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मूल शांति पूजन विधि
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
ब्रह्मदेव स्तोत्र
इस ब्रह्मदेव स्तोत्र के पाठ मात्र
से महापातकों का नाश हो जाता है ।
डाकिनी के साथ ब्रह्मदेव का ध्यान
कर इस स्तोत्र का साधक पाठ करे तो इसके पठन से एवं इसके धारण से उसे योगियों का
साथ प्राप्त हो जाता है।
ब्रह्मदेव का ध्यान-
बालरूपं सदा ध्यायेत् ब्रह्माणं
तेजसा कुलम् ।
डाकिनीशक्तिसहितं परमात्मानमीश्वरम्
॥
चर्तुमुखं महाकायं वनमालाविभूषितम्
।
नवीनं नवरूपाढ्यं लोकानामभिलाषदम् ॥
चतुर्भुजं महापुंसगामिनं
नित्ययोगिनम् ।
स्रष्टारं तारकं भव्यं भगमालावृतं
विभुम् ।।
सोमसूर्यप्रतीकाशं कुण्डलीशक्तिसेवकम्
।
पृथ्वीशादिबीजाङ्कविशालनयनाम्बुजम्
॥
अब ब्रह्मदेव की स्तुति कहते
हैं—
ब्रह्मदेव स्तोत्रम्
ब्रह्मज्ञानं निदानं गुणनिधिनयनं
कारणानन्दयानम् ।
ब्रह्माणं ब्रह्मबीजं रजनिजयजनं
यागकार्यानुरागम् ॥ १ ॥
ब्रह्मज्ञान,
सबके निदान, गुणों की निधियों का आनयन करने
वाले, सबके कारण स्वरूप, आनन्द से चलने
वाले, ब्रह्मबीज (अ) रूप रजनि में जायमान महाशक्ति का यजन
करने वाले, याग कार्यों में अनुराग करने वाले ब्रह्मदेव का
मैं भजन करता हूँ ।
शोकातीतं विनीतं नरजलवचनं
सर्वविद्याविधिज्ञम् ।
सारात् सारं तरुं तं सकलतिमिरहं
हंसगं पूजयामि ॥ २ ॥
शोक से सर्वथा अतीत,
विनय युक्त, नर से उत्पन्न हुए जल में नारायण
की स्तुति करने वाले, सम्पूर्ण विद्याओं के विधानवेत्ता,
सार से भी सार, अंशों से परिपूर्ण, तरु स्वरूप ( फल फूल देने के कारण वृक्षरूपी), समस्त
तिमिर का विनाश करने वाले तथा हंस के समान गमन करने वाले ब्रह्मदेव का मैं यजन
करता हूँ ।
एतत्सम्बन्धमार्गं नवनवदलगं
वेदवेदाङ्गविज्ञम् ।
मूलाम्भोजप्रकाशं
तरुणरविशशिप्रोन्नताकारसारम् ॥ ३ ॥
शक्ति से सम्बन्ध युक्त मार्ग वाले,
नवीन-नवीन कमलदल रूप पद से गमन करने वाले, वेद
वेदाङ्गवेत्ता, मूलाधार स्थित कमल के प्रकाशभूत प्रचण्ड
सूर्य तथा चन्द्रमा के प्रोन्नत आकार में सारभूत ब्रह्मदेव का मैं यजन करता हूँ ।
भावाख्यं भावसिद्धं जयजयदविधिं
ध्यानगम्यं पुराणम्
पाराख्यं पारणायं परजनजनितं
ब्रह्मरूपं भजामि ॥ ४ ॥
भाव नाम से अभिहित होने वाले भाव से
सिद्ध,
जय को भी जय प्रदान करने वाले, ध्यान गम्य,
पुराण पुरुष, पार नाम वाले, सबको पार करने वाले एवं परब्रह्म से उत्पन्न उन ब्रह्मरूप देव का मैं भजन
करता हूँ ।
डाकिनीसहितं ब्रह्मध्यानं कृत्वा
पठेत् स्तवम् ।
पठनाद् धारणान्मन्त्री योगिनां
सङ्गतिर्भवेत् ॥ ५ ॥
एतत्पठनमात्रेण महापातकनाशनम् ।
एकरूपं जगन्नाथं विशालनयनाम्बुजम् ॥
६ ॥
एवं ध्यात्वा पठेत् स्तोत्रं
पठित्वा योगिराड् भवेत् ॥ ७ ॥
डाकिनी के साथ ब्रह्मदेव का ध्यान
कर इस स्तोत्र का साधक पाठ करे तो इसके पठन से एवं इसके धारण से उसे योगियों का
साथ प्राप्त हो जाता है। इस स्तोत्र के पाठ मात्र से महापातकों का नाश हो जाता है,
मात्र एक ही रूप में विद्यमान् विशाल नेत्र कमल वाले जगन्नाथ का इस
प्रकार ध्यान कर स्तोत्र का पाठ करे, तो साधक योगिराज बन
जाता है ।
इति श्रीरुद्रयामले उत्तरतन्त्रे ब्रह्मदेव स्तोत्रं ॥
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