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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
योनि कवच
यह 'योनि-कवच' अतीव गुह्यतम अर्थात् बहुत ही गुप्त है,
जिसका वर्णन भगवान शिव ने माँ पार्वती से किया है । इस कवच का पाठ
करने वाले साधक के सर्वांगों की पूर्ण सुरक्षा होती है और उसे समस्त सिद्धियां सहज
ही प्राप्त हो जाती हैं। जो साधक इस कवच का पाठ तीनों संध्याओं में करता है,
उसे राजभय कभी व्याप्त नहीं करता। वह सभा में श्रेष्ठ वक्ता तथा
राजगृह में राजा के समान आदरणीय हो जाता है। उसे सर्वत्र विजय प्राप्त होती है।
कवच के साथ मातृकाक्षर सम्मिलित करके पाठ करने से अनेक सांसारिक सुखों की प्राप्ति
होती है।
॥ योनि-कवचम् ॥
Yoni kavacham
योनि-कवचम्
देव्युवाच-
भगवन् श्रोतुमिच्छामि कवचं परमाद्भुतम्
।
इदानीं देवदेवेश कवचं सर्वसिद्धिदम्
॥१॥
देवी (पार्वती) ने कहा-
हे भगवन्! परम अद्भुत सर्वसिद्धि प्रदान करने वाले योनि-कवच को मैं आपसे सुनना
चाहती हूं। इसलिए इसे आप मुझसे कहें।
महादेव उवाच-
शृणु पार्वति! वक्ष्यामि
अतिगुह्यतमं प्रिये ।
यस्मै कस्मै न दातव्यं दातव्यं
निष्फलं भवेत् ॥२ ॥
शिवजी बोले-
हे प्रिय पार्वति! इस अति गोपनीय योनि-कवच को मैं तुमसे कहता हूं। इसे हर किसी
व्यक्ति को बताना नहीं चाहिए । यदि कोई ऐसा करता है तो उसके सभी कर्म व्यर्थ हो
जाते हैं।
कवचपाठ से पूर्व साधक को हाथ में जल
लेकर निम्नलिखित मन्त्र को बोलते हुए हाथ का जल भूमि पर छोड़ देना चाहिए ।
योनिकवचम्
विनियोग- अस्य श्रीयोनिकवचस्य
गुप्तऋषि: कुलटाच्छन्दः राजविध्नोत्पातविनाशे विनियोगः।
(विनियोग- इस योनि-कवच के ऋषि 'गुप्त', छन्द 'कुलटा' तथा राज्य की ओर से होने वाले विघ्नों के विनाश के लिए मैं यह विनियोग कर
रहा हूं।)
योनि कवचम्
॥ कवच-पाठ ॥
॥ कवच ॥
ह्रीं योनिर्मे सदा पातु स्वाहा विघ्नविनाशिनी
।
शत्रुनाशात्मिका योनि: सदा मां रक्ष
सागरे ॥१॥
विघ्नों का नाश करने वाली 'स्वाहा' तथा “ह्रीं' योनि सदा ही मेरी रक्षा करे। शत्रु-विनाशिनी योनि से भवसागर में मेरी
रक्षा हो।
ब्रह्मात्मिका महायोनिः सर्वान् प्ररक्षत्
।
राजद्वारे महाघोरे क्रीं योनिः
सर्वदाऽवतु ॥२॥
ब्रह्मात्मिकारूपिणी महायोनि से सभी
प्रकार की रक्षा हो । राजदरबार में 'क्रीं'
योनि सदा ही रक्षा करे।
हुमात्मिका सदा देवी योनिरूपा
जगन्मयी ।
सर्वांगं रक्ष मां नित्यं सभायां
राजवेश्मनि ॥३॥
वेदात्मिका सदा योनिर्वेदरूपा
सरस्वती ।
कीर्तिं श्रीं कान्तिमारोग्यं
पुत्रपौत्रादिकं तथा ॥४॥
योनिरूपा 'हुम्' अक्षरात्मिका योनि के द्वारा मेरे सर्वांगों
की तथा राजद्वार में मेरी रक्षा हो । वेदात्मिका योनि जो सरस्वतीरूपा है, उसके द्वारा मेरी कीर्ति, कान्ति, आरोग्य तथा पुत्र-पौत्र आदि की रक्षा सदैव होती रहे।
रक्ष रक्ष महायोने
सर्वसिद्धिप्रदायिनी ।
राजयोगात्मिका योनिः सर्वत्र मां
सदाऽवतु ॥५॥
सर्वसिद्धि प्रदाता महायोनि द्वारा
मेरी रक्षा हो, राजयोग कारक योनि द्वारा सभी
स्थानों में सदैव ही मेरी रक्षा होती रहे।
योनिस्तोत्रम् फलश्रृति
इति ते कथितं देवि कवचं
सर्वसिद्धिदम् ।
त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नित्यं
राजोपद्रवनाशकृत् ॥६॥
हे देवि! समस्त प्रकार की सिद्धि
प्रदान करने वाले इस कवच का वर्णन मैंने आपसे किया है। ऐसा साधक जो इस कवच का
तीनों संध्याओं में पाठ करता है, उसके राजा
(अधिकारी अथवा मंत्री) द्वारा उत्पन्न सभी प्रकार के विघ्नों का शमन हो जाता है।
सभायां वाक्पतिश्चैव राजवेश्मनि
राजवत् ।
सर्वत्र जयमाप्नोति कवचस्य जपेन हि ॥७॥
इस कवच का पाठ करने वाले साधक का
सभा (संगोष्ठी) अथवा राजगृह में राजा के समान आदर होता है। इसका पाठ करने वाला सभी
स्थानों में विजयी होता है।
श्रीयोन्याः संगमे देवीं
पठेदेनमनन्यधीः।
स एव सर्वसिद्धीशो नात्र कार्या
विचारणा ॥८॥
श्रीयोनि संगम में पाठ करने वाला
उत्तम साधक समस्त सिद्धियां प्राप्त करता है। इसमें किसी भी प्रकार का संशय नहीं
करना चाहिए।
मातृकाक्षरसम्पुटं कृत्वा यदि पठेन्नरः।
भुङक्ते च विपुलान् भोगान्
दुर्गया सह मोदते ॥९॥
यदि कोई साधक योनिकवच के साथ
मातृकाक्षर लगाकर पाठ करता है तो वह अनेक प्रकार के भौतिक सुखों को भोगता है।
इति गुह्यतमं देवि
सर्वधर्म्मोत्तमोत्तमम ।
भूर्जे वा ताड़पत्रे वा लिखित्वा
धारयेद् यदि ॥ १०॥
हरिचन्दनमिश्रेण रोचना - कुङ्कुमेन
च ।
शिखायामथवा कण्ठे सोऽपीशवरो न
संशयः॥११॥
हे देवि! समस्त धर्मों में
सर्वोत्तम इस गुप्ततम कवच को मैंने आपसे कहा है। इस कवच को भोजपत्र अथवा ताड़पत्र
पर पीले चन्दन अथवा रोली (कुंकुम) से लिखकर जो
व्यक्ति अपने कंठ अथवा शिखा में धारण करता है, वह निश्चय ही
ईश्वरतुल्य हो जाता है।
शरत् - काले महाष्टम्यां नवम्यां
कुलसुन्दरि ।
पूजाकाले पठेदेनं जयी नित्यं न
संशयः॥१२॥
शरत्काल (आश्विन मास) में,
महाअष्टमी या महानवमी तिथि में जो साधक पूजन करने के बाद इसका पाठ
करता है, उसे प्रत्येक क्षेत्र में विजय प्राप्त होती है।
इसमें किसी प्रकार का संशय नहीं करना चाहिए।
इति शक्तिकागमसर्वस्वे हरगौरीसंवादे श्रीयोनिकवचं समाप्तम् ।
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