्धिं विधायाथ मन्त्रसङ्कल्पमाचरेत् ।

मालाशोधन - अब माला के छमाही शोधन का वर्णन मैं करता हूँ। इस शोधन से देवों को भी दुर्लभ सिद्धि साधक को प्राप्त होती है। मालाशोधन के लिये साधक श्मशान में जाकर भस्मस्नान करे या मन्त्रित जल से स्नान करे। स्नान के बाद बैठने के लिये आसन का शोधन करे। तब भूतशुद्धि करके प्राणप्रतिष्ठा करे। देहशुद्धि करके मन्त्र सङ्कल्प करे।।३९-४१।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २४- मालामन्त्रर्थ्यादिकथनम्

मालाशोधनमन्त्रस्य ऋषि: कालाग्निरुद्रकः ॥४२॥

छन्दोऽनुष्टुब् महादेवि देवी श्मशान भैरवी ।

कालरात्रीति विख्याता मुण्डमालाविलासिनी ॥ ४३ ॥

हरितं बीजमाख्यातं नलिनी शक्तिरीरिता ।

सूर्याख्यं कीलकं मालाशुद्धये विनियोगकः ॥ ४४ ॥

ऋषिच्छन्दोदैवतादिन्यासं कुर्यात् कुलार्थवित् ।

अङ्गन्यासं विधायाथ करन्यासादिपूर्वकम् ॥४५॥

विधायासनशुद्धिं च भूतशुद्धिक्रमं चरेत् ।

प्राणान् देवि प्रतिष्ठाप्य श्रीचक्रार्चनमाचरेत् ॥ ४६ ॥

योगपीठार्चनं कृत्वा द्रव्यादीनि विशोधयेत् ।

क्षेत्रेश- योगिनीवृन्दं सन्तर्प्य कुलसुन्दरि ॥४७ ॥

लयाङ्गं पूजयेद् देवि पूजान्ते सञ्जपेन्मनुम् ।

मालायन्त्र के ऋषि आदि- इस मालाशोधनमन्त्र के ऋषि कालाग्निरुद्र, छन्द अनुष्टुप् एवं देवता श्मशानभैरवी है, जो कालरात्रि के नाम से प्रसिद्ध है और मुण्डमाला- विलासिनी है। इसका बीज ह्सौः, शक्ति ठः एवं कीलक सूर्य है तथा माला की शुद्धि के लिये इसका विनियोग किया जाता है।

कुलाचार ज्ञानी ऋषि छन्द- देवतादि न्यास करे। करन्यास करके अङ्गन्यास करे। आसनशुद्धि करे। भूतशुद्धि करे। प्राणप्रतिष्ठा करे। तब श्रीचक्रार्चन करे। योगपीठ का अर्चन करके द्रव्यादि का शोधन करे। क्षेत्रपाल और योगिनीवृन्द का तर्पण करे। कुलसुन्दरी की लयाङ्ग पूजा करे। पूजा के बाद मन्त्रजप करें।।४२-४७।।

मालाया देवेदेवेशि यथाम्नायं यथाविधि ॥ ४८ ॥

श्रीचक्रोपरि संस्थाप्य शोधयेत् कलशामृतैः ।

मालामूलेण देवेशि मूलमन्त्रेण साधकः ॥४९॥

मालामन्त्रान् प्रवक्ष्येऽहं शृणुष्वावहिता प्रिये ।

हे देवेदेवेशि ! यथाम्नाय यथाविधि माला को श्रीचक्र पर स्थापित करके कलश के अमृत से उसका शोधन करे शोधन मालामन्त्र के जप से करे। अब विहित मालामन्त्रों का वर्णन एकाग्र मन से सुनो। । ४८-४९ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २४- शङ्खमालाशोधनमन्त्रकथनम्

तारं रमा रमा तारं शङ्खिनीति पदं वदेत् ॥५०॥

तारं मा तारमन्तेऽपो मन्त्रोऽयं शङ्खमालिकः ।

शङ्खमाला - शोधन मन्त्र - ॐ श्रीं श्रीं ॐ शङ्खिनि ॐ श्रीं ॐ ।।५०॥

श्रीदेवीरहस्य पटल २४- मुक्तामालाशोधनमन्त्रकथनम्

तारं लज्जा युगं तारं मुक्तामालिनि मायुगम् ॥५१॥

ठद्वयं मन्त्रराजाऽयं मुक्तामालाविशोधनः ।

मुक्तामाला शोधन मन्त्र - ॐ ह्रीं ह्रीं ॐ मुक्तामालिनि श्रीं श्रीं स्वाहा । । ५१ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २४- रोध्रमालाशोधनमन्त्रकथनम्

तारं वधूं च वेदाद्यं रौद्रे च रोधमालिनि ॥५२॥

अब्धिबीजं ठद्वयं च मन्त्रोऽयं रौध्रमालिकः ।

रोधमालिका-शोधन मन्त्र- -ॐ स्त्रीं ॐ रौद्रे रोधमालिनि रूं स्वाहा ।। ५२।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २४- स्फटिकमालाशोधनमन्त्रकथनम्

तारं मात्राद्यमुच्चार्य सूर्याख्याबीज - युग्मकम् ॥५३॥

अर्कमाले हरं नीरं मन्त्रः स्फदिकशुद्धिकृत् ।

स्फटिकमाला-शोधन मन्त्र ॐ ॐ ह्रां ह्रां अर्कमाले फट् स्वाहा।। ५३ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २४- रुद्राक्षमालाशोधनमन्त्रकथनम्

तारमब्धिरमामायाः सिन्धुं रुद्राक्षमालिनि ।। ५४ ।।

शुद्धा भव वनं मन्त्रो देवि रुद्राक्षशोधनः ।

रुद्राक्षमाला-शोधन मन्त्र ॐ श्रीं ह्रीं रूं रुद्राक्षमालिनि शुद्धा भव स्वाहा ।। ५४ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २४- तुलसीमालाशोधनमन्त्रकथनम्

तारं तारात्रयं तारं वधूं तुलसि वैष्णवि ॥ ५५ ॥

वौषड् वनं महामन्त्रस्तुलसीशोधनाभिधः ।

तुलसीमाला शोधन मन्त्र - ॐ त्रोत्रों त्रों ॐ स्त्री तुलसी वैष्णवी वौषट् स्वाहा।।५५।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २४- मणिमालाशोधनमन्त्रकथनम्

तारं तारा च मृद्वीका मणिमाले मनोहरे ।। ५६ ।।

ठद्वयं मन्त्रराजोऽयं मणिमालाविशोधनः ।

मणिमाला-शोधन मन्त्र ॐ ॐ ह्रीं मणिमाले मनोहरे स्वाहा ।। ५६ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २४- सुवर्णमालाशोधनमन्त्रकथनम्

वेदाद्यं कमला कुन्ती वाग्बीजं कामशक्तिकम् ॥५७॥

सुवर्णमाले शक्त्यापो मन्त्रोऽयं स्वर्णशोधन: ।

स्वर्णमाला - शोधन मन्त्र ॐ श्रीं क्रीं ऐं क्लीं सौः सुवर्णमाले सौः स्वाहा ।। ५७ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २४- पद्माक्षमालाशोधनमन्त्रकथनम्

तारं च वायुपूज्या च तारं पद्माक्षमालिनि ॥५८॥

हरितं ठद्वयं मन्त्रों देवि पद्माक्षशोधनः ।

पद्माक्षमाला शोधन मन्त्र ॐ प्रीं ॐ पद्माक्षमालिनि ह्सौ स्वाहा।। ५८ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २४- नरदन्त-मुण्डमालाशोधनमन्त्रकथनम्

तारत्रयं मा त्रयं च कामराजत्रयं शिवे ॥ ५९ ॥

शिवः शक्तिर्दन्तमाले मुण्डमाले च वागुरा ।

वधूर्वस्त्रं वनं मन्त्रो नरदन्तविशुद्धिकृत् ॥६०॥

नरदन्तमाला मुण्डमालाशोधन मन्त्र ॐ ॐ ॐ श्रीं श्रीं श्रीं क्लीं क्लीं क्लीं ह्रां सौः दन्तमाले मुण्डमाले प्री स्त्रीं ह्सौः स्वाहा । । ५९-६०।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २४- मालाशोधने कर्त्तव्यः

पृथङ् पृथङ् महामन्त्रैः श्रीचक्रस्थां महेश्वरि ।

मालां संशोध्य सम्पूज्य मूलं जप्त्वा दशांशतः ॥ ६१ ॥

गन्धाक्षतप्रसूनैश्च पूजयेत् कौलिकोत्तमः ।

माला-शोधन के समय प्रत्येक माला को अलग-अलग श्रीचक्र पर स्थापित करके उसके महामन्त्र से शोधन करे, पूजन करे और मूल मन्त्र का दश बार जप करे। जप के पश्चात् गन्ध, अक्षत, पुष्प से उसका पूजन करे।। ६१ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २४- सर्वमालाशोधनमन्त्रः

ॐ माले माले महामाले सर्वतत्त्वस्वरूपिणि ॥ ६२ ॥

चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्तस्तस्मान्मे सिद्धिदा भव ।

स्वाहान्तोऽयं महामन्त्रः सर्वमालाविशोधनः ॥ ६३ ॥

सर्वमाला - विशोधन मन्त्र- ॐ माले माले महामाले सर्वतत्त्वस्वरूपिणि। चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्तस्तस्मान्ये सिद्धिदा भव स्वाहा। यह महामन्त्र समस्त मालाओं को शुद्ध करने वाला है।। ६२-६३।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २४- अन्यमालाशोधनमन्त्रः

शिवबीजं समुच्चार्य ततोऽविघ्नं कुरु स्मरेत् ।

मे ठद्वयं महामन्त्रः सदा मालाविशोधनः ॥ ६४ ॥

सर्वमाला - शोधन महामन्त्र - हां अविघ्नं कुरु स्वाहा। यह माला को शुद्ध करने का सामान्य मन्त्र है।। ६४ ।।

एवं संशोध्य संस्कृत्य सम्पूज्य कुलसुन्दरि ।

मालामादाय देवेशि सञ्जपेदर्धरात्रके ॥ ६५ ॥

हे कुलसुन्दरि ! इस प्रकार माला का शोधन, संस्कार और पूजन करने के पश्चात् माला लेकर आधी रात में जप करना चाहिये ।। ६५ ।।

श्रीदेव्युवाच

करमालास्त्वया प्रोक्ता बह्व्यस्तासां च शोधनम् ।

वद देव कथं कुर्यात् कौलिकः सर्वसिद्धये ॥६६ ।।

श्रीदेवी ने कहा कि हे देवि! करमालाओं का वर्णन तो आपने किया; पर उनकी शोधनविधि का वर्णन नहीं किया। हे देव! साधक करमाला का शोधन कैसे करता है इसे बताने की कृपा करें ।। ६६ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २४- करमालाशोधनमन्त्रकथनम्

श्रीभैरव उवाच

काली कामः कृपा कुन्ती करमाले हरं वनम् ।

मन्त्रोऽयं करमालायाः शुद्धिदः सर्वसिद्धिदः ॥६७॥

करमाला शोधनमन्त्र-श्री भैरव ने कहा कि सर्वसिद्धिप्रद करमाला का शोधन मन्त्र इस प्रकार हैक्रीं क्लीं क्रीं करमाले फट् स्वाहा।। ६७ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २४- मालाशोधनावधिकथनम्

षण्मासेनैव मालानां शोधनं साधकश्चरेत् ।

ततो जपेन्महाविद्यां सर्वसिद्धीश्वरो भवेत् ॥ ६८ ॥

इदं तत्त्वं हि तत्त्वानां सर्वस्वं पारदैवतम् ।

तव भक्त्या मयाख्यातं नाख्येयं ब्रह्मवादिभिः ।। ६९ ।।

मालाशोधन की अवधि साधक प्रत्येक माला का शोधन छः माह पर करे। इसके बाद जप करे। महाविद्या के जप से साधक सिद्धीश्वर होता है। इस प्रकार यह परदेवता के तत्त्वों का सर्वस्वभूत तत्त्व बतलाया गया। इसे ब्रह्मवादियों को भी नहीं बतलाना चाहिये ।। ६८-६९।।

इति श्रीरुद्रयामले तन्त्रे श्रीदेवीरहस्ये मालातन्मन्त्रादिशोधन- निरूपणं नाम चतुर्विंश: पटलः ॥ २४ ॥

इस प्रकार रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्य की भाषा टीका में मालामन्त्रादिशोधन निरूपण नामक चतुर्विंश पटल पूर्ण हुआ।

आगे जारी............... रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्य पटल 25 

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