महालिङ्गस्तुति
प्रस्तुत श्रीमहालिङ्गस्तुति को
श्रीकूर्मपुराणान्तर्गत पूर्वभाग अध्याय-२६, श्लोक
८०-९० से लिया गया है। श्रीमार्कण्डेय मुनि ने जब भगवान श्री कृष्ण से पूछा- हे
सुरश्रेष्ठ! यह लिङ्ग क्या है और लिङ्ग में किस की पूजा होती है ? तब श्रीभगवान् ने कहा- अक्षय, ज्योतिःस्वरूप,
अव्यक्त आनन्द को ही लिङ्ग कहा गया है और वेदशास्त्र अविनाशी
महेश्वर देव को लिङ्गी (लिङ्ग का धारणकर्ता) कहते हैं। प्राचीन काल में जब
स्थावर-जङ्गम के नष्ट हो जाने पर सर्वत्र जल व्याप्त होकर एक ही समुद्ररुप हो गया
था, तब ब्रह्मा और विष्णु को प्रबोधित करने के लिये वहां शिव के महालिङ्ग का
प्रादुर्भाव हुआ। उस समय हम दोनों क्रमशः उपर व नीचे उस लिङ्ग के छोर को पता करने
को गए और जब उस लिङ्ग का कोई भी ओर-छोर पता न कर पायें तब उस महालिङ्ग की हम
स्तुति करने लगे-
महालिङ्गस्तुति
श्रीमहालिङ्गस्तुतिः मूलपाठ
ब्रह्मविष्णू ऊचतुः
अनादिमलसंसार रोगवैद्याय शम्भवे ।
नमश्शिवाय शान्ताय ब्रह्मणे
लिङ्गमूर्तये ॥ १॥
आदिमध्यान्तहीनाय स्वभावानलदीप्तये
।
नमश्शिवाय शान्ताय ब्रह्मणे
लिङ्गमूर्तये ॥ २॥
प्रलयार्णवसंस्थाय
प्रलयोत्पत्तिहेतवे ।
नमश्शिवाय शान्ताय ब्रह्मणे
लिङ्गमूर्तये ॥ ३॥
ज्वालामालावृताङ्गाय
ज्वलनस्तम्भरूपिणे ।
नमश्शिवाय शान्ताय ब्रह्मणे
लिङ्गमूर्तये ॥ ४॥
महादेवाय महते ज्योतिषेऽनन्ततेजसे ।
नमश्शिवाय शान्ताय ब्रह्मणे
लिङ्गमूर्तये ॥ ५॥
प्रधानपुरुषेशाय व्योमरूपाय वेधसे ।
नमश्शिवाय शान्ताय ब्रह्मणे
लिङ्गमूर्तये ॥ ६॥
निर्विकाराय नित्याय सत्यायामलतेजसे
।
नमश्शिवाय शान्ताय ब्रह्मणे
लिङ्गमूर्तये ॥ ७॥
वेदान्तसाररूपाय कालरूपाय धीमते ।
नमश्शिवाय शान्ताय ब्रह्मणे
लिङ्गमूर्तये ॥ ८॥
इति श्रीकूर्मपुराणान्तर्गतं
श्रीमहालिङ्गस्तुतिः समाप्ता ।
श्रीमहालिङ्गस्तुतिः हिंदी भावार्थ सहित
ब्रह्मविष्णू ऊचतुः
अनादिमलसंसार रोगवैद्याय शम्भवे ।
नमश्शिवाय शान्ताय ब्रह्मणे
लिङ्गमूर्तये ॥ १॥
ब्रह्मा तथा विष्णु ने कहा- अनादि,
मूलरूप, संसाररूपी रोगों के वैद्यस्वरूप शम्भु,
शिव, शान्त, लिङ्गमूर्ति
वाले ब्रह्म को नमस्कार है।
आदिमध्यान्तहीनाय स्वभावानलदीप्तये
।
नमश्शिवाय शान्ताय ब्रह्मणे
लिङ्गमूर्तये ॥ २॥
आदि, मध्य और अन्त से रहित, स्वभावतः निर्मल तेजोरूप शिव,
शान्त तथा लिङ्गस्वरूप मूर्तिमान् ब्रह्म को नमस्कार है।
प्रलयार्णवसंस्थाय
प्रलयोत्पत्तिहेतवे ।
नमश्शिवाय शान्ताय ब्रह्मणे
लिङ्गमूर्तये ॥ ३॥
प्रलयकालीन समुद्र में स्थित रहने
वाले,
सृष्टि और प्रलय के कारणरूप शिव, शान्त,
लिङ्गमूर्तिधारी ब्रह्म को नमस्कार है।
ज्वालामालावृताङ्गाय
ज्वलनस्तम्भरूपिणे ।
नमश्शिवाय शान्ताय ब्रह्मणे
लिङ्गमूर्तये ॥ ४॥
ज्वालामालाओं प्रतीकरूप,
प्रज्वलित स्तम्भरूप, शिव, शान्त, लिङ्गशरीरधारी ब्रह्म को नमस्कार है।
महादेवाय महते ज्योतिषेऽनन्ततेजसे ।
नमश्शिवाय शान्ताय ब्रह्मणे
लिङ्गमूर्तये ॥ ५॥
महादेव,
महान्, ज्योतिःस्वरूप, अनन्त,
तेजस्वी शिव, शान्त, लिङ्गस्वरूप
ब्रह्म को नमस्कार है।
प्रधानपुरुषेशाय व्योमरूपाय वेधसे ।
नमश्शिवाय शान्ताय ब्रह्मणे
लिङ्गमूर्तये ॥ ६॥
प्रधान पुरुष के भी ईश,
व्योमस्वरूप, वेधा और लिङ्गमूर्ति शिव,
शान्त ब्रह्म को नमस्कार है।
निर्विकाराय नित्याय सत्यायामलतेजसे
।
नमश्शिवाय शान्ताय ब्रह्मणे
लिङ्गमूर्तये ॥ ७॥
निर्विकार,
सत्य, नित्य, अतुल-तेजस्वी,
शान्त, शिव लिङ्गमूर्ति ब्रह्म को नमस्कार है।
वेदान्तसाररूपाय कालरूपाय धीमते ।
नमश्शिवाय शान्ताय ब्रह्मणे
लिङ्गमूर्तये ॥ ८॥
वेदान्तसार-स्वरूप,
कालरूप, बुद्धिमान्, लिङ्गस्वरूप,
शिव, शान्त ब्रह्म को नमस्कार है।
एवं संस्तूयमानस्तु व्यक्तो भूत्वा
महेश्वरः।
भाति देवो महायोगी
सूर्यकोटिसमप्रभः।।९ ॥
वक्त्रकोटिसहस्रेण प्रसमान
इवाम्बरम्।
सहस्रहस्तचरण: सूर्यसोमाग्निलोचनः॥१०॥
पिनाकपाणिर्भगवान्
कृत्तिवासास्त्रिशूलधक्।
व्यालयज्ञोपवीतच
मेघदुन्दुभिनि:स्वनः।।११॥
इस प्रकार स्तुति किये जाने पर
महायोगी महेश्वर देव प्रकट होकर करोड़ों सूर्य के समान सुशोभित होने लगे। वे
हजारों करोड़ों मुखों से मानों आकाश को अपना ग्रास बना रहे थे। हजारों हाथ और पैर
वाले,
सूर्य, चन्द्रमा तथा अग्निरूप (तीन) नयन वाले,
पिनाकपाणि, व्याघ्रचर्मरूप वस्त्रधारी,
त्रिशूलधारी, सर्प का यज्ञोपवीत धारण करने
वाले और मेघ तथा दुन्दुभि के सदृश स्वर वाले थे।
इति श्रीकूर्मपुराणान्तर्गतं श्रीमहालिङ्गस्तुतिः समाप्ता ।
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