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वीरवन्दन स्तोत्र
रुद्रयामलतन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्यम् के पटल २१ में शान्ति स्तोत्र और वीरवन्दन स्तोत्र के विषय में बतलाया गया है।
रुद्रयामलतन्त्रोक्तं श्रीदेवीरहस्यम् एकविंशः पटलः वीरवन्दनस्तोत्रम्
Shri Devi Rahasya Patal 21
रुद्रयामलतन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्य इक्कीसवाँ पटल वीर वन्दन स्तोत्र
रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्यम्
एकविंश पटल
श्रीदेवीरहस्य पटल २१ वीरवन्दन स्तोत्र
अथैकविंशः पटलः
अथ वीरवन्दनस्तोत्रम्
जगत्त्रयाभ्यर्चितशासनेभ्यः परार्थसम्पादनकोविदेभ्यः
।
समुद्धृतक्लेशमहोरगेभ्यो नमो नमः साधकनायकेभ्यः
॥ २० ॥
वीरवन्दन स्तोत्र - उस साधक नायक को
बार-बार प्रणाम है, जिसका अर्चन तीनों
लोक करता है, जिसके शासन से कोविद परोपकार कार्य को सम्पादित
करते हैं। जो महानागों के विषजन्य क्लेश से उद्धार करता है ।। २० ।।
प्रहीणसर्वास्त्रववासनेभ्यः
सर्वार्थतत्त्वोदितसाधनेभ्यः ।
सर्वप्रजाभ्युद्धरणोद्यतेभ्यो नमो
नमः साधकनायकेभ्यः ॥ २१ ॥
उस साधकनायक को बार-बार प्रणाम है,
जो सर्वार्थ तत्त्वोदित साधना से सभी वासनाओं से रहित है। जो सभी
प्रजा के अभ्युदय और उद्धार के लिये सदैव लगा रहता है ।। २१ ।।
निस्तीर्णसंसारमहार्णवेभ्यस्तृष्णालतोन्मूलनतत्परेभ्यः
।
जरारुजामृत्युनिवारकेभ्यो नमो नमः
साधकनायकेभ्यः ॥ २२ ॥
उस साधक नायक को बार-बार प्रणाम है,
जो दुस्तर संसार महासागर को पार करता है, जो
तृष्णालता के उन्मूलन में तत्पर रहता है और जो बुढापा, रोग
एवं मृत्यु का निवारण करता है ।। २२ ।।
सद्धर्मरत्नाकरभाजनेभ्यो निर्वाणमार्गोत्तमदेशिकेभ्यः
।
सर्वत्र सम्पूर्णमनोरथेभ्यो नमो नमः
साधकनायकेभ्यः ॥ २३॥
उस साधक श्रेष्ठ को बार-बार प्रणाम
है,
जो सद् धर्म का रत्नाकर है, जो निर्वाण के
उत्तम मार्ग का देशिक है और जिसके सभी मनोरथ सर्वत्र पूर्ण हैं ।। २३ ।।
लोकानुकम्पाभ्युदितादरेभ्यः
कारुण्यमैत्रीपरिभावितेभ्यः ।
सर्वार्थचर्यापरिपूरकेभ्यो नमो नमः
साधकनायकेभ्यः ॥२४॥
उस साधकोत्तम को बार-बार प्रणाम है,
जो लोकानुकम्पा से अभ्युदितों का आदर करता है। जो कारुण्य मैत्री से
परिभावित है। जो सर्वार्थचर्या का परिपूरक है ।। २४ ।।
विध्वस्तनिः शेषकुवासनेभ्यो
ज्ञानाग्निना दग्धमलेन्धनेभ्यः ।
प्रज्ञाप्रतिज्ञापरिपूरकेभ्यो नमो
नमः साधकनायकेभ्यः ॥ २५ ॥
उस साधकनायक को बार-बार प्रणाम है,
जिसकी सभी बुरी वासनाओं का विनाश हो गया है, जिसके
ज्ञान की अग्नि में सभी मलिनतारूपी ईन्धन भस्म हो गये हैं, जो
अपनी प्रज्ञा प्रतिज्ञा को पूर्ण कर चुका है ।। २५ ।।
सर्वार्थिताशापरिपूरकेभ्यो
वैनेयपद्माकरबोधकेभ्यः ।
विस्तीर्णसर्वार्थगुणाकरेभ्यो नमो
नमः साधकनायकेभ्यः ॥ २६ ॥
उस साधकनायक को बार-बार प्रणाम है,
जिसने अपनी सभी इच्छित आशाओं को पूरा कर लिया है, जो सभी पद्माकरों का बोध कराने वाला है जो सभी गुणों का विस्तृत सागर है
।। २६ ।।
अनन्तकर्मार्जितशासनेभ्यो
ब्रह्मेन्द्ररुद्रादिनमस्कृतेभ्यः I
परस्परानुग्रहकारकेभ्यो नमो नमः
साधकनायकेभ्यः ॥२७॥
उस साधकनायक को बार-बार प्रणाम है,
जो अनन्त कर्मों से अर्जित शासन से युक्त है, जिसे
ब्रह्मा, इन्द्रादि नमस्कार करते हैं, जो
परम्परागत अनुग्रह करने वाला है।। २७।।
विभग्नभूतादिमहाभयेभ्यो
मपञ्चकाचारपरायणेभ्यः ।
समस्तसौभाग्यकलाकरेभ्यो नमो नमः
कारणनायकेभ्यः ॥ २८ ॥
जो महाभूतादि से निर्भय है,
जो पञ्च मकार का आचारपरायण है, जो सभी
सौभाग्यकलाओं का सागर है, उस साधकनायक को बार-बार प्रणाम है
।। २८ ।।
विभक्तदुष्कर्मजवासनेभ्यः समन्ततो
जुष्टमहायशोभ्यः ।
लभ्यामलज्ञानकृतास्पदेभ्यो नमो नमः
शाम्भविशाम्भवेभ्यः ॥ २९ ॥
जो दुष्कर्मजनित वासनाओं से पृथक्
है,
जो सभी महायशों की प्राप्ति से प्रसन्न है, जो
विमल ज्ञानलाभ से कृतास्पद है, उस शाम्भव और शाम्भवी को मेरा
बार-बार प्रणाम है ।। २९ ।।
सर्वागमाम्भोधिमहाप्लवेभ्यः
श्रीचक्रपूजार्थपरायणेभ्यः ।
श्रीवीरचर्याचरणक्षमेभ्यो नमो नमः
शाम्भविशाम्भवेभ्यः ॥ ३० ॥
जिसने सभी आगमों के महासागर में
गोता लगा लिया है, जो श्रीचक्र की
पूजा में सदा संलग्न है, जो श्री वीराचार में सक्षम है,
ऐसे शाम्भव-शाम्भवी को बार-बार नमन है ।। ३० ।।
श्रीमन्त्रकोटिद्युतिभूषणेभ्यो
द्वाविंशदुल्लासदशातिगेभ्यः ।
अद्वैतत्तत्त्वामृतभाजनेभ्यो नमो
नमः शाम्भविशाम्भवेभ्यः ॥ ३१ ॥
कोटि श्रीमन्त्रों की ज्योति जिसका
भूषण है,
जो बाईस उल्लास की अवस्था पार कर चुका है, जो
अद्वैत अमृत तत्त्व का भाजन है, ऐसे शाम्भव- शाम्भवी को
बार-बार प्रणाम है ।। ३१।।
षट्त्रिंशताल क्षणभूषितेभ्यः
प्रोत्फुल्लपद्माकरलोचनेभ्यः ।
प्रतप्तचामीकरविग्रहे भ्यो नमो नमः
शाम्भविशाम्भवेभ्यः ॥३२॥
जो छत्तीस लक्षणों से विभूषित है,
जिनके नेत्र विकसित कमल के समान हैं, जिनके
विग्रह तप्त स्वर्ण के समान हैं, ऐसे शाम्भव- शाम्भवी को
बार-बार प्रणाम है ।। ३२ ।।
सम्बोधसम्भारसुसंस्थितेभ्यः
संसारनिर्वाणनिदर्शनेभ्यः ।
महाकृपावेष्टितमानसेभ्यो नमो नमः
शाम्भविशाम्भवेभ्यः ॥ ३३ ॥
जो सम्बोध संभार में सम्यक् रूप से
स्थित है,
जो संसार से निर्वाण का निदर्शक है, जिसका
मानस महाकृपा से वेष्टित है, ऐसे शाम्भवी और शाम्भव को बार-बार
प्रणाम है ।। ३३ ।।
परैक्यविज्ञान रसाकुलेभ्यो वामाश्रिताचार
भयानकेभ्यः ।
स्वातन्त्र्यविध्वस्तजगत्तमोभ्यो
नमो नमः शाम्भविशाम्भवेभ्यः ॥३४॥
जो पर ऐक्य ज्ञान रसाकुल है,
जो भयानक वामाचार पर आश्रित है, जो जगत् के
अन्धकार का विनाश करने में स्वतन्त्र है, ऐसे शाम्भवी शाम्भव
को बार-बार प्रणाम है ।।३४।।
श्मशानचर्याप्तमहाफलेभ्यो
मोहान्धकारापहृतिक्षमेभ्यः ।
परस्पराज्ञापरिपालकेभ्यो नमो नमः
शाम्भविशाम्भवेभ्यः ॥३५॥
जो श्मशानचर्या और उसके फल में
निष्णात है, जो मोहरूपी अन्धकार का विनाश
करने में सक्षम हैं, जो परस्पर आज्ञा का पालनकर्ता है,
ऐसे शाम्भवी शाम्भव को बार-बार प्रणाम है।। ३५ ।।
विधूतकेशालिकपालकेभ्यः
सुरासवारक्तविलोचनेभ्यः ।
नवीनकान्तारततत्परेभ्यो नमो नमः
शाम्भविशाम्भवेभ्यः ॥ ३६ ॥
जिसके कपाल केशरहित है,
शराब और नरकपाल जिसके हाथों में है, जिसकी आँखें
सुरा और आसवपान से लाल हैं, जो तरुण रमणी के साथ रति में
तत्पर हैं, ऐसे शाम्भवी और शाम्भव को बार-बार प्रणाम है ।।
३६ ।।
विभूतिलिप्ताङ्ग
दिगम्बरेभ्यश्चिताग्निधूमालिभयानकेभ्यः ।
कपालसान्द्रामृतपानकेभ्यो नमो नमो
भैरविभैरवेभ्यः ||३७||
जिसका भस्मालेपित शरीर नग्न हो,
भयानक चिता की अग्नि और धूम में भी मद्यपानरत हो, जो कपालपात्र में मद्यपान करता हो, ऐसे भैरवी भैरव
को बार-बार प्रणाम है ।। ३७।।
सिद्ध्यष्टकाधानमहामुनिभ्यः श्री
भैरवाचारकृतादरेभ्यः ।
स्वाधीनतान्यक्कृतनिर्जरभ्यो नमो
नमो भैरविभैरवेभ्यः ॥ ३८ ॥
जो आठों सिद्धियों को देने में
सक्षम महामुनि है, जो
भैरवाचार-कृतास्पद है, जो अन्य कर्मों से स्वतन्त्र है,
ऐसे भैरवी भैरव को बार-बार प्रणाम है।। ३८ ।।
प्रशान्तशास्त्रार्थविचारकेभ्यो
निवृत्तनानारसकाव्यकेभ्यः ।
निरस्तनिः शेषविकल्पनेभ्यो नमो नमो
भैरविभैरवेभ्यः ॥ ३९ ॥
जो प्रशान्त शास्त्रविचारक है,
जो काव्य के नाना रसों से घिरा है, जो सभी
विकल्पों से पृथक् है, ऐसे भैरवी-भैरव को बार-बार प्रणाम
है।। ३९ ।।
स्वात्मैक्यभावान्तरिताशयेभ्यः
सायुज्यसाम्राज्यसुखाकरेभ्यः ।
श्री सच्चिदानन्दितविग्रहेभ्यो नमो
नमो भैरविभैरवेभ्यः ॥४०॥
स्वात्मैक्य भाव से अन्तरित
आशययुक्त है, जो सायुज्य साम्राज्य सुख का
सागर है, जिसका विग्रह सच्चिदानन्द से आनन्दित है, ऐसे भैरवी भैरव को बार-बार नमस्कार है ।। ४०।।
पराप्रसादास्पदमानसेभ्यो ब्रह्माद्वयज्ञानरसाकुलेभ्यः
।
शिवोऽहमित्याश्रितचेतनेभ्यो नमो नमो
भैरविभैरवेभ्यः ॥४१॥
जो परा प्रसाद मन्त्रास्पद मानस
वाला है,
जो अद्वैत ब्रह्मज्ञान रस से आकुल है, जिसकी चेतना
'शिवोऽहं' में आश्रित है, ऐसे भैरवी भैरव को बार-बार प्रणाम है ।। ४१ ।।
सर्वथा सर्वदानन्दं सर्वं
घटपटादिसत् ।
जगज्जनितविस्तारं ब्रह्मेदमिति
वेद्वयहम् ॥४२॥
अहमेव परो हंसः शिवः परमकारणम् ।
मत्प्राणे स तु मच्चात्मा लीनः
समरसीगतः ॥ ४३ ॥
सच्चिदानन्दनिलयं परापरमकारणम् ।
शिवाद्वयप्रकाशाढ्यं श्यामलं धाम
धीमहि ॥ ४४ ॥
सभी नित्यानन्द,
सभी घट-पट आदि से युक्त जगत जनित विस्तार ब्रह्म ही है और वह ब्रह्म
मैं ही हूँ। मैं ही परम हंस हूँ। परम कारण शिव हूँ। मेरे प्राण और आत्मा समरसता
में लीन हैं, परा परम कारण है। सच्चिदानन्द का आलय है। अद्वय
शिव प्रकाशपुञ्ज है, बुद्धि श्यामल धाम है।। ४२-४४।।
स्तोत्रफलप्रशंसा
अनेन वीरस्तवकीर्तनेन
समुद्धृतक्लेशसुवासनोऽहम् ।
संसारकान्तारमहार्णवेऽस्मिन्
निमज्जमानं जगदुद्धरेयम् ॥ ४५ ॥
इस वीरस्तोत्र के पाठ से मैं
क्लेशमुक्त होकर सुन्दर वासनाओं से युक्त हो गया हूँ। संसारकान्तार्णव में डूबते
हुए लोगों के लिये यह स्तोत्र उनको पार करने वाला नाव है ।। ४५ ।।
इति श्रीरुद्रयामले तन्त्रे
श्रीदेवीरहस्ये शान्तिस्तोत्रवीरवन्दन- निरूपणं नामैकविंशः पटलः ॥ २१ ॥
इस प्रकार रुद्रयामल तन्त्रोक्त
श्रीदेवीरहस्य की भाषा टीका में शान्ति-वीरवन्दनरूपस्तोत्रद्वयनिरूपण नामक एकविंश
पटल पूर्ण हुआ।
आगे जारी............... रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्य पटल 22
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