recent

Slide show

[people][slideshow]

Ad Code

Responsive Advertisement

JSON Variables

Total Pageviews

Blog Archive

Search This Blog

Fashion

3/Fashion/grid-small

Text Widget

Bonjour & Welcome

Tags

Contact Form






Contact Form

Name

Email *

Message *

Followers

Ticker

6/recent/ticker-posts

Slider

5/random/slider

Labels Cloud

Translate

Lorem Ipsum is simply dummy text of the printing and typesetting industry. Lorem Ipsum has been the industry's.

Pages

कर्मकाण्ड

Popular Posts

नीलरुद्रोपनिषद् प्रथम खण्ड

नीलरुद्रोपनिषद् प्रथम खण्ड

नीलरुद्रोपनिषद् अथर्ववेदीय उपनिषद् कहा जाता है । इसमे भगवान नीलकंठ की स्तुति गान किया गया है इस उपनिषद् में तीन खण्ड है। प्रथम खण्ड में नीलकण्ठ भगवान रुद्र से उनके रौद्ररूप को शांत करने और अपनी कल्याणकारी रूप द्वारा कल्याण करने की कामना की गई हैं।

नीलरुद्रोपनिषद् प्रथम खण्ड

नीलरुद्रोपनिषद्

प्रथमः खण्डः     

॥ शांतिपाठ ॥

॥ ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ।

स्थिरैरङ्गैस्तुष्तुवाश्सस्तनूभिर्व्यशेम देवहितं यदायुः ॥

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

इन श्लोकों के भावार्थ शरभ उपनिषद् पढ़ें।


अथ नीलरुद्रोपनिषद्


अपश्यं त्वावरोहन्तं दिवितः पृथिवीमवः ।

अपश्यं रुद्रमस्यन्तं नीलग्रीवं शिखण्डिनम् ॥१॥

दिव उग्रोऽवारुक्षत् प्रत्यस्थाद्भूम्यामधि।

जनासः पश्यतेमं नीलग्रीवं विलोहितम् ॥२॥

एष एत्यवीरहा रुद्रो जलासभेषजीः ।

वित्तेऽक्षेममनीनशद्वातीकारोऽप्येतु ते ॥३॥

हे नीलकण्ठ । अपने दिव्य लोक से पृथ्वी पर अवतरित होते हुए हम आपको देखते हैं। अपने उग्र रौद्ररूप से मोर के पंख की तरह अन्तरिक्ष को मुकुट बनाये हुए धरती पर अवतीर्ण होते हुए हम आपका दर्शन करते हैं क्योंकि आप धरती के अधिपति है। हे मनुष्यो ! लाल वर्ण से युक्त इन नीलकण्ठ के दर्शन करो । भगवान् रुद्र जल में स्थित औषधियों में प्रवेश करके रोगरूप पापों का संहार करते हैं। ये प्राण-धारियों के जीवन-आधार हैं । अनिष्टों की समाप्ति और अनुपलब्ध साधन की पूर्ति हेतु वे आपके समीप पदार्पण करें ॥

नमस्ते भवभामाय नमस्ते भवमन्यवे।     

नमस्ते अस्तु बाहुभ्यामुतो त इषवे नमः ॥४॥

यामिषु गिरिशन्त हस्ते बिभर्व्यस्तवे।

शिवां गिरित्र तां कुरु मा हिँसीः पुरुषं जगत् ।।५॥

हे क्रोधरूप रुद्रदेव! आपके प्रति हमारा प्रणाम है । हे नीलकण्ठ रुद्र! आपकी दोनों भुजाओं और उनमें धारण किये हुए बाणों को प्रणाम । हे कैलासपति ! आप पर्वत पर रहते हुए भी सबका मंगल करते हैं। हे गिरित्र (पर्वतों के रक्षक) रुद्रदेव! दुष्टों का संहार करने के लिए जिस बाण को आप धारण किये हुए हैं, उस बाण को हम मनुष्यों के लिए कल्याणप्रद बनाएँ। उससे हमारे स्वजनों का संहार न करें ॥

शिवेन वचसा त्वा गिरिशाच्छा वदामसि।

यथा नः सर्वमिज्जगदयक्ष्मं सुमना असत् ॥६॥

या त इषुः शिवतमा शिवं बभूव ते धनुः ।

शिवा शरव्या या तव तया नो मृड जीवसे ॥७॥

हे कैलासपति शिव! अपनी कल्याणकारी वाणी द्वारा हम आपके निर्मल गुणों का गान करते हैं। ऐसा गान करने से यह सारा संसार हमारे निमित्त दुःखों से रहित होकर अनुकूलता युक्त हो जाएगा। आपके धनुष, उसकी प्रत्यञ्या और बाण ये सभी मंगल करने वाले हैं। हे मंगलरूप मृड़देव ! इन सभी अस्त्र-शस्त्रों से आप हमारे जीवन को संरक्षण प्रदान करते हैं॥

या ते रुद्र शिवा तनूरघोराऽपापकाशिनी ।

तया नस्तन्वा शंतमया गिरिशन्ताभिचाकशत् ॥८॥

असौ यस्ताम्रो अरुण उत बभ्रुर्विलोहितः ।

ये चेमे रुद्रा अभितो दिक्ष श्रिताः सहस्त्रशोऽवैषां हेड ईमहे॥९॥

हे रुद्रदेव ! पर्वत पर विराजमान रहते हुए भी आप हम सबका मंगल करने वाले हैं। आप अपने पापनाशक सौम्य स्वरूप तथा मंगलमय स्वरूप द्वारा हमें सभी ओर से प्रकाशमान करें। आपकी जो ताम्रवर्ण, लाल, भूरी, अत्यन्त लाल तथा हजारों सूर्यकिरणरूपी मूर्तियाँ चारों दिशाओं में संव्याप्त हैं, हम स्तुतिगान हेतु उनकी हृदय से कामना करते हैं ॥

शेष जारी..............नीलरुद्रोपनिषद् द्वितीयः खण्डः

No comments:

vehicles

[cars][stack]

business

[business][grids]

health

[health][btop]