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द्वादश ज्योतिर्लिंग
पुराणों के अनुसार शिवजी जहाँ-जहाँ
स्वयं प्रगट हुए उन बारह स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंगों के रूप में
पूजा जाता है। ये संख्या में १२ है अतः ये द्वादश ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना
जाता है। द्वादश ज्योतिर्लिंगों के नाम शिव पुराण अनुसार (शतरुद्र संहिता,
अध्याय ४२/२-४) क्रमशः इस प्रकार हैं-
सोमनाथ,
मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ॐकारेश्वर, केदारनाथ, भीमशंकर, विश्वनाथ, त्र्यम्बकेश्वर,
वैद्यनाथ, नागेश्वर, रामेश्वर, श्रीघुश्मेश्वर।
प्रत्येक ज्योतिर्लिङ्ग का एक एक
उपलिंग भी है जिनका वर्णन शिव महापुराण की कोटिरुद्र संहिता के प्रथम अध्याय से
प्राप्त होता है। यहाँ द्वादश ज्योतिर्लिङ्गानि के आलावा श्रीमद्शङ्कराचार्य
विरचित द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग स्तोत्रम् भी दिया जा रहा है-
द्वादश ज्योतिर्लिंग
द्वादश ज्योतिर्लिङ्गानि
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले
मल्लिकार्जुनम् ।
उज्जयिन्यां
महाकालमोङ्कारममलेश्वरम् ॥ १॥
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां
भीमशङ्करम् ।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं
दारुकावने ॥ २ ॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं
गौतमीतटे ।
हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च
शिवालये ॥३ ॥
एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः
पठेन्नरः ।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति
॥ ४ ॥
एतेशां दर्शनादेव पातकं नैव तिष्ठति
।
कर्मक्षयो भवेत्तस्य यस्य तुष्टो
महेश्वराः ॥ ५ ॥
१. श्री सोमनाथ सौराष्ट्र(काठियावाड़),
(गुजरात) के प्रभास (पाटन) क्षेत्र में विराजमान है। इस प्रसिद्ध
मंदिर को अतीत में छह बार ध्वस्त एवम् निर्मित किया गया है। १०२२ ई. में इसकी
समृद्धि को महमूद गजनवी के हमले से सार्वाधिक नुकसान पहुँचा था।
२. श्रीमल्लिकार्जुन आन्ध्र प्रदेश
प्रान्त के कृष्णा जिले में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैल पर्वत (कुर्नूल) पर
विराजमान हैं। इसे दक्षिण का कैलाश कहते हैं।
३. श्री महाकालेश्वर (मध्यप्रदेश) के
मालवा क्षेत्र में क्षिप्रा नदी के तट पर पवित्र उज्जैन नगर में विराजमान है।
उज्जैन को प्राचीनकाल में अवन्तिकापुरी कहते थे।
४. श्रीॐकारेश्वर और अमलेश्वर (मामलेश्वर)
मालवा क्षेत्र (मध्य प्रदेश) में नर्मदा नदी के बीच स्थित द्वीप पर है। उज्जैन से
खण्डवा जाने वाली रेलवे लाइन पर मोरटक्का नामक स्टेशन है,
वहाँ से यह स्थान १० मील दूर है। यहाँ ॐकारेश्वर और मामलेश्वर दो
पृथक-पृथक लिंग हैं, परन्तु ये एक ही लिंग के दो स्वरूप हैं।
श्रीॐकारेश्वर लिंग को स्वयम्भू समझा जाता है।
५. श्रीवैद्यनाथ- महाराष्ट्र में पासे
परभनी नामक जंक्शन है, वहाँ से परली तक एक
ब्रांच लाइन गयी है, इस परली स्टेशन से थोड़ी दूर पर परली
ग्राम के निकट श्रीवैद्यनाथ को भी ज्योतिर्लिंग माना जाता है। शिवपुराण में 'वैद्यनाथं चिताभूमौ' ऐसा पाठ है, इसके अनुसार संथाल परगने में ई० आई० रेलवे के जैसीडीह स्टेशन के पास वाला
वैद्यनाथ-शिव लिङ्ग ही वास्तविक वैद्यनाथ ज्योतिर्लिङ्ग सिद्ध होता है; क्योंकि यही चिताभूमि है।)
६. श्री भीमशंकर का स्थान मुंबई
(महाराष्ट्र) से पूर्व और पूना से उत्तर भीमा नदी के किनारे सह्याद्रि पर्वत पर
है। यह स्थान नासिक से लगभग मील दूर है।
सह्याद्रि पर्वत के एक शिखर का नाम डाकिनी है। शिवपुराण की एक कथा के आधार पर
भीमशंकर ज्योतिर्लिंग को असम के कामरूप जिले में गुवाहाटी के पास ब्रह्मपुर पहाड़ी
पर स्थित बतलाया जाता है। कुछ लोग मानते हैं कि नैनीताल जिले के काशीपुर नामक
स्थान में स्थित विशाल शिवमंदिर भीमशंकर का स्थान है।
७. श्रीरामेश्वर तीर्थ तमिलनाडु प्रान्त
के रामनाड जिले में है। यहाँ लंका विजय के पश्चात भगवान श्रीराम ने अपने अराध्यदेव
शंकर की पूजा की थी। ज्योतिर्लिंग को श्रीरामेश्वर या श्रीरामलिंगेश्वर के नाम से
जाना जाता है।
८. श्रीनागेश्वर ज्योतिर्लिंग बड़ौदा
क्षेत्रांतर्गत गोमती दारुकावन, द्वारका से
ईशानकोण में बारह-तेरह मील की दूरी पर है। निजाम हैदराबाद राज्य के अन्तर्गत औढ़ा
ग्राम में स्थित शिवलिंग को ही कोई-कोई नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मानते हैं। कुछ
लोगों के मत से अल्मोड़ा से १७ मील उत्तर-पूर्व में यागेश (जागेश्वर) शिवलिंग ही
नागेश ज्योतिर्लिंग है।
९. श्रीविश्वनाथ वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
स्थित काशी के सबसे प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में एक हैं। गंगा तट स्थित काशी
विश्वनाथ शिवलिंग दर्शन हिन्दुओं के लिए सबसे पवित्र है।
१०. श्री त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग
महाराष्ट्र प्रान्त के नासिक जिले में पंचवटी से(जहाँ शूर्पणखा की नाक कटी थी) १२० मील की दूरी पर ब्रह्मगिरि के निकट गोदावरी
के किनारे है। इस स्थान पर पवित्र गोदावरी नदी का उद्गम भी है।
११. श्री केदारनाथ हिमालय के केदार
(उत्तराखंड) नामक श्रृंग पर स्थित हैं। शिखर के पूर्व की ओर अलकनन्दा के तट पर
श्री बदरीनाथ अवस्थित हैं और पश्चिम में मन्दाकिनी के किनारे श्री केदारनाथ हैं।
यह स्थान हरिद्वार से [[१५०/१५०.] मील और ऋषिकेश से १३२ मील दूर उत्तरांचल राज्य
में है।
१२. श्रीघुश्मेश्वर (गिरीश्नेश्वर)
ज्योतिर्लिंग को घुसृणेश्वर या घृष्णेश्वर भी कहते हैं। इनका स्थान महाराष्ट्र
प्रान्त में (निकट एलोरा, औरंगाबाद जिला) दौलताबाद
स्टेशन से बारह मील दूर बेरूल गाँव के पास है।
इस प्रकार सौराष्ट्र प्रदेश
(काठियावाड़) में श्रीसोमनाथ, श्रीशैल पर
श्रीमल्लिकार्जुन, उज्जयिनी (उज्जैन) में श्रीमहाकाल,
ॐकारेश्वर अथवा ममलेश्वर, परली में वैद्यनाथ,
डाकिनी नामक स्थान में श्रीभीमशंकर, सेतुबंध
पर श्री रामेश्वर, दारुकावन में श्रीनागेश्वर, काशी में श्री विश्वनाथ, गौतमी (गोदावरी) के तट पर
श्री त्र्यम्बकेश्वर, हिमालय पर केदारखंड में श्रीकेदारनाथ
और शिवालय में श्रीघृष्णेश्वर।
जो मनुष्य प्रतिदिन प्रात:काल और
संध्या के समय इन बारह (द्वादश) ज्योतिर्लिंगों का नाम लेता है,
उसके सात जन्मों का किया हुआ पाप इन लिङ्गों के स्मरण मात्र से मिट
जाता है ॥ ४ ॥
द्वादशज्योतिर्लिङ्गस्तोत्रम्
सौराष्ट्रदेशे विशदेऽतिरम्ये
ज्योतिर्मयं चन्द्रकलावतंसम् ।
भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णं
तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये ॥ १॥
जो अपनी भक्ति प्रदान करने के लिये
अत्यन्त रमणीय तथा निर्मल सौराष्ट्र प्रदेश (काठियावाड़) में दयापूर्वक अवतीर्ण
हुए हैं,
चन्द्रमा जिनके मस्तक का आभूषण है,
उन ज्योतिर्लिङ्गस्वरूप भगवान् श्रीसोमनाथ की शरण में मैं
जाता हूँ॥१॥
श्रीशैलश्रृङ्गे विबुधातिसङ्गे
तुलाद्रितुङ्गेऽपि मुदा वसन्तम् ।
तमर्जुनं मल्लिकपूर्वमेकं
नमामि संसारसमुद्रसेतुम् ॥ २॥
जो ऊँचाई के आदर्शभूत पर्वतों से भी
बढ़कर ऊँचे श्रीशैल के शिखर पर, जहाँ देवताओं का
अत्यन्त समागम होता रहता है, प्रसन्नतापूर्वक निवास करते हैं
तथा जो संसार-सागर से पार कराने के लिये पुल के समान हैं, उन
एकमात्र प्रभु मल्लिकार्जुन को मैं नमस्कार करता हूँ॥२॥
अवन्तिकायां विहितावतारं
मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम् ।
अकालमृत्योः परिरक्षणार्थं
वन्दे महाकालमहासुरेशम् ॥ ३॥
संतजनों को मोक्ष देने के लिये जिन्होंने
अवन्तिपुरी (उज्जैन) में अवतार धारण किया है, उन
महाकाल नाम से विख्यात महादेवजी को मैं अकालमृत्यु से बचने के लिये नमस्कार
करता हूँ॥ ३ ॥
कावेरिकानर्मदयोः पवित्रे
समागमे सज्जनतारणाय ।
सदैवमान्धातृपुरे वसन्त-
मोङ्कारमीशं शिवमेकमीडे ॥ ४॥
जो सत्पुरुषों को संसार सागर से पार
उतारने के लिये कावेरी और नर्मदा के पवित्र संगम के निकट मान्धाता के पुर में सदा
निवास करते हैं, उन अद्वितीय कल्याणमय भगवान्
ॐकारेश्वर का मैं स्तवन करता हूँ॥४॥
पूर्वोत्तरे प्रज्वलिकानिधाने
सदा वसन्तं गिरिजासमेतम् ।
सुरासुराराधितपादपद्मं
श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि ॥ ५॥
जो पूर्वोत्तर दिशा में चिताभूमि
(वैद्यनाथ-धाम) के भीतर सदा ही गिरिजा के साथ वास करते हैं,
देवता और असुर जिनके चरण-कमलों की आराधना करते हैं, उन श्रीवैद्यनाथ को मैं प्रणाम करता हैं ॥ ५॥
याम्ये सदङ्गे नगरेऽतिरम्ये
विभूषिताङ्गं विविधैश्च भोगैः ।
सद्भक्तिमुक्तिप्रदमीशमेकं
श्रीनागनाथं शरणं प्रपद्ये ॥ ६॥
जो दक्षिण के अत्यन्त रमणीय सदङ्ग
नगर में विविध भोगों से सम्पन्न होकर सुन्दर आभूषणों से भूषित हो रहे हैं,
जो एकमात्र सद्भक्ति और मुक्ति को देनेवाले हैं, उन प्रभु श्रीनागनाथ की मैं शरण में जाता हूँ॥६॥
महाद्रिपार्श्वे च तटे रमन्तं
सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रैः ।
सुरासुरैर्यक्ष महोरगाढ्यैः
केदारमीशं शिवमेकमीडे ॥ ७॥
जो महागिरि हिमालय के पास
केदारशृङ्ग के तट पर सदा निवास करते हुए मुनीश्वरों द्वारा पूजित होते हैं तथा देवता,
असुर, यक्ष और महान् सर्प आदि भी जिनकी पूजा
करते हैं, उन एक कल्याणकारक भगवान् केदारनाथ का मैं
स्तवन करता हूँ॥७॥
सह्याद्रिशीर्षे विमले वसन्तं
गोदावरितीरपवित्रदेशे ।
यद्धर्शनात्पातकमाशु नाशं
प्रयाति तं त्र्यम्बकमीशमीडे ॥ ८॥
जो गोदावरी तट के पवित्र देश में
सह्यपर्वत के विमल शिखर पर वास करते हैं, जिनके
दर्शन से तुरंत ही पातक नष्ट हो जाता है, उन
श्रीत्र्यम्बकेश्वर का मैं स्तवन करता हूँ॥ ८॥
सुताम्रपर्णीजलराशियोगे
निबध्य सेतुं विशिखैरसंख्यैः ।
श्रीरामचन्द्रेण समर्पितं तं
रामेश्वराख्यं नियतं नमामि ॥ ९॥
जो भगवान् श्रीरामचन्द्रजी के
द्वारा ताम्रपर्णी और सागर के संगम में अनेक बाणों द्वारा पुल बाँधकर स्थापित किये
गये,
उन श्रीरामेश्वर को मैं नियम से प्रणाम करता हूँ॥९॥
यं डाकिनिशाकिनिकासमाजे
निषेव्यमाणं पिशिताशनैश्च ।
सदैव भीमादिपदप्रसिद्धं तं
शङ्करं भक्तहितं नमामि ॥ १०॥
जो डाकिनी और शाकिनीवृन्द में
प्रेतों द्वारा सदैव सेवित होते हैं, उन
भक्तहितकारी भगवान् भीमशङ्कर को मैं प्रणाम करता हूँ॥१०॥
सानन्दमानन्दवने वसन्त-
मानन्दकन्दं हतपापवृन्दम् ।
वाराणसीनाथमनाथनाथं
श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये ॥ ११॥
जो स्वयं आनन्दकन्द हैं और
आनन्दपूर्वक आनन्दवन (काशीक्षेत्र) में वास करते हैं,
जो पाप समूह के नाश करनेवाले हैं, उन अनाथों के
नाथ काशीपति श्रीविश्वनाथ की शरण में मैं जाता हूँ॥११॥
इलापुरे रम्यविशालकेऽस्मिन्
समुल्लसन्तं च जगद्वरेण्यम् ।
वन्दे महोदारतरस्वभावं
घृष्णेश्वराख्यं शरणम् प्रपद्ये ॥
१२॥
जो इलापुर के सुरम्य मन्दिर में
विराजमान होकर समस्त जगत के आराधनीय हो रहे हैं, जिनका स्वभाव बड़ा ही उदार है, उन घृष्णेश्वर
नामक ज्योतिर्मय भगवान् शिव की शरण में मैं जाता हूँ।। १२ ।।
ज्योतिर्मयद्वादशलिङ्गकानां
शिवात्मनां प्रोक्तमिदं क्रमेण ।
स्तोत्रं पठित्वा मनुजोऽतिभक्त्या
फलं तदालोक्य निजं भजेच्च ॥
यदि मनुष्य क्रमशः कहे गये इन
द्वादश ज्योतिर्मय शिवलिङ्गों के स्तोत्र का भक्तिपूर्वक पाठ करे तो इनके दर्शन से
होनेवाला फल प्राप्त कर सकता है ॥ १३ ॥
॥ इति श्रीमद्शङ्कराचार्यविरचितं द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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