नागपंचमी

नागपंचमी

नागपंचमी हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। हिन्दू पंचांग के अनुसार श्रावण (सावन) माह की शुक्ल पक्ष के पंचमी को नागपंचमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन नाग देवता या सर्प की पूजा की जाती है और उन्हें दूध से स्नान कराया जाता है। इस दिन अष्टनागों की पूजा की जाती है -

वासुकिः तक्षकश्चैव कालियो मणिभद्रकः।

ऐरावतो धृतराष्ट्रः कार्कोटकधनंजयौ ॥

एतेऽभयं प्रयच्छन्ति प्राणिनां प्राणजीविनाम् ॥ (भविष्योत्तरपुराण ३२-२-७)

(अर्थ: वासुकि, तक्षक, कालिया, मणिभद्रक, ऐरावत, धृतराष्ट्र, कार्कोटक और धनंजय - ये प्राणियों को अभय प्रदान करते हैं।)

नागपंचमी

नागपंचमी व्रत विधि

                         प्रातः उठकर घर की सफाई कर नित्यकर्म से निवृत्त हो जाएँ।

                         पश्चात स्नान कर साफ-स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

                         पूजन के लिए सेंवई-चावल आदि ताजा भोजन बनाएँ। कुछ भागों में नागपंचमी से एक दिन भोजन बना कर रख लिया जाता है और नागपंचमी के दिन बासी खाना खाया जाता है।

                         इसके बाद दीवाल पर गेरू पोतकर पूजन का स्थान बनाया जाता है। फिर कच्चे दूध में कोयला घिसकर उससे गेरू पुती दीवाल पर घर जैसा बनाते हैं और उसमें अनेक नागदेवों की आकृति बनाते हैं।

                         कुछ जगहों पर सोने, चांदी, काठ व मिट्टी की कलम तथा हल्दी व चंदन की स्याही से अथवा गोबर से घर के मुख्य दरवाजे के दोनों बगलों में पाँच फन वाले नागदेव अंकित कर पूजते हैं।

                         सर्वप्रथम नागों की बांबी में एक कटोरी दूध चढ़ा आते हैं।

                         और फिर दीवाल पर बनाए गए नागदेवता की दधि, दूर्वा, कुशा, गंध, अक्षत, पुष्प, जल, कच्चा दूध, रोली और चावल आदि से पूजन कर सेंवई व मिष्ठान से उनका भोग लगाते हैं।

                         पश्चात आरती कर कथा श्रवण करना चाहिए।

नागपंचमी के दिन क्या करें

                         इस दिन नागदेव का दर्शन अवश्य करना चाहिए।

                         बांबी (नागदेव का निवास स्थान) की पूजा करना चाहिए।

                         नागदेव की सुगंधित पुष्प व चंदन से ही पूजा करनी चाहिए क्योंकि नागदेव को सुगंध प्रिय है।

                         ॐ कुरुकुल्ये हुं फट् स्वाहा का जाप करने से सर्पविष दूर होता है।


नागपंचमी की पौराणिक कथा

नागपंचमी की अनेक पौराणिक कथाओं में से कुछ बहुप्रचलित कथाएँ इस प्रकार है :

नागपंचमी की कथा -१  

प्राचीन काल में एक सेठजी के सात पुत्र थे। सातों के विवाह हो चुके थे। सबसे छोटे पुत्र की पत्नी श्रेष्ठ चरित्र की विदूषी और सुशील थी, परंतु उसके भाई नहीं था ।

एक दिन बड़ी बहू ने घर लीपने को पीली मिट्टी लाने के लिए सभी बहुओं को साथ चलने को कहा तो सभी डलिया (खर और मूज की बनी छोटी आकार की टोकरी) और खुरपी लेकर मिट्टी खोदने लगी। तभी वहां एक सर्प निकला, जिसे बड़ी बहू खुरपी से मारने लगी। यह देखकर छोटी बहू ने उसे रोकते हुए कहा- मत मारो इसे? यह बेचारा निरपराध है।

यह सुनकर बड़ी बहू ने उसे नहीं मारा तब सर्प एक ओर जा बैठा। तब छोटी बहू ने उससे कहा-हम अभी लौट कर आती हैं तुम यहां से जाना मत। यह कहकर वह सबके साथ मिट्टी लेकर घर चली गई और वहाँ कामकाज में फँसकर सर्प से जो वादा किया था उसे भूल गई ।

उसे दूसरे दिन वह बात याद आई तो सब को साथ लेकर वहाँ पहुँची और सर्प को उस स्थान पर बैठा देखकर बोली- सर्प भैया नमस्कार! सर्प ने कहा- तू भैया कह चुकी है, इसलिए तुझे छोड़ देता हूं, नहीं तो झूठी बात कहने के कारण तुझे अभी डस लेता। वह बोली- भैया मुझसे भूल हो गई, उसकी क्षमा माँगती हूं, तब सर्प बोला- अच्छा, तू आज से मेरी बहिन हुई और मैं तेरा भाई हुआ। तुझे जो मांगना हो, माँग ले। वह बोली- भैया! मेरा कोई नहीं है, अच्छा हुआ जो तू मेरा भाई बन गया ।

कुछ दिन व्यतीत होने पर वह सर्प मनुष्य का रूप रखकर उसके घर आया और बोला कि मेरी बहिन को भेज दो।सबने कहा कि इसके तो कोई भाई नहीं था, तो वह बोला- मैं दूर के रिश्ते में इसका भाई हूँ, बचपन में ही बाहर चला गया था। उसके विश्वास दिलाने पर घर के लोगों ने छोटी को उसके साथ भेज दिया। उसने मार्ग में बताया कि मैं वहीं सर्प हूँ, इसलिए तू डरना नहीं और जहां चलने में कठिनाई हो वहां मेरी पूछ पकड़ लेना। उसने कहे अनुसार ही किया और इस प्रकार वह उसके घर पहुंच गई। वहाँ के धन-ऐश्वर्य को देखकर वह चकित हो गई ।

एक दिन सर्प की माता ने उससे कहा- मैं एक काम से बाहर जा रही हूँ, तू अपने भाई को ठंडा दूध पिला देना। उसे यह बात ध्यान न रही और उससे गर्म दूध पिला दिया, जिसमें उसका मुख बेतरह जल गया। यह देखकर सर्प की माता बहुत क्रोधित हुई। परंतु सर्प के समझाने पर चुप हो गई। तब सर्प ने कहा कि बहिन को अब उसके घर भेज देना चाहिए। तब सर्प और उसके पिता ने उसे बहुत सा सोना, चाँदी, जवाहरात, वस्त्र-भूषण आदि देकर उसके घर पहुँचा दिया ।

इतना ढेर सारा धन देखकर बड़ी बहू ने ईर्षा से कहा- भाई तो बड़ा धनवान है, तुझे तो उससे और भी धन लाना चाहिए। सर्प ने यह वचन सुना तो सब वस्तुएँ सोने की लाकर दे दीं। यह देखकर बड़ी बहू ने कहा- इन्हें झाड़ने की झाड़ू भी सोने की होनी चाहिए। तब सर्प ने झाडू भी सोने की लाकर रख दी ।

सर्प ने छोटी बहू को हीरा-मणियों का एक अद्भुत हार दिया था। उसकी प्रशंसा उस देश की रानी ने भी सुनी और वह राजा से बोली कि- सेठ की छोटी बहू का हार यहाँ आना चाहिए।राजा ने मंत्री को हुक्म दिया कि उससे वह हार लेकर शीघ्र उपस्थित हो मंत्री ने सेठजी से जाकर कहा कि महारानीजी छोटी बहू का हार पहनेंगी, वह उससे लेकर मुझे दे दो। सेठजी ने डर के कारण छोटी बहू से हार मंगाकर दे दिया ।

छोटी बहू को यह बात बहुत बुरी लगी, उसने अपने सर्प भाई को याद किया और आने पर प्रार्थना की- भैया ! रानी ने हार छीन लिया है, तुम कुछ ऐसा करो कि जब वह हार उसके गले में रहे, तब तक के लिए सर्प बन जाए और जब वह मुझे लौटा दे तब हीरों और मणियों का हो जाए। सर्प ने ठीक वैसा ही किया। जैसे ही रानी ने हार पहना, वैसे ही वह सर्प बन गया। यह देखकर रानी चीख पड़ी और रोने लगी ।

यह देख कर राजा ने सेठ के पास खबर भेजी कि छोटी बहू को तुरंत भेजो। सेठजी डर गए कि राजा न जाने क्या करेगा? वे स्वयं छोटी बहू को साथ लेकर उपस्थित हुए। राजा ने छोटी बहू से पूछा- तुने क्या जादू किया है, मैं तुझे दण्ड दूंगा। छोटी बहू बोली- राजन ! धृष्टता क्षमा कीजिए, यह हार ही ऐसा है कि मेरे गले में हीरों और मणियों का रहता है और दूसरे के गले में सर्प बन जाता है। यह सुनकर राजा ने वह सर्प बना हार उसे देकर कहा- अभी पहिनकर दिखाओ। छोटी बहू ने जैसे ही उसे पहना वैसे ही हीरों-मणियों का हो गया ।

यह देखकर राजा को उसकी बात का विश्वास हो गया और उसने प्रसन्न होकर उसे बहुत सी मुद्राएं भी पुरस्कार में दीं। छोटी वह अपने हार और इन सहित घर लौट आई। उसके धन को देखकर बड़ी बहू ने ईर्षा के कारण उसके पति को सिखाया कि छोटी बहू के पास कहीं से धन आया है। यह सुनकर उसके पति ने अपनी पत्नी को बुलाकर कहा- ठीक-ठीक बता कि यह धन तुझे कौन देता है? तब वह सर्प को याद करने लगी ।

तब उसी समय सर्प ने प्रकट होकर कहा- यदि मेरी धर्म बहिन के आचरण पर संदेह प्रकट करेगा तो मैं उसे खा लूँगा। यह सुनकर छोटी बहू का पति बहुत प्रसन्न हुआ और उसने सर्प देवता का बड़ा सत्कार किया। उसी दिन से नागपंचमी का त्योहार मनाया जाता है और स्त्रियाँ सर्प को भाई मानकर उसकी पूजा करती हैं ।

नागपंचमी की कथा -२  

एक गरीब कृषक अपने खेत में हल चला रहा था । खेत जोतते समय उसके हल के फाल से सर्प के तीन बच्चों की अकाल मृत्यु हो गई। सर्प ने जब यह दुखद घटना अपनी पत्नी को बताया तो वह क्रोधित हो उठी। अपने बच्चों की अकाल मृत्यु का बदला लेने के लिए उसने किसान को बेटे और पत्नी सहित डंस लिया और उन तीनो की भी तत्काल मृत्यु हो गई।

कृषक की एक बेटी भी थी। जब सर्पिणी किसान की बेटी को डंसने गई तो उसने उसके समक्ष नाग बांबी में दूध और धान का लावा रख सर्पिणी से अनुनय विनय करने लगी। सापिन को किसान की बेटी पर दया आ गई। उसने पुन: किसान, भाई तथा माँ के शरीर से जहर वापस खीच लिया और वे तीनों पुन: जीवित हो गए। तभी से हर वर्ष श्रावण शुक्ल पंचमी को नाग की पूजा होने लगी।

नागपंचमी की कथा -३ 

एक ब्राम्हण के सात वैवाहित पुत्र थे। उसकी बहुए हर साल श्रावण के मास में अपने अपने मायके जाती थी किन्तु एक बहू के मायके में कोई प्राणी नहीं बचा था। इसलिए वह ससुराल में ही रहती थी । एक दिन पड़ोसिन ने चुटकी लेते हुए उससे पूछा कि तुम क्यों मायके नहीं गई? इस पर बहु ने कहा कि शेषनाग के शिवाय दुनिया में मेरा कोई दूसरा नहीं है।

भगवान भोलेनाथ के गले को सुशोभित करने वाले सर्प तो सब जगह होते है । ऐसे ही एक शेष नाग ने बहू की बाते सुन ली और सर्प को उस पर दया आ गई।

वह सर्प एक ब्राह्मण का रूप धारण करके बहू के घर आ पहुंचा और ससुराल वालों को यह विश्वास दिलाया कि वह बहु उसकी भतीजी लगती है। फिर क्या था वह उस बहु को विदा कराकर नागलोक ले गया।  यहाँ पर वह बड़े आनन्द से रहने लगी।

कुछ दिन बीत जाने पर शेषनाग को बच्चे हुए। एक दिन बहु के हाथ से संध्या दीप के गिर जाने से बच्चों की दुम कट गई पर बच्चे छोटे थे इसलिए कुछ कर नहीं पाए। बहु कुछ दिन आनंदपूर्वक रहकर अपने ससुराल आ गई।

समय बीतता गया और शेषनाग के बच्चे बड़े हो गए। एक दिन अपनी माँ से दुम कटने की घटना को सुनकर वे बड़े क्रोधित हुए और बदला लेने की भावना से उस बहु के घर जा पहुंचे। उस दिन संयोग से श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि थी। वह बहु नागों की मिट्टी की प्रतिमाएं बनाकर पूजा करके अपने इन्हीं नाग भाइयों की कल्याण कामना कर रही थी।

यह देख नागदेवताओं को बड़ी पसन्नता हुई और उन्होंने बहिन के हाथों से दूध और लावा का उपहार ग्रहण किया और जाती बार मणि माला भेट स्वरूप दिए। मणि माला के प्रभाव से बहु सदा आनंद से जीवन व्यतीत करने लगी।  उसकी हर कठिनाई उस मणि माला को पहनने से दूर हो जाती थी।

मौना पंचमी (नागपंचमी) व्रत

पूरे श्रावण माह विशेष कर नागपंचमी को धरती खोदना निषिद्ध है। इस दिन व्रत करके सांपों को खीर खिलाई व दूध पिलाया जाता है। कहीं-कहीं श्रावण माह की कृष्ण पक्ष की पंचमी को भी नाग पंचमी मनाई जाती है। इस दिन सफेद कमल पूजा में रखा जाता है।

भारत में कुछ जगहों पर श्रावण माह की कृष्ण पक्ष की पंचमी को मौना पंचमी का व्रत रखा जाता है। चुप और शान्त रहना, किसी से बातचीत न करना जिस कारण यह तिथि 'मौना पंचमी' के नाम से प्रचलित है। इस व्रत का संदेश भी यही है कि मनुष्यत के मौन धारण करवा कर जीवन में हर पल होने वाली हर प्रकार की हिंसा से उसकी रक्षा करना तथा मनुष्य के जीवन में धैर्य और संयम लाना और मनुष्य का मन-मस्तिष्का हिंसा को त्याग कर अहिंसा के मार्ग पर चलाना। यह पर्व बिहार में नागपंचमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव की आराधना कर मौन व्रत रखने का महत्व है। इसलिए इस पर्व को मौना पंचमी कहा जाता है। इस दिन नागदेवता को प्रसन्न करने के लिए पूजा की जाती है। हिंदू धर्म में नवविवाहताओं के लिए यह दिन विशेष महत्वपूर्ण होता है। इस दिन से नवविवाहित महिलाएं १५ दिन तक व्रत रखती हैं और हर दिन नाग देवता की पूजा करती हैं। मौना पंचमी के दिन विधि विधान से व्रत करते हुए पूजा और कथा सुनने से सुहागन महिलाओं के जीवन में किसी तरह की बाधाएं नहीं आती हैं। पंचमी तिथि के स्वामी नागदेवता होने से इस दिन नागदेवता को सूखे फल, खीर और अन्य सामग्री चढ़ाकर उनकी पूजा की जाती है। देश के कुछ हिस्सों में इस दिन नागपंचमी भी मनाई जाती है। कई क्षेत्रों में इसे सर्प से जुड़ा पर्व भी मानते हैं। इस तिथि के देवता शेषनाग हैं इसलिए इस दिन भोलेनाथ के साथ-साथ शेषनाग की पूजा भी की जाती है। मौना पंचमी को शिवजी और नाग देवता की पूजा सांसारिक जहर से बचने का संकेत हैं। मौन व्रत न केवल व्यक्ति को मानसिक रूप से संयम और धैर्य रखना सिखाता है वहीं इससे शारीरिक ऊर्जा भी बचती है। कई क्षेत्रों में इस दिन आम के बीज, नींबू तथा अनार के साथ नीम के पत्ते चबाते हैं। ऐसा माना जाता है कि ये पत्ते शरीर से जहर हटाने में काफी हद तक मदद करते हैं। मौना पंचमी के दिन इन दोनों देवताओं का पूजन करने से मनुष्य के जीवन में आ रहे काल का भय खत्म हो जाता है और हर तरह के कष्ट दूर होते हैं।

नागपंचमी का महात्म्य

नागपंचमी के दिन यदि नाग देवता का दर्शन व पूजा किया जाए तो सांप का भय दूर होता है और घर के सभी प्राणियों की मंगल कामना की जाती है। सर्प दोष को दूर करने वाले इस विशिष्ट पर्व नाग पंचमी के दिन नाग दर्शन का विशेष महात्म्य है क्योंकि हिन्दू धर्मग्रंथों में नाग को देवता माना गया है। इस दिन विधिवत नाग देवता की पूजा करने से अध्यात्मिक शक्ति और धन मिलता है।

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