देवीरहस्य पटल ५२

देवीरहस्य पटल ५२   

रुद्रयामलतन्त्रोक्त देवीरहस्यम् उत्तरार्द्ध के पटल ५२ में दुर्गा मन्त्रसाधन निरूपण के विषय में बतलाया गया है।

देवीरहस्य पटल ५२

रुद्रयामलतन्त्रोक्तं देवीरहस्यम् द्विपञ्चाशत्तमः पटलः दुर्गामन्त्रसाधनम्

Shri Devi Rahasya Patal 52   

रुद्रयामलतन्त्रोक्त देवीरहस्य बावनवाँ पटल

रुद्रयामल तन्त्रोक्त देवीरहस्यम् द्विपञ्चाशत्तम पटल

देवीरहस्य पटल ५२ दुर्गा मन्त्र साधन

अथ द्विपञ्चाशत्तमः पटलः

मन्त्रसाधनरहस्यम्

श्रीभैरव उवाच

मन्त्रसाधनकं वक्ष्ये रहस्यं सर्वमन्त्रिणाम् ।

येन साधनमात्रेण मन्त्रः सिद्धिमुपैष्यति ॥ १ ॥

विनोत्कीलनमन्त्रेण न मन्त्रः सिद्धिदायकः ।

विना सञ्जीवनेनापि सम्पुटेन विना शिवे ॥ २ ॥

विश्वमादौ मनोर्दद्यात् तारं दद्यात् तथाञ्चले ।

मनुरुत्कीलनाख्योऽयं सर्वसिद्धिप्रदः शिवे ॥३॥

मन्त्रसाधन रहस्य- सभी मन्त्रसाधकों के हितार्थं मन्त्रसाधनरहस्य का अब मैं वर्णन करता हूँ, जिसके अनुसार साधना करने से ही मन्त्र सिद्ध होते हैं। हे शिवे ! उत्कीलन के बिना कोई मन्त्र सिद्धिदायक नहीं होता। बिना सञ्जीवन और बिना सम्पुटन के भी मन्त्र सिद्ध नहीं होते। मन्त्र के प्रारम्भ में 'नमः' और अन्त में '' लगाकर जप करने से मन्त्र का उत्कीलन होता है और सभी सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।। १-३।।

देवीरहस्य पटल ५२- दुर्गामन्त्रसञ्जीवनम्

चाक्रिकं नाम बीजं तु दद्यादादौ मनोः शिवे ।

तदग्रे नाम विन्यस्य तारमाये तदग्रतः ॥४॥

मनोरन्तेऽश्मरीं दद्यान्मनुः सञ्जीवनाभिधः ।

ततः सिद्धमनुं देवि जपेन्मान्त्रिकसत्तमः ॥ ५ ॥

दुर्गा मन्त्र सञ्जीवन दुर्गा अष्टाक्षर मन्त्रवर्णों में से 'दुं' के बाद 'दुर्गा' लगाकर उसके बाद 'ॐ ह्रीं' लगाकर और मन्त्र के अन्त में 'नमः' लगाने से मन्त्र का सञ्जीवन होता है। सञ्जीवित मन्त्र का रूप ऐसा होता है- दुं दुर्गायै ॐ ह्रीं ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै नमः । इस प्रकार के सिद्ध मन्त्र का ही जप साधक को करना चाहिये ।। १-५।।

देवीरहस्य पटल ५२- दुर्गामन्त्रसम्पुटीकरणम्

यथाशक्त्या ततो दद्यात् सम्पुटं साधकोत्तमः ।

तारं परां चक्रिबीजं विश्वमन्तेऽभिधं न्यसेत् ॥ ६ ॥

सम्पुटाख्योऽस्त्ययं मन्त्रः सर्वाशापूरकः स्मृतः ।

एवं संस्कृतमीशानि मनुं देव्या जपेत् सदा ॥ ७ ॥

सर्वसिद्धिमवाप्नोति साधको मन्त्रसाधकः ।

इतीदं मन्त्रतत्त्वं ते साधनाख्यं महेश्वरि ।

गुह्यातिगुह्यगुप्तं च गोप्तव्यं साधकोत्तमैः ॥

दुर्गामन्त्र सम्पुटीकरण- इसके बाद साधक मन्त्र को सम्पुटित करके जप करे। अष्टाक्षर मन्त्र के पहले 'ॐ ह्रीं दुं' लगाकर अन्त में 'दुर्गा' लगाने से यह सम्पुटित होता है। सम्पुटित मन्त्र का रूप है - ॐ ह्रीं दुं ॐ ह्रीं दुं दुर्गायै नमः दुर्गायै सम्पुटित मन्त्र के जप से साधक की सभी आशायें पूरी होती हैं। हे ईशानि! इस संस्कृत मन्त्र का जप साधक को करना चाहिये। ऐसा करने से साधक को सभी सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। साधना के गुह्यातिगुह्य, गुप्त, गोप्तव्य मन्त्रतत्त्व का वर्णन पूरा हुआ। इसे गुप्त रखना चाहिये ।। ६-८ ।।

॥ इति श्रीरुद्रयामले तन्त्रे श्रीदेवीरहस्ये मन्त्रसाधननिरूपणंनाम द्विपञ्चाशत्तमः पटलः ॥ ५२ ॥

इस प्रकार रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्य की भाषा टीका में मन्त्रसाधन निरूपण नामक द्विपञ्चाशत्तम पटल पूर्ण हुआ।

आगे जारी............... रुद्रयामल तन्त्रोक्त श्रीदेवीरहस्य पटल 53 

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