शिव षडक्षर स्तोत्र
शिव षडक्षर स्तोत्र - शिव पुराण
संहिता में कहा है कि सर्वज्ञ शिव ने संपूर्ण देहधारियों के सारे मनोरथों की
सिद्धि के लिए इस 'ॐ नमः शिवाय'
मंत्र का प्रतिपादन किया है। यह आदि षड़क्षर मंत्र संपूर्ण विद्याओं
का बीज है। जैसे वट बीज में महान वृक्ष छिपा हुआ है, उसी
प्रकार अत्यंत सूक्ष्म होने पर भी यह मंत्र महान अर्थ से परिपूर्ण है।
ॐ इस एकाक्षर मंत्र में तीनों गुणों
से अतीत,
सर्वज्ञ, सर्वकर्ता, द्युतिमान
सर्वव्यापी प्रभु शिव ही प्रतिष्ठित हैं। ईशान आदि जो सूक्ष्म एकाक्ष रूप ब्रह्म
हैं, वे सब 'नमः शिवाय' इस मंत्र में क्रमशः स्थित हैं।
सूक्ष्म षड़क्षर मंत्र में
पंचब्रह्मरूपधारी साक्षात् भगवान शिव स्वभावतः वाच्य और वाचक भाव से विराजमान
हैं। अप्रमेय होने के कारण शिव वाच्य है और मंत्र उनका वाचक माना गया है। शिव और
मंत्र का यह वाच्य वाचक भाव अनादिकाल से चला आ रहा है। जैसे यह घोर संसार सागर
अनादिकाल से चला आ रहा है, उसी प्रकार संसार
से छ़ुडानेवाले भगवान शिव भी अनादिकाल से ही नित्य विराजमान हैं। जैसे औषध रोगों
का स्वभावतः शत्रु है, उसी प्रकार भगवान शिव संसार दोषों के
स्वाभाविक शत्रु माने गए हैं। यदि भगवान विश्वनाथ न होते तो यह जगत अंधकारमय हो
जाता, क्योंकि प्रकृति जड़ है और जीवात्मा अज्ञानी। अतः
इन्हें प्रकाश देने वाले परमात्मा ही हैं। उनके बंधन और मोक्ष भी देखे जाते हैं।
अतः विचार करने से सर्वज्ञ परमात्मा शिव के बिना प्राणियों के आदिसर्व की सिद्धि
नहीं होती। जैसे रोगी वैद्य के बिना सुख से रहित हो क्लेश उठाते हैं, उसी प्रकार सर्वज्ञ शिव का आश्रय न लेने से संसारी जीव नाना प्रकार के
क्लेश भोगते हैं।
अतः यह सिद्ध हुआ कि जीवों का संसार
सागर से उद्धार करने वाले स्वामी अनादि सर्वज्ञ परिपूर्ण सदाशिव विद्यमान हैं।
भगवान शिव आदि मध्य और अंत से रहित हैं। स्वभाव से ही निर्मल हैं तथा सर्वज्ञ एवं
परिपूर्ण हैं। उन्हें शिव नाम से जानना चाहिए। शिव गम में उनके स्वरूप का विशदरूप
से वर्णन है। यह पच्चाक्षर मंत्र उनका ही नाम है और वे शिव अभिधेय हैं। अभिधान और
अभिरधेय रूप होने के कारण परम शिवस्वरूप यह मंत्र सिद्ध माना गया है।
'ॐ नमः शिवाय' यह जो षड़क्षर शिव वाक्य है, शिव का विधि वाक्य है,
अर्थवाद नहीं है। यह उन्हीं शिव का स्वरूप है जो सर्वज्ञ, परिपूर्ण और स्वभावतः निर्मल हैं। सर्वज्ञ शिव ने जिस निर्मल वाक्य
पच्चाक्षर मंत्र का प्रणयन किया है, वह प्रमाणभूत ही है,
इसमें संयम नहीं है। इसलिए विद्वान पुरुष को चाहिए कि वह ईश्वर के
वचनों पर श्रद्धा करे। मंत्रों की संख्या बहुत होने पर भी जिस विमल षड़क्षर मंत्र
का सर्वज्ञ शिव ने किया है, उसके समान कहीं कोई दूसरा मंत्र
नहीं है।
षड़क्षर मंत्र में छहों अंगों सहित
संपूर्ण वेद और शास्त्र विद्यमान हैं, अतः
उसके समान दूसरा कोई मंत्र कहीं नहीं है। सात करोड़ महामंत्रों और अनेकानेक
उपमंत्रों से यह षड़क्षर मंत्र उसी प्रकार भिन्न है, जैसे
वृत्ति से सूत्र। जितने शिवज्ञान हैं और जो-जो विद्यास्थान हैं, वे सब षड़क्षर मंत्र रूपी सूत्र के संक्षिप्त भाष्य हैं। जिसके हृदय में 'ॐ नमः शिवाय' यह षड़क्षर मंत्र प्रतिष्ठित है,
उसे दूसरे बहुसंख्यक मंत्रों और अनेक विस्तृत शास्त्रों से क्या
प्रयोजन है? जिसने 'ॐ नमः शिवाय'
इस मंत्र का जप दृढ़तापूर्वक अपना लिया है, उसने
संपूर्ण शास्त्र पढ़ लिया और समस्त शुभ कृत्यों का अनुष्ठान पूरा कर लिया। आदि में 'नमः' पद से युक्त 'शिवाय'
ये तीन अक्षर जिसकी जिह्वा के अग्रभाग में विद्यमान हैं, उसका जीवन सफल हो गया। इससे पूर्व आपने नमः शिवाय इस पंचाक्षर मंत्र पर
आधारित शिव पंचाक्षर स्तोत्र पढ़ा,अब यहाँ शिव षडक्षर स्तोत्र मूलपाठ के सहित हिंदी
अर्थ भी दिया जा रहा है । इसे श्री रुद्रयामल के उमामहेश्वरसंवाद से लिया गया है।
शिव षडक्षर स्तोत्र मूल पाठ
श्रीशिवषडक्षरस्तोत्रम्
ॐकारं बिंदुसंयुक्तं नित्यं
ध्यायंति योगिनः ।
कामदं मोक्षदं चैव ॐकाराय नमो नमः ॥
१॥
नमंति ऋषयो देवा नमन्त्यप्सरसां
गणाः ।
नरा नमंति देवेशं नकाराय नमो नमः ॥
२॥
महादेवं महात्मानं महाध्यानं
परायणम् ।
महापापहरं देवं मकाराय नमो नमः ॥ ३॥
शिवं शांतं जगन्नाथं
लोकानुग्रहकारकम् ।
शिवमेकपदं नित्यं शिकाराय नमो नमः ॥
४॥
वाहनं वृषभो यस्य वासुकिः कंठभूषणम्
।
वामे शक्तिधरं देवं वकाराय नमो नमः
॥ ५॥
यत्र यत्र स्थितो देवः सर्वव्यापी
महेश्वरः ।
यो गुरुः सर्वदेवानां यकाराय नमो
नमः ॥ ६॥
षडक्षरमिदं स्तोत्रं यः
पठेच्छिवसंनिधौ ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥
७॥
॥ इति श्री रुद्रयामले उमामहेश्वरसंवादे
षडक्षरस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
शिव षडक्षर स्तोत्र (हिंदी अर्थ सहित)
श्रीशिवषडक्षरस्तोत्रम्
ॐ कारं बिंदुसंयुक्तं नित्यं
ध्यायंति योगिन:।
कामदं मोक्षदं चैव ॐ काराय नमो
नमः।।१।।
जो ॐकार के रूप में आध्यात्मिक
ह्रदय केन्द्र में रहते है, जिसका योगी निरंतर ध्यान
करते है, जो सभी इच्छाओं को पूरा करते है और मुक्ति भी
प्रदान करते है, उन शिवजी को नमस्कार ,जो
“ॐ” शब्द द्वारा दर्शाया गया है।१।
नमंति ऋषयो देवा नमन्त्यप्सरसां
गणा:।
नरा नमंति देवेशं नकाराय नमो
नमः।।२।।
जिनको ऋषियों ने श्रद्धा से नमन
किया है,
देवों ने नमन किया है, अप्सराओं ने नमन किया
है और मनुष्यों ने नमन किया है, वो देवों के देव महादेव है,
उनको “न” शब्द द्वारा
दर्शाया गया है।२।
महादेवं महात्मानं महाध्याय
परायणम्।
महापापहरं देवं मकाराय नमो नमः।।३।।
जो महान देव है,
महान आत्मा है, सभी ध्यान का अंतिम उद्देश्य
है, जो अपने भक्तों के पाप का महा विनाशक है, उन शिवजी को नमस्कार ,जो “म”
शब्द द्वारा दर्शाया गया है।३।
शिवं शांतं जगन्नाथं
लोकानुग्रहकारकम्।
शिवमेकपदं नित्यं शिकाराय नमो
नमः।।४।।
शिवजी शांति का निवास है,
जो जगत के स्वामी है और जगत का कल्याण करते है, शिव एक शाश्वत शब्द है, उन शिवजी को नमस्कार ,जो “शि” शब्द द्वारा दर्शाया
गया है।४।
वाहनं वृषभो यस्य वासुकि कंठभूषणम्।
वामे शक्तिधरं देवं वकाराय नमो
नमः।।५।।
जिनका वाहन बैल है,
जिनके गले में आभूषण के रूप में वासुकि नामक सांप है, जिनके बाई ओर साक्षात शक्ति बिराजमान है, उन शिवजी
को नमस्कार ,जो “व”, “वा” शब्द द्वारा दर्शाया गया है।५।
यत्र यत्र स्थितो देव: सर्वव्यापी
महेश्वर:।
यो गुरु: सर्वदेवानां यकाराय नमो
नमः।।६।।
जहां भी देवों का निवास है,
शिवजी हर जगह मौजूद है, वो सभी देवों के गुरु
है, उन शिवजी को नमस्कार ,जो “य” शब्द द्वारा दर्शाया गया है।६।
षडक्षरमिदं स्तोत्र य:
पठेच्छिवसंनिधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह
मोदते।।७।।
जो भी शिवजी के सानिध्य में,
इस षडक्षर स्तोत्र का पठन करता है,वो शिव लोक
में जाकर, उनके साथ आनंद से निवास करता है।७।
॥ इति श्री रुद्रयामले उमामहेश्वरसंवादे शिव षडक्षर स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥
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