recent

Slide show

[people][slideshow]

Ad Code

Responsive Advertisement

JSON Variables

Total Pageviews

Blog Archive

Search This Blog

Fashion

3/Fashion/grid-small

Text Widget

Bonjour & Welcome

Tags

Contact Form






Contact Form

Name

Email *

Message *

Followers

Ticker

6/recent/ticker-posts

Slider

5/random/slider

Labels Cloud

Translate

Lorem Ipsum is simply dummy text of the printing and typesetting industry. Lorem Ipsum has been the industry's.

Pages

कर्मकाण्ड

Popular Posts

ब्रह्महृदय स्तोत्र

ब्रह्महृदय स्तोत्र

रुद्रयामलतन्त्र में वर्णित ब्रह्माजी के इस ब्रह्महृदय स्तोत्र का पाठ करने से सभी पापों का नाश होता है।

ब्रह्महृदय स्तोत्र

ब्रह्महृदयस्तोत्रम्

Brahma hriday stotra

ब्रह्म हृदय स्तोत्रम्

ब्रह्म हृदय स्तोत्र

ब्रह्माणं हंससङ्घायुतशरणवदावाहनं देववक्त्रम्,

विद्यादानैकहेतुं तिमिचरनयनाग्नीन्दुफुल्लारविन्दम् ।

वागीशं वाग्गतिस्थं मतिमतविमलं बालार्कं चारुवर्णम्,

डाकिन्यालिङ्गितं तं सुरनरवरदं भावयेन्मूलपद्ये ॥ १ ॥

मैं, दश हजार श्रेष्ठ हंस जुते हुए रथ पर आरूढ़, देवता के मुख सदृश मुख वाले, विद्यादान के एकमात्र कारण, मछली की तरह सुन्दर आँखों वाले, अग्नि एवं चन्द्रमा की कान्तियुक्त एवं खिले कमल की तरह मुख वाले, वाणी के अधिपति, जिसके गुणगान में वाणी अपनी सीमा समझती हो, बुद्धिमानों में श्रेष्ठ, बाल सूर्य के समान अरुण आभा वाले, डाकिनी (स्वकीय पत्नी) द्वारा आलिङ्गित, देवों और मानवों को अभीप्सित वर देने वाले, नाभिमूल से निःसृत कमलपुष्प पर विराजमान देवाधिदेव ब्रह्मा जी का ध्यान करता हूँ ॥१ ॥

ब्रह्मज्ञानं निदानं गुणनिधिनयनं कारणानन्दयानम्,

ब्रह्माणं ब्रह्मबीजं रजनिजयजनं यागकार्यनुरागम् ।

शोकातीतं विनीतं नरजलवचनं सर्वविदद्याविधिज्ञम्,

सारात् सारं तरुं तं सकलतिमिरहं हंसगं पूजयामि ॥ २ ॥

जिसकी उत्पत्ति में ब्रह्मज्ञान ही कारण है, जो त्रिनेत्र या अष्टनेत्र कहलाता है, निरन्तर सात्त्विक आनन्द में रत, ब्रह्मज्ञान के बीजभूत, यज्ञ से प्रसन्न होने वाले, यज्ञ सम्बन्धी कार्यों में अनुराग रखने वाले, विगतशोक, विनययुक्त, जल की तरह आर्द्र वचन बोलने वाले, सभी विद्याओं की विधि- परम्परा के ज्ञाता, सार से भी उत्कृष्ट सार, संसारवृक्षभूत, समस्त अज्ञानान्धकार के नाशक, हंसाधिरूढ भगवान् ब्रह्मा की मैं अर्चना करता हूँ ॥ २ ॥

एतत्सम्बन्धमार्गं नवनवदलगं वेदवेदाङ्गविज्ञम्,

मूलाम्भोजप्रकाशं तरुणरविशशिप्रोन्नताकारसारम् ।

भावाख्यं भावसिद्धं जयजयदविधिं ध्यानगम्यं पुराणम्,

पाराख्यं पारणाय परजनजनितं ब्रह्मरूपं भजामि ॥ ३ ॥

इससे सम्बद्ध मार्ग वाले, नये नये पद्मपत्रों में रुचि रखने वाले, वेद एवं वेदाङ्ग शास्त्रों के ज्ञाता, नाभिकमल से निःसृत आभा से प्रकाशित, बाल सूर्य एवं चन्द्रमा की कान्ति से शोभित शरीर वाले भाव ध्यान से प्राप्त होने वाले विजयप्रदात्री विधि के ज्ञाता, ध्यानैकगम्य, पुराणपुरुष, भवसागर से पार उतारने में समर्थ, किसी विशिष्ट योगिजन द्वारा ही प्रापणीय उस ब्रह्मरूप की मैं सेवा करता हूँ ॥ ३ ॥

डाकिनीसहितं ब्रह्मध्यानं कृत्वा पठेत् स्तवम् ।

पठनाद् धारणा न्मन्त्री योगिनां सङ्गतो भवेत् ॥ ४॥

डाकिनी (ब्रह्मपत्नी) सहित ब्रह्मा जी का ध्यान करके जो इस स्तोत्र का पाठ करेगा, इसके पाठ या धारण करने से वह आराधक (मन्त्र जप करने वाला) योगियों की कोटि में पहुँच जाता है ॥ ४ ॥

एतत् पठनमात्रेण महापातक नाशनम् ॥ ५ ॥

इस स्तोत्र के पाठमात्र से पाँचों ब्रह्महत्यादि पातकं भी नष्ट हो जाते हैं ॥ ५ ॥

एकरूपं जगन्नाथं विशालनयनाम्बुजम्।

एवं ध्यात्वा पठेत् स्तोत्रं पठित्वा योगिराड् भवेत् ॥ ६ ॥

वे देव एकरूप हैं, जगत् के स्वामी हैं, उनके विशाल नेत्र कमल पुष्प के समान शोभित हैं। इस तरह ध्यान करते हुए इस स्तोत्र का पाठ करता हुआ भक्त 'योगिराट्' की स्थिति में पहुँच जाता है ॥ ६ ॥

श्रीरुद्रयामले उत्तरतन्त्रे सिद्धमन्त्रप्रकरणे त्रिंशे पटले वर्णितं ब्रह्महृदयस्तोत्रं समाप्तम् ॥

श्रीरुद्रयामलतन्त्र के उत्तरतन्त्र में सिद्धमन्त्रप्रकरण के तीसवें पटल में वर्णित ब्रह्महृदयस्तोत्र समाप्त ॥

No comments:

vehicles

[cars][stack]

business

[business][grids]

health

[health][btop]