मृत्य्ष्टक स्तोत्र
मृत्य्ष्टक स्तोत्र- अर्थात् मृत्यु
का निवारक आठ श्लोकों का स्तोत्र।
मार्कण्डेयमुनि के द्वारा कहा गया
यह मृत्य्वष्टकस्तोत्र महापुण्यशाली है, मृत्यु
का विनाश करनेवाला और मङ्गलदायक है। स्तोत्र इस प्रकार है-
मृत्य्ष्टकस्तोत्रम्
दामोदरं प्रपन्नोऽस्मि किन्नो
मृत्युः करिष्यति ॥ १ ॥
मैं भगवान् दामोदर की शरण में हूँ,
मृत्यु मेरा क्या करेगी ?
शङ्खचक्रधरं देवं
व्यक्तरूपिणमव्ययम् ।
अधोऽक्षजं प्रपन्नोस्मि किन्नो
मृत्युः करिष्यति ॥ २ ॥
मैं शंखचक्रधारी,
व्यक्त, अव्यय, अधोक्षज की
शरण में हूँ, मृत्यु मेरा क्या करेगी ?
वराहं वामनं विष्णुं नारसिंहं
जनार्दनम् ।
माधवं च प्रपन्नोऽस्मि किन्नो
मृत्युः करिष्यति ॥ ३ ॥
मैं वराह,
वामन, विष्णु, नृसिंह,जनार्दन, माधव के शरणागत हूँ, मृत्यु
मेरा क्या करेगी?
पुरुषं पुष्करक्षेत्रबीजं पुण्यं
जगत्पतिम् ।
लोकनाथं प्रपन्नोऽस्मि किन्नो
मृत्युः करिष्यति ॥ ४ ॥
मैं पुराणपुरुष,
पुष्करक्षेत्र के (मूलतत्त्व) बीजभूत, (मूल
पुरुष) महापुण्य, जगत्पति, लोकनाथ की
शरण में हूँ, मृत्यु मेरा क्या करेगी?
सहस्रशिरसं देवं व्यक्ताव्यक्तं
सनातनम् ।
महायोगं प्रपन्नोऽस्मि किन्नो
मृत्युः करिष्यति ॥ ५ ॥
मैं सहस्र सिरवाले,
व्यक्त, अव्यक्त, सनातन,
महायोगेश्वर की शरण में हूँ, मृत्यु मेरा क्या
करेगी?
भूतात्मानं महात्मानं
यज्ञयोनिमयोनिजम् ।
विश्वरूपं प्रपन्नोऽस्मि किन्नो मृत्युः
करिष्यति ॥ ६ ॥
मैंने प्राणियों में 'आत्मा' स्वरूप से विद्यमान रहनेवाले, महात्मा, यज्ञयोनि, अयोनिज,
विश्वरूप भगवान् की शरण ग्रहण कर ली है, अब
मृत्यु मेरा क्या करेगी ?
इत्युदीरितमाकर्ण्य स्तोत्रं तस्य
महात्मनुः ।
अपयातस्ततो मृत्युर्विष्णुदूतैः
प्रपीडितः ॥ ७ ॥
इस प्रकार उन महात्मा
मार्कण्डेयमुनि के द्वारा की गयी स्तुति को सुनकर विष्णु-दूतों से संत्रस्त मृत्यु
भाग जाती है।
इति तेन जितो मृत्युर्मार्कण्डेयेन
धीमता ।
प्रसन्ने पुण्डरीकाक्षे नृसिंहे
नास्तिदुर्लभम् ॥ ८ ॥
इस स्तोत्र का पाठकर बुद्धिमान्
श्रीमार्कण्डेय ने मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ली। पुण्डरीकाक्ष श्रीनृसिंह
महाविष्णु के प्रसन्न होने पर कुछ भी दुर्लभ नहीं है।
मृत्य्वष्टकमिदं पुण्यं
मृत्युप्रशमनं शुभम् ।
मार्कण्डेयहितार्थाय स्वयं
विष्णुरुवाच ह ॥ ९ ॥
यह मृत्य्वष्टकस्तोत्र महापुण्यशाली
है,
मृत्यु का विनाश करनेवाला और मङ्गलदायक है। मार्कण्डेयमुनि का
कल्याण करने के लिये भगवान् विष्णु ने स्वयं इस स्तोत्र को कहा था।
इदं यः पठते भक्त्या त्रिकालं नियतं
शुचिः ।
नाकाले तस्य मृत्युः
स्यान्नरस्याच्युतचेतसः ॥ १० ॥
जो मनुष्य नित्य तीनों कालों में
पवित्रता से भक्तिपूर्वक इस स्तुति का नियमपूर्वक पाठ करता है,
वह विष्णुभक्त अकालमृत्यु से ग्रस्त नहीं होता।
हृत्पद्ममध्ये पुरुषं पुराणं
नारायणं शाश्वतमप्रमेयम् ।
विचिन्त्य सूर्यादतिराजमानं मृत्युं
स योगि जितवांस्तथैव ॥ ११ ॥
जो योगी अपने हृदयकमल में
पुराणपुरुष, सनातन, अप्रमेय
तथा सूर्य से भी अत्यधिक तेजस्वी नारायण का ध्यान करता है, वह
मृत्यु पर विजय प्राप्त कर लेता है।
इति श्रीगारुडे महापुराणे मार्कण्डेयकृतं मृत्य्वष्टकस्तोत्रं सम्पूर्णः॥
0 Comments