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श्रीदेवीरहस्य पटल १७

श्रीदेवीरहस्य पटल १७

रुद्रयामलतन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्यम् के पटल १७ में श्रीदेवी के यन्त्रराज, माला, कङ्कण आदि का शोधन के विषय में बतलाया गया है।

श्रीदेवीरहस्य पटल १७

रुद्रयामलतन्त्रोक्तं श्रीदेवीरहस्यम् सप्तदशः पटल: द्रव्यादिशोधनम्

Shri Devi Rahasya Patal 17 

रुद्रयामलतन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्य सत्रहवाँ पटल

रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्यम् सप्तदश पटल

श्रीदेवीरहस्य पटल १७ द्रव्यादि शोधन

अथ सप्तदशः पटल:

मालाकपालकंकणशोधनम्

श्रीदेव्युवाच

भगवन् सर्वतन्त्रज्ञ सर्वलोकनमस्कृतं ।

श्रीदेव्या यन्त्रराजस्य मालाकङ्कणयोरपि ॥ १ ॥

शोधनं श्रोतुमिच्छामि त्वयैव प्राङ्निवेदितम् ।

येन शुद्धिर्भवेद् देव द्रव्याणां साधकस्य हि ॥ २ ॥

माला कपाल कंकणशोधन-श्रीदेवी ने कहा कि हे भगवन्! आप सभी तत्वों के ज्ञाता, सभी लोकों के द्वारा नमस्कृत हैं। आपके द्वारा पहले बतलाये गये श्रीदेवी के यन्त्रराज, माला, कङ्कण आदि का शोधन किस प्रकार होता है, यह सुनने की मेरी प्रबल इच्छा है। साधक पूजन द्रव्यों का शोधन किस प्रकार करे, यह मैं जानना चाहती हूँ ।।१-२।।

श्रीभैरव उवाच

अधुना देवि वक्ष्यामि शोधनं सर्वकामदम् ।

सर्वसाधारणं लोके पटलं गुह्यमुत्तमम् ॥३॥

सुदिने देवि गत्वादौ श्मशानं साधकोत्तमः ।

कपालं नरदन्तानां माला कङ्कणमीश्वरि ॥४॥

अष्टोत्तरशतं जप्त्वा मूलं यन्त्रे निधापयेत् ।

पुनरष्टोत्तरशतं जप्त्वा तेनैव तर्पयेत् ॥५॥

देवान् पितॄन् ऋषीन् देवि माया मा कामबीजकैः ।

श्मशान भस्मलिप्तेन शुद्धेन सुरवन्दिते ॥६॥

ततो यन्त्रं लिखेद् देवि कपाले साधकोत्तमः ।

मालां कुर्यान्नृदन्तानां सकलाभीष्टसिद्धये ॥७॥

श्री भैरव ने कहा कि हे देवि! अब मैं सर्वकामदायक शोधन को बतलाता हूँ। इस संसार में जनसामान्य के लिये यह उत्तम पटल अत्यन्त गुह्य है किसी शुभ दिन में साधकोत्तम श्मशान में जाकर मनुष्य की खोपड़ी और दाँतों की माला और कङ्कण बनावे। मूल मन्त्र का एक सौ आठ जप करके माला और कङ्कण को यन्त्रराज में स्थापित करे। फिर एक सौ आठ जप करके उनका तर्पण करे। देवता पितर ऋषियों और देवी का तर्पण 'ह्रीं श्रीं क्लीं' से करे । हे सुरवन्दिते! नरकपाल में शुद्ध चिता भस्म का लेप लगाकर साधकोत्तम उसमें यन्त्र का अङ्कन करे। सभी अभीष्ट सिद्धि के लिये पुरुष के दाँतों की माला बनावे।।३-७।।

वामाचारपरः श्रीमान् यो न कुर्यान्महेश्वरि ।

यन्त्र मालां शिवे तस्य मन्त्रहानिर्भवेद् ध्रुवम् ॥८॥

कपालं मृतकस्याशु गृहीत्वा स्फटिकप्रभम् ।

श्मशानभस्म शुद्धं च कृत्वा साधकसत्तमः ॥९॥

स्वमन्त्रं साधयेद् धीमानन्यथा सिद्धिहानिदः ।

कपालयन्त्र देवेशि केशकङ्कणमुत्तमम् ॥ १० ॥

नृदन्तमालां द्रव्यं च मुण्डपात्रं महेश्वरि ।

गोपयेत् साधकोऽत्यन्तं देवीरूपं विचिन्तयेत् ॥ ११ ॥

य एवं साधकः कुर्यात्तस्य सिद्धिरदूरतः ।

अन्यथा सिद्धिहानिः स्यान्ममापि परमेश्वरि ॥१२॥

इतीदं पटलं दिव्यं गुह्यं सर्वस्वमुत्तमम् ।

अप्रकाश्यमदातव्यं गोपनीयं विशेषतः ॥१३॥

जो वामाचारी श्रीमान् ऐसा यन्त्र और इस प्रकार की माला नहीं बनाता है, उसे मन्त्र हानि पहुँचाता है। स्फटिक के समान स्वच्छ मृतककपाल लेकर श्मशानभस्म से उसे शुद्ध करके अपने मन्त्र से साधक उस कपाल को सिद्ध करें, अन्यथा सिद्धि में हानि होती है। हे महेश्वरि! कपाल, यन्त्र, केश, कङ्कण, उत्तम नरदन्त, माला, द्रव्य और मुण्डपात्र को साधक गुप्त रखे। उन्हें देवीस्वरूप माने जो साधक ऐसा करता है, उसे शीघ्र ही सिद्धि प्राप्त होती है। हे परमेश्वरि! ऐसा न करने से मुझे भी सिद्धि की हानि हो सकती है। यह दिव्य पटल गुह्य, सर्वस्व एवं उत्तम है। यह न किसी के सामने कहने लायक है और न ही किसी को देने लायक है। यह विशेष रूप से गोपनीय रखने योग्य है।।८-१३ ।।

इति श्रीरुद्रयामले तन्त्रे श्रीदेवीरहस्ये द्रव्यादिशोधन-निरूपणं नाम सप्तदशः पटलः ॥ १७ ॥

इस प्रकार रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्य की भाषा टीका में द्रव्यादिशोधन निरूपण नामक सप्तदश पटल पूर्ण हुआ।

आगे जारी............... रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्य पटल 18

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