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श्रीदेवीरहस्य पटल १९
रुद्रयामलतन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्यम्
के पटल १९ में सुरा की उत्पत्ति का वर्णन के विषय में बतलाया गया है।
रुद्रयामलतन्त्रोक्तं श्रीदेवीरहस्यम् एकोनविंशः पटलः सुरोत्पत्तिः
Shri Devi Rahasya Patal 19
रुद्रयामलतन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्य उन्नीसवाँ पटल
रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्यम्
एकोनविंश पटल
श्रीदेवीरहस्य पटल १९ सुरोत्पत्तिकथनम्
अथैकोनविंशः पटलः सुरोत्पत्तिः
सुरोत्पत्तिकथनम्
श्रीभैरव उवाच
अधुना देवि वक्ष्यामि सुरोत्पत्तिं
महेश्वरि ।
यस्याः श्रवणमात्रेण
दीक्षाफलमवाप्नुयात् ॥ १ ॥
समुद्रे मध्यमाने तु क्षीराब्धौ
सागरोत्तमे ।
तत्रोत्पन्ना सुरादेवी
कुमारीरूपधारिणी ॥२॥
सुरोत्पत्ति- निरूपण - श्री भैरव ने
कहा कि हे देवि महेश्वरि ! अब मैं सुरा की उत्पत्ति का वर्णन करता हूँ,
जिसके श्रवणमात्र से दीक्षाफल प्राप्त होता है। सागरों में उत्तम क्षीरसागर
के मन्थन से कुमारी रूपधारिणी सुरादेवी की उत्पत्ति हुई ।। १-२ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १९- सुरादेवीध्यानम्
नग्ना कालाग्निसदृशी
कृतहासोल्लसन्मुखी ।
अष्टादशभुजा दिव्या नवकुम्भधरा तथा
॥ ३ ॥
नवपात्रधरा तद्वन्मदिरारुणलोचना ।
नानाकुसुमभूषाढ्या मुक्तकेशी
त्रिलोचना ॥४॥
नानारत्नाङ्गदयुता
मुक्ताहारलताञ्चिता ।
रक्ताङ्गुलीयशोभाढ्या
तुङ्गापीनस्तनाञ्चिता ॥ ५ ॥
विचित्ररत्नखचितकाञ्चीगुणनितम्बिनी ।
रत्नसिंहासनगता परमानन्ददायिनी ॥ ६
॥
तां दृष्ट्वा तुष्टुवुर्देवीं
ब्रह्मविष्णुमहेश्वराः ।
ससुरासुरगन्धर्वाः सेश्वरा:
ससदाशिवाः ॥७॥
तदा प्रसन्नवदना वरदानोद्यता सुरा ।
ध्यान - उत्पत्ति के समय यह देवी
नग्न थीं एवं कालाग्नि के समान आभा वाली थीं। हासयुक्त सुन्दर मुख वाली थीं। इनकी
अट्ठारह भुजाएँ थीं। उनके हाथों में नव कुम्भ थे। नव कुम्भधारिणी सुरा देवी की
अरुण आँखें नशीली थीं। भाँति-भाँति के फूलों से सुशोभित उनके वसन थे। केश खुले हुए
थे। आँखें तीन थीं। विविध रत्नों से जटित अंगद थे। मोतियों की माला थी। लाल-लाल
सुन्दर अङ्गुलियाँ थीं। स्तन उच्च और मोटे थे। विचित्र रत्नजड़ित रेशमी डण्डा से
युक्त कटि और नितम्ब भारी थे। रत्नसिंहासन पर आसीन वह आनन्ददायिनी थीं। इन्हें
देखकर ब्रह्मा, विष्णु, महेश,
सुर, असुर, गन्धर्व,
ईश्वर, सदाशिव ने इन्हें स्तुति से तुष्ट किया
तब यह देवी प्रसन्न मुखमण्डल से देवताओं को वरदान देने के लिये उद्यत हुई ।। ३-७।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १९-स्तुतया
सुरादेव्या प्रथमं पात्रं सदाशिवाय दत्तं तद्विदुपाताहुड़लताद्युत्पत्तिकथनम्
आदौ पात्र ददौ दिव्यमानन्दरसपूरितम्
॥८ ॥
सदाशिवाय देवेशि स नत्वा
पात्रमग्रहीत् ।
पात्राद् बिन्दुः पपातोर्व्यां जाता
गुडलतास्ततः ॥ ९॥
बिन्दुपातात् कणा जातास्तेभ्यो
जाताः सहस्रशः ।
इक्षुभेदाश्च खदिरास्त्र्यूषणाद्याः
सितादयः ॥ १० ॥
क्रमुका नागवल्ली च स्रवन्तीति
महेश्वरि ।
गौडी चैतद्युता प्रोक्ता
सर्वार्थफलदायिनी ॥ ११ ॥
सदाशिव को पात्रदान से गुड़-लता की
उत्पत्ति - दिव्य आनन्दरस से पूर्ण प्रथम पात्र पहले इन्होंने सदाशिव को दिया।
उन्होंने इसे ग्रहण किया । देते समय पात्र से कुछ बूँद छलक कर भूमि पर गिर गये,
जिससे गुड़लता उत्पन्न हुई। बिन्दुपात के समय जो कुछ कण छितरा गये,
उनसे हजारों प्रकार के ईखभेद, खदिर, त्र्यूषण, सितादि, क्रमुक,
नागवल्ली उत्पन्न हुए। इन सबों से समन्वित सर्वार्थफलदायिनी गौड़ी
नाम की सुरा उत्पन्न हुई ।।८ - ११।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १९- ईश्वरदत्तद्वितीयपात्रबिन्दुपाता
द्राक्षादी नामुत्पत्तिकथनम्
ततो ददौ परं पात्रमीश्वराय सुरा
शिवे।
पात्राद् बिन्दुः पपातोर्व्यां ततो
जाताहिवल्लरी ॥१२॥
बिन्दुपातकणेभ्योऽपि द्राक्षाभेदाः
सहस्रशः ।
मृद्वीकाद्या महादेवि जाताः
परमपावनाः ॥ १३ ॥
माध्वी प्रोक्ता महाविद्यासाधने
सर्वसिद्धिदा ।
द्वितीय ईश्वरदत्त पात्र के
बिन्दुपतन से द्राक्षादि के उत्पत्ति-तब सुरा देवी ने दूसरा पात्र ईश्वर को दिया ।
देते समय कुछ बून्द उसमें से छलक कर बाहर छिटक गये। उससे अहिवल्लरी की उत्पत्ति
हुई। बिन्दुपात के कणों से द्राक्षा के हजारों भेदों एवं परम पावन मृद्विकादि की
उत्पत्ति हुई। इस सुरा को माध्वी कहते हैं। महाविद्या के साधन में यह सभी
सिद्धियों को देने वाली है।। १२-१३ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १९-रुद्रदत्ततृतीयपात्रबिन्दुपाताद्गोधूमाद्युत्पत्तिकथनम्
ततो ददौ परं पात्रं
रुद्रायामृतपूरितम् ॥ १४ ॥
पात्राद् बिन्दुः पपातोय जाता
गोधूमजातयः ।
तत्कणेभ्यो भदन्ती च जाता वै
धान्यजातयः ॥ १५ ॥
पैष्टी प्रोक्ता सुरा देवि
परमानन्ददायिनी ।
रुद्रदत्त तृतीय पात्र के बिन्दुपात
से गेहूँ आदि की उत्पत्ति-तब सुरा देवी ने तृतीय अमृतपूर्ण पात्र रुद्र को दिया । देते
समय जो कुछ बूँदकण पात्र से छलक कर भूमि पर गिरे, उनसे गेहूँ आदि धान्यों की उत्पत्ति हुई। इन धान्यों से पैष्टी नाम की
सुरा बनती है, जो परमानन्ददायिनी है ।। १४-१५ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १९-विष्णुदत्तचतुर्थपात्रबिन्दुपातात्संविदुत्पत्तिकथनम्
ततो ददौ परं पात्रं विष्णवे
प्रभविष्णवे ।। १६ ।।
पात्राद् बिन्दुः पपातोर्व्यां
संविज्जाता ततः प्रिये ।
तत्कणेभ्योऽपि देवेशि तद्भेदाः
कनकादयः ॥ १७ ॥
अन्ये च बहवो जाता भेदा मदनवर्धकाः
।
विजयेति मया प्रोक्ता वैष्णवी
परमार्थदा ॥ १८ ॥
संविदासवयोर्मध्ये संविदेव गरीयसी ।
चतुर्थ विष्णुदत्त पात्र से संविदा
की उत्पत्ति-सुरा देवी ने चौथा पात्र भास्वर विष्णु को दिया। पात्र से कुछ बूँद
छलक कर पृथ्वी पर गिरे, जिससे संविदा विजया
भांग की उत्पत्ति हुई। छिटके अन्य कणों से उसके भेद धत्तूर आदि की उत्पत्ति हुई;
साथ ही अन्य प्रकार के मादक पौधों की भी उत्पत्ति हुई। वैष्णवी विजया
को मैं परमार्थप्रदायिनी कहता हूँ। संविदा और आसव में संविदा ही श्रेष्ठ है ।।
१६-१८ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १९- परमेष्ठिदत्तपञ्चमपात्रविन्दुपातात्परूषकाद्युत्पत्तिकथनम्
ततो ददौ परं पात्रं श्रीसुरा
परमेष्ठिने ।। १९ ।।
मात्राद् बिन्दुः पपातोर्व्यां जातः
शीघ्रं परूषकः ।
तत्कणेभ्योऽपि सञ्जाता भेदाः
क्षौद्ररसादयः ॥ २० ॥
पानकं प्रोक्तमीशानि सर्वसाधारणं
परम् ।
ब्रह्मा को प्रदत्त पञ्चम पात्र से
परूषक की उत्पत्ति – श्री सुरा देवी ने
पञ्चम पात्र ब्रह्मा को दिया। पात्र से छलके बिन्दू से परूषक की उत्पत्ति हुई।
अन्य छलके कणों से मधु आदि पानकों की उत्पत्ति हुई, जो
सर्वसाधारण के लिये श्रेष्ठ हैं ।। १९-२० ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १९- इन्द्रदत्तषष्ठपात्रबिन्दुपाताज्जातीफलाद्युत्पत्तिकथनम्
ततो ददौ परं
पात्रमिन्द्रायामृतनिर्भरम् ॥ २१ ॥
पात्राद् बिन्दुः पपातोर्व्या जातं
जातीफलं ततः ।
तत्कणेभ्योऽपि सञ्जाता
भेदाश्चामलकादयः ॥ २२ ॥
पानकं नाम तद् दिव्यं
रसायनमुदाहृतम् ।
इन्द्र को प्रदत्त षष्ठ पात्र से
जातीफल की उत्पत्ति – श्री सुरादेवी ने
छठा अमृतपूर्ण पात्र इन्द्र को दिया उस पात्र से छलके बिन्दू से जातीफल उत्पन्न
हुआ। उसके कणों से आमला आदि प्रभेदों की उत्पत्ति हुई। इस पानक को दिव्य रसायन कहा
जाता है।। २१-२२ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १९- गुरुदत्तसप्तमपात्रबिन्दुपातान्नारिकेलाद्युत्पत्तिकथनम्
ततो ददौ परं पात्रं गुरवे गिरिजे
सुरा ।। २३ ।।
पात्राद् बिन्दुः पपातोय गुडपुष्पं
ततः शिवे ।
जातं तत्कणजा भेदा नारिकेलफलादयः
॥२४॥
पानकं नाम देवेशि रसायनमिदं परम् ।
वृहस्पति को प्रदत्त सप्तम पात्र से
नारियल की उत्पत्ति - श्री सुरा देवी ने सप्तम पात्र देवगुरु वृहस्पति को दिया हे
शिवे! पात्र से छलके बिन्दू से ईख की उत्पत्ति हुई एवं उसके कणों-कणों से नारियल
आदि फलों की उत्पत्ति हुई। इस मानक को श्रेष्ठ रसायन कहा जाता है।। २३-२४।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १९- शुक्रदत्ताष्टमपात्रबिन्दुपातात्खर्जूराद्युत्पत्तिकथनम्
ततो ददौ परं पात्रं
शुक्रायामृतपूरितम् ॥ २५ ॥
पात्राद् बिन्दुः पपातोर्व्यां
जाताः खर्जूरपादपाः ।
तत्कणेभ्योऽपि सञ्जाता भेदा
भादामकादयः ॥ २६ ॥
पानकं तदपि प्रोक्तं दिव्यं
सन्तोषकारणम् ।
शुक्रप्रदत्त अष्टम पात्र से खजूर
आदि पादपों की उत्पत्ति – श्री सुरा देवी ने
अष्टम अमृतपूर्ण पात्र शुक्राचार्य को दिया। पात्र से छलके बिन्दू से खजूर-ताड़
आदि वृक्ष उत्पन्न हुए। कणों से भादामकादिकों की उत्पत्ति हुई। इन्हें दिव्य
सन्तोषकारक पानक कहते हैं ।। २५-२६ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १९- सूर्याचन्द्रमसोर्नवमपात्रबिन्दुपातादोषध्याद्युत्पत्तिकथनम्
ततो ददौ परं पात्रं
सूर्याचन्द्रमसोः सकृत् ॥ २७ ॥
पात्राद् बिन्दुः पपातोया जाता
सञ्जीवनौषधिः ।
तत्कणेभ्योऽपि सञ्जाता विविधौषधयः
शिवे ॥ २८ ॥
पानकं तदपि प्रोक्तं सर्वसाधारणं
परम् ।
सर्वार्थफलदं देवि सर्वसारस्वतप्रदम्
॥ २९ ॥
सूर्य चन्द्रप्रदत्त नवम पात्र से
संजीवन औषधी की उत्पत्ति – श्री सुरा देवी ने
नवम पात्र सूर्य-चन्द्र को दिया उससे जो बिन्दु छलककर गिरे, उससे
सञ्जीवन औषधों की उत्पत्ति हुई और कणों से विविध औषध उत्पन्न हुए। सर्वसाधारण
इन्हें भी पानक ही मानते हैं। ये औषध सभी प्रकार के फलों के प्रदायक है एवं सभी
विद्याओं को देने की क्षमता रखते हैं ।। २७-२९।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १९- देवानां
कृते सुरावरदानकथनम्
दत्त्वा दिव्यं रसं देवी सुरा तत्र
तिरोदधे ।
ते सर्वे परमेशानि
सुरानन्दैकनिर्भराः ॥ ३० ॥
सदाशिवादयो देवाः सुरायै च वरं ददुः
।
ये पिबन्ति परं पानं परमानन्दकारणम्
।। ३१ ।।
ते सर्वे यान्ति परमं पदं
शाश्वतमव्ययम् ।
सुरा देवी को देवताओं का वरदान -
देवताओं को दिव्य रस देकर सुरा देवी अन्तर्धान हो गयीं। हे परमेशानि
सुरानन्दनिर्भर सदाशिवादि सभी देवताओं ने सुरा को वरदान दिया कि जो सुरापान करेंगे,
उन्हें परमानन्द की प्राप्ति होगी। सुरापान करने वाले सभी शाश्वत
अव्यय परम पद को प्राप्त करेंगे ।। ३०-३१।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १९- पूजायां
सुरावश्यकत्वकथनम्
विना गौड़ी तथा माध्वीं सुरां यः
पूजयेच्छिवाम् ॥ ३२ ॥
शिवं नारायणं रुद्रं स
भवेन्निरयास्पदम् ।
अदीक्षितः पशुर्देवि
दीक्षितोऽप्यसुरः पशुः ॥ ३३ ॥
तस्मात् सुरां शिवेऽभ्यर्च्य
पूजायां वैष्णवोत्तमः ।
पिवेद्गौडी तथा माध्वीं
पैष्टीमासवमुत्तमम् ॥ ३४ ॥
पानकं च शुभाः सर्वे पूर्वाभावे परः
परः ।
पूजा में सुरा की आवश्यकता - बिना
गौड़ी और माध्वी सुरा के जो शिवा, शिव, नारायण, रुद्र की पूजा करता है, वह नरकगामी होता है। दीक्षा के बिना साधक पशु होता है। दीक्षित होने पर भी
असुर पशु होता है। ऐसी स्थिति में शिव का अर्चन सुरा से करना चाहिये। उत्तम वैष्णव
गौड़ी, माध्वी, पैष्टी आसव का पान करे।
सभी पानक पूर्वापर क्रम से शुभ होते हैं ।। ३२-३४।।
इतीदं परमं तत्त्वं कौलिकानां
रहस्यकम् ।
आनन्देश्वरसर्वस्वं गोपनीयं
स्वयोनिवत् ॥ ३५ ॥
कौलिकों के परम तत्त्व का यह रहस्य
वर्णन समाप्त हुआ यह रहस्य आनन्द का ईश्वर है और अपनी योनि के समान गोपनीय है ।।
३५ ।।
इति श्रीरुद्रयामले तन्त्रे श्रीदेवीरहस्ये
सुरोत्पत्तिनिरूपणंनामैकोनविंशः पटलः ॥ १९ ॥
इस प्रकार रुद्रयामल तन्त्रोक्त
श्रीदेवीरहस्य की भाषा टीका में सुरोत्पत्ति निरूपण नामक एकोनविंश पटल पूर्ण हुआ।
आगे जारी............... रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्य पटल 20
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