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- रुद्रयामल तंत्र पटल ३०
- कालिपावन स्तोत्र
- रुद्रयामल तंत्र पटल २९
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- नृसिंह स्तुति
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- अपराजिता कल्प
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- मायातन्त्र पटल ११
- मृत्युञ्जय स्तोत्र
- मायातन्त्र पटल १०
- गायत्री कवच
- मायातन्त्र पटल ९
- नृसिंह स्तोत्र
- मायातन्त्र पटल ८
- कुलामृत स्तोत्र
- मायातन्त्र पटल ७
- मृत्य्ष्टक स्तोत्र
- श्राद्ध सम्बन्धी शब्दावली
- भीष्म स्तवराज
- योनि कवच
- मायातन्त्र पटल ६
- योनि स्तोत्र
- मायातन्त्र पटल ५
- योनि स्तवराज
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मूल शांति पूजन विधि कहा गया है कि यदि भोजन बिगड़ गया तो शरीर बिगड़ गया और यदि संस्कार बिगड़ गया तो जीवन बिगड़ गया । प्राचीन काल से परंपरा रही कि...
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रघुवंशम् द्वितीय सर्ग Raghuvansham dvitiya sarg महाकवि कालिदास जी की महाकाव्य रघुवंशम् प्रथम सर्ग में आपने पढ़ा कि-महाराज दिलीप व उनकी प...
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रूद्र सूक्त Rudra suktam ' रुद्र ' शब्द की निरुक्ति के अनुसार भगवान् रुद्र दुःखनाशक , पापनाशक एवं ज्ञानदाता हैं। रुद्र सूक्त में भ...
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मूल शांति पूजन विधि
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
मृत्युञ्जय स्तोत्र
मार्कण्डेयजी के द्वारा किये हुए मृत्युञ्जय स्तोत्र का जो भगवान् शङ्कर के समीप पाठ करेगा, उसे मृत्यु से भय नहीं होता है । बुद्धिमान् मार्कण्डेय द्वारा इस स्तुति को करने पर महादेवजी ने उन्हें अनेक कल्पों तक की असीम आयु प्रदान की।
श्रीमृत्युञ्जयस्तोत्रम्
रत्नसानुशरासनं
रजताद्रिशृङ्गनिकेतनं
शिञ्जिनीकृतपन्नगेश्वरमच्युतानलसायकम्
।
क्षिप्रदग्धपुरत्रयं
त्रिदशालयैरभिवन्दितं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति
वै यमः ॥१॥
कैलास के शिखर पर जिनका निवासगृह है,
जिन्होंने मेरुगिरि का धनुष, नागराज वासुकि की प्रत्यञ्चा और भगवान् विष्णु को अग्निमय बाण बनाकर
तत्काल ही दैत्यों के तीनों पुरों को दग्ध कर डाला था, सम्पूर्ण
देवता जिनके चरणों की वन्दना करते हैं, उन भगवान्
चन्द्रशेखर की मैं शरण लेता हूँ। यमराज मेरा क्या करेगा? ॥ १॥
पञ्चपादपपुष्पगन्धिपदाम्बुजद्वयशोभितं
भाललोचनजातपावकदग्धमन्मथविग्रहम् ।
भस्मदिग्धकलेवरं भवनाशिनं भवमव्ययं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति
वै यमः ॥२॥
मन्दार,
पारिजात, संतान, कल्पवृक्ष
और हरिचन्दन-इन पाँच दिव्य वृक्षों के पुष्पों से सुगन्धित युगल चरण-कमल जिनकी
शोभा बढ़ाते हैं, जिन्होंने अपने ललाटवर्ती नेत्र से प्रकट
हुई आग की ज्वाला में कामदेव के शरीर को भस्म कर डाला था, जिनका श्रीविग्रह सदा भस्म से विभूषित रहता है, जो
भव-सबकी उत्पत्ति के कारण होते हुए भी भव-संसार के नाशक हैं तथा जिनका कभी विनाश
नहीं होता, उन भगवान् चन्द्रशेखर की मैं शरण लेता
हूँ। यमराज मेरा क्या करेगा? ॥२॥
मत्तवारणमुख्यचर्मकृतोत्तरीयमनोहरं
पङ्कजासनपद्मलोचनपूजिताघ्रिसरोरुहम्
।
देवसिद्धतरङ्गिणीकरसिक्तशीतजटाधरं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति
वै यमः ॥३॥
जो मतवाले गजराज के मुख्य चर्म की
चादर ओढ़े परम मनोहर जान पड़ते हैं, ब्रह्मा और विष्णु भी जिनके चरण-कमलों की
पूजा करते हैं तथा जो देवताओं और सिद्धों की नदी गङ्गा की तरङ्गों से भीगी
हुई शीतल जटा धारण करते हैं उन भगवान् चन्द्रशेखर की मैं शरण लेता हूँ।
यमराज मेरा क्या करेगा? ॥३॥
कुण्डलीकृतकुण्डलीश्वरकुण्डलं
वृषवाहनं
नारदादिमुनीश्वरस्तुतवैभवं
भुवनेश्वरम् ।
अन्धकान्तकमाश्रितामरपादपं
शमनान्तकं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति
वै यमः ॥४॥
गेड़ुल मारे हुए सर्पराज जिनके
कानों में कुण्डल का काम देते हैं, जो
वृषभ पर सवारी करते हैं, नारद आदि
मुनीश्वर जिनके वैभव की स्तुति करते हैं, जो समस्त भुवनों के
स्वामी, अन्धकासुर का नाश करनेवाले, आश्रित
जनों के लिये कल्पवृक्ष के समान और यमराज को भी शान्त करनेवाले हैं, उन भगवान् चन्द्रशेखर की मैं शरण लेता हूँ। यमराज मेरा क्या करेगा?
॥४॥
यक्षराजसखं भगाक्षिहरं
भुजङ्गविभूषणं
शैलराजसुतापरिष्कृतचारुवामकलेवरम् ।
क्ष्वेडनीलगलं परश्वधधारिणं
मृगधारिणं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति
वै यमः ॥५॥
जो यक्षराज कुबेर के सखा,
भग देवता की आँख फोड़नेवाले और सर्पो के आभूषण धारण करनेवाले हैं,
जिनके श्रीविग्रह के सुन्दर वामभाग को गिरिराजकिशोरी उमा ने सुशोभित
कर रखा है, कालकूट विष पीने के कारण जिनका कण्ठभाग नीले रंग का
दिखायी देता है, जो एक हाथ में फरसा और दूसरे में मृग लिये
रहते हैं, उन भगवान् चन्द्रशेखर की मैं शरण लेता हूँ।
यमराज मेरा क्या करेगा? ॥ ५॥
भेषजं भवरोगिणामखिलापदामपहारिणं
दक्षयज्ञविनाशिनं त्रिगुणात्मकं
त्रिविलोचनम् ।
भुक्तिमुक्तिफलप्रदं
निखिलाघसंघनिबर्हणं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति
वै यमः ॥ ६॥
जो जन्म-मरण के रोग से ग्रस्त
पुरुषों के लिये औषधरूप हैं, समस्त
आपत्तियों का निवारण और दक्ष-यज्ञ का विनाश करनेवाले हैं, सत्त्व
आदि तीनों गुण जिनके स्वरूप हैं, जो तीन नेत्र धारण करते,
भोग और मोक्षरूपी फल देते तथा सम्पूर्ण पापराशि का संहार करते हैं,
उन भगवान् चन्द्रशेखर की मैं शरण लेता हूँ। यमराज मेरा क्या
करेगा? ॥ ६ ॥
भक्तवत्सलमर्चतां निधिमक्षयं
हरिदम्बरं
सर्वभूतपतिं परात्परमप्रमेयमनूपमम्
।
भूमिवारिनभोहुताशनसोमपालितस्वाकृति
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति
वै यमः ॥७॥
जो भक्तों पर दया करनेवाले हैं,
अपनी पूजा करनेवाले मनुष्यों के लिये अक्षय निधि होते हुए भी जो
स्वयं दिगम्बर रहते हैं, जो सब भूतों के स्वामी, परात्पर, अप्रमेय और उपमारहित हैं, पृथ्वी, जल, आकाश अग्नि
और चन्द्रमा के द्वारा जिनका श्रीविग्रह सुरक्षित है, उन भगवान् चन्द्रशेखर की मैं शरण लेता हूँ। यमराज मेरा क्या करेगा?
॥ ७॥
विश्वसृष्टिविधायिनं पुनरेव
पालनतत्परं
संहरन्तमथ प्रपञ्चमशेषलोकनिवासिनम् ।
क्रीडयन्तमहर्निशं गणनाथयूथसमावृतं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति
वै यमः ॥ ८ ॥
जो ब्रह्मारूप से सम्पूर्ण विश्व की
सृष्टि करते, फिर विष्णुरूप से सबके पालन में
संलग्न रहते और अन्त में सारे प्रपञ्च का संहार करते हैं, सम्पूर्ण
लोकों में जिनका निवास है तथा जो गणेशजी के पार्षदों से घिरकर दिन-रात
भाँति-भाँति के खेल किया करते हैं, उन भगवान् चन्द्रशेखर
की मैं शरण लेता हूँ। यमराज मेरा क्या करेगा? ॥८॥
रुद्रं पशुपतिं स्थाणुं
नीलकण्ठमुमापतिम् ।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः
करिष्यति ॥ ९ ॥
'रु' अर्थात्
दुःख को दूर करने के कारण जिन्हें रुद्र कहते हैं, जो
जीवरूपी पशुओं का पालन करने से पशुपति, स्थिर होने से
स्थाणु, गले में नीला चिह्न धारण करने से नीलकण्ठ
और भगवती उमा के स्वामी होने से उमापति नाम धारण करते हैं, उन भगवान् शिव को मैं मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूँ। मृत्यु मेरा
क्या कर लेगी? ॥९॥
कालकण्ठं कलामूर्ति कालाग्निं
कालनाशनम् ।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः
करिष्यति ॥१०॥
जिनके गले में काला दाग है,
जो कलामूर्ति, कालाग्निस्वरूप और काल के नाशक
हैं, उन भगवान् शिव को मैं मस्तक झुकाकर प्रणाम करता
हूँ। मृत्यु मेरा क्या कर लेगी? ॥ १० ॥
नीलकण्ठं विरूपाक्षं निर्मलं
निरुपद्रवम् ।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः
करिष्यति ॥ ११ ॥
जिनका कण्ठ नील और नेत्र विकराल
होते हुए भी जो अत्यन्त निर्मल और उपद्रवरहित हैं, उन भगवान् शिव को मैं मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूँ। मृत्यु मेरा
क्या कर लेगी? ॥ ११ ।।
वामदेवं महादेवं लोकनाथं जगद्गुरुम्
।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः
करिष्यति ॥ १२ ॥
जो वामदेव,
महादेव, विश्वनाथ और जगद्गुरु नाम धारण करते हैं, उन भगवान्
शिव को मैं मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूँ। मृत्यु मेरा क्या कर लेगी? ॥ १२ ॥
देवदेवं जगन्नाथं देवेशमृषभध्वजम् ।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः
करिष्यति ॥१३॥
जो देवताओं के भी आराध्यदेव,
जगत्के स्वामी और देवताओं पर भी शासन करनेवाले हैं, जिनकी ध्वजा पर वृषभ का चिह्न बना हुआ है, उन भगवान्
शिव को मैं मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूँ। मृत्यु मे क्या कर लेगी? ॥ १३ ॥
अनन्तमव्ययं शान्तमक्षमालाधरं हरम्
।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः
करिष्यति ॥ १४ ।
जो अनन्त,
अविकारी, शान्त, रुद्राक्षमालाधारी
और सबके दुःखों का हरण करनेवाले हैं, उन भगवान् शिव को
मैं मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूँ। मृत्यु मेरा क्या कर लेगी? ॥ १४ ॥
आनन्दं परमं नित्यं कैवल्यपदकारणम् ।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः
करिष्यति ॥ १५ ।
जो परमानन्दस्वरूप नित्य एवं
कैवल्यपद-मोक्ष की प्राप्ति के कारण हैं, उन
भगवान् शिव को मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूँ। मृत्यु मेरा क्या कर लेगी?
॥१५॥
स्वर्गापवर्गदातारं सृष्टिस्थित्यन्तकारिणम्
।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः
करिष्यति ॥ १६ ।
स्वर्ग और मोक्ष के दाता तथा सृष्टि,
पालन और संहार के कर्ता हैं, उन भगवान् शिव
को मैं मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूँ। मृत्यु मेरा क्या कर 'लेगी?
॥ १६॥
॥ इति श्रीपद्मपुराणान्तर्गत उत्तरखण्डे श्रीमृत्युञ्जयस्तोत्रं सम्पूर्णम्॥
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