अर्धनारीश्वर स्तोत्र - अर्धनारीनटेश्वर स्तोत्रम्
शिव और शक्ति एक-दूसरे से उसी
प्रकार अभिन्न हैं, जिस प्रकार सूर्य
और उसका प्रकाश, अग्नि और उसका ताप तथा दूध और उसकी सफेदी।
शिव में 'इ'कार ही शक्ति है। 'शिव' से 'इ'कार निकल जाने पर 'शव' ही रह
जाता है। शास्त्रों के अनुसार बिना शक्ति की सहायता के शिव का साक्षात्कार नहीं
होता। अत: आदिकाल से ही शिव-शक्ति की संयुक्त उपासना होती रही है। यहाँ शिव-शक्ति उपासना
हेतू अर्धनारीश्वर स्तोत्र जिसे की उपमन्यु ने अर्धनारीश्वर अष्टकम् के नाम से तथा
श्रीशंकराचार्य ने अर्धनारीनटेश्वर स्तोत्रम् के नाम से लिखा हिन्दी अनुवाद सहित पाठकों
के लाभार्थ दिया जा रहा है।
अर्धनारीश्वर स्तोत्र - अर्धनारीनटेश्वर स्तोत्रम्
अर्धनारीश्वर अष्टकम्
अम्भोधरश्यामलकुन्तलायै
तटित्प्रभाताम्रजटाधराय ।
निरीश्वरायै
निखिलेश्वराय नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥ १॥
प्रदीप्तरत्नोज्वलकुण्डलायै
स्फुरन्महापन्नगभूषणाय ।
शिवप्रियायै
च शिवाप्रियाय नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥ २॥
मन्दारमालाकलितालकायै
कपालमालाङ्कितकन्धराय ।
दिव्याम्बरायै
च दिगम्बराय नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥ ३॥
कस्तूरिकाकुङ्कुमलेपनायै
श्मशानभस्मात्तविलेपनाय ।
कृतस्मरायै
विकृतस्मराय नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥ ४॥
पादारविन्दार्पितहंसकायै
पादाब्जराजत्फणिनूपुराय ।
कलामयायै
विकलामयाय नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥ ५॥
प्रपञ्चसृष्ट्युन्मुखलास्यकायै
समस्तसंहारकताण्डवाय ।
समेक्षणायै
विषमेक्षणाय नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥ ६॥
प्रफुल्लनीलोत्पललोचनायै
विकासपङ्केरुहलोचनाय ।
जगज्जनन्यै
जगदेकपित्रे नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥ ७॥
अन्तर्बहिश्चोर्ध्वमधश्च
मध्ये पुरश्च पश्चाच्च विदिक्षु दिक्षु ।
सर्वं
गतायै सकलं गताय नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥ ८॥
अर्धनारीश्वरस्तोत्रं
उपमन्युकृतं त्विदम् ।
यः
पठेच्छृणुयाद्वापि शिवलोके महीयते ॥ ९॥
॥ इति
उपमन्युकृतं अर्धनारीश्वराष्टकम् ॥
अर्धनारीश्वर
स्तोत्र - अर्धनारीनटेश्वर स्तोत्रम्
अर्धनारीनटेश्वर स्तोत्र
चाम्पेयगौरार्धशरीरकायै
कर्पूरगौरार्धशरीरकाय।
धम्मिल्लकायै च जटाधराय नम: शिवायै
च नम: शिवाय।।१।।
आधे शरीर में चम्पापुष्पों-सी गोरी
पार्वतीजी हैं और आधे शरीर में कर्पूर के समान गोरे भगवान शंकरजी सुशोभित हो रहे
हैं। भगवान शंकर जटा धारण किये हैं और पार्वतीजी के सुन्दर केशपाश सुशोभित हो रहे
हैं। ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है।।१।।
कस्तूरिकाकुंकुमचर्चितायै
चितारज:पुंजविचर्चिताय।
कृतस्मरायै विकृतस्मराय नम: शिवायै
च नम: शिवाय।।२।।
पार्वतीजी के शरीर में कस्तूरी और
कुंकुम का लेप लगा है और भगवान शंकर के शरीर में चिता-भस्म का पुंज लगा है।
पार्वतीजी कामदेव को जिलाने वाली हैं और भगवान शंकर उसे नष्ट करने वाले हैं,
ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है।।२।।
चलत्क्वणत्कंकणनूपुरायै
पादाब्जराजत्फणीनूपुराय।
हेमांगदायै भुजगांगदाय नम: शिवायै च
नम: शिवाय।।३।।
भगवती पार्वती के हाथों में कंकण और
पैरों में नूपुरों की ध्वनि हो रही है तथा भगवान शंकर के हाथों और पैरों में
सर्पों के फुफकार की ध्वनि हो रही है। पार्वतीजी की भुजाओं में बाजूबन्द सुशोभित
हो रहे हैं और भगवान शंकर की भुजाओं में सर्प सुशोभित हो रहे हैं। ऐसी पार्वतीजी
और भगवान शंकर को प्रणाम है।।३।।
विशालनीलोत्पललोचनायै
विकासिपंकेरुहलोचनाय।
समेक्षणायै विषमेक्षणाय नम: शिवायै
च नम: शिवाय।।४।।
पार्वतीजी के नेत्र प्रफुल्लित नीले
कमल के समान सुन्दर हैं और भगवान शंकर के नेत्र विकसित कमल के समान हैं। पार्वतीजी
के दो सुन्दर नेत्र हैं और भगवान शंकर के (सूर्य, चन्द्रमा तथा अग्नि) तीन नेत्र हैं। ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को
प्रणाम है।।४।।
मन्दारमालाकलितालकायै
कपालमालांकितकन्धराय।
दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय नम:
शिवायै च नम: शिवाय।।५।।
पार्वतीजी के केशपाशों में
मन्दार-पुष्पों की माला सुशोभित है और भगवान शंकर के गले में मुण्डों की माला
सुशोभित हो रही है। पार्वतीजी के वस्त्र अति दिव्य हैं और भगवान शंकर दिगम्बर रूप
में सुशोभित हो रहे हैं। ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है।।५।।
अम्भोधरश्यामलकुन्तलायै
तडित्प्रभाताम्रजटाधराय।
निरीश्वरायै निखिलेश्वराय नम:
शिवायै च नम: शिवाय।।६।।
पार्वतीजी के केश जल से भरे काले
मेघ के समान सुन्दर हैं और भगवान शंकर की जटा विद्युत्प्रभा के समान कुछ लालिमा
लिए हुए चमकती दीखती है। पार्वतीजी परम स्वतन्त्र हैं अर्थात् उनसे बढ़कर कोई नहीं
है और भगवान शंकर सम्पूर्ण जगत के स्वामी हैं। ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को
प्रणाम है।।६।।
प्रपंचसृष्ट्युन्मुखलास्यकायै
समस्तसंहारकताण्डवाय।
जगज्जनन्यैजगदेकपित्रे नम: शिवायै च
नम: शिवाय।।७।।
भगवती पार्वती लास्य नृत्य करती हैं
और उससे जगत की रचना होती है और भगवान शंकर का नृत्य सृष्टिप्रपंच का संहारक है।
पार्वतीजी संसार की माता और भगवान शंकर संसार के एकमात्र पिता हैं। ऐसी पार्वतीजी
और भगवान शंकर को प्रणाम है।।७।।
प्रदीप्तरत्नोज्ज्वलकुण्डलायै
स्फुरन्महापन्नगभूषणाय।
शिवान्वितायै च शिवान्विताय नम:
शिवायै च नम: शिवाय।।८।।
पार्वतीजी प्रदीप्त रत्नों के
उज्जवल कुण्डल धारण किए हुई हैं और भगवान शंकर फूत्कार करते हुए महान सर्पों का
आभूषण धारण किए हैं। भगवती पार्वतीजी भगवान शंकर की और भगवान शंकर भगवती पार्वती
की शक्ति से समन्वित हैं। ऐसी पार्वतीजी और भगवान शंकर को प्रणाम है।।८।।
अर्धनारीश्वर स्तोत्र - अर्धनारीनटेश्वर स्तोत्रम्
स्तोत्र पाठ का फल
एतत् पठेदष्टकमिष्टदं यो भक्त्या स
मान्यो भुवि दीर्घजीवी।
प्राप्नोति सौभाग्यमनन्तकालं भूयात्
सदा तस्य समस्तसिद्धि:।।९।।
आठ श्लोकों का यह स्तोत्र अभीष्ट
सिद्धि करने वाला है। जो व्यक्ति भक्तिपूर्वक इसका पाठ करता है,
वह समस्त संसार में सम्मानित होता है और दीर्घजीवी बनता है, वह अनन्त काल के लिए सौभाग्य व समस्त सिद्धियों को प्राप्त करता है।
।।इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यस्य श्रीगोविन्दभगवत्पूज्यपादशिष्यस्य श्रीमच्छंकरभगवतः कृतौ अर्धनारीनटेश्वरस्तोत्रम् अर्धनारीश्वरस्तोत्रम् संपूर्णम् ॥
अर्धनारीश्वर
स्तोत्र - अर्धनारीनटेश्वर स्तोत्रम्
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