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- वज्रपंजराख्य सूर्य कवच
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- देवीरहस्य पटल ३१
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- रहस्यपञ्चदशिका
- महागणपति मूलमन्त्र स्तोत्र
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- श्रीदेवीरहस्य पटल २२
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- महोपदेश विंशतिक
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- अग्निपुराण अध्याय १३२
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मूल शांति पूजन विधि
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
श्रीदेवीरहस्य पटल २३
रुद्रयामलतन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्यम्
के पटल २३ में शक्तिशोधन विधि का निरूपण के विषय में बतलाया गया है।
रुद्रयामलतन्त्रोक्तं श्रीदेवीरहस्यम् त्रयोविंशः पटलः शक्तिशोधनप्रस्तावः
Shri Devi Rahasya Patal 23
रुद्रयामलतन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्य तेईसवाँ पटल
रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्यम्
त्रयोविंश पटल
श्रीदेवीरहस्य पटल २३ शक्तिशोधन विधि निरूपण
अथ त्रयोविंशः पटल:
शक्तिशोधनविधिः
श्रीभैरव उवाच
अधुना शृणु देवेशि
शक्तिशोधनमुत्तमम् ।
येन श्रवणमात्रेण पराशक्तिपदे लयेत्
॥ १ ॥
अदीक्षितकुलासङ्गात् सिद्धिहानिः
प्रजायते ।
तत्कथाश्रवणं चेत् स्यात्
तत्तल्पगमनं यदि ॥ २ ॥
शक्तिशोधन प्रस्ताव- श्री भैरव ने
कहा- हे देवेशि ! अब शक्तिशोधन की उत्तम विधि को सुनो,
जिसके श्रवणमात्र से ही परा शक्ति का पद प्राप्त होता है। अदीक्षित
अकुल रमणी शक्ति की संगति से सिद्धि की हानि होती हैं, उसके
बारे में कुछ सुनने से भी उसकी शय्या पर आसीन होने का पाप लगता है ।। १-२ ।।
श्रीदेव्यवाच
कुलाचार क्रमार्चायां सिद्धिं
कामयते तु यः ।
स कुलीनः कथं देव पूजयेत्
कुलयोषितम् ॥ ३ ॥
श्री देवी ने कहा- हे देव ! जो
कुलाचारक्रम से अर्चन के द्वारा सिद्धिकामी है, उसे
कुलीन कैसे कहा जाता है। कुलयोषिता का पूजन किस प्रकार होता है ।। ३ ।।
श्रीभैरव उवाच
संशोधनमकृत्वा वै स्त्रीषु मद्येषु
कौलिकः ।
कृतेऽपि सिद्धिहानिः स्यात्
क्रुद्धा भवति चण्डिका ॥४॥
अभिषेकाद् भवेत्
सिद्धिर्मन्त्रस्योच्चारणाच्छुभा ।
रतिकाले महेशानी दीक्षाकाले च
कन्यका ॥५॥
बलाद्वा यत्नतो बुद्ध्या प्ला ( पा
) वयेत् परयोषितम् ।
सुरया रेतसा वापि जलेन मधुनाथ वा ॥
६ ॥
सङ्गेऽभिषेचयेन्नारी चण्डां वा
मन्त्रवर्जिताम् ।
स्वकीयां परकीयां वा रूपयौवनगर्विताम्
॥७॥
श्री भैरव ने कहा कि जो कौलिक
संशोधन के बिना स्त्रियों में और मदिरा में आचार करता है,
उसके सिद्धि की हानि होती है और चण्डिका उससे क्रुद्ध होती है। हे
महेशानि! कन्या को दीक्षाकाल और रतिकाल में अभिषेक करने से और मन्त्रोच्चारण करने
से उनमें शुभता आती है। बल से, यत्न से, बुद्धि से परयोषिताओं को सुरा से, रेत से, जल से, मधु से प्लावित या अभिषिक्त करने से उनमें
शुभता आती है। इसलिये चण्डा, मन्त्रवर्जिता स्वकीया या
परकीया नारी का अभिषेक संभोग के पूर्व करना अत्यावश्यक है।।४-७।।
श्रीदेव्युवाच
भगवन् देवदेवेश कुलाचारैकसिद्धये ।
कुलयोगी कथं कुर्याच्छोधनं
कुलयोषिताम् ॥८ ॥
श्री देवी ने कहा- हे भगवन्!
देवदेवेश! कुलाचार की सिद्धि के लिये कुलयोगी कुलयोषिता का शोधन किस प्रकार करे,
जिससे उसमें कोई दोष शेष न रहे।।८।।
श्रीदेवीरहस्य पटल २३- शक्तिप्रशंसा
श्रीभैरव उवाच
कुलजां युवतिं वीक्ष्य नमस्कुर्यात्
कुलेश्वरः ।
विधाय मानसीं पूजां मन्त्रं योगी
समुच्चरेत् ॥ ९ ॥
बालां वा यौवनोन्मत्तां वृद्धां वा
सुन्दरीं तथा ।
कुत्सितां वा महादुष्टां नमस्कृत्य
विभावयेत् ॥ १० ॥
तासां प्रहारो निन्दा च
कौटिल्यमप्रियं तथा ।
सर्वथा नैव कर्तव्यमन्यथा
सिद्धिरोधकृत् ॥ ११ ॥
स्त्रियो देवाः स्त्रियः प्राणाः
स्त्रिय एव हि भूषणम् ।
स्त्रीगणेषु सदा भाव्यमन्यथा
स्वस्त्रियामपि ॥ १२ ॥
विपरीतरता सापि भविता हृदयोपरि ।
साधकस्य भवेदाशु कामधेनुरिवापरा
।।१३।।
नाधर्मो जायते तेन न कश्चिद् धर्महा
भवेत् ।
तत्परः परतन्वीनां परतत्त्वे प्रलीयते
।। १४ ।।
शक्ति प्रशंसा - कुलजा युवती को
देखकर कुलेश्वर प्रणाम करे। मानसिक पूजा करके योगी मन्त्रों का उच्चारण करे। बाला
या यौवनगर्विता या वृद्धा या सुन्दरी या कुरूपा या महादुष्टा नारी को नमस्कार करे।
उस पर प्रहार करना, उसकी निन्दा करना
या उसे कुटिल अप्रिय वचन कहना सर्वथा वर्जित है। इससे सिद्धि में अवरोध उत्पन्न
होता है। स्त्री ही देवता हैं। स्त्री ही प्राण है। स्त्री ही भूषण है।
स्त्रीवृन्दों के साथ-साथ अपनी पत्नी से भी अन्यथाभाव न रखे। विपरीत रति में जब वह
हृदय पर होती है तब वह साधक के लिये कामधेनु के समान पर शक्ति हो जाती है। इसमें
कोई अधर्म नहीं होता और न ही इससे धर्म की हानि होती है। परायी रमणियों में तत्पर
साधक परतत्त्व में लीन हो जाता है।। ९- १४ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल २३- नवकन्यानिरूपणम्
नटी कापालिकी वेश्या रजकी
नापिताङ्गना ।
ब्राह्मणी शूद्रकन्या च तथा
गोपालकन्यका ।। १५ ।।
मालाकारस्य कन्यापि नव कन्याः
प्रकीर्तिताः ।
एतासु काञ्चिदानीय संशोधनमथाचरेत् ॥
१६ ॥
पूजयेत् कौलिको देवि यथावद्
वर्ण्यते मया ।
नव कन्या निरूपण - कुलाचार में नव
कन्यायें ग्रहणीय हैं, ये नव हैं- १. नटी, २. कापालिकी, ३. वेश्या, ४.
धोबिन, ५ नाइन, ६. ब्राह्मणी, ७. शूद्रकन्या, ८. गोपालकन्या ९. मालिन। इनमें से
किसी को भी लाकर उसका संशोधन करे। जैसा मैं आगे वर्णन करूंगा, वैसे ही कौलिक इसकी पूजा करे ।। १५-१६ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल २३- शक्तिशोधनमन्त्रस्तदृष्यादिविवेचनम्
शक्तिशोधनमन्त्रस्य ऋषिः प्रोक्तः
सदाशिवः ॥ १७ ॥
त्रिष्टुप् छन्द इति ख्यातं देवता च
पराम्बिका ।
वाग्बीजं बीजमीशानि शक्तिः
शक्तिरितीरिता ।। १८ ।।
कामेशः कीलकं देवि दिग्बन्धो
हरमीश्वरि ।
भोगापवर्गसिद्ध्यर्थं विनियोगो महेश्वरि
।। १९ ।।
महानिशायामानीय नव कन्याश्च भैरवान्
।
एकादश नवाष्टौ वा कौलिकः
कौलिकेश्वरि ॥ २० ॥
शोधयेन्नवभिर्मन्त्रैः पूजयेत्
कौलिकोत्तमः ।
साधक: संस्पृशेदादौ कृत्वा
विष्टरशोधनम् ॥ २१ ॥
विनियोग—अस्य श्रीशक्तिशोधनमन्त्रस्य ऋषिः सदाशिव छन्दः त्रिष्टुप् देवता
पराम्बिका, ऐं बीजं, ई शक्तिः, क्लीं कीलकं, फट् दिग्बन्धः । भोगापवर्गसिद्ध्यर्थे
विनियोगः । महानिशा में नव कन्या और दो भैरव – कुल ग्यारह या
नव या आठ लाकर कौलिक या कौलिकेश्वरी उनका शोधन नव मन्त्रों से करे और पूजा करे।
साधक पहले आसनशुद्धि करे ।। १७-२१।।
श्रीदेवीरहस्य पटल २३- आसनशोधनान्ते
भूतशुद्ध्यादिकथनम्
भूतशुद्धिं विधायापि
प्राणार्पणविधिं चरेत् ।
मन्त्रसङ्कल्पकं कृत्वा
मुन्यादिन्यासमाचरेत् ॥ २२ ॥
विधाय मातृकान्यासं
कराङ्गन्यासपूर्वकम् ।
हृत्पीठाच विधायाथ
श्रीचक्रार्चनमाचरेत् ॥ २३ ॥
संशोध्य देवद्रव्याणि कुण्डगोलादिकं
तथा ।
वीराचनं वीरकान्तासेवनं देवदुर्लभम्
॥ २४ ॥
यथोक्तविधिना देवीं सम्पूज्य
श्रीपराम्बिकाम् ।
शक्तिं वामे तु संस्थाप्य
पूजयेद्वर्ण्यते यथा ॥ २५ ॥
आसनशोधन और भूतशुद्धि- भूतशुद्धि
करके प्राणप्रतिष्ठा करे। मन्त्र सङ्कल्प करके ऋष्यादि न्यास करें। करन्यास और
अङ्गन्यास करके मातृकान्यास करे। हृत्पीठ का अर्चन करके श्रीचक्र का पूजन करे।
कुण्डगोल आदि देवी द्रव्यों का शोधन करके देवदुर्लभ वीराचन और वीरकान्ता का सेवन
करे यथोक्त विधि से देवी श्री पराम्बिका का पूजन करके उसके बायें भाग में शक्ति को
बैठाकर आगे वर्णित विधि से उसका पूजन करे ।। २२-२५ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल २३- श्रीचक्रस्थापनम्
त्रिकोणं वाथ षट्कोणं
त्र्यस्त्रत्रयमथो हविः (बहिः) ।
शिवत्र्यस्त्रं कामत्र्यस्त्रं
हेतित्र्यस्त्रं महेश्वरि ॥ २६ ॥
ब्रह्मत्र्यस्त्रं नवत्र्यस्त्रं
सिन्दूरेण विभावयेत् ।
श्रीचक्रेषु हि नट्यादिमालिन्यन्तं
विचार्य च ॥ २७॥
यामेवासां कुमारीणां कौलिकस्तु
समानयेत् ।
तदीयं यन्त्रमालिख्य तस्मिंस्तामेव
पूजयेत् ॥ २८ ॥
श्रीचक्रस्थापन —
त्रिकोण, षट्कोण, त्रिकोणत्रय,
शिवत्रिकोण, कामत्रिकोण, हेतित्रिकोण, ब्रह्मत्रिकोण सब मिलाकर नव त्रिकोण
सिन्दूर से बनाकर उनमें नटी से मालिनी तक की नव कन्याओं की स्थिति मानकर कुमारियों
को बैठाये और उनके यन्त्र अङ्कित करके उनकी पूजा करे ।। २५-२८ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल २३- श्रीचक्रे
शक्तिस्थापनम्
श्रीचक्रे स्थापयेद् वामे कन्यां
भैरववल्लभाम् ।
मुक्तकेशीं वीतलज्जां
सर्वाभरणभूषिताम् ॥ २९ ॥
सर्वशृङ्गारशोभाढ्यां
तारुण्यमदगर्विताम् ।
आनन्दलीनहृदयां सौन्दर्यातिमनोहराम्
॥ ३० ॥
शक्तिस्थापन —
श्री चक्र के वाम भाग में भैरववल्लभा भैरवी की स्थापना करे। इस शक्ति
के केश खुले हों। वह लज्जाहीन हो सभी वस्त्राभूषण से युक्त हो। सभी शृंगार से
सुशोभित हो। वह तारुण्य मद से गर्वित हो उसका हृदय उल्लसित हो देखने में अतिसुन्दर
और मनोहर हो ।। २९-३०।।
श्रीदेवीरहस्य पटल २३- शक्तिपवित्रीकरणमन्त्रः
शोधयेच्छुद्धिमन्त्रेण सुरानन्दामृताम्बुभिः
।
बालाबीजत्रयं देवि प्रोच्चार्य
तदनन्तरम् ॥ ३१ ॥
त्रिपुरायै ततो विश्वं विश्वान्ते
नामपूर्वकम् ।
इमां शक्तिं पवित्रीति कुरु युग्मं
समुद्धरेत् ॥ ३२ ॥
मम शक्तिं कुरु युग्मं वह्निजायां
समुद्धरेत् ।
मन्त्रेणानेन देवेशि कामिनीमभिषेचयेत्
॥३३॥
शक्ति पवित्रीकरण मन्त्र -शोधन
मन्त्र से सुरानन्द अमृत से शक्ति का शोधन करे। शक्तिशोधन मन्त्र है-ऐं क्लीं
सौः त्रिपुरायै नमः नामपूर्वक इमां शक्ति पवित्री कुरु कुरु मम शक्ति कुरु
कुरु स्वाहा। नाम के साथ 'नटी' 'कपालिकी' आदि उच्चारण हे देवेशि ! इसी मन्त्र से
कुमारियों का अभिषेक करे। । ३१-३३ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल २३- कामिन्यभिषेकान्ते
न्यासः
पञ्चवाणमुद्रान्यासश्च
अभिषिच्य कुमारी तां न्यासजालं
प्रविन्यसेत् ।
मातृकावन्महादेवि कामबाणांस्ततो
न्यसेत् ॥ ३४ ॥
चन्द्रबीजद्वयं देवि कामराजं च
मोहनम् ।
शक्तिबीजं ततो देवि यथावद्विन्यसेत्
प्रिये ॥ ३५ ॥
ललाटे वदने न्यस्य (चांसे) हृदये
योनिमण्डले ।
सर्वसंक्षोभणं बाणं सर्वविद्रावणं
तथा ॥ ३६ ॥
सर्वाकर्षणबाणं च सर्वसम्मोहनं ततः
।
वशीकरणबाणं च पञ्चेषोः पञ्चबाणकान्
॥ ३७॥
विन्यस्य बाणमुद्राश्च पञ्चैता देवि
दर्शयेत् ।
योनिबिम्बे जपेन्मन्त्रान् नव यान्
वर्णयाम्यहम् ॥ ३८ ॥
अभिषेक के बाद न्यास-उन कुमारियों
को अभिषेक के बाद न्यासयुक्त करना चाहिये। मातृका न्यास के समान कामबाणों का न्यास
ललाट,
मुख, कंधा, हृदय और
योनिमण्डल में करना चाहिये। सर्वसंक्षोभण, सर्वविद्रावण,
सर्वाकर्षण, सर्वसम्मोहन और सर्ववशीकरण - ये
पाँच कामदेव के बाण है। यह न्यास बाणमुद्रा से करना चाहिये। न्यास के बाद
योनिमुद्रा प्रदर्शित करे। तदनन्तर अग्रलिखित नव मन्त्रों का जप करे। बाणन्यास इस
प्रकार करे-
द्रां सर्वसंक्षोभणवाणाय नमः ललाटे।
द्रीं सर्वविद्रावणबाणाय नमः मुखे।
क्ली सर्वाकर्षणवाणाय नमः अंसे
(कन्धा ) ।
क्लूं सर्वविद्रावणबाणाय नमः हृदये।
सः सर्ववशीकरणवाणाय नमः योनिमण्डले
।
श्रीदेवीरहस्य पटल २३- नटिनीमन्त्रोद्धारः
तारं चन्द्रं च वाग्बीजं कामं
शक्तिं ततो वदेत् ।
नटिनीति महासिद्धिं मम देहि युगं
वदेत् ॥ ३९ ॥
ठद्वयं प्रोच्चरेदन्ते मन्त्रोऽयं
नटिनीप्रियः ।
नटी मन्त्र - ॐ ऐं ऐं क्लीं सौः
नटिनि महासिद्धि मम देहि देहि स्वाहा। यह मन्त्र नटिनी देवी को अत्यन्त प्रिय
है ।।३९।।
श्रीदेवीरहस्य पटल २३- कपालिनीमन्त्रोद्धारः
कालीं कूर्चं परां शक्तिं कामं
कापालिनि प्रिये ॥४०॥
रेतो मुञ्च युगं ब्रूयादन्ते
दहनवल्लभा ।
देवि कापालिकीमन्त्रः कामदेववशङ्करः
॥ ४१ ॥
कपालिनीमन्त्र –
क्रीं हूं ह्रीं सौः क्लीं कपालिनि रेतो मुञ्च मुञ्च स्वाहा। कपालिनी देवी का यह मन्त्र कामदेव को वश में करने वाला है।।४०-४१ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल २३- वेश्याशोधनमन्त्रोद्धारः
तारद्वन्द्वं च हरितं
मेघषड्दीर्घबीजकम् ।
वेश्ये कामदुघे रेतो मुञ्च
युग्माग्निवल्लभा ॥४२॥
वेश्याशोधनमन्त्रोऽयं
सर्वकौलिकवल्लभः ।
वेश्या-मन्त्र —
ॐ ॐ ह्सौः वां वां वृं वै वीं वः वेश्ये कामदुधे रेतो मुञ्च
मुञ्च स्वाहा। यह वेश्या शोधन मन्त्र सभी कौलिकों को अत्यन्त
प्रिय है ।। ४२ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल २३- रजकीशोधनमन्त्रोद्धारः
वेदाद्यं वाग्भवं कामं शक्तिं
लक्ष्मी परां स्मरेत् ॥ ४३ ॥
रजकीति महासिद्धिं देहि मे हर
ठद्वयम् ।
रजकी शुद्धिमन्त्रोऽयं कुलयोषिद्
वशङ्करः ॥४४॥
रजकीमन्त्र - ॐ ऐं क्लीं सौः
श्रीं ह्रीं रजकी महासिद्धि देहि मे फट् स्वाहा। यह रजकी मन्त्र कुलयोषिताओं
को वश में करने वाला है।। ४३-४४।।
श्रीदेवीरहस्य पटल २३- नापिताङ्गनाशोधनमन्त्रोद्धारः
तारं तारत्रयं वस्त्रं
प्रोच्चरेन्नापिताङ्गने ।
हर युग्मं च में विघ्नांस्तुरगं
ठद्वयं ततः ॥ ४५ ॥
नापितस्त्री शुद्धिमन्त्रो
महामाङ्गल्यदायकः ।
नापितांगना मन्त्र —
ॐ ॐ ॐ ॐ ह्सौः नापितांगने फट् फट् मे विघ्नान् फट् स्वाहा। यह नापित स्त्रीशुद्धि मन्त्र महामाङ्गल्यदायक है ।। ४५ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल २३- ब्राह्मणीशोधनमन्त्रोद्धारः
वेदाद्यं भूतिबीजं च तारं मायां
धनुर्धरः ॥ ४६ ॥
ब्राह्मणि स्मर वीर्यं च मुञ्च
मुञ्चेति सर्वदा ।
सिद्धिं मे देहि देहीति हरं
दहनवल्लभा ॥४७॥
ब्राह्मणीशुद्धिमन्त्रोऽयं
महासिद्धिप्रदायकः ।
ब्राह्मणी मन्त्र —
ॐ ह्रीं ॐ ह्रीं लं ब्राह्मणी क्लीं वीर्य मुञ्च मुञ्च सर्वदा
सिद्धि मे देहि देहि फट् स्वाहा। यह ब्राह्मणी मन्त्र
महासिद्धिप्रदायक है ।।४६-४७।।
श्रीदेवीरहस्य पटल २३- शूद्राणीशोधनमन्त्रोद्धारः
तारं रमा रमा तारं शूद्राणि च
रतप्रिये ॥ ४८ ॥
रेतः स्तम्भय मे सिद्धिं देहि
युग्मं ततो वनम् ।
शूद्राणीशुद्धिमन्त्रोऽयं कामिनीजनमोहनः
॥४९॥
शूद्राणी मन्त्र —
ॐ श्रीं श्रीं ॐ शूद्राणि रतिप्रिये रेतः स्तम्भय में सिद्धि
देहि देहि स्वाहा। यह शूद्राणी-शुद्धि मन्त्र कामिनियों
का मोहक है।।४८-४९।।
श्रीदेवीरहस्य पटल २३- गोपस्त्रीशोधनमन्त्रोद्धारः
तारकं शिवषड् दीर्घसंयुतं मठबीजकम्
।
गोपालि मे सिद्धदण्डं द्रावय
द्वयमुद्धरेत् ॥५०॥
ठद्वयान्तो महामन्त्रो
गोपीशोधनसाधकः ।
गोपकन्या मन्त्र —
ॐ ह्रां ह्रीं हूं हैं ह्रौं ह्रः ग्लौं गोपालि मे सिद्धदण्डं
द्रावय द्रावय स्वाहा। यह गोपीशोधन मन्त्र साधकों का
महामन्त्र है ।। ५० ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल २३- मालिनीशोधनमन्त्रोद्धारः
तारद्वयीसम्पुटितां मृद्वीकां
दीर्घसंयुताम् ॥ ५१ ॥
उद्धृत्य मालिनि प्रेम कुरु-युग्मं
मयि स्मरेत् ।
तुरगं ठद्वयं प्रान्ते मन्त्रोऽयं
मालिनीप्रियः ॥ ५२ ॥
मालिनी मन्त्र —
ॐ धूं ॐ मालिनि प्रेम कुरु कुरु मयि फट् स्वाहा। यह मन्त्र मालिनी को प्रिय है।।५१-५२।।
योनौ जपेत् कुमारीणां कौलिकः
करमालया ॥५३॥
एवं शोधनमन्त्रास्ते वर्णिताश्च
पृथङ्मया ।
सञ्जय दक्षकर्णे च मूलमन्त्रं
त्रिरुच्चरेत् ।
अदीक्षितापि देवेशि दीक्षितैव भवेत्
तदा ॥ ५४ ॥
इस प्रकार शोधन मन्त्रों का वर्णन
अलग-अलग किया गया। कुमारियों की योनि पर करमाला से कौलिक जप करें। जप के बाद मूल
मन्त्र का उच्चारण तीन बार उस कुमारी के दक्ष कान में करे। हे देवेशि ! ऐसा करने
से अदीक्षित कुमारी भी दीक्षित हो जाती है ।।५३-५४।।
श्रीदेवीरहस्य पटल २३- दीक्षितायां
वीरतर्पणम्
दीक्षितां शोधितां वीरो भजेत्
सर्वार्थसिद्धये ।
तारं व्योषमौष्मकं च शिवायेति
स्वयम्भुवम् ॥५५ ॥
सम्पूज्य शिवमन्त्रं च जपेत्
संस्तभ्य पुंध्वजम् ।
जप्त्वा निरुध्य तं दण्डं
करभीतुण्डमुद्रया ॥५६ ।।
आनन्दतर्पितां कान्तां वीरः
स्वानन्दविग्रहः ।
रतेन तर्पयेत् तत्र श्रीचक्रे
वीरसंसदि ॥५७॥
पठन् प्रणवमुद्धृत्य मन्त्रराजं
कुलेश्वरि ।
धर्माधर्महविर्दीप्ते स्वात्माग्नौ
मनसा स्रुचा ॥५८॥
सुषुम्नावर्त्मना
नित्यमक्षवृत्तीर्जुहोम्यहम् ।
स्वाहान्तमन्त्रमुच्चार्य जपन् मूलं
स्मरन् पराम् ।। ५९ ।।
कुर्यान्निधुवनं मन्त्री
मन्त्रसिद्धिमवाप्नुयात् ॥ ६० ॥
तारद्वयान्तरगतं परमानन्दकारणम् ।
प्रकाशाकाशहस्ताभ्यामवलम्ब्योन्मनीस्रुचम्
।। ६९ ।।
धर्माधर्मकलास्नेहपूर्णां वह्नौ
जुहोम्यहम् ।
स्वाहान्तेनाशु मन्त्रेण शुक्रमादाय
पार्वति ॥ ६२ ॥
श्रीचक्रे तर्पयेद् देवीं ततः
सिद्धिमवाप्नुयात् ।
सम्पूज्य कान्तां सन्तर्प्य
स्तुत्वा नत्वा परस्परम् ।
संहारमुद्रया मन्त्री शक्तिं वीरान्
विसर्जयेत् ॥ ६३ ॥
इतीदं परमं दिव्यं
शक्तिशोधनमुत्तमम् ।
तव स्नेहेन निर्णीतं गोपनीयं
मुमुक्षुभिः ॥ ६४ ॥
दीक्षितों में वीरतर्पण- दीक्षित
शोधित शक्तियों को ही वीर सर्वार्थसिद्धि के लिये आचार में ग्रहण करे। 'ॐ ह्रां नमः शिवाय' मन्त्र
से अपने लिङ्ग की पूजा करके शिव मन्त्र का जप करके लिङ्गोत्थान करे। जप के बाद
हाथी के सूंड के समान लिंग को कान्ता की योनि में प्रविष्ट करके आनन्दविग्रह वीर
कान्ता का भी आनन्द से तर्पण करे। यह कार्य श्रीचक्र में वीरों के सामने होता है।
हे कुलेश्वरि ॐ के साथ निम्न मन्त्रराज का पाठ करे-
ॐ धर्माधर्महविर्दीप्ते
स्वात्माग्नौ मनसा स्रुचा ।
सुषुम्नावर्त्मना नित्यमक्षवृत्ती
जुहोम्यहम् स्वाहा।।
इसके बाद मूल मन्त्र का जप परा देवी
का स्मरण करके करे। इस मैथुन से साधक सिद्ध होता है। मैथुन के बाद मूल मन्त्र का
जप करे और इस मन्त्र का पाठ करे- ॐ
परमानन्दकारणमप्रकाशाप्रकाशहस्ताभ्यामवलम्ब्योन्मनी स्रुचं
धर्माधर्मकलास्नेहपूर्णां वह्री जुहोम्यहम् स्वाहा ॐ स्वाहा के बाद वीर्य लेकर
श्रीचक्र में देवी का तर्पण करे। इस प्रकार सिद्धि प्राप्त होती है। इसके बाद
कान्ता का पूजन तर्पण और स्तुति करके परस्पर प्रणाम करे। संहारमुद्रा में साधक
शक्ति के साथ वीरों का विसर्जन करे। इस प्रकार यह परम दिव्य शक्तिशोधन का वर्णन
तुम्हारे स्नेहवश मैंने किया। इसे मुमुक्षुओं से भी गुप्त रखना चाहिये ।। ५५-६६ ।।
इति श्रीरुद्रयामले तन्त्रे
श्रीदेवीरहस्ये शक्तिशोधनविधि-निरूपणं नाम त्रयोविंश: पटलः ॥ २३ ॥
इस प्रकार रुद्रयामल तन्त्रोक्त
श्रीदेवीरहस्य की भाषा टीका में शक्तिशोधन-विधि निरूपण नामक त्रयोविंश पटल पूर्ण
हुआ।
आगे जारी............... रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्य पटल 24
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