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कर्मकाण्ड

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कालिपावन स्तोत्र

कालिपावन स्तोत्र

मूलाधार पद्म में चित्त को समाहित कर, अनेक प्रकार के द्रव्यों से व अनेक उपकरणों से पूजाकर मानस जाप तथा कालिपावन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए । इस प्रकार इस स्तोत्र का पाठ कर साधक योगिराज बनकर षट्चक्रों के भवन में निवास करता है ।

कालिपावन स्तोत्र

कालिपावन डाकिनी स्तोत्रम्

आनन्दभैरवी उवाच

तत् स्तोत्रं शृणु योगार्थं सावधानावधारय ।

एतत्स्तोत्रप्रसादेन महालयवशो भवेत् ॥ २६ ॥

आनन्दभैरवी ने कहाहे महेश्वर ! अब योगसिद्धि के लिए उस स्तोत्र को सावधान होकर श्रवण कीजिए । इस स्तोत्र के सिद्ध हो जाने पर महाकाल भी वश में हो जाते हैं ।

कालिपावन स्तोत्रम्

ब्रह्माणं हंससङ्घायुतशरणवदावाहनं देववक्त्र ।

    विद्यादानैकहेतुं तिमिचरनयनाग्नीन्दुफुल्लारविन्दम्

वागीशं वाग्गतिस्थं मतिमतविमलं बालार्कं चारुवर्णम् ।

    डाकिन्यालिङ्गितं तं सुरनरवरदं भावयेन्मूलपद्मे ॥ १ ॥

मूलपद्म में देवता तथा मनुष्यों को वरदान देने वाले डाकिनी शक्ति से आलिङ्गित उन ब्रह्मदेव का ध्यान करना चाहिए। जो दश हजार हंस संघों से युक्त वाहन से युक्त शरण ( विमान) वाले हैं, देवताओं के मुख हैं, विद्या दान में मात्र एक हेतु हैं, राक्षसों के नेत्रों को जलाने के लिए अग्नि हैं, फूले हुए कमल पर चन्द्रमा के समान, वागीश, वाणी में गति देने वाले, मतिमानों में सर्वश्रेष्ठ बाल सूर्य के समान अत्यन्त सुन्दर अरुण वर्ण वाले हैं ।

नित्यां ब्रह्मपरायणां सुखमयीं ध्यायेन्मुदा डाकिनी ।

    रक्तां गच्छविमोहिनीं कुलपथे ज्ञानाकुलज्ञानिनीम् ।

मूलाम्भोरुहमध्यदेशनिकटे भूविम्बमध्ये प्रभा ।

    हेतुस्थां गतिमोहिनीं श्रुतिभुजां विद्यां भवाह्लादिनीम् ॥ २ ॥

विद्यावास्तवमालया गलतलप्रालम्बशोभाकरा ।

    ध्यात्वा मूलनिकेतने निजकुले यः स्तौति भक्त्या सुधीः ।

नानाकारविकारसारकिरणां कर्त्री विधो योगिना ।

    मुख्यां मुख्यजनस्थितां स्थितिमतिं सत्त्वाश्रितामाश्रये ॥ ३ ॥

नित्य स्वरूपा, ब्रह्म में परायणा, सुखमयी, डाकिनी का मूलपद्म में प्रसन्नता पूर्वक ध्यान करना चाहिए। जो रक्त वर्ण वाली हैं, संसार को मोहने वाली हैं, कुल पथ में ज्ञान से अकुल लोगों को ज्ञान देने वाली हैं, भू विम्ब के मध्य में, मूलकमल के मध्य देश के निकट जिनकी आभा फैली हुई है, जो सभी हेतुओं में स्थित हैं, गति (काल) को मोहने वाली, वेद वेत्ताओं की विद्या तथा भाव में आह्लाद प्रदान करने वाली हैं। मूलाधार में विद्या रूप वस्तु माला से गले के तल भाग में लटकते रहने के कारण शोभा सम्पन्न जिस डाकिनी का ध्यान कर सुधी साधक भक्ति पूर्वक अपने कुल प्रदेश में स्तुति करता है, जो अनेक प्रकार के आकार विकार के सार से संयुक्त किरणों वाली है, सबकी विधात्री हैं, योगियों की विद्या हैं, मुख्य हैं, मुख्यजनों में निवास करने वाली हैं, सर्वत्र स्थित रहने वाली हैं, ऐसी सत्त्वाश्रित भगवती डाकिनी का मैं आश्रय लेता हूँ ।

या देवी नवडाकिनी स्वरमणी विज्ञानिनी मोहिनी ।

    मां पातु पिरयकामिनी भवविधेरानन्दसिन्धूद्भवा ।

मे मूलं गुणभासिनी प्रचयतु श्रीः कीतीचक्रं हि मा ।

    नित्या सिद्धिगुणोदया सुरदया श्रीसंज्ञया मोहिता ॥ ४ ॥

जो नवडाकिनी देवी हैं, स्वयं रमण करने वाली हैं, विज्ञान से संयुक्त मोहिनी हैं, प्रिय कामिनी हैं तथा शङ्कर एवं ब्रह्मदेव के आनन्द रूप सिन्धु को उत्पन्न करने वाली हैं वह डाकिनी भगवती हमारी रक्षा करें। वह गुणभासिनी मेरे मूल को अधिक से अधिक एकत्रित करें। मुझे श्री तथा कीर्ति समूह प्रदान करें। जो नित्य हैं सिद्धगुणों का जिनमें उदय है, जो देवताओं के लिए कृपा स्वरूपा हैं और जो अपनी श्री संज्ञा से सबको मोहित करने वाली हैं वह नवडाकिनी भगवती मेरी रक्षा करें ।

तन्मध्ये परमाकला कुलफला बाणप्रकाण्डाकरा

    राका राशषसादशा शशिघटा लोलामला कोमला ।

सा माता नवमालिनी मम कुलं मूलाम्बुजं सर्वदा ।

    सा देवी लवराकिणी कलिफलोल्लासैकबीजान्तरा ॥ ५ ॥

जो लवराकिणी देवी के नाम से प्रसिद्ध हैं तथा कलिकाल में फलों को उल्लसित करने वाली बीज स्वरूपा हैं, जो मूलाधार में परमा कला, कुलफला तथा वाण प्रकाण्ड की आकर हैं । राका ( शरत्पूर्णिमा) व श ष स दशा वाली हैं। शशिघटा, लोला, अमला तथा कोमला हैं। वह नवीन माला धारण करने वाली कुण्डलिनी माता हमारे सर्वस्व भूत मूलाधार स्थित कमल की रक्षा करें ।

धात्री धैर्यवती सती मधुमती विद्यावती भारती ।

    कल्याणी कुलकन्यकाधरनरारूपा हि सूक्ष्मास्पदा ।

मोक्षस्था स्थितिपूजिता स्थितिगता माता शुभा योगिना ।

    नौमि श्रीभविकाशयां शमनगां गीतोद्गतां गोपनाम् ॥ ६ ॥

जो धात्री, धैर्यवती, सती, मधुमती, विद्यावती, भारती, कल्याणी, कुलकन्यका, स्त्री रूप धारण करने वाली, सूक्ष्म आस्पद वाली, मोक्ष में स्थित रहने वाली अपनी स्थिति से पूजित, स्थिति में रहने वाली एवं योगियों की कल्याणकारिणी माता हैं, मैं उन सबका कल्याण करने वाली, शान्ति में निवास करने वाली, गीत से उद्गत, सर्वथा गोपनीय उन भगवती को नमस्कार करता हूँ ।

कल्केशीं कुलपण्डितां कुलपथग्रन्थिक्रियाच्छेदिनी ।

    नित्यां तां गुणपण्डितां प्रचपलां मालाशतार्कारुणाम् ।

विद्यां चण्डगुणोदयां समुदयां त्रैलोक्यरक्षाक्षरा ।

    ब्रह्मज्ञाननिवासिनीं सितशुभानन्दैकबीजोद्गताम् ॥ ७ ॥

कल्केशी, कुलपण्डिता, कुलपथ में विद्यमान् ग्रन्थियों को क्रिया से च्छेदन करने वाली, नित्या, गुणपण्डिता, प्रकृष्ट चपल स्वभाव वाली, शतबाल सूर्य की माला के समान अरुण वर्ण वाली, महाविद्या, प्रकृष्ट गुणों से उद्दीप्त रहने वाली, सब का उदय करने वाली, त्रैलोक्य की रक्षा में अक्षर रूप से निरत रहने वाली, ब्रह्मज्ञान में निरन्तर निवास करने वाली, सितवर्णा शुभानन्दरूप एक बीज से उत्पन्न होने वाली भगवती को मैं नमस्कार करता हूँ ।

गीतार्थानुभवपिरयां सकलया सिद्धप्रभापाटलाम् ।

कामाख्यां प्रभजामि जन्मनिलयां हेतुपिरयां सत्क्रियाम् ।

सिद्धौ साधनतत्परं परतरं साकाररूपायिताम् ॥ ८ ॥

गीत के अर्थ के अनुभव से प्रेम करने वाली, कला से युक्त, सिद्ध प्रभा से अरुण विग्रह वाली, सत्क्रिया स्वरूपा, जन्म की निलयरूप, सभी हेतुओं से प्रेम करने वाली, सिद्धि में साधन रूप से तत्पर रहने वाली, परतर तत्त्व से साकाररूप धारण करने वाली कामाख्या का मैं भजन करता हूँ ।

॥ इति श्रीरुद्रयामले उत्तरतन्त्रे डाकिनी स्तोत्रं सम्पूर्ण: ॥

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