Slide show
Ad Code
JSON Variables
Total Pageviews
Blog Archive
-
▼
2023
(355)
-
▼
January
(28)
- नागदमनी कल्प
- रुद्रयामल तंत्र पटल ३०
- कालिपावन स्तोत्र
- रुद्रयामल तंत्र पटल २९
- ब्रह्मदेव स्तोत्र
- उच्चटा कल्प
- नृसिंह स्तुति
- ब्रह्मा स्तुति
- अपराजिता कल्प
- लक्ष्मी चरित्र
- भुवनेश्वरी कवच
- मायातन्त्र पटल ११
- मृत्युञ्जय स्तोत्र
- मायातन्त्र पटल १०
- गायत्री कवच
- मायातन्त्र पटल ९
- नृसिंह स्तोत्र
- मायातन्त्र पटल ८
- कुलामृत स्तोत्र
- मायातन्त्र पटल ७
- मृत्य्ष्टक स्तोत्र
- श्राद्ध सम्बन्धी शब्दावली
- भीष्म स्तवराज
- योनि कवच
- मायातन्त्र पटल ६
- योनि स्तोत्र
- मायातन्त्र पटल ५
- योनि स्तवराज
-
▼
January
(28)
Search This Blog
Fashion
Menu Footer Widget
Text Widget
Bonjour & Welcome
About Me
Labels
- Astrology
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड
- Hymn collection
- Worship Method
- अष्टक
- उपनिषद
- कथायें
- कवच
- कीलक
- गणेश
- गायत्री
- गीतगोविन्द
- गीता
- चालीसा
- ज्योतिष
- ज्योतिषशास्त्र
- तंत्र
- दशकम
- दसमहाविद्या
- देवी
- नामस्तोत्र
- नीतिशास्त्र
- पञ्चकम
- पञ्जर
- पूजन विधि
- पूजन सामाग्री
- मनुस्मृति
- मन्त्रमहोदधि
- मुहूर्त
- रघुवंश
- रहस्यम्
- रामायण
- रुद्रयामल तंत्र
- लक्ष्मी
- वनस्पतिशास्त्र
- वास्तुशास्त्र
- विष्णु
- वेद-पुराण
- व्याकरण
- व्रत
- शाबर मंत्र
- शिव
- श्राद्ध-प्रकरण
- श्रीकृष्ण
- श्रीराधा
- श्रीराम
- सप्तशती
- साधना
- सूक्त
- सूत्रम्
- स्तवन
- स्तोत्र संग्रह
- स्तोत्र संग्रह
- हृदयस्तोत्र
Tags
Contact Form
Contact Form
Followers
Ticker
Slider
Labels Cloud
Translate
Pages
Popular Posts
-
मूल शांति पूजन विधि कहा गया है कि यदि भोजन बिगड़ गया तो शरीर बिगड़ गया और यदि संस्कार बिगड़ गया तो जीवन बिगड़ गया । प्राचीन काल से परंपरा रही कि...
-
रघुवंशम् द्वितीय सर्ग Raghuvansham dvitiya sarg महाकवि कालिदास जी की महाकाव्य रघुवंशम् प्रथम सर्ग में आपने पढ़ा कि-महाराज दिलीप व उनकी प...
-
रूद्र सूक्त Rudra suktam ' रुद्र ' शब्द की निरुक्ति के अनुसार भगवान् रुद्र दुःखनाशक , पापनाशक एवं ज्ञानदाता हैं। रुद्र सूक्त में भ...
Popular Posts
मूल शांति पूजन विधि
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
भुवनेश्वरी कवच
डी०पी०कर्मकाण्ड के तन्त्र श्रृंखला
में आगमतन्त्र से मायातन्त्र के अंतिम पटल १२ में भुवनेश्वरी कवच विधान और
उसका फल बताया है।
माया तन्त्र पटल १२
मायातन्त्रम् द्वादश: पटलः
Maya tantra patal 12
मायातन्त्र बारहवां पटल
भुवनेश्वरी कवच
अथ द्वादशः पटलः
श्री देवी उवाच
शृणु प्रिये प्रवक्ष्यामि कवचं भुवि
दुर्लभम् ।
यस्यापि पठनाद् देवि
सर्वसिद्धीश्वरो भवेत् ॥1॥
महादेव ने पार्वतीजी से
कहा कि हे प्रिये! सुनो! अब मैं तुम्हें पृथ्वी पर दुर्लभ कवच को बताऊंगा।
जिसके पढ़ने से हे देवि! मनुष्य सब सिद्धियों का ईश्वर हो जाना चाहिए ॥1 ॥
इन्द्रोऽपि धारणाद् यस्य
प्राप्नुयाद् राज्यमुत्तमम् ।
कृष्णेन पठितं देवि भूतापमारणाय च ॥2॥
शंकर जी ने
कहा कि हे देवि ! इस कवच को धारण करने से इन्द्र ने भी उत्तम राज्य को
प्राप्त किया था तथा हे देवि ! पृथ्वी के ताप को नष्ट करने के लिए भगवान्
श्रीकृष्ण ने इसी कवच का पाठ किया था ॥2॥
शुकदेवोऽपि यद् धृत्वा
सर्वयोगविशारदः ।
तस्य श्रीभुवनेश्वरी कवचस्य महेश्वरि
॥3॥
जिस कवच को धारण करने वाले शुकदेव भी सब प्रकार के योगों में विशारद हुए । अतः हे महेश्वरि ! उस कवच की देवी श्रीभुवनेश्वरी हैं ॥ 3 ॥
सर्वार्थे विनियोगः स्यात्
प्राणायामं ततश्चरेत् ।
अब भगवान् कवच का पाठ करना बताते
हुए कहते हैं कि जब कवच का पाठ प्रारम्भ करना हो तब सब प्रकार के कार्यों से मन को
अलग कर लेना चाहिए। उसके बाद में प्राणायाम करना चाहिए और फिर कवच को पढ़ना चाहिए।
कवच इस प्रकार है-
भुवनेश्वरी कवचम्
मायाबीजं शिरः पातु कामबीजं तु
बालकम् ॥4॥
दुर्गाबीजं नेत्रयुग्मं नासिकां
मन्त्रदा मनुः ।
वदने दक्षिणाबीजं ताराबीजं तु
गण्डयोः ॥5॥
षोडशी मे गलं पातु कण्ठं मे
भैरवीमनुः ।
हृदयं छिन्नमस्ता च उदरं बगला तथा ॥6॥
धूमावतीं कटिं पातु मातङ्गी पातु
सर्वतः ।
सर्वाङ्गं मे सदा पातु
सर्वविद्यास्वरूपिणी ॥7॥
इसका अर्थ है- मायाबीज शिर की रक्षा
करे। काम बीज बालों की रक्षा करे। दुर्गा का बीज शिर की रक्षा करे। मन्त्र देने
वाले मनु नासिका की रक्षा करें। वदन (मुख) पर दक्षिणा का बीज रक्षा करे। दो
गण्डस्थलों की रक्षा तारा का बीज करें। षोडशी देवी मेरे गले की रक्षा करे तथा उदर
की रक्षा बगलामुखी करे, धूमावती देवी मेरी
कमर की रक्षा करे। मातंगी देवी मेरी सब ओर से रक्षा करे और सब विद्या स्वरूपिणी
मां मेरे सभी अंगों की रक्षा करे ॥4-7॥
भुवनेश्वरी कवच महात्म्य
इत्येतत् कवचं देवि पठनाद्
धारणादिकम् ।
कृत्वा तु साधकः श्रेष्ठो
विद्यावान् धनवान् भवेत् ॥8॥
भगवान् शंकर ने
कहा कि हे देवि ! मैंने जो अभी बताया है, यही
कवच है और इस कवच को पढ़ने से धारण करके मनुष्य श्रेष्ठ और विद्यावान् हो जाना
चाहिए ॥ 8 ॥
पुत्रपौत्रादिसम्पन्नो ह्यन्ते याति
परां गतिम् ।
इदं तु कवचं गुह्यं साधकाय
प्रकाशयेत् ॥ 9 ॥
न दद्याद् भ्रष्टमर्त्याय न
परदेवताय च ।
तथा इस कवच को नित्य पढ़कर धारण करने
से मनुष्य पुत्र-पौत्रादि से सम्पन्न होकर अन्त में परागति (मोक्ष) को प्राप्त
करता है। वैसे तो हे देवि ! यह कवच अत्यन्त गूढ़ है, इसे छिपाना ही चाहिए। केवल साधना करने वाले को बताना ही चाहिए; परन्तु भ्रष्ट पुरुष के लिए तथा अन्य देवता की पूजा करने वाले पुरुष को
नहीं देना चाहिए ॥9 ॥
इदं यन्त्रं महेशानि त्रिषु लोकेषु
गोपितम् ॥ 10 ॥
सर्वसिद्धिकरं
साक्षान्महापातकनाशनम् ।
कल्पद्रुमसमं ज्ञेयं पूजयेत्
श्रियमाप्नुयात् ॥11॥
पठनाद् धारणात् सर्वं पापं क्षयति
निश्चितम् ।
विवादे जयमाप्नोति
धनैर्धनपतिर्भवेत् ।
यं यं वाञ्छति तत् सर्वं भवत्येव न
संशयः ॥12 ॥
शंकर जी ने
कहा कि हे देवि ! यह यन्त्र तीनों लोकों में छिपा हुआ है तथा सबकी सिद्धि करने
वाला है तथा साक्षात् महापाप का नाश करने वाला है। इस कवच को कल्पवृक्ष के समान
समझो और कल्पवृक्ष के समान समझ कर इसकी पूजा करनी चाहिए। इस कवच को धारण करने से
निश्चित ही सब पाप नष्ट हो जाते हैं। इसका पाठ करने से विवाद (मुकदमें) में जीत
होती है और जो धनवान् है, वह धनपति हो जाना
चाहिए । अतः इस कवच का पाठ करने वाला जो-जो चाहता है, वह सब
उसे प्राप्त होता ही है, इसमें कोई भी सन्देह नहीं है॥10-12॥
।। इति श्री मायातन्त्रे द्वादशः
पटलः ।।
समाप्तश्चायं ग्रन्थः
।। इस प्रकार श्री मायातन्त्र में
बारहवां पटल समाप्त हुआ।
यह ग्रन्थ समाप्त हुआ।
माया तन्त्र के पूर्व का अंक पढ़ें-
मायातन्त्र पटल 1 मायातन्त्र पटल 2 मायातन्त्र पटल 3
मायातन्त्र पटल 4 मायातन्त्र पटल 5 मायातन्त्र पटल 6
Related posts
vehicles
business
health
Featured Posts
Labels
- Astrology (7)
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड (10)
- Hymn collection (38)
- Worship Method (32)
- अष्टक (54)
- उपनिषद (30)
- कथायें (127)
- कवच (61)
- कीलक (1)
- गणेश (25)
- गायत्री (1)
- गीतगोविन्द (27)
- गीता (34)
- चालीसा (7)
- ज्योतिष (32)
- ज्योतिषशास्त्र (86)
- तंत्र (182)
- दशकम (3)
- दसमहाविद्या (51)
- देवी (190)
- नामस्तोत्र (55)
- नीतिशास्त्र (21)
- पञ्चकम (10)
- पञ्जर (7)
- पूजन विधि (80)
- पूजन सामाग्री (12)
- मनुस्मृति (17)
- मन्त्रमहोदधि (26)
- मुहूर्त (6)
- रघुवंश (11)
- रहस्यम् (120)
- रामायण (48)
- रुद्रयामल तंत्र (117)
- लक्ष्मी (10)
- वनस्पतिशास्त्र (19)
- वास्तुशास्त्र (24)
- विष्णु (41)
- वेद-पुराण (691)
- व्याकरण (6)
- व्रत (23)
- शाबर मंत्र (1)
- शिव (54)
- श्राद्ध-प्रकरण (14)
- श्रीकृष्ण (22)
- श्रीराधा (2)
- श्रीराम (71)
- सप्तशती (22)
- साधना (10)
- सूक्त (30)
- सूत्रम् (4)
- स्तवन (109)
- स्तोत्र संग्रह (711)
- स्तोत्र संग्रह (6)
- हृदयस्तोत्र (10)
No comments: