श्रीदेवीरहस्य पटल २०

श्रीदेवीरहस्य पटल २० 

रुद्रयामलतन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्यम् के पटल २० में पात्रवन्दन विधि का निरूपण के विषय में बतलाया गया है।

श्रीदेवीरहस्य पटल २०

रुद्रयामलतन्त्रोक्तं श्रीदेवीरहस्यम् विंशः पटलः पात्रवन्दनविधिः

Shri Devi Rahasya Patal 20 

रुद्रयामलतन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्य बीसवाँ पटल

रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्यम् विंश पटल

श्रीदेवीरहस्य पटल २० पात्रवन्दन विधि निरूपण

अथ विंशः पटलः

पात्रवन्दनविधिः

श्रीभैरव उवाच

अधुना देवि वक्ष्येऽहं पात्रवन्दनमीश्वरि ।

तत्कालं यद्वदानन्दपात्रं देवैश्च वन्दितम् ॥ १ ॥

पूजायां पात्रमानन्दभरितं परमेश्वरि ।

गुरुणा दत्तमभ्यर्च्य प्रणमेच्छिरसा तदा ॥२॥

पात्रवन्दनविधिश्री भैरव ने कहा कि हे देवेश्वरि! अब मैं पात्रवन्दन को बतलाता हूँ, जो देवी वन्दना के बाद तुरन्त पात्रों में आनन्द देती हैं और जो देवताओं से भी वन्दित है। हे परमेश्वरि! पूजा में गुरुपात्र की वन्दना गुरुवत् करे वह पात्र आनन्द से परिपूर्ण होता है। उस समय शिर झुकाकर उसे प्रणाम करे ।। १-२ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २०-प्रथमपात्रवन्दनम्

श्रीमद्भैरवशेखरप्रविलसच्चन्द्रामृताप्लावितं

क्षेत्राधीश्वरयोगिनीगणमहासिद्धैः समाराधितम् ।

आनन्दागमकं महात्मकमिदं साक्षात् त्रिखण्डामृतं

वन्दे श्रीप्रथमं कराम्बुजगतं पात्रं विशुद्धिप्रदम् ॥३॥

प्रथम पात्र - वन्दना श्री भैरव के मस्तक पर विलसित चन्द्रमा से अमृत झर रहा है। क्षेत्राधीश्वरों, योगिनीगणों एवं महासिद्धों से ये आराधित हैं। यह आनन्दकर, महात्मकर, साक्षात् त्रिखण्डामृत से युक्त है। इस विशुद्धिप्रद प्रथम पात्र की मैं वन्दना करता हूँ, जो उन भैरव के करकों में शोभित है ।। ३ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २०-द्वितीयपात्रवन्दनम्

हैमं सिन्धुरसावहं दयितया दत्तं च पेयादिभिः

किञ्चिच्चञ्चलरक्तपङ्कजदृशा सानन्दमुद्वीक्षितम् ।

वामे स्वादुविशुद्धशुद्धिकवलं पाणौ विधायात्मके

वन्दे पात्रमहं द्वितीयमधुनानन्दैक संवर्धनम् ॥४॥

द्वितीय पात्र बन्दना-  मेरे बॉयें हाथ में जो पात्र है, वह रस का सागर है। यह दयिताप्रदत्त हैं, जो उसके द्वारा स्वयं पान किया हुआ है। इसके कमलनयन किञ्चित चञ्चल हैं। वह आनन्दपूर्वक देख रही है। उनके बायें हाथ में विशुद्ध शुद्धि कौर है। इस द्वितीय पात्र की मैं वन्दना करता हूँ। यह आनन्द का संवर्धक है ।।४।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २०-तृतीयपात्रवन्दनम्

सर्वाम्नायकलाकलापकलितं कौतूहलोद्योतितं

चन्द्रोपेन्द्र महेन्द्रशम्भुवरुणब्रह्मादिभिः सेवितम् ।

ध्यातं देवगणैः परं मुनिगणैर्मोक्षार्थिभिः सर्वदा

वन्दे पात्रमहं तृतीयमधुना स्वात्मावबोधक्षमम् ॥५॥

तृतीय पात्र बन्दना - यह तृतीय पात्र सभी आम्नायों के कलाकलापकलित हैं। कौतूहल से प्रकाशित है। चन्द्र, विष्णु, इन्द्र, शिव, वरुण, ब्रह्मादि द्वारा संसेवित है। देवगण, श्रेष्ठ मुनिगण और मोक्षार्थी भी सदैव इसका ध्यान करते हैं। इस तृतीय पात्र की मैं वन्दना करता हूँ, जो अपनी आत्मा का बोध कराने में सक्षम है।।५।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २०-चतुर्थपात्रवन्दनम्

मद्यं मीनरसावहं हरिहरब्रह्मादिभिः पूरितं

मुद्रामैथुनधर्मकर्मनिरतं क्षाराम्लतिक्ताश्रयम् ।

आचार्याष्टकसिद्ध भैरवकलान्यासेन संशोधितं

पायात् पञ्चमकारतत्त्वनिलयं पात्रं चतुर्थ नुमः ॥६॥

चतुर्थ पात्र वन्दना - चतुर्थ पात्र मद्य, मीन और रस का सरित् है। यह विष्णु, शिव और ब्रह्मा से सेवित है। मुद्रा, मैथुन, धर्म, कर्म में निरत है। क्षार, अम्ल, तिक्त रस का आश्रय है। आठ आचार्यों, सिद्ध एवं भैरव के कला-न्यास से संशोधित है। यह पञ्च मकारतत्त्वों का आलय है। ऐसे चतुर्थ पात्र को नमस्कार है ।। ६ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २०-पञ्चमपात्रचन्दनम्

आधारे भुजगाधिराजवलये पात्रं महीमण्डलं

मद्यं सप्तसमुद्रवारि पिशितं चाष्टौ च दिग्दन्तिनः ।

सोऽहं भैरवमर्चयन् प्रतिदिनं तारागणैरक्षतै-

रादित्यप्रमुखैः सुरागुरगणैराज्ञाकरैः किङ्करैः ॥७॥

पञ्चम पात्र बन्दना - शेषनाग के फन को कङ्कण बनाने वाले भूमण्डल का पात्र सातों सागरों के जलरूप मद्य एवं आठों दिग्गजों के मांस से परिपूर्ण है। मैं भैरव प्रतिदिन उस पात्र का अर्चन तारागणों के अक्षत से करता हूँ। जिसमें मेरे आज्ञाकारी किङ्कर, आदित्य प्रमुख सुर, देव और दैत्य भी समन्वित रहते हैं ।।७।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २०-षष्ठपात्रवन्दनम्

सच्छत्रामलभद्रपीठपरमानन्दोदयादायकं

रम्यं राज्यकरं सदा सुखकरं सायुज्यसाम्राज्यदम् ।

नानाव्याधिभवान्धकारहरणं जन्मान्तरध्वंसनं

श्रीमद्भैरव भैरवीप्रियतरं पात्रं च षष्ठं नुमः ॥ ८ ॥

षष्ठ पात्र वन्दना - मैं उस छठे पात्र की बन्दना करता हूँ, जो श्रीमद् भैरव-भैरवी को प्रियतर है। जो सांसारिक विविध व्याधि- अन्धकार का हरण करने वाला है। जो जन्मान्तर का विनाशक है जो रमणीक राज्यप्रदायक सदा सुखदायक सायुज्य साम्राज्यदायक है। जो छत्रयुक्त विमल पीठ पर स्थित परमानन्दप्रदायक है ।।८।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २०-सप्तमपान्त्रवन्दनम्

जाग्रत्स्वप्नसुषुप्तितुर्यपरतश्चैतन्यसाक्ष्यप्रदं

विद्युद्धास्करवह्निचन्द्रधनुषां ज्योतिष्कलाव्यापितम् ।

येडापिङ्गलमध्यगा त्रिवलया तस्याः प्रबोधोद्धरं

पात्रं सप्तममूषणेन तरुणानन्दप्रदं पातु माम् ॥ ९ ॥

सप्तम पात्र वन्दना - जो जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति, तुरीयावस्था से परे चैतन्य का साक्षात् प्रदायक है; जो विद्युत, सूर्य, चन्द्र, अग्नि के प्रकाश से व्याप्त है, जो इडा, पिगंला, सुषुम्णा मध्यगामिनी त्रिवलया कुण्डलिनी को प्रबुद्ध कर उद्धार करके खिड़की से दिखाने वाला है, ऐसा तरुणानन्दप्रदायक सप्तम पात्र मेरी रक्षा करे ।। ९ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २०-अष्टमपात्रवन्दनम्

खड्गं पात्रकमञ्चलं च गुटिकां कण्ठे हि सारस्वतं

शत्रोर्वाग्बलशौर्यकार्यहरणं देहस्थिते: कारणम् ।

वाञ्छासिद्धिकरं मनःस्थितिकरं वश्यं जगद्योषितां

पात्रं चाष्टममष्टसिद्धिकरणं प्रौढप्रसन्नं भजे ॥१०॥

अष्टम पात्र बन्दना-प्रौढ़, प्रसन्न, अष्ट सिद्धिप्रदायक अष्टम पात्र की वन्दना करता हूँ। यह पात्र वाञ्छासिद्धिकारक, मन को स्थिर करने वाला, संसार की योषिताओं को वशीभूत करने वाला है। एक हाथ में खड्ग, दूसरे में पात्र, कण्ठ में सारस्वत गुटिका धारण किये हुए है। यह सारस्वत गुटिका शत्रु की वाणी, शक्ति, शौर्यकार्य की विनाशिका है। देह की स्थिति का कारण है एवं समस्त सिद्धियों को देने वाला है ।।१०।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २०-नवमपात्रवन्दनम्

सर्वानन्दकरं सदाशिवपदं सर्वार्थसम्पत्प्रदं

साम्राज्यार्थकरं समस्तसुखदं चाज्ञानविध्वंसनम् ।

आयुः कान्तियशोविवर्धनकरं संसारमोहच्छिदं

पात्रं लक्षगुणात्मकं च नवमं प्रौढप्रतापं भजे ॥ ११ ॥

नवम पात्र बन्दना - नवम पात्र लक्ष गुणात्मक, प्रौढ़ प्रतापकारक है। इसकी वन्दना करता हूँ। यह सभी आनन्दों का दाता, सदाशिव का पद देने वाला, सर्वार्थ- प्रदायक, सम्पत्तिप्रदायक, साम्राज्य के वैभव से युक्त करने वाला, सभी सुखों को देने वाला, अज्ञान का विनाशक, आयु-कान्ति यश का वर्द्धक एवं संसार के मोह का उच्छेदन करने वाला है। ऐसे पात्र की मैं वन्दना करता हूँ ।। ११ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २०-दशमपात्रवन्दनम्

ब्रह्मविष्णुमहेशानां देवानां च विशेषतः ।

दुर्लभं पावनं पात्रं दशमं प्रणमाम्यहम् ॥ १२ ॥

दशम पात्र वन्दना - दशम पात्र की मैं वन्दना करता हूँ, जो ब्रह्मा, विष्णु, महेश और देवताओं को विशेषकर दुर्लभ है। इस पावन दशम पात्र को मैं नमस्कार करता हूँ ।। १२ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २०-एकादशपात्रवन्दनम्

पापघ्नं शान्तिशुभदं दिव्यं स्वादु सुखालयम् ।

पात्रमेकादशं वन्दे गुरुसेवासुखागतम् ॥ १३ ॥

एकादश पात्र वन्दना गुरुसेवा सुखागत एकादश पात्र की मैं वन्दना करता हूँ, जो पापों का विनाशक, शान्ति शुभदायक, दिव्य, स्वादु और सुख का आलयस्वरूप है ।। १३ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २०-पात्रधारणफलम्

पात्रं कृत्वा करे मन्त्री सर्वकर्म लभेत् सुखी ।

इह लोके श्रियं भुक्त्वा देहान्ते भैरवो भवेत् ॥ १४ ॥

साधक हाथ में पात्र लेकर सभी कार्यों में सफल होकर सुखी होता है। इस संसार में श्री प्राप्त करके भोग भोगकर देहान्त के बाद भैरव होता है ।। १४ ।।

श्रीदेवीरहस्य पटल २०-कौलिकवीरत्वभावकथनम्

देहस्थाखिलदेवता गजमुखाः क्षेत्राधिपा भैरवाः

योगिन्यो वटुकाश्च यक्षपितरः पैशाचिकाश्चेटका: ।

अन्ये भूचरखेचराः प्रतिपगा वेतालभूतग्रहास्तृप्ताः

स्युः कुलपुत्रकस्य पिबतः पानं सदीपं चरुम् ॥ १५ ॥

कौलिक वीरत्व भाव- कौलिक वीर के शरीर में सभी देवों, गणेशों, क्षेत्रपालों, भैरवों, योगिनियों, वटुक, यक्ष, पितर, पिशाच, चेटकादि अन्य भूतलगामी, आकाशचारी, प्रतिपग, वेताल, भूत, ग्रह का वास होता है उसे पीने से सबों की वृद्धि होती है। दीपक के साथ चरु के पान से यह तृप्ति मिलती है ।। १५ ।।

करे माला मुखे हाला वामे रामा सुकोमला ।

हृदये त्रिपुरा बाला यागशाला गृहे गृहे ।। १६ ।।

पात्रं भैरवपात्रं गोत्रं श्रीनाथपादुकागोत्रम् ।

शास्त्रं संविच्छास्त्रं ज्ञानं तत्त्वावबोधकं ज्ञानम् ॥ १७ ॥

वामे रामा रमणकुशला दक्षिणे चालिपात्रमग्रे

मुद्राश्चणकवटको सूकरस्योष्णशुद्धिः ।

स्कन्धे वीणा सरसमधुरा सद्गुरोः सत्कथा च

कौलो मार्गः परमगहनो योगिनामप्यगम्यः ॥ १८ ॥

हाथ में माला, मुख में मद्य, बाँयें सुन्दर कोमल रमणी, हृदय में त्रिपुरा बाला, घर-घर में यागशाला, पात्र भैरवपात्र, गोत्र श्रीनाथपादुका गोत्र, शास्त्र संवित् शास्त्र, रमणप्रवीणा रमणी, दक्षिण हाथ में मद्यपात्र, आगे चने का बड़ा मुद्रा की गरम गरम शुद्धि होती हैं। कंधे पर वीणा, सद्गुरु की सरस मधुर सत्कथा से युक्त कौलिकों का मार्ग परम गहन हैं। यह योगियों को भी अगम्य है ।। १६-१८।।

अलिपिशितपुरन्ध्री भोगपूजापरोऽहं

बहुविधकुलमार्गारम्भसम्भावितोऽहम् ।

पशुजनविमुखोऽहं भैरवीमाश्रितोऽहं

गुरुचरणरतोऽहं भैरवोऽहं शिवोऽहम् ॥ १९ ।।

करे पात्रं मुखे स्तोत्रमानन्दो हृदयान्तरे ।

भक्तिर्गुरुपदाम्भोजे शरणं किमतः परम् ॥ २० ॥

कौलिकों का कथन है कि मैं मद्य मांस- रमणी भोगपूजापरायण हूँ। मैं बहुविध कुलमार्ग के आरम्भ से सम्भावित हूँ। पशुजनों से मैं विमुख हूँ। मैं भैरवी का आश्रित हूँ। मैं गुरुचरण का भक्त हूँ। मैं भैरव हूँ। मैं शिव हूँ। मेरे हाथ में पात्र, मुख में स्तोत्र, हृदय में आनन्द, गुरुपदकमलों की भक्ति शरणागति है। इससे श्रेष्ठ और क्या हो सकता है ? ।।१९-२० ।।

एकेन शुष्कवटकेन घटं पिबामि

वापीं पिबामि सहसा लवणार्द्रकेण ।

आस्वाद्य मांसमलिरोहितमुण्डखण्डं

गङ्गां पिबामि यमुनां सह सागरेण ॥ २१ ॥

वामे चन्द्रमुखी मुखे च मदिरा पात्रं कराम्भोरुहे

मूर्ध्नि श्रीगुरुचिन्तनं भगवतीध्यानास्पदं मानसम् ।

जिह्वायां जपसाधनं परिणतिः कौलक्रमाभ्यासने

ये सन्तो नियतं पिबन्ति सुरसं ते भुक्तिमुक्ती गताः ॥२२॥

एक ही सूखे बड़े की शुद्धि के साथ मैं एक घड़ा मद्यपान करता हूँ। नमक और अदरख के साथ वापी को पी जा सकता हूँ। रोहू मछली के मुण्डखण्ड, मांस एवं मद्य का स्वाद लेकर मैं सागर के सहित गङ्गा-यमुना को भी पी सकता हूँ बाँये चन्द्रमुखी हो, मुख में मंदिरा हो, कर-कमल में पात्र हो, मूर्धा में गुरुचिन्तन हो, मन भगवती- ध्यानास्पद हो, जीभ में जप साधन हो, कौलक्रम के अभ्यास में परिणति हो जो सन्त सुन्दर रस का पान नियत मात्रा में करता हो, उसे भोग और मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है ।। २१-२२ ।।

पीत्वा पीत्वा पुनः पीत्वा यावत् पतति भूतले ।

पुनरुत्थाय वै पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते ॥ २३ ॥

धर्माधर्महविर्दीप्ते स्वात्माग्नौ मनसा स्रुचा ।

सुषुम्नावर्त्मना नित्यमक्षवृत्तीर्जुहोम्यहम् ॥ २४ ॥

प्रकाशाकाशहस्ताभ्यामवलम्ब्योन्मनीस्रुचम्

धर्माधर्मकलास्नेहपूर्णां वह्नौ जुहोम्यहम् ॥ २५ ॥

यावन्न चलते दृष्टिर्यावन्न चलते मनः ।

तावत् पानं प्रकर्तव्यं पशुपानमतः परम् ॥ २६ ॥

एक बार पान करे, दो बार पान करे, तब तक पान करे जब तक कि भूतल पर गिर न पड़े और फिर उठकर पान करे, उसे पुनर्जन्म नहीं होता। आत्मा की अग्नि में धर्म-अधर्म की हवि मन की स्रुचा से जो अर्पित करता है और सुषुम्ना मार्ग से नित्य अक्षवृत्ति का हवन करता है, वही कौल है। प्रकाश और आकाश के हाथ का अवलम्बन करके उन्मनी स्रुचा में धर्माधर्म के तैल को भरकर जो हवन करता है, वह कौल है। पशु पान का मत है कि जब तक आँखे चञ्चल न हो जायँ और मन चलायमान न हो जाय तब तक पीना चाहिये ।। २३-२६ ।।

इति श्रीरुद्रयामले तन्त्रे श्रीदेवी रहस्ये पात्रवन्दनविधि- निरूपणं नाम विंशः पटलः ॥ २० ॥

इस प्रकार रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्य की भाषा टीका में पात्रवन्दन-विधि निरूपण नामक विंशं पटल पूर्ण हुआ।

आगे जारी............... रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्य पटल 21

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