श्रीदेवीरहस्य पटल १८
रुद्रयामलतन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्यम्
के पटल १८ में माला यन्त्रादि शोधन की पद्धति के विषय में बतलाया गया है।
रुद्रयामलतन्त्रोक्तं श्रीदेवीरहस्यम् अष्टादशः पटल: शोधनपद्धतिः
Shri Devi Rahasya Patal 18
रुद्रयामलतन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्य अट्ठारहवाँ पटल
रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्यम्
अष्टादश पटल
श्रीदेवीरहस्य पटल १८ शोधन विधि
अथाष्टादशः पटल:
मालादिशोधनपद्धतिः
श्रीदेव्युवाच
भगवन् देवदेवेश मालायन्त्रार्चनं
परम् ।
शोधनं श्रोतुमिच्छामि विस्तरात्
परमार्थदम् ॥ १ ॥
मालाशोधन पद्धति —
श्रीदेवी ने कहा- हे भगवन् देवदेवेश में मालायन्त्रार्चन की श्रेष्ठ
शोधनविधि को विस्तार से सुनना चाहती हूँ, क्योंकि यह परमार्थ
को प्रादान करने वाला है ।। १ ।।
श्री भैरव उवाच
अधुना देवि वक्ष्यामि पद्धतिं
गद्यरूपिणीम् ।
शोधनस्य हि द्रव्याणां मालादीनां
महेश्वरि ॥ २ ॥
श्रीभैरव ने कहा कि हे देवि ! अब
मैं गद्यरूपिणी शोधन पद्धति का वर्णन करता हूँ। जिससे द्रव्यों और माला इत्यादि का
शोधन होता है ।। २।।
तत्रादौ साधको रात्रिशेष उत्थाय
बद्धपद्मासनः स्वशिरः स्थसहस्त्राराधो- मुखकमलकर्णिकान्तर्गतं निजगुरुं ध्यात्वा,
देवीं च हृद्विषये ध्यात्वा, मानसैरुपचारैरभ्यर्च्याजपाजपं
गुरवे देव्यै च समर्प्य प्रणमेत् । ततो बहिरागत्य नद्यादौ गत्वा स्नानासन्ध्यादि
विधाय, यागगेहमेत्य नित्यकर्म समाप्य यन्त्रशोधनाद्यारभेत्।
तत्रेश्पनदिग्विषये चतुष्कोणां हस्तैक- विस्तृतां विश्वक् सम्यक्तया वेदीं विधाय
विलिप्य सिन्दूरेण स्वदेवतायन्त्रं विभाव्य, यथोक्तया पूजया
सम्पूज्य द्रव्यादीन्यानाय्य यन्त्रादीन् शोधयेत् ।
रात शेष होने पर साधक उठकर पद्मासन
में बैठे अपने शिर में स्थित सहस्रदल के अधोमुख कमलकर्णिका में अपने गुरु का ध्यान
करे हृदय में देवी का ध्यान करे। मानसोपचारों से उनका पूजन करे। अजपा जप करे। जप
को गुरु और देवी के हाथों में समर्पित करे और प्रणाम करे। इसके बाद घर से बाहर नदी
आदि जलाशयों में जाकर स्नान करे और सन्ध्यावन्दन करे। इसके बाद यागमण्डप में आकर
नित्य कर्म करके यन्त्रशोधनादि कार्य का प्रारम्भ करे। यागमण्डप के ईशान कोण में
एक हाथ लम्बी और एक हाथ चौड़ी चौकोर वेदी बनावे उसे लीप कर सिन्दूर से अपने इष्ट
का यन्त्र बनावे। यथोक्त विधि से पूजन सामग्रियों और यन्त्रादि का शोधन करे।
स्त्रीकेशैश्च चरेद् देवि कङ्कणं
साधकोत्तमः ।
कङ्कणं दन्तमालां च यन्त्रं
कापालिकं शिवे ॥३॥
द्रव्यं मधु तथा मत्स्यं मांसं
मुद्रां च मैथुनम् ।
मकारपञ्चसंयुक्तं पूजयेद्
भैरवेश्वरीम् ॥४॥
तब साधकोत्तम स्त्री के केश से
कङ्कण बनावे। इसके बाद कङ्कण, दन्तमाला और
कपाल पर अंकित यन्त्र, मद्य, मत्स्य,
मांस, मुद्रा, मैथुन,
पञ्च मकार द्रव्य से भैरवीश्वरी का पूजन करे।।३-४।।
तत्रैवानीयासनादिशुद्धिं कृत्वा,
स्वमूलस्य
सङ्कल्पपूर्वमृष्यादिन्यासं कुर्यात् ।
ततो मूलेनाचम्य प्राणायामत्रयं
कृत्वा
भूतशुद्ध्यादिप्राणान् संस्थाप्य
पञ्चगव्येनौषधसप्तकेन शोधनं कुर्यात् ॥
तब भैरवी को लाकर आसनादि की शुद्धि
करे अपने मूल मन्त्र से सङ्कल्पपूर्वक ऋष्यादि न्यास करे। तब मूल मन्त्र से आचमन
करे,
तीन प्राणायाम करे। भूतशुद्धि करे। प्राण-प्रतिष्ठा करें। इसके बाद
पञ्चगव्य से सात औषधों का शोधन करे।
श्रीदेवीरहस्य पटल १८ - गव्यादिनिरूपणम्
स्तन्यं शुक्रं चारणालं तक्रं रक्तं
स्वयोनिजम् ।
पञ्चगव्यमिति प्राज्यं कुर्यात्
साधकसत्तमः ॥ ५ ॥
काश्मीर- गोरोचन - पूगकादि
कुरङ्गनाभीजमथापि मूर्वा ।
पूतासमेवं मलयोद्भवं च
सद्यन्त्रशुद्ध महदौषधानि ॥ ६ ॥
पञ्चगव्य में स्त्रीस्तन का दूध,
वीर्य, आरणाल, मट्ठा,
योनि का रक्त यही पाँच द्रव्य आते हैं। इसी पञ्चगव्य से केशर,
गोरोचन, पूगकादि, कस्तूरी,
मूर्वा, श्वेत चन्दन और पूतास नाम की सात
औषधियों का शोधन करे।।५-६ ।।
श्रीदेवीरहस्य पटल १८ - यन्त्रेश्वरीमन्त्रः
एभिः सम्यक्तया यन्त्रं मालां
कङ्कणं संलिप्य मूलविद्यया पृथक् पृथक् शोधनं कुर्यात् ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं देवि
यन्त्रेश्वरि क्लीं श्रीं ह्रीं ॐ यन्त्रं शोधय शोधय ह्रः श्रः क्लः ठः ठः ठः
स्वाहा।'
इमां मन्त्रात्मिकां
विद्यामष्टोत्तरशतं जपेत् ।
यन्त्रे देवीं समावाह्य पूजयेत्
साधकोत्तमः ॥७॥
इन्हीं शोधित औषधों का लेप यन्त्र,
माला, कङ्गन में लगाकर मूल मन्त्र से अलग- अलग
शोधन करे। यन्त्रेश्वरी का मन्त्र है - ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं देवि यन्त्रेश्वरि
क्लीं श्रीं ह्रीं ॐ यन्त्रं शोधय शोधय हः श्रः क्लः ठः ठः स्वाहा।
इस मन्त्रात्मिका विद्या का एक सौ
आठ बार जप करे। तब साधकोत्तम यन्त्र में देवी का आवाहन करके पूजन करे ॥७॥
श्रीदेवीरहस्य पटल १८ - नृदन्तमालाशोभनकङ्कणशोधनमन्त्रकथनम्
तत्रादौ यन्त्रं मूलविद्यया
पञ्चगव्यौषधैः संशोध्य,
सिन्दूरयन्त्रे बिन्दूपरि संस्थाप्य
पूर्ववत् स्वोक्तक्रमेण पूजयेत् ।
ततो मालामौषधादिना मूल- विद्यया
शोधयेत् ।
'ॐ ॐ ह्रां ह्रीं
श्रीं श्रां क्ली क्लां मालारूपिणि सर्वलोकभक्षिणि हूं नृदन्तमालां शोधय शोधय फट्
ठः ठः ठः स्वाहा' ।
इत्येवमष्टोत्तरशतं जप्त्वा
मूलविद्यया पञ्चगव्येन शोधयेत् ।
ततः कङ्कणं शतबालानां स्त्रीकेशस्य
कृत्वा मूलविद्यया शोधयेत् ।
'ॐ ह्रींस्त्रीं हूं
श्रीं क्रीं केशिनि निराकेशिनि कङ्कणं शोधय शोधय हूं क्रां फट् ठः ठः ठः स्वाहा'
।
इति मूलविद्यामष्टोत्तरशतं जप्त्वा
पञ्चगव्यौषधजलेन संशोध्य,
वामहस्तदक्षहस्तयोर्निबध्य स्वमूलं
नृदन्तमालया यथाशक्त्या जपेत् ।
ततः कवचस्तोत्रसहस्त्रनामादिपाठं
विधाय मूलेन नैवेद्यं निवेद्य तदग्रे चक्रपूजां कुर्यात् ।
पहले मूल विद्या से पञ्चगव्य के
द्वारा औषधी का शोधन करके सिन्दूर से बने यन्त्र को बिन्दु में स्थापित करके
पूर्ववत् उक्त विधि से पूजन करे। तब मूल मन्त्रोच्चारण करते हुए माला औषधादि का
शोधन करे।
मालाशोधन मन्त्र —
ॐ ॐ ह्रां ह्रीं श्रीं श्रां क्लीं क्लां मालारूपिणि सर्वलोकभक्षिणि
हूं नृदन्तमालां शोधय शोधय फट् ठः ठः ठः स्वाहा।
इस मन्त्र का एक सौ आठ बार जप कर
मूल विद्या से पञ्चगव्य के द्वारा शोधन करे। इसके बाद स्त्रीकेश के एक सौ बालों से
कङ्गन बनाकर उसे मूल विद्या से शोधित करे।
कंगनशोधन मन्त्र - ॐ ह्रीं स्त्रीं
हूं श्रीं क्रीं केशिनि निराकेशिनि कंकणं शोधय शोधय हूं क्रां फट् ठः ठः ठः स्वाहा
।
मूल विद्या को एक सौ आठ बार जप कर
पञ्चगव्य का शोधन औषधजल से करे। तब बाँयें हाथ को दाँयें हाथ से बाँधकर अपने मूल
मन्त्र का जपदन्त माला से यथाशक्ति करे। तब कवच स्तोत्र सहस्रनाम का पाठ करे मूल
मन्त्र से नैवेद्य अर्पण करे। उसके आगे चक्रपूजा करे।
साधकैरेकादशक्रमेण वृत्ताकृत्या
यागमण्डपे उपविश्य, मध्ये त्रिकोणं
सविन्दुं षडश्रकं वृत्तमष्टदलं वृत्तत्रयं भूगृहं विलिख्य रक्तपुष्पैः पूजयेत् ।
बाह्ये - गं गणेशाय नमः,
धं धर्मराजाय नमः, वं वरुणाय नमः, क्रीं कुवेराय नमः, इति सम्पूज्य । अष्टदलेषु –
ह्रीं श्रीं करालाय नमः, ह्रीं श्री विकरालाय
नमः, ह्रीं श्रीं संहाराय नमः, ह्रीं
श्रीं रुरुभैरवाय नमः, ह्रीं श्रीं महाकालाय नमः, ह्रीं श्रीं कालाग्नये नमः, ह्रीं श्रीं सुप्तभैरवाय
नमः, ह्रीं श्रीं उन्मत्त भैरवाय नमः इत्यभ्यर्च्य । षडश्रे
- ॐ ह्रीं श्रीं जयायै नमः, षडश्रे - ॐ ह्रीं श्रीं जयायै
नमः, ॐ ह्रीं श्रीं नमः विजयायै, ॐ
ह्रीं श्रीं कान्त्यै नमः, ॐ ह्रीं श्रीं प्रीत्यै नमः,
ॐ ह्रीं श्रीं मनोन्मनायै नमः, इति
पुष्पैरभ्यर्च्य । ततस्त्रिकोणे-गां गङ्गायै नमः, यां
यमुनायै नमः, सं सरस्वत्यै नमः इत्यभ्यर्च्य, बिन्दौ मूलं महामायायै नमः, एवं सम्पूज्य, तत्र श्रीदेवीं ज्योतीरूपां गोघृतेन विभाव्य यन्त्रवत्तां च पूजयेत् ।
तत्र भैरवं भैरवीं च पूजयेत् । तत्र बटुक सशक्तिकं च पूजयेत्।
साधक एकादश क्रम से वृत्त बनाकर
यागमण्डप में बैठे मध्य में बिन्दु, त्रिकोण,
षट्कोण, अष्टदल, वृत्तत्रय
और भूपुर बनाकर उस यन्त्र का पूजन लाल फूलों से करे। यन्त्र के बाहर दिशाओं में
गणेश, यमराज, वरुण और कुबेर की पूजा
करे। इनका पूजन मन्त्र हैं— गं गणेशाय नमः । धं धर्मराजाय
नमः । वं वरुणाय नमः । क्रीं कुबेराय नमः । अष्टदलों में- ह्रीं श्रीं करालाय नमः
। ह्रीं श्रीं विकरालाय नमः । ह्रीं श्रीं संहाराय नमः । ह्रीं श्री रुरुभैरवाय नमः
। ह्रीं श्रीं महाकालाय नमः । ह्रीं श्रीं कालाग्नये नमः । ह्रीं श्रीं सुप्तभैरवाय
नमः । ह्रीं श्रीं उन्मत्तभैरवाय नमः इन मन्त्रों से अष्टभैरवों का पूजन करे।
षट्कोण में- ॐ ह्रीं श्रीं जयायै नमः । ॐ ह्रीं श्रीं विजयायै नमः । ॐ ह्रीं श्रीं
कान्त्यै नमः । ॐ ह्रीं श्रीं रत्यै नमः । ॐ ह्रीं श्रीं प्रीत्यै नमः । ॐ ह्रीं
श्री मनोन्मन्यै नमः से छः देवियों का पूजन करे। इनका अर्चन फूलों से करे। इसके
बाद त्रिकोण में गां गङ्गायै नमः। यां यमुनायै नमः। सं सरस्वत्यै नमः से तीन
देवियों का पूजन करे। बिन्दु में मूल मन्त्र 'महामायायै नमः'
से पूजन करे। तब गोघृत से दीपक जलाकर ज्योति रूपा श्रीदेवी का पूजन
यन्त्र के रूप में करे। इसके बाद भैरव- भैरवी का पूजन करे। तब शक्ति के साथ बटुक
का पूजन करें।
प्रवृत्ते भैरवे तन्त्रे सर्वे
वर्णा द्विजातयः ।
निवृत्ते भैरवे तन्त्रे सर्वे
वर्णाः पृथक् पृथक् ॥
तत्रैव नव कन्याः अभ्यर्च्य ।
भैरवतन्त्र में प्रवृत्त सभी वर्णों
को द्विज माना जाता है। भैरवतन्त्र से बाहर वे पुनः अपने-अपने वर्ण के हो जाते
हैं। वहीं पर नव कन्याओं का भी पूजन करे।
श्रीदेवीरहस्य पटल १८ - साधकचक्रार्चनिरूपणम्
वामे रामा रमणकुशला दक्षिणे
चालिपात्रमग्रे
मुद्रश्चणकवटकौ सूकरस्योष्णशुद्धिः
।
तन्त्री वीणा सरसमधुरा सद्गुरुः
सत्कथाश्च
वामाचार: परमगहनो योगिनामप्यगम्यः
॥८॥
पीत्वा पीत्वा पुनः पीत्वा यावत्
संविन्मनोमयी।
यदि तत्र विकारः स्यात् पानं तद्
ब्रह्मघातवत् ॥ ९ ॥
मधुपानपरो मन्त्री शक्तिं
सन्तोषयेद्रते ।
रेतसा तर्पयेद् देवीं शक्तिं पानेन
तर्पयेत् ॥ १० ॥
शक्त्युच्छिष्टं पिबेन्मद्यं
वीरोच्छिष्टं तु चर्वणम् ।
मकारपञ्चसंयुक्तं
कुर्याच्छ्रीचक्रमण्डलम् ॥ ११ ॥
साधकान् साधको भक्त्या सन्तर्प्य
पानभोजनैः ।
सन्तर्प्य देवतामिष्टां मिष्टान्नैश्चर्वणैः
शिवे ॥१२॥
स्वगुरुं पूजयेद् भक्त्या
तर्पयेच्छक्तितः परम् ।
सन्तोषयित्वा स्वगुरुं दक्षिणाभिश्च
वन्दनैः ।
तदाज्ञां शिरसादाय नित्यकर्मणि
सिद्धिदाम् ॥ १३ ॥
साधक चक्रार्चा-निरूपण साधक के
वामभाग में रमणकुशला नारी, दाँयें हाथ में
शराब पात्र, आगे चने के गरम गरम वटक की शुद्धि होती है।
तन्त्री वीणावादन, सद्गुरु की सत्कथा की चर्चा होती है।
वामाचार परम गहन है। योगियों को भी अगम्य है। जब तक मन संविन्मय नहीं होता तब तक
पान करे, पान करे, पान करे। पान के समय
यदि विकार उत्पन्न होता है तो वह ब्रह्महत्या के समान होता है। मद्यपान-परायण साधक
शक्ति को मैथुन से सन्तुष्ट करे। वीर्य से देवी का तर्पण करे। शक्ति का तर्पण
मद्यपान से करे। शक्ति के जूठे मद्य का पान करे। वीरों का उच्छिष्ट चर्वण करे।
पञ्च मकारों से युक्त श्रीचक्रमण्डल में अर्चन करे। साधकों को साधक भक्तिपूर्वक
पान और भोजन से तृप्त करे। इष्टदेवता को मिष्ठान और चर्वण से तृप्त करे अपने गुरु
का पूजन भक्तिपूर्वक करे। शक्ति के अनुसार दक्षिणा देकर उन्हें सन्तुष्ट करे। उनका
वन्दन करे। उनकी आज्ञा को शिर पर धारण करके नित्य कर्म करने से सिद्धि प्राप्त
होती है।।८-१३।।
तत्रैवं चक्रे
साधकानभ्यर्च्यानन्दभैरवं स्वात्मानं ध्यात्वा परानन्दमयो भूत्वा संहारमुद्रया
देवी सशिवां विसृज्य दण्डवत् प्रणमेत् ।
इसके बाद वहाँ पर चक्र में उपस्थित
साधकों का अर्चन करे। अपने को आनन्दभैरव-स्वरूप मान कर परमानन्दमय हो जाये तब
संहार मुद्रा से शिवा के सहित देवी का विसर्जन करके दण्डवत प्रणाम करे।
इत्येवं पद्धतिं गुह्यां
गद्यपद्यैकरूपिणीम् ।
सकलागमसाराढ्यां गोपयेत् साधकोत्तमः
॥ १४ ॥
इस प्रकार यह गद्य-पद्यमयी गुह्य
पद्धति सभी आगमों के सार से परिपूर्ण है। श्रेष्ठ साधक को इसे सदैव गुप्त रखना
चाहिये ।। १४ ।।
इति श्रीरुद्रयामले तन्त्रे
श्रीदेवीरहस्ये शोधनपद्धति- निरूपणं नामाष्टादशः पटलः ॥ १८ ॥
इस प्रकार रुद्रयामल तन्त्रोक्त
श्रीदेवीरहस्य की भाषा टीका में शोधन-पद्धति निरूपण नामक अष्टादश पटल पूर्ण हुआ।
आगे जारी............... रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्य पटल 19
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