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अर्धनारीश्वर्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्
अर्धनारीश्वर्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्
- भगवान शिव का अर्धनारीश्वरस्वरूप ब्रह्माजी की कामनाओं को पूर्ण करने वाला है।
पुराणों के अनुसार लोकपितामह ब्रह्माजी ने सनक-सनन्दन आदि मानसपुत्रों का इस इच्छा
से सृजन किया कि वे सृष्टि को आगे बढ़ायें परन्तु उनकी प्रजा की वृद्धि में कोई
रुचि नहीं थी। अत: ब्रह्माजी भगवान सदाशिव और उनकी परमाशक्ति का चिंतन करते हुए तप
करने लगे। इस तप से प्रसन्न होकर भगवान सदाशिव अर्धनारीश्वर रूप में ब्रह्माजी के
पास आए और प्रसन्न होकर अपने वामभाग से अपनी शक्ति रुद्राणी को प्रकट किया। वे ही
भवानी,
जगदम्बा व जगज्जननी हैं। ब्रह्माजी ने भगवती रुद्राणी की स्तुति
करते हुए कहा-'हे देवि! आपके पहले नारी कुल का प्रादुर्भाव
नहीं हुआ था, इसलिए आप ही सृष्टि की प्रथम नारीरूप, मातृरूप और शक्तिरूप हैं। आप अपने एक अंश से इस चराचर जगत् की वृद्धि हेतु
मेरे पुत्र दक्ष की कन्या बन जायें।' ब्रह्माजी की प्रार्थना
पर देवी रुद्राणी ने अपनी भौंहों के मध्य भाग से अपने ही समान एक दिव्य नारी-शक्ति
उत्पन्न की, जो भगवान शिव की आज्ञा से दक्ष प्रजापति की
पुत्री 'सती' के नाम से जानी गयीं।
देवी रुद्राणी पुन: महादेवजी के शरीर में प्रविष्ट हो गयीं। अत: भगवान सदाशिव के
अर्धनारीश्वररूप की उपासना में ही मनुष्य का कल्याण निहित है। अर्धनारीश्वररूप की
उपासना व उनसे मनोकामना सिद्धि हेतू अर्धनारीश्वर्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् का पाठ
करें।
अर्धनारीश्वर्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्
चामुण्डिकाम्बा श्रीकण्ठः पार्वती
परमेश्वरः ।
महाराज्ञीमहादेवस्सदाराध्या सदाशिवः
॥ १॥
शिवार्धाङ्गी शिवार्धाङ्गो भैरवी
कालभैरवः ।
शक्तित्रितयरूपाढ्या
मूर्तित्रितयरूपवान् ॥ २॥
कामकोटिसुपीठस्था
काशीक्षेत्रसमाश्रयः ।
दाक्षायणी दक्षवैरी शूलिनि शूलधारकः
॥ ३॥
ह्रीङ्कारपञ्जरशुकी हरिशङ्कररूपवान्
।
श्रीमदग्नेशजननी षडाननसुजन्मभूः ॥
४॥
पञ्चप्रेतासनारूढा
पञ्चब्रह्मस्वरूपभ्रृत् ।
चण्डमुण्डशिरश्छेत्री जलन्धरशिरोहरः
॥ ५॥
सिंहवाहा वृषारूढः श्यामाभा
स्फटिकप्रभः ।
महिषासुरसंहर्त्री गजासुरविमर्दनः ॥
६॥
महाबलाचलावासा महाकैलासवासभूः ।
भद्रकाली वीरभद्रो मीनाक्षी
सुन्दरेश्वरः ॥ ७॥
भण्डासुरादिसंहर्त्री
दुष्टान्धकविमर्दनः ।
मधुकैटभसंहर्त्री मधुरापुरनायकः ॥
८॥
कालत्रयस्वरूपाढ्या
कार्यत्रयविधायकः ।
गिरिजाता गिरीशश्च वैष्णवी
विष्णुवल्लभः ॥ ९॥
विशालाक्षी विश्वनाधः पुष्पास्त्रा
विष्णुमार्गणः ।
कौसुम्भवसनोपेता
व्याघ्रचर्माम्बरावृतः ॥ १०॥
मूलप्रकृतिरूपाढ्या
परब्रह्मस्वरूपवान् ।
रुण्डमालाविभूषाढ्या
लसद्रुद्राक्षमालिकः ॥ ११॥
मनोरूपेक्षुकोदण्ड महामेरुधनुर्धरः
।
चन्द्रचूडा चन्द्रमौलिर्महामाया
महेश्वरः ॥ १२॥
महाकाली महाकालो दिव्यरूपा दिगम्बरः
।
बिन्दुपीठसुखासीना
श्रीमदोङ्कारपीठगः ॥ १३॥
हरिद्राकुङ्कुमालिप्ता
भस्मोद्धूलितविग्रहः ।
महापद्माटवीलोला महाबिल्वाटवीप्रियः
॥ १४॥
सुधामयी विषधरो मातङ्गी मुकुटेश्वरः
।
वेदवेद्या वेदवाजी चक्रेशी
विष्णुचक्रदः ॥ १५॥
जगन्मयी जगद्रूपो मृडानी
मृत्युनाशनः ।
रामार्चितपदाम्भोजा
कृष्णपुत्रवरप्रदः ॥ १६॥
रमावाणीसुसंसेव्या
विष्णुब्रह्मसुसेवितः ।
सूर्यचन्द्राग्निनयना
तेजस्त्रयविलोचनः ॥ १७॥
चिदग्निकुण्डसम्भूता
महालिङ्गसमुद्भवः ।
कम्बुकण्ठी कालकण्ठी वज्रेशी
वज्रपूजितः ॥ १८॥
त्रिकण्टकी त्रिभङ्गीशः भस्मरक्षा
स्मरान्तकः ।
हयग्रीववरोद्धात्री
मार्कण्डेयवरप्रदः ॥ १९॥
चिन्तामणिगृहावासा मन्दराचलमन्दिरः
।
विन्ध्याचलकृतावासा
विन्ध्यशैलार्यपूजितः ॥ २०॥
मनोन्मनी लिङ्गरूपो जगदम्बा
जगत्पिता ।
योगनिद्रा योगगम्यो भवानी
भवमूर्तिमान् ॥ २१॥
श्रीचक्रात्मरथारूढा धरणीधरसंस्थितः
श्रीविद्यावेद्यमहिमा
निगमागमसंश्रयः ॥ २२॥
दशशीर्षसमायुक्ता
पञ्चविंशतिशीर्षवान् ।
अष्टादशभुजायुक्ता
पञ्चाशत्करमण्डितः ॥ २३॥
ब्राह्म्यादिमातृकारूपा
शताष्टेकादशात्मवान् ।
स्थिरा स्थाणुस्तथा बाला सद्योजात
उमा मृडः ॥ २४॥
शिवा शिवश्च रुद्राणी
रुद्रश्छैवेश्वरीश्वरः ।
कदम्बकाननावासा दारुकारण्यलोलुपः ॥
२५॥
नवाक्षरीमनुस्तुत्या
पञ्चाक्षरमनुप्रियः ।
नवावरणसम्पूज्या पञ्चायतनपूजितः ॥
२६॥
देहस्थषट्चक्रदेवी दहराकाशमध्यगः ।
योगिनीगणसंसेव्या
भृङ्ग्यादिप्रमथावृतः ॥ २७॥
उग्रतारा घोररूपश्शर्वाणी
शर्वमूर्तिमान् ।
नागवेणी नागभूषो मन्त्रिणी
मन्त्रदैवतः ॥ २८॥
ज्वलज्जिह्वा ज्वलन्नेत्रो दण्डनाथा
दृगायुधः ।
पार्थाञ्जनास्त्रसन्दात्री
पार्थपाशुपतास्त्रदः ॥ २९॥
पुष्पवच्चक्रताटङ्का
फणिराजसुकुण्डलः ।
बाणपुत्रीवरोद्धात्री
बाणासुरवरप्रदः ॥ ३०॥
व्यालकञ्चुकसंवीता
व्यालयज्ञोपवीतवान् ।
नवलावण्यरूपाढ्या नवयौवनविग्रहः ॥
३१॥
नाट्यप्रिया
नाट्यमूर्तिस्त्रिसन्ध्या त्रिपुरान्तकः ।
तन्त्रोपचारसुप्रीता
तन्त्रादिमविधायकः ॥ ३२॥
नववल्लीष्टवरदा नववीरसुजन्मभूः ।
भ्रमरज्या वासुकिज्यो भेरुण्डा
भीमपूजितः ॥ ३३॥
निशुम्भशुम्भदमनी नीचापस्मारमर्दनः
।
सहस्राम्बुजारूढा सहस्रकमलार्चितः ॥
३४॥
गङ्गासहोदरी गङ्गाधरो गौरी
त्रयम्बकः ।
श्रीशैलभ्रमराम्बाख्या
मल्लिकार्जुनपूजितः ॥ ३५॥
भवतापप्रशमनी भवरोगनिवारकः ।
चन्द्रमण्डलमध्यस्था मुनिमानसहंसकः
॥ ३६॥
प्रत्यङ्गिरा प्रसन्नात्मा कामेशी
कामरूपवान् ।
स्वयम्प्रभा स्वप्रकाशः कालरात्री
कृतान्तहृत् ॥ ३७॥
सदान्नपूर्णा भिक्षाटो वनदुर्गा
वसुप्रदः ।
सर्वचैतन्यरूपाढ्या
सच्चिदानन्दविग्रहः ॥ ३८॥
सर्वमङ्गलरूपाढ्या सर्वकल्याणदायकः
।
राजेराजेश्वरी
श्रीमद्राजराजप्रियङ्करः ॥ ३९॥
अर्धनारीश्वरस्येदं
नाम्नामष्टोत्तरं शतम् ।
पठन्नर्चन्सदा भक्त्या
सर्वसाम्राज्यमाप्नुयात् ॥ ४०॥
इति स्कान्दमहापुराणे अर्धनीरीश्वर्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
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