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गायत्री कवचम्
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गायत्री ब्राह्मणो देवता धर्मार्थकाममोक्षार्थे विनियोगः ।
ॐ भूर्भुवः स्वः । ॐ
तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ॐ ।
ॐ ॐ ॐ ॐ भूः ॐ ॐ ॐ ॐ भुवः ॐ ॐ स्वः,
ॐ ॐ त ॐ ॐ त्स ॐ ॐ वि ॐ ॐ तु ॐ ॐ र्व ॐ ॐ रे ॐ ॐ णि ॐ ॐ यं ॐ ॐ भ ॐ
ॐ र्गो ॐ ॐ दे ॐ ॐ व ॐ ॐ स्य ॐ ॐ धी ॐ ॐ म ॐ ॐ हि ॐ ॐ धि ॐ ॐ यो ॐ ॐ यो ॐ ॐ नः ॐ ॐ
प्र ॐ ॐ चो ॐ ॐ द ॐ ॐ या ॐ ॐ त् ॐ ॐ ओम् ।
गायत्री कवचम्
ॐ भूः ॐ पातु मे मूलं
चतुर्दशसमन्वितम् ।
ॐ भुवः ॐ पातु में लिङ्गं सकलं
षड्दलान्वितम् ।।
गायत्री मन्त्र का पहला अक्षर है-'भूः' अतः हे देवि ! आप 'ॐ भू'
मेरे 14 से समन्वित मूल अर्थात् मूलोत्पत्ति की रक्षा करें। 'ॐ भुवः' मेरे समस्त षट्दल से युक्त लिङ्ग की रक्षा
करें।
ॐ स्वः ॐ पातु मे कण्ठं साकाशं
दलषोडशम् ।
ॐ त ॐ पातु मे नित्यं ब्रह्मणः
कारणं परम् ।।
हे देवि ! 'ॐ स्वः' में 16 दल आकाश वाले कण्ठ की रक्षा करें और 'ॐ त' आप मेरे नित्य ब्रह्म के पर कारण की रक्षा
करें।
ॐ त्स ॐ पातु में रसं रसनासंयुतं मम
।
ॐ वि ॐ पातु मे गन्धं सदा
शरीरसंयुतम् ।।
'ॐ तत्स ॐ' हे
देवि ! आप मेरी रसना अर्थात् रस (स्वादु) को ग्रहण करने वाली जिह्वा सहित मेरे रस की
रक्षा करें। 'ॐ वि ॐ' हे देवि ! आप
मेरे शरीर युक्त गन्ध की रक्षा करें।
ॐ तु ॐ पातु मे स्पर्शं शरीरस्य च
कारणम् ।
ॐ र्व ॐ पातु मे शब्द
शब्दविग्रहकारणम् ।।
'ॐ तु ॐ' हे
देवि ! आप मेरे शरीर के कारण स्पर्श तत्त्व की रक्षा करें। 'ॐ
र्व ॐ' हे देवि ! आप मेरे शब्दरूप शरीर के कारण शब्द की
रक्षा करें।
ॐ रे ॐ पातु मे नित्यं त्वचं
शरीररक्षकम् ।
ॐ णि ॐ पातु मे अक्षि
सर्वतत्त्वैककारणम् ।।
'ॐ रे ॐ' हे
देवि ! आप मेरे शरीर की रक्षक त्वचा की रक्षा करें। 'ॐ णि ॐ'
हे देवि ! आप मेरे सब तत्त्वों को देखने के कारण रूप नेत्रों की रक्षा
करें।
ॐ यं ॐ पातु मे श्रोत्र श्रवणस्य च
कारणम् ।
ॐ भॐ पातु मे घ्राणं
गन्धोपादानकारणम् ।।
'ॐ यं ॐ' हे
देवि ! आप मेरे श्रवण के कारण कानों की रक्षा करें।‘ॐ भॐ'
हे देवि! आप मेरे गन्ध के उपादान कारण नासिका की रक्षा करें।
ॐ र्गो ॐ पातु मे वाक्यं सभायां शब्दरूपिणी
(णम्) ।
ॐ दे ॐ पातु मे बाहुयुगलं
ब्रह्मकारणम् ।।
'ॐ र्गो ॐ' हे
देवि ! आप मेरे सभा में शब्दरूप वाले वाक्य की रक्षा करें ताकि सभा में मेरे मुख
से कोई अशुद्ध शब्द न निकले। 'ॐ दे ॐ' हे
देवि! आप मेरे ब्रह्म (शक्ति) के कारण भुजाओं की रक्षा करें।
ॐ व ॐ पातु मे पादयुगलं
ब्रह्मकारणम् ।
ॐ स्य ॐ पातु मे लिङ्गं सजलं
षड्दलैर्युतम् ।।
‘ॐव ॐ’ हे
देवि! हे ब्रह्म (शक्ति के कारण दोनों पैरों की रक्षा करें। ‘ॐ स्य ॐ' हे दवि! आप मेरे छः दलों से युक्त सजल
लिङ्ग की रक्षा करें।
ॐ धी ॐ पातु मे नित्यं
प्रकृतिशब्दकारणम् ।
ॐ म ॐ पातु मे नित्यं
परब्रह्मस्वरूपिणी ।।
ॐ धी ॐ'
हे देवि ! आप हमारे प्रकृति के शब्द रूप कारण नित्य तत्त्व की रक्षा
करें। 'ॐ म ॐ' हे देवि ! आप मेरे परम
ब्रह्म स्वरूप वाले नित्य तत्त्व की रक्षा करें।
ॐ हि ॐ पातु मे बुद्धिं
परब्रह्ममयीं सदा ।
ॐ धि ॐ पातु मे नित्यमहङ्कारं यथा
तथा ।।
‘ॐ हि ॐ’ हे
देवि! आप मेरी परब्रह्ममयी बुद्धि की रक्षा करें। ॐ धि ॐ' हे
देवि ! आप मेरे जैसे तैसे नित्य अहंकार तत्त्व की नित्य रक्षा करें।
ॐ यो ॐ पातु मे नित्यं पृथ्वी
पार्थिवं वपुः ।
ॐ यो ॐ पातु मे नित्यं जलं सर्वत्र
सर्वदा ।।
‘ॐ यो ॐ' हे
देवि! आप पृथ्वी तत्त्व से बने हुए पृथ्वी तत्त्व की नित्य रक्षा करें। 'ॐ यो ॐ' हे देवि ! आप मेरे सर्वत्र और सर्वदा जल
तत्त्व की नित्य रक्षा करें।
ॐ नः ॐ पातु मे नित्यं तेजःपुञ्जं
यथा तथा ।
ॐ प्र ॐ पातु मे नित्यमनिलं
देहकारणम् ।।
‘ॐ नः ॐ' हे
देवि! आप मेरे तेजपुञ्ज को जैसे भी हो वैसे नित्य रक्षा करें। ‘ॐ प्र ॐ' हे देवि ! आप मेरे शरीर के कारण वायु
तत्त्व की नित्य रक्षा करें।
ॐ चो ॐ पातु मे नित्यमाकाशं
शिवसन्निभम् ।
ॐ द ॐ पातु मे जिह्वां जपयज्ञस्य
कारणम् ।।
'ॐ चो ॐ' हे
देवि ! आप मेरे शिव समीप रहने वाले आकाश तत्त्व की नित्य रक्षा करें। 'ॐ द ॐ' हे देवि ! आप मेरे जप और यज्ञ के कारण जिह्वा
की रक्षा करें।
ॐ यात् ॐ पातु मे चित्तं
शिवज्ञानमयं सदा ।
तत्त्वानि पातु मे नित्यं गायत्री
परदेवता ।।
‘ॐ यात् ॐ’ हे
देवि ! आप मेरे शिवज्ञान से युक्त चित्त की सदा रक्षा करें। इस प्रकार हे परदेवता
गायत्री आप मेरे सब तत्त्वों की नित्य रक्षा करें।
ॐ भूर्भुवः स्वः पातु नित्यं
ब्रह्माणी जठरं क्षुधाम् ।
तृष्णां मे ससतं पातु ब्राह्मणी
भूर्भुवः स्वरः ।।
‘ॐ भूर्भुवः स्वः' हे ब्रह्माणी ! आप मेरे पेट की क्षुधा की नित्य रक्षा करें तथा 'ॐ भूर्भुवः स्व' ब्रह्माणी मेरी तृष्णा (प्यास) की
नित्य रक्षा करें।
गायत्री कवचम् महात्म्य
इस कवच के लाभ के वारे में बताया
गया है कि-
क्रामक्रोधादिकं सर्व स्मरणाद्याति
शाम्यताम् ।
इदं कवचमज्ञात्वा गायत्रीं
प्रजपेद्यदि ।।
शतकोटिजपेनैव न सिद्धिर्जायते
प्रिये ।
गायत्रीवचनात् सर्वं स्मरणात्
सिद्ध्यति ध्रुवम् ।।
इस कवच के स्मरण मात्र से काम,
क्रोध आदि सब शान्त हो जाते हैं। तथा इस कवच को न जानकर यदि जो
गायत्री का जप करे तो सौ करोड़ जप द्वारा भी सिद्धि नहीं होती है। गायत्री वचन से
और स्मरण से सब निश्चित ही सिद्ध हो जाता है।
पठित्वा कवचं विप्रो गायत्रीं
सकृदुच्चरेत् ।
सर्वपापविनिर्मुक्तो जीवन्मुक्तो
भवेद् द्विजः ॥
इदं कवचमज्ञात्वा कवचान्यत् पठेत्तु
यः ।
सर्वं तस्य वृथा देवि
त्रैलोक्यमङ्गलादिकम् ।।
इस कवच को पढ़कर जो एक बार गायत्री
का उच्चारण करे तो वह सब पापों से मुक्त हो जाता है तथा इस कवच को न जानकर अन्य
कवच को जो उच्चारण करता है, उसके समस्त मंगलादि
कार्य व्यर्थ हो जाते हैं।
गायत्रीकवचं यस्य जिह्वायां विद्यते
सदा ।
व्यर्थं भवति चार्वङ्गि तज्जपं
वनरोदनम् ।।
यही नहीं गायत्री कवच जिह्वा पर सदा
विद्यमान है तो उसकी जिह्वा जप एवं पूजन में पवित्र रहती है।
इति: गायत्री कवचम् सम्पूर्ण: ।।
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