योनि स्तवराज
श्रीयोनिस्तवराजः-
योनि- स्तोत्र एवं कवच आदि का पाठ करने से पूर्व उत्तम साधक को योनि का ध्यान करना
चाहिए । कामाख्या पीठ में भगवती पार्वती का योनि मण्डल गिरा था। विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती की देह को विभिन्न भागों में बांट दिया । योनि मण्डल कामरूप
पर्वतों पर गिरा और वहां की संरचना ही बदल गयी । आसाम की यह पीठ विश्व की सर्वाधिक
जाग्रत एवं तांत्रोक्त शक्ति पीठ है। समस्त देवता यहां वास करते हैं। यहां पर
महामाया पूर्ण चैतन्य और जाग्रत है एवं यहीं पर वास्तविक “श्री साधना" सम्पन्न होती है, यहीं पर तांत्रिक
तन्त्र सीखता है, यहीं पर साधक सिद्धि प्राप्त करता है और
यहीं पर भक्त महामाया के दर्शन प्राप्त करता है।
इसी संदर्भ में महादेव एक स्थान पर
भगवती पार्वती से कहते हैं.
महाविद्यामुपास्यैव यदि योनिं न
पूजयेत् ।
पुरश्चर्यां शतेनापि तस्य मन्त्रो न
सिद्धयेत् ॥
अर्थात् महाविद्या के उपासक यदि
योनिपीठ की पूजा ना करें तो सौ पुरश्चरण करने पर भी मन्त्र सिद्ध नहीं होता।
अतः योनि-स्तोत्र का पाठ करने से
पूर्व साधक को योनि का ध्यान इस प्रकार करना चाहिए-
॥ योनि-ध्यान ॥
अतिसुललितगात्रां हास्यवक्त्रां
त्रिनेत्रा,
जितजलदसुकान्तिं
पट्टवस्त्रप्रकाशाम् ।
अभयवरकराढ्यां रलभूषातिभव्यां,
सुरतरुतलपीठ रलसिंहासनस्थाम् ॥१॥
हरिहरविधिवनद्या
बुद्धिशुद्धिस्वरूपां,
मदनरससमाक्तां कामिनीं कामदात्रीम्
।
निखिलजनविलासोद्दामरूपां भवानीं,
कलिकलुषनिहन्त्री योनिरूपां
भजामि॥२॥
अर्थात् हे योनि! आप अत्यन्त मनोहर
देह वाली,
हास्यमुखी, तीन नेत्रों वाली, रेशमी वस्त्रों द्वारा शोभायमान हैं। अपने हाथों में आप अभयमुद्रा धारण
किये हुए रत्नाभरणों से सुसज्जित हैं। आप कल्पतरु के नीचे रत्नों से बने सिंहासन
पर विराजित हैं। आप शुद्धबुद्धि-स्वरूपिणी ब्रह्मा एवं विष्णु
द्वारा भी वन्दनीय हैं। आप साधक की सभी कामनाओं की पूर्ति करने वाली हैं। समस्त
साधकों के विलास हेतु आप उद्दाम-स्वरूपा हैं। आप कलिकाल के समस्त पापों का नाश
करने वाली हैं । ऐसी योनि-स्वरूपा भगवती भवानी का मैं भजन करता हूं।
(निर्देश- उपर्युक्तानुसार योनि
का ध्यान करके पूजन करें और योनि-पीठ पर “हसौ:” मन्त्र का कम से कम 108 (एक सौ आठ) बार जप करें । जप
का समर्पण भगवती को करके ही स्तोत्र या कवच आदि का पाठ करना चाहिए।)
श्रीयोनिस्तवराजः
Yoni stavaraj
योनि स्तोत्रम्
श्रीदेव्युवाच
भगवान सर्वधर्मज्ञ
कुलशास्त्रार्थपारग ।
सर्व॑ मे कथितं नाथ न त्वेकं
परमेश्वर ॥१॥
माँ पार्वती ने भगवान शिव से कहा-
हे भगवन्! आप समस्त धर्मों के ज्ञाता एवं सभी शास्त्रों में निपुण हैं। अतः आप
सभी तत्वों का वर्णन मुझसे करने की कृपा करें । आपके अतिरिक्त कोई परमेश्वर
नहीं है।
श्रीयोनेः स्तवराजं हि तथा कवचमुत्तमम्
।
श्रोतुमिच्छामि सर्वज्ञ यदि तेऽस्ति
कृपा मयि ॥२॥
यदि आपकी कृपा मुझ पर है तो मैं
योनिस्तोत्र तथा उत्तम योनि-कवच सुनने के लिए अधीर हूं,
कृपया आप उन्हें मुझसे कहें ।
सारभूतं महादेव निगमान्तर्गतं हर ।
यदि न कथ्यते देव प्राणत्यागं
करोम्यहम् ॥३॥
हे महादेव! निगम-आगम ग्रन्थों में
जो सारभूत तत्व हों, उनका वर्णन करें ।
यदि उनका कथन आप मुझसे नहीं करेंगे तो मैं अपने प्राणों का त्याग कर दूंगी ।
दिवानिशि महाभाग ममाश्रुः पतितं
भवेत् ।
अतस्तद् देवदेवेश कथ्यतां मे
दयानिधे ॥४॥
हे महाभाग! मेरे नेत्र से निरन्तर
अश्रु बहते रहते हैं। अतः हे दयानिधे! आप उन सभी विषयों से मुझे अवगत करायें ।
श्रीमहादेव उवाच-
शृणु पार्वति वक्ष्यामि देहत्यागं
कथं कुरु ।
अत्यन्तगोपनीयं हि निगमे कथितं पुरा
॥५॥
तब भगवान शिव ने कहा- हे
पार्वति! तुम शरीर का त्याग क्यों करना चाहती हो। सभी शास्त्रों में यह विषय अतीव
गोपनीय है।
ब्रह्माविष्णुग्रहादीनां न मया
कथितं पुरा ।
अकथ्यं परमेशानि इदानीं कि करोमि ते
॥६॥
पूर्वकाल में ब्रह्मा,
विष्णु आदि देवों ने भी इस विषय में
कुछ नहीं कहा है। हे परमेश्वरि! यह तत्व अकथनीय है तब मैं किस प्रकार कह सकता हूं।
तव स्नेहेन बद्धोऽहं कथयामि तव
प्रिये ।
मातदरर्देवि महाभागे यदि कस्मै
प्रकाश्यते ।
शपथं कुरु मे दुर्गे यदि त्वं
मत्प्रिया स्मृता ॥७॥
हे प्रिये! मैं तुम्हारे स्नेहपाश
से बंधा हूं अतः मैं तुमसे कहता हूं । परन्तु हे दुर्गे! तुम शपथ लो कि इस विषय को
किसी के सामने प्रकट नहीं करोगी ।
ब्रह्मा यदि चतुर्वक्त्रै:
पञ्चवक्त्रैः सदाशिव: ।
वर्णितुं स्तवराजञ्च न शक्नोति
कदाचन ।
सम्यग् वक्तुं न शक्नोमि
संक्षेपात् कथयामि ते ॥८॥
इस स्तवराज का कथन करने में
चतुर्मुख ब्रह्मा तथा पंचमुख मैं (शिव) स्वयं भी पूर्णतः असमर्थ हूं।
पूर्णरूप से इसका कथन तो मैं नहीं कर सकता लेकिन संक्षेप में मैं इसका कथन कर रहा
हूं।
(इसके उपरान्त साधक हाथ में जल
लेकर निम्नांकित विनियोग पढ़ें फिर जल भूमि पर छोड़ दें।)
॥ योनि-स्तोत्रम् ॥
विनियोग- ॐ अस्य श्री
योनि-स्तवराजस्य कुलाचार्य ऋषिः, कौलिक
छन्दः, श्री योनिरूपा दशविद्यात्मिका देवता सर्व साधने
विनियोगः।
इसके बाद साधक निम्नाँकित स्तोत्र
का पाठ करें-
श्रीयोनिस्तवराजः
ॐ योनिरूपे महामाये
सर्व्वसम्पतप्रदे शुभे ।
कृपया सिद्धिं मे देहि देवि!
जगन्मयि ॥१॥
हे देवि! आप योनिरूपा,
महामाया तथा सर्वसम्पत्ति प्रदायिनि और शुभा हैं, कृपया आप मुझे सर्वसिद्धियां प्रदान करें।
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति
समन्विते ।
कृपया सर्वसिद्द्धिं मे देहि देवि
जगन्मयि! ॥२॥
आप सर्वस्वरूपिणी,
सर्वेश्वरी तथा समस्त शक्तियों से पूर्ण हैं। हे जगन्माते! कृपया आप
मुझे समस्त सिद्धियां प्रदान करें।
महाघोरे महाकालि! कुलाचारप्रिये सदा
।
कृपया सर्वसिद्धिं मे देहि देवि!
जगन्मयि! ॥३॥
हे जगन्मयि! आप महाभयंकर,
महाकालीस्वरूपा हैं । कौलाचारी साधक आपको सदैव ही प्रिय हैं । अतः
आप मुझे कृपा करके समस्त सिद्धियां प्रदान करें ।
घोरदंष्ट्रे चोग्रतारे
सर्वशत्रुविनाशिनि! ।
कृपया सर्वसिद्धिं मे देहि देवि!
जगन्मयि ॥४॥
आपकी दन्तावलि बहुत ही तीक्ष्ण है
तथा आप घोर शत्रुओं का विनाश करने वाली हैं। कृपया आप मुझे समस्त सिद्धियां प्रदान
करें ।
योनिरूपा महाविद्यो सर्वदा
मोक्षदायिनी ।
कृपया सर्वसिद्धिं मे देहि देवि!
जगन्मयि ॥५॥
हे देवि! आप योनिरूपा महाविद्या हैं
। अपने भक्तों को आप सदा ही मोक्ष प्रदान कराती हैं अतः आप मुझे भी सिद्धि प्रदान
करने की कृपा करें।
जगद्धात्रि महाविद्ये
जगदुद्धारकारिणि ।
कृपया सर्वसिद्धिं मे देहि देवि!
जगन्मयि ॥६॥
आप ही संसार को धारण करने वाली,
जगत् का उद्धार करने वाली महाविद्या स्वरूपा हैं। अतः आप मुझे
समस्त सिद्धियां प्रदान करने की कृपा करें ।
जगद्धात्रि महामाये योनिरूपे सनातनि
।
कृपया सर्वसिद्धिं मे देहि देवि!
जगन्मयि ॥७॥
हे देवि! आप जगत् को धारण करने
वाली,
महामाया, योनिस्वरूपा तथा शाश्वतरूपिणी हैं।
कृपया मुझे समस्त सिद्धियां प्रदान करें ।
जय देवि जगन्मातः
सृष्टि-स्थित्यन्तकारिणी ।
कृपया सर्वसिद्धिं मे देहि देवि!
जगन्मयि ॥८॥
हे जगन्माते! आपकी जय हो। आप ही इस
सृष्टि की उत्पत्ति, पालन तथा संहार
करने वाली हैं। कृपया आप मुझे समस्त सिद्धियां प्रदान करें।
सिद्धिदात्रि महामाये
सर्वसिद्धिप्रदायिनि ।
कृपया सर्वसिद्धिं मे देहि देवि!
जगन्मयि ॥९॥
हे देवि! आप ही सिद्धिदात्री,
महामाया तथा समस्त सिद्धियां प्रदान करने वाली हैं । हे जगन्माते!
कृपया आप मुझे सभी सिद्धियां प्रदान करें ।
महालक्ष्मि महादेवि
महामोक्षप्रदायिनि ।
कृपया सर्वसिद्धिं मे देहि देवि!
जगन्मयि ॥१०॥
आप ही महालक्ष्मी,
महादेवी तथा महामोक्ष प्रदान करने वाली हैं इसलिए कृपा करके मुझे
समस्त सिद्धियां प्रदान करें।
गौरी लक्ष्मीश्च मातंगी दुर्गा च
नवचण्डिका ।
बगलामुखी भुवनेशी भैरवी च तथा
प्रिये
छिन्नमस्ता महाकाली च योनिरूपा
सनातनी ।
कृपया सर्वसिद्धिं मे देहि देवि!
जगन्मयि ॥११॥
हे देवि! आप ही गौरी,
लक्ष्मी, मातंगी, दुर्गा तथा नवचण्डी हैं। आप ही बगलामुखी,
भुवनेशी तथा भैरवी हैं। आप
शाश्वत स्वरूपिणी, योनिरूपा, काली तथा छिन्नमस्ता के नाम से भी जगत में प्रसिद्ध हैं। अतः कृपया
मुझे समस्त सिद्धियां प्रदान करें।
काली कपालिनी कुल्ला कुरुकुल्ला
बिरोधिनी ।
नायिका विप्रचित्ताद्या अन्या या
नायिका स्मृता:।
वसनित योनिमाश्रित्य ताभ्योऽपीह नमो
नम: ॥१२॥
आप ही काली,
कपालिनी, कुल्ला तथा कुरुकुल्ला हैं। आप ही
आद्या विप्रचित्ता नायिका हैं। आप ही योनि के मध्य में स्थित हैं अतः मैं आपको
प्रणाम करता हूं।
अणिमाद्यष्टसिद्धिश्च वसत्यस्याः
समीपतः ।
नमस्तेऽस्तु नमस्तेऽस्तु योगमोक्ष –
प्रदायिनि ॥१३॥
आपके निकट अष्टसिद्धियां (अणिमा,
महिमा, लघिमा, गरिमा,
प्राप्य, प्राकाम्य, ईशित्व
एवं वशित्व) निवास करती हैं। आप ही योग और मोक्ष की प्रदाता हैं अतः मैं आपको
प्रणाम करता हूं।
सर्वशक्तिमये देवि सर्वकल्मषनाशिनि ।
हे योने! हर विध्नं मे सर्वसिद्धिं
प्रयच्छ मे ॥१४॥
हे देवि! आप सर्वशक्ति-सम्पन्ना हैं,
सभी प्रकार के पापों का नाश करने वाली हैं। अतः हे योनि! मेरे समस्त
विघ्नों का नाश करके मुझे समस्त सिद्धियां प्रदान करने की कृपा करें।
आधारभूते सर्व्वेषां पूजकानां
प्रियम्बदे ।
स्वर्गपाताल वासिन्यै योनये च नमो
नम: ॥१५॥
हे देवि! आप सम्पूर्ण सृष्टि की
एकमात्र आधारभूता हैं, साधकों को अति
प्रिय हैं। आप स्वर्ग, पाताल आदि सभी स्थानों पर निवास करती
हैं। हे योने! आपको बारम्वार नमस्कार है।
विष्णुसिद्धिप्रदे देवि शिवसिद्धि
प्रदायिनि ।
ब्रह्मसिद्धिप्रदे देवि
रामचन्द्रस्य सिद्धिये ।
शक्रादीनाञ्च सर्वेषां सिद्धिदायै
नमो नमः ॥१६॥
भगवान विष्णु और शिव
को भी आपने ही सिद्धि प्रदान की है। सृष्टि के कारक ब्रह्मा तथा श्रीराम
को भी आपने ही सिद्धि प्रदान की है। इन्द्र आदि समस्त देवताओं को भी सिद्धि
प्रदान करने वाली आप ही हैं, अतः मैं आपको प्रणाम
करता हूं।
॥ योनि-स्तोत्रम् फलश्रुति ॥
इति ते कथितं देवि सर्वसिद्धि
प्रदायकम् ।
स्तोत्रं योनेर्महेशानि प्रकाशयामि
ते प्रिये ॥
सर्वसिद्धिप्रदं स्तोत्रं यः पठेत्
कौलिकः प्रिये ।
लिखित्वा पुस्तके देवि
रक्तद्रव्यैश्च सुन्दरि ॥
हे देवि! यह सर्वसिद्धि प्रदान करने
वाला स्तोत्र मैं तुम्हारे स्नेह के कारण प्रकाशित कर रहा हूं। जो कौलाचारी साधक
इस स्तोत्र का पाठ करता है अथवा लाल रंग के चन्दन आदि से पुस्तक के रूप में लेखन
करता है उसे सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं ।
तस्यासाध्यानि कर्म्माणि वश्यादीनि
कुलेश्वरि ।
नास्ति नास्ति पुनर्नास्ति
नास्त्येव भुवनत्रये ।
यः पठेत् प्रातरुत्थाय गाणपत्यं
लभेन्नरः ॥
इस स्तोत्र के समान तीनों लोकों में
कुछ भी नहीं है। जो साधक प्रातःकाल में इस स्तोत्र का प्रतिदिन पाठ करता है,
वह गणपति के समान हो जाता है।
रात्रौ कान्तासमायोगे यः पठेत्
साधकोत्तमः ।
स्तवेनानेन संस्तुत्य साधकः कि न साधयेत्
॥
सालङ्कृतां स्वकान्ताञ्च
लीलाहावविभूषिताम् ।
रक्तवस्त्र-परीधानां कृत्वा
सम्पूज्य साधकः ॥
भोजयित्वा ततो देवि स्वयं भुञ्जीत
तत्परः ।
मत्स्यमांसादिकान् भुक्त्वा
क्रोड़े कृत्वा स्वयोषितम् ॥
जो साधक रात्रि में रमणी के साथ
संभोग-काल में इसका पाठ करता है, वही श्रेष्ठ
साधक कहलाता है । ऐसी उत्तम साधना करके कौन सी वस्तु वह प्राप्त नहीं कर सकता है?
अपनी पत्नी को गहनों, वस्त्रों से अलंकृत करके
तथा स्वयं रक्त-वस्त्र धारण करके पूजन के उपरान्त भोज्य पदार्थ अर्पित करके स्वयं
भी भोजन करना चाहिए । मद्य-मांस आदि पदार्थों को खाकर अपनी पत्नी की गोद का आश्रय ग्रहण
करना चाहिए ।
रात्रौ यदि जपेन्मन्त्रं सा दुर्गा
स सदाशिवः ।
भवत्येव न सन्देहो मम
वक्त्राद्विनिर्गतम् ॥
येन दत्तं मयि स्तोत्रं स एव मद्
गुरुः स्मृतेः ।
तस्यैव यदि भक्तिः स्यात् स॒
भवेञ्जगदीश्वरः ॥
नमोऽस्तु स्तवराजाय नमः
स्तवप्रकाशिने ।
यत्रास्ते स्तवराजोऽयं तत्रास्ते
श्रीसदाशिवः ॥
जो साधक रात्रि काल में इस स्तोत्र
का पाठ करता है, वह महादेव के समान हो
जाता है। मेरे मुख से निकले ये शब्द कभी भी असत्य नही हो सकते । ऐसे स्तवराज को
मैं प्रणाम करता हूं । जिस स्थान में यह योनि-स्तवराज विद्यमान रहता है, उस स्थान में सदैव शिव का निवास रहता है।
इति शक्तिकागमसर्वस्वे हरपार्वतीसंवादे श्रीयोनिस्तवराजः समाप्तः ।
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