Slide show
Ad Code
JSON Variables
Total Pageviews
Blog Archive
-
▼
2021
(800)
-
▼
July
(105)
- मृतसञ्जीवन स्तोत्रम्
- शिवमहिमा
- महामृत्युञ्जय
- श्रीरुद्रकोटीश्वराष्टकम्
- महालिङ्गस्तुति
- श्री शिवस्तुती
- शिवमहापुराण – प्रथम विद्येश्वरसंहिता – अध्याय 25
- शिवमहापुराण –विद्येश्वरसंहिता – अध्याय 24
- शिवमहापुराण – विद्येश्वरसंहिता – अध्याय 23
- शिवमहापुराण – विद्येश्वरसंहिता – अध्याय 22
- शिवमहापुराण – विद्येश्वरसंहिता – अध्याय 21
- शिवमहापुराण – विद्येश्वरसंहिता – अध्याय 20
- शिवमहापुराण – विद्येश्वरसंहिता – अध्याय 19
- शिवमहापुराण – विद्येश्वरसंहिता – अध्याय 18
- शिवमहापुराण – विद्येश्वरसंहिता – अध्याय 17
- शिवमहापुराण – विद्येश्वरसंहिता – अध्याय 16
- शिवमहापुराण – विद्येश्वरसंहिता – अध्याय 15
- शिवमहापुराण –विद्येश्वरसंहिता – अध्याय 14
- शिवमहापुराण – विद्येश्वरसंहिता – अध्याय 13
- शिवमहापुराण – विद्येश्वरसंहिता – अध्याय 12
- शिवमहापुराण – विद्येश्वरसंहिता – अध्याय 11
- शिवमहापुराण – विद्येश्वरसंहिता – अध्याय 10
- शिवमहापुराण – विद्येश्वरसंहिता – अध्याय 09
- शिवमहापुराण – विद्येश्वरसंहिता – अध्याय 08
- शिवमहापुराण – विद्येश्वरसंहिता – अध्याय 07
- शिवमहापुराण – विद्येश्वरसंहिता – अध्याय 06
- शिव षडक्षर स्तोत्र
- शिव पंचाक्षर स्तोत्र
- शिवमहापुराण – विद्येश्वरसंहिता – अध्याय 05
- शिवमहापुराण – विद्येश्वरसंहिता – अध्याय 04
- शिवमहापुराण – विद्येश्वरसंहिता – अध्याय 03
- शिवमहापुराण –विद्येश्वरसंहिता – अध्याय 02
- शिवमहापुराण – प्रथम विद्येश्वरसंहिता – अध्याय 01
- भैरव ताण्डव स्तोत्रम्
- आपदुद्धारक बटुकभैरवाष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम्
- क्षेत्रपाल भैरवाष्टक स्तोत्रम्
- क्षेत्रपाल चालीसा
- स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्रम्
- महाकाल ककाराद्यष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम्
- महाकालसहस्रनामस्तोत्रम्
- महाकाल सहस्रनाम स्तोत्रम्
- महाकाल स्तोत्र
- महाकाल मङ्गलम्
- अष्ट भैरव
- गुरु गीता तृतीय अध्याय
- गुरु गीता द्वितीय अध्याय
- गुरु गीता
- शिवस्तुति
- महामृत्युञ्जय कवच
- महामृत्युञ्जयकवचम्
- महाकाल स्तुति
- शिवानन्दलहरी
- अष्टमूर्ति स्तोत्रम्
- भैरव चालीसा
- श्रीकण्ठेश अष्टक स्तुति स्तोत्रम्
- श्रीसदाशिवकवचस्तोत्रम्
- सदाशिव कवचम्
- सदाशिव स्तोत्रम्
- सदाशिव स्वरूपाणि
- ब्रह्मा स्तुति
- ईश्वर प्रार्थना स्तोत्रम्
- ईश्वर स्तोत्र
- शिव स्तुति
- ईशानस्तवः
- शिव ताण्डव स्तोत्रम्
- लिंगाष्टक स्त्रोतम्
- द्वादश ज्योतिर्लिंग
- शिव स्तुति
- शिवस्तुति
- दारिद्र्य दहन शिवस्तोत्रम्
- सर्प सूक्त
- मनसा स्तोत्र
- नागपंचमी
- श्री जगन्नाथ स्तोत्र
- श्रीजगन्नाथ सहस्रनाम स्तोत्रम्
- जगन्नाथगीतामृतम्
- श्री जगन्नाथ अष्टकम्
- शिवमहापुराण माहात्म्य – अध्याय 07
- शिवमहापुराण माहात्म्य – अध्याय 06
- शिवमहापुराण माहात्म्य – अध्याय 05
- शिवमहापुराण माहात्म्य – अध्याय 04
- शिवमहापुराण माहात्म्य – अध्याय 03
- शिवमहापुराण माहात्म्य – अध्याय 02
- शिवमहापुराण माहात्म्य – अध्याय 01
- अर्धनारीश्वर्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्
- अर्धनारीश्वर सहस्रनाम स्तोत्रम्
- अर्धनारीश्वर स्तोत्र - अर्धनारीनटेश्वर स्तोत्रम्
- अर्धनारीश्वरस्तोत्रम्
- अमोघशिवकवचम्
- शिवरामाष्टकम्
- अघोरमूर्तिसहस्रनामस्तोत्रम्
- अघोरकवचम्
- अघोरस्तोत्रम्
- नीलरुद्रोपनिषद् तृतीय खण्ड
- नीलरुद्रोपनिषद् द्वितीय खण्ड
- नीलरुद्रोपनिषद् प्रथम खण्ड
- आत्मोपनिषत्
- हंसोपनिषत्
- कुण्डिका उपनिषद
- जाबाल उपनिषद
-
▼
July
(105)
Search This Blog
Fashion
Menu Footer Widget
Text Widget
Bonjour & Welcome
About Me
Labels
- Astrology
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड
- Hymn collection
- Worship Method
- अष्टक
- उपनिषद
- कथायें
- कवच
- कीलक
- गणेश
- गायत्री
- गीतगोविन्द
- गीता
- चालीसा
- ज्योतिष
- ज्योतिषशास्त्र
- तंत्र
- दशकम
- दसमहाविद्या
- देवी
- नामस्तोत्र
- नीतिशास्त्र
- पञ्चकम
- पञ्जर
- पूजन विधि
- पूजन सामाग्री
- मनुस्मृति
- मन्त्रमहोदधि
- मुहूर्त
- रघुवंश
- रहस्यम्
- रामायण
- रुद्रयामल तंत्र
- लक्ष्मी
- वनस्पतिशास्त्र
- वास्तुशास्त्र
- विष्णु
- वेद-पुराण
- व्याकरण
- व्रत
- शाबर मंत्र
- शिव
- श्राद्ध-प्रकरण
- श्रीकृष्ण
- श्रीराधा
- श्रीराम
- सप्तशती
- साधना
- सूक्त
- सूत्रम्
- स्तवन
- स्तोत्र संग्रह
- स्तोत्र संग्रह
- हृदयस्तोत्र
Tags
Contact Form
Contact Form
Followers
Ticker
Slider
Labels Cloud
Translate
Pages
Popular Posts
-
मूल शांति पूजन विधि कहा गया है कि यदि भोजन बिगड़ गया तो शरीर बिगड़ गया और यदि संस्कार बिगड़ गया तो जीवन बिगड़ गया । प्राचीन काल से परंपरा रही कि...
-
रघुवंशम् द्वितीय सर्ग Raghuvansham dvitiya sarg महाकवि कालिदास जी की महाकाव्य रघुवंशम् प्रथम सर्ग में आपने पढ़ा कि-महाराज दिलीप व उनकी प...
-
रूद्र सूक्त Rudra suktam ' रुद्र ' शब्द की निरुक्ति के अनुसार भगवान् रुद्र दुःखनाशक , पापनाशक एवं ज्ञानदाता हैं। रुद्र सूक्त में भ...
Popular Posts
अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
शिवमहापुराण –विद्येश्वरसंहिता – अध्याय 02
इससे पूर्व
आपने शिवमहापुराण – प्रथम
विद्येश्वरसंहिता – अध्याय 01 पढ़ा, अब शिवमहापुराण
–विद्येश्वरसंहिता – अध्याय 02 दूसरा अध्याय शिवपुराण का माहात्म्य एवं परिचय।
शिवमहापुराण –विद्येश्वरसंहिता – अध्याय 02
शिवपुराणम् | संहिता
१ (विश्वेश्वरसंहिता)
सूत उवाच
साधुपृष्टं साधवो
वस्त्रैलोक्यहितकारकम्
गुरुं स्मृत्वा भवत्स्नेहाद्वक्ष्ये
तच्छृणुतादरात् ॥१
सूतजी बोले —
हे साधु-महात्माओ ! आप सबने तीनों लोकों का हित करनेवाली अच्छी बात
पूछी है । मैं गुरुदेव व्यासजी का स्मरण करके आप लोगों के स्नेहवश इस विषय का
वर्णन करूँगा, आपलोग आदरपूर्वक सुनें ॥ १ ॥
वेदांतसारसर्वस्वं पुराणं
शैवमुत्तमम्
सर्वाघौघोद्धारकरं परत्र परमार्थदम्
॥२
कलिकल्मषविध्वंसि यस्मिञ्छिवयशः
परम्
विजृम्भते सदा
विप्राश्चतुर्वर्गफलप्रदम् ॥३
सबसे उत्तम जो शिवपुराण है,
वह वेदान्त का सार-सर्वस्व है तथा वक्ता और श्रोता का समस्त
पापराशियों से उद्धार करनेवाला है; [इतना ही नहीं] वह परलोक
में परमार्थ वस्तु को देनेवाला है । कलि की कल्मषराशि का वह विनाशक है । उसमें
भगवान् शिव के उत्तम यश का वर्णन है । हे ब्राह्मणो ! धर्म, अर्थ,
काम और मोक्ष — इन चारों पुरुषार्थों को देनेवाला
वह पुराण सदा ही अपने प्रभाव से विस्तार को प्राप्त हो रहा है ॥ २-३ ॥
तस्याध्ययनमात्रेण पुराणस्य
द्विजोत्तमाः
सर्वोत्तमस्य शैवस्य ते यास्यंति
सुसद्गतिम् ॥४
शिवमहापुराण हे विप्रवरो ! उस
सर्वोत्तम शिवपुराण के अध्ययनमात्र से वे कलियुग के पापासक्त जीव श्रेष्ठतम गति को
प्राप्त हो जायँगे ॥ ४ ॥
तावद्विजृंभते पापं
ब्रह्महत्यापुरस्सरम्
यावच्छिवपुराणं हि नोदेष्यति
जगत्यहो ॥५
अहो ! ब्रह्महत्या आदि महान् पाप
तभी तक रहेंगे अर्थात् अपने फल को देने में समर्थ होंगे,
जबतक जगत् में शिवपुराण का उदय नहीं होगा । [आशय यह है कि शिवपुराण
सुनने के बाद अन्त:करण शिवभक्तिपरायण होकर अतिशय स्वच्छ हो जायगा । अतः किसी भी
पापकर्म में मानव की प्रवृत्ति ही नहीं होगी, तब ब्रह्महत्या
आदि भयंकर पाप न होने के कारण उस पाप के फलभोग की सम्भावना ही नहीं है] ॥ ५ ॥
तावत्कलिमहोत्पाताः संचरिष्यंति
निर्भयाः
यावच्छिवपुराणं हि नोदेष्यति
जगत्यहो ॥६
कलियुग के महान् उत्पात तभी तक
निर्भय होकर विचरेंगे, जब तक यहाँ जगत्
में शिवपुराण का उदय नहीं होगा ॥ ६ ॥
तावत्सर्वाणि शास्त्राणि विवदंति
परस्परम्
यावच्छिवपुराणं हि नोदेष्यति
जगत्यहो ॥७
सभी शास्त्र परस्पर तभी तक विवाद
करेंगे,
जबतक जगत् में शिवपुराण का उदय नहीं होगा [अर्थात् शिवपुराण के आ
जाने पर किसी प्रकार का विवाद ही नहीं रह जायगा । सभी प्रकार से
भुक्ति-मुक्तिप्रदाता यही रहेगा] ॥ ७ ॥
तावत्स्वरूपं दुर्बोधं शिवस्य
महतामपि
यावच्छिवपुराणं हि नो देष्यति
जगत्यहो ॥८
अहो ! महान् व्यक्तियों के लिये भी
तभी तक शिव का स्वरूप दुर्बोध्य रहेगा, जबतक
इस जगत् में शिवपुराण का उदय नहीं होगा ॥ ८ ॥
तावद्यमभटाः क्रूराः संचरिष्यंति निर्भयाः
यावच्छिवपुराणं हि नोदेष्यति
जगत्यहो ॥९
अहो ! क्रूर यमदूत तभी तक निर्भय
होकर पृथ्वी पर घूमेंगे, जब तक जगत् में
शिवपुराण का उदय नहीं होगा ॥ ९ ॥
तावत्सर्वपुराणानि प्रगर्जंति
महीतले
यावच्छिवपुराणं हि नोदेष्यति
जगत्यहो ॥१०
सभी पुराण पृथिवी पर गर्जन तभी तक
करेंगे,
जब तक शिवपुराण का जगत् में उदय नहीं होगा ॥ १० ॥
तावत्सर्वाणि तीर्थानि विवदंति
महीतले
यावच्छिवपुराणं हि नोदेष्यति
जगत्यहो ॥११
तावत्सर्वाणि मंत्राणि विवदंति
महीतले
यावच्छिवपुराणं हि नोदेष्यति महीतले
॥१२
इस पृथिवी पर तीर्थों का विवाद तभी
तक रहेगा,
जब तक इस जगत् में शिवपुराण का उदय नहीं होगा । [आशय यह है कि
मुक्ति प्राप्त्यर्थ एवं पाप के नाश के लिये मानव विभिन्न तीर्थों का सेवन करेंगे,
किंतु शिवपुराण के आने के बाद सभी लोग सभी पापों के नाश के लिये
शिवपुराण का ही सेवन करेंगे]। सभी मन्त्र पृथ्वी पर तभी तक आनन्दपूर्वक विवाद
करेंगे, जब तक पृथ्वी पर शिवपुराण का उदय नहीं होगा ॥ ११-१२
॥
तावत्सर्वाणि क्षेत्राणि विवदंति
महीतले
यावच्छिवपुराणं हि नोदेष्यति महीतले
॥१३
सभी क्षेत्र तभी तक पृथ्वी पर विवाद
करेंगे,
जब तक पृथ्वी पर शिवपुराण का उदय नहीं होगा ॥ १३ ॥
तावत्सर्वाणि पीठानि विवदंति महीतले
यावच्छिवपुराणं हि नोदेष्यति महीतले
॥१४
सभी पीठ तभी तक पृथ्वी पर विवाद
करेंगे,
जब तक पृथ्वी पर शिवपुराण का उदय नहीं होगा ॥ १४ ॥
तावत्सर्वाणि दानानि विवदंति महीतले
यावच्छिवपुराणं हि नोदेष्यति महीतले
॥१५
सभी दान पृथ्वी पर तभी तक विवाद
करेंगे,
जबतक शिवपुराण का पृथ्वी पर उदय नहीं होगा ॥ १५ ॥
तावत्सर्वे च ते देवा विवदंति
महीतले
यावच्छिवपुराणं हि नोदेष्यति महीतले
॥१६
सभी देवगण तभीतक पृथ्वीपर विवाद
करेंगे,
जबतक शिवपुराण का पृथ्वीपर उदय नहीं होगा ॥ १६ ॥
तावत्सर्वे च सिद्धान्ता विवदंति
महीतले
यावच्छिवपुराणं हि नोदेष्यति महीतले
॥१७
सभी सिद्धान्त तभी तक पृथ्वीपर
विवाद करेंगे, जबतक शिवपुराण का पृथ्वी पर उदय
नहीं होगा ॥ १७ ॥
अस्य शैवपुराणस्य
कीर्तनश्रवणाद्द्विजाः
फलं वक्तुं न शक्नोमि कार्त्स्न्येन
मुनिसत्तमाः ॥१८
हे विप्रो ! हे श्रेष्ठ मुनिगण ! इस
शिवपुराण के कीर्तन करने और सुनने से जो-जो फल होते हैं,
उन फलों को मैं सम्पूर्ण रूपसे नहीं कह सकता हूँ, [अर्थात् शब्दों के द्वारा इसके सभी फलों को नहीं कहा जा सकता है] ॥ १८ ॥
तथापि तस्य माहात्म्यं वक्ष्ये
किंचित्तु वोनघाः
चित्तमाधाय शृणुत व्यासेनोक्तं पुरा
मम ॥१९
हे निष्पाप मुनिगण ! तथापि शिवपुराण
का कुछ माहात्म्य आप लोगों से कहता हूँ, जो
व्यासजी ने पहले मुझसे कहा था, आपलोग चित्त लगाकर
ध्यानपूर्वक सुनें ॥ १९ ॥
एतच्छिवपुराणं हि श्लोकं
श्लोकार्द्धमेव च
यः पठेद्भक्तिसंयुक्तस्स
पापान्मुच्यते क्षणात् ॥२०
जो भक्तिपूर्वक इस शिवपुराणका एक
श्लोक या आधा श्लोक भी पढ़ता है, वह उसी क्षण
पाप से छुटकारा पा जाता है ॥ २० ॥
एतच्छिवपुराणं हि यः प्रत्यहमतंद्रि
तः
यथाशक्ति पठेद्भक्त्या स जीवन्मुक्त
उच्यते ॥२१
जो आलस्यरहित होकर प्रतिदिन
भक्तिपूर्वक इस शिवपुराण का यथाशक्ति पाठ करता है, वह जीवन्मुक्त कहा जाता है ॥ २१ ॥
एतच्छिवपुराणं
हि यो भक्त्यार्चयते सदा
दिने दिनेऽश्वमेधस्य फलं
प्राप्नोत्यसंशयम् ॥२२
जो इस शिवपुराण की सदा पूजा करता है,
वह निःसन्देह प्रतिदिन अश्वमेधयज्ञ का फल प्राप्त करता है ॥ २२ ॥
एतच्छिवपुराणं यस्साधारणपदेच्छया
अन्यतः शृणुयात्सोऽपि मत्तो मुच्येत
पातकात् ॥२३
जो व्यक्ति साधारण पद की प्राप्ति
की इच्छा से इस शिवपुराण को मुझसे अथवा अन्य किसी से सुनता है,
वह भी पातकों से मुक्त हो जाता है ॥ २३ ॥
एतच्छिवपुराणं यो नमस्कुर्याददूरतः
सर्वदेवार्चनफलं स प्राप्नोति न
संशयः ॥२४
जो इस शिवपुराण को समीप से प्रणाम
करता है,
वह सभी देवों की पूजा का फल प्राप्त करता है; इसमें
संशय नहीं है ॥ २४ ॥
एतच्छिवपुराणं वै लिखित्वा पुस्तकं
स्वयम्
यो दद्याच्छिवभक्तेभ्यस्तस्य
पुण्यफलं शृणु ॥२५
जो इस शिवपुराण को स्वयं लिखकर
शिवभक्तों को दान करता है, उसके पुण्यफल को
सुनें ॥ २५ ॥
अधीतेषु च शास्त्रेषु वेदेषु
व्याकृतेषु च
यत्फलं दुर्लभं लोके तत्फलं तस्य
संभवेत् ॥२६
एतच्छिवपुराणं हि
चतुर्दश्यामुपोषितः
शिवभक्तसभायां यो व्याकरोति स
उत्तमः ॥२७
प्रत्यक्षरं तु
गायत्रीपुरश्चर्य्याफलं लभेत्
इह भुक्त्वाखिलान्कामानं ते
निर्वाणतां व्रजेत् ॥२८
शास्त्रों का अध्ययन करने और वेदों
का पाठ करने से जो दुर्लभ फल प्राप्त होता है, वह
फल उसको प्राप्त होता है । जो चतुर्दशी तिथि के दिन उपवास करके इस शिवपुराण का
शिवभक्तों के समाज में पाठ करता है – वह श्रेष्ठ पुरुष है ।
वह व्यक्ति शिवपुराण के प्रत्येक अक्षर की संख्या के अनुरूप गायत्री के पुरश्चरण
का फल प्राप्त करता है और इस लोक में सभी अभीष्ट सुखों को भोगकर अन्त में मोक्ष
प्राप्त करता है ॥ २७-२८ ॥
उपोषितश्चतुर्दश्यां रात्रौ
जागरणान्वितः
यः पठेच्छृणुयाद्वापि तस्य पुण्यं
वदाम्यहम् ॥२९
जो चतुर्दशी की रात में उपवासपूर्वक
जागरण करके शिवपुराण का पाठ करता है या इसे सुनता है,
उसका पुण्य-फल मैं कहता हूँ ॥ २९ ॥
कुरुक्षेत्रादिनिखिलपुण्यतीर्थेष्वनेकशः
आत्मतुल्यधनं सूर्य्यग्रहणे
सर्वतोमुखे ॥३०
विप्रेभ्यो व्यासमुख्येभ्यो
दत्त्वायत्फलमश्नुते
तत्फलं संभवेत्तस्य सत्यं सत्यं न
संशयः ॥३१
कुरुक्षेत्र आदि सभी तीर्थों में,
पूर्ण सूर्यग्रहण में अपनी शक्ति के अनुसार विप्रों को और मुख्य
कथावाचकों को धन देने से जो फल प्राप्त होता है, वही फल उस
व्यक्ति को प्राप्त होता है, यह सत्य है, सत्य है; इसमें कोई संदेह नहीं है ॥ ३०-३१ ॥
एतच्छिवपुराणं हि गायते
योप्यहर्निशम्
आज्ञां तस्य प्रतीक्षेरन्देवा
इन्द्र पुरो गमाः ॥३२
जो व्यक्ति इस शिवपुराण का दिन-रात
गान करता है, इन्द्र आदि देवगण उसकी आज्ञा की
प्रतीक्षा करते रहते हैं ॥ ३२ ॥
एतच्छिवपुराणं यः पठञ्छृण्वन्हि
नित्यशः
यद्यत्करोति सत्कर्म तत्कोटिगुणितं
भवेत् ॥३३
इस शिवपुराण का पाठ करनेवाला और
सुननेवाला व्यक्ति जो-जो श्रेष्ठ कर्म करता है, वह
कोटिगुना हो जाता है [अर्थात् कोटिगुना फल देता है] ॥ ३३ ॥
समाहितः पठेद्यस्तु तत्र श्रीरुद्र
संहिताम्
स ब्रह्मघ्नोऽपि पूतात्मा
त्रिभिरेवादिनैर्भवेत् ॥३४
जो भलीभाँति ध्यानपूर्वक उसमें भी
श्रीरुद्रसंहिता का पाठ करता है, वह यदि
ब्रह्मघाती भी हो तो तीन दिनों में पवित्रात्मा हो जाता है ॥ ३४ ॥
तां रुद्र संहितां यस्तु
भैरवप्रतिमांतिके
त्रिः पठेत्प्रत्यहं मौनी स
कामानखिलाँ ल्लभेत् ॥३५
जो भैरव की मूर्ति के पास मौन
धारणकर श्रीरुद्रसंहिता का प्रतिदिन तीन बार पाठ करता है,
वह सभी कामनाओं को प्राप्त कर लेता है ॥ ३५ ॥
तां रुद्र संहितां यस्तु
सपठेद्वटबिल्वयोः
प्रदक्षिणां प्रकुर्वाणो
ब्रह्महत्या निवर्तते ॥३६
जो व्यक्ति वट और बिल्ववृक्ष की
प्रदक्षिणा करते हुए उस रुद्रसंहिता का पाठ करता है, वह ब्रह्महत्या के दोष से भी छुटकारा पा जाता है ॥ ३६ ॥
कैलाससंहिता तत्र ततोऽपि परमस्मृता
ब्रह्मस्वरूपिणी
साक्षात्प्रणवार्थप्रकाशिका ॥३७
प्रणव के अर्थ को प्रकाशित करनेवाली
ब्रह्मरूपिणी साक्षात् कैलाससंहिता रुद्रसंहिता से भी श्रेष्ठ कही गयी है ॥ ३७ ॥
कैलाससंहितायास्तु माहात्म्यं
वेत्ति शंकरः
कृत्स्नं तदर्द्धं व्यासश्च
तदर्द्धं वेद्म्यहं द्विजाः ॥३८
हे द्विजो ! कैलाससंहिता का
सम्पूर्ण माहात्म्य तो शंकरजी ही जानते हैं, उससे
आधा माहात्म्य व्यासजी जानते हैं और उसका भी आधा मैं जानता हूँ ॥ ३८ ॥
तत्र किंचित्प्रवक्ष्यामि कृत्स्नं
वक्तुं न शक्यते
यज्ज्ञात्वा
तत्क्षणाल्लोकश्चित्तशुद्धिमवाप्नुयात् ॥३९
उसके सम्पूर्ण माहात्म्य का वर्णन
तो मैं नहीं कर सकता, कुछ ही अंश कहूँगा,
जिसको जानकर उसी क्षण चित्त की शुद्धि प्राप्त हो जायगी ॥ ३९ ॥
न नाशयति यत्पापं सा रौद्री संहिता
द्विजाः
तन्न पश्याम्यहं लोके मार्गमाणोऽपि
सर्वदा ॥४०
हे द्विजो ! लोक में ढूँढ़ने पर भी
मैंने ऐसे किसी पाप को नहीं देखा, जिसे वह
रुद्रसंहिता नष्ट न कर सके ॥ ४० ॥
शिवेनोपनिषत्सिंधुमन्थनोत्पादितां
मुदा
कुमारायार्पितां तां वै सुधां
पीत्वाऽमरो भवेत् ॥४१
उपनिषद्रूपी सागर का मन्थन करके शिव
ने आनन्दपूर्वक इस रुद्रसंहितारूपी अमृत को उत्पन्न किया और कुमार कार्तिकेय को
समर्पित किया; जिसे पीकर मानव अमर हो जाता है
॥ ४१ ॥
ब्रह्महत्यादिपापानां निष्कृतिं
कर्तुमुद्यतः
मासमात्रं संहितां तां पठित्वा
मुच्यते ततः ॥४२
ब्रह्महत्या आदि पापों की निष्कृति
करने के लिये तत्पर मनुष्य महीनेभर रुद्रसंहिता का पाठ करके उन पापों से मुक्त हो
जाता है ॥ ४२ ॥
दुष्प्रतिग्रहदुर्भोज्यदुरालापादिसंभवम्
पापं सकृत्कीर्तनेन संहिता सा
विनाशयेत् ॥४३
दुष्प्रतिग्रह,
दुर्भोज्य, दुरालाप से जो पाप होता है;
वह इस रौद्रीसंहिता का एक बार कीर्तन करने से नष्ट हो जाता है ॥ ४३
॥
शिवालये बिल्ववने संहितां तां
पठेत्तु यः
स तत्फलमवाप्नोति यद्वाचोऽपि न
गोचरे ॥४४
जो व्यक्ति शिवालय में अथवा बेल के
वन में इस संहिता का पाठ करता है, वह उससे जो फल
प्राप्त करता है, उसका वर्णन वाणी से नहीं किया जा सकता ॥ ४४
॥
संहितां तां पठन्भक्त्या यः
श्राद्धे भोजयेद्द्विजान्
तस्य ये पितरः सर्वे यांति शंभोः
परं पदम् ॥४५
जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस संहिता
का पाठ करते हुए श्राद्ध के समय ब्राह्मणों को भोजन कराता है,
उसके सभी पितर शम्भु के परम पद को प्राप्त करते हैं ॥ ४५ ॥
चतुर्दश्यां निराहारो यः
पठेत्संहितां च ताम्
बिल्वमूले शिवः साक्षात्स देवैश्च
प्रपूज्यते ॥४६
चतुर्दशी के दिन निराहार रहकर जो
बेल के वृक्ष के नीचे इस संहिता का पाठ करता है, वह साक्षात् शिव होकर सभी देवों से पूजित होता है ॥ ४६ ॥
अन्यापि संहिता तत्र सर्वकामफलप्रदा
उभे विशिष्टे विज्ञेये
लीलाविज्ञानपूरिते ॥४७
उसमें अन्य संहिताएँ सभी कामनाओं के
फल को पूर्ण करनेवाली हैं, किंतु लीला और
विज्ञान से परिपूर्ण इन दोनों संहिताओं को विशिष्ट समझना चाहिये ॥ ४७ ॥
तदिदं शैवमाख्यातं पुराणं वेदसंमितम्
निर्मितं तच्छिवेनैव प्रथमं
ब्रह्मसंमितम् ॥४८
इस शिवपुराण को वेद के तुल्य माना
गया है । इस वेदकल्प पुराण का सबसे पहले भगवान् शिव ने ही प्रणयन किया था ॥ ४८ ॥
विद्येशंच तथारौद्रं वैनायकमथौमिकम्
मात्रं रुद्रै कादशकं कैलासं
शतरुद्र कम् ॥४९
कोटिरुद्र सहस्राद्यं कोटिरुद्रं
तथैव च
वायवीयं धर्मसंज्ञं पुराणमिति भेदतः
॥५०
विद्येश्वरसंहिता,
रुद्रसंहिता, विनायकसंहिता, उमासंहिता, मातृसंहिता, एकादशरुद्रसंहिता,
कैलाससंहिता, शतरुद्रसंहिता, कोटिरुद्रसंहिता, सहस्रकोटिरुद्रसंहिता, वायवीयसंहिता तथा धर्मसंहिता — इस प्रकार इस पुराण
के बारह भेद हैं ॥ ४९-५० ॥
संहिता द्वादशमिता महापुण्यतरा मता
तासां संख्यां ब्रुवे विप्राः
शृणुतादरतोखिलम् ॥५१
विद्येशं दशसाहस्रं रुद्रं वैनायकं
तथा
औमं मातृपुराणाख्यं
प्रत्येकाष्टसहस्रकम् ॥५२
ये बारहों संहिताएँ अत्यन्त
पुण्यमयी मानी गयी हैं । ब्राह्मणो ! अब मैं उनके श्लोकों की संख्या बता रहा हूँ ।
आपलोग वह सब आदरपूर्वक सुनें । विद्येश्वरसंहिता में दस हजार श्लोक हैं ।
रुद्रसंहिता, विनायकसंहिता, उमासंहिता और मातृसंहिता — इनमें से प्रत्येक में
आठ-आठ हजार श्लोक हैं ॥ ५१-५२ ॥
त्रयोदशसहस्रं हि रुद्रै कादशकं
द्विजाः
षट्सहस्रं च कैलासं शतरुद्रं
तदर्द्धकम् ॥५३
कोटिरुद्रं त्रिगुणितमेकादशसहस्रकम्
सहस्रकोटिरुद्रा ख्यमुदितं
ग्रंथसंख्यया ॥५४
वायवीयं खाब्धिशतं घर्मं
रविसहस्रकम्
तदेवं लक्षसंख्याकं
शैवसंख्याविभेदतः ॥५५
हे ब्राह्मणो ! एकादशरुद्रसंहिता
में तेरह हजार, कैलाससंहिता में छ: हजार,
शतरुद्रसंहिता में तीन हजार, कोटिरुद्रसंहिता
में नौ हजार, सहस्रकोटिरुद्रसंहिता में ग्यारह हजार, वायवीयसंहिता में चार हजार तथा धर्मसंहिता में बारह हजार श्लोक हैं । इस
प्रकार संख्या के अनुसार मूल शिवपुराण की श्लोकसंख्या एक लाख है ॥ ५३-५५ ॥
व्यासेन तत्तु संक्षिप्तं
चतुर्विंशत्सहस्रकम्
शैवं तत्र चतुर्थं वै पुराणं
सप्तसंहितम् ॥५६
परंतु व्यासजी ने उसे चौबीस हजार
श्लोकों में संक्षिप्त कर दिया है । पुराणों की क्रमसंख्या के विचार से इस
शिवपुराण का स्थान चौथा है; इसमें सात संहिताएँ
हैं ॥ ५६ ॥
शिवे संकल्पितं पूर्वं पुराणं
ग्रन्थसंख्यया
शतकोटिप्रमाणं हि पुरा सृष्टौ
सुविस्मृतम् ॥५७
पूर्वकाल में भगवान् शिव ने
श्लोकसंख्या की दृष्टि से सौ करोड़ श्लोकों का एक ही पुराण ग्रन्थ बनाया था ।
सृष्टि के आदि में निर्मित हुआ वह पुराणसाहित्य अत्यन्त विस्तृत था ॥ ५७ ॥
व्यस्तेष्टादशधा चैव पुराणे
द्वापरादिषु
चतुर्लक्षेण संक्षिप्ते कृते
द्वैपायनादिभिः ॥५८
तत्पश्चात् द्वापर आदि युगों में
द्वैपायन व्यास आदि महर्षियों ने जब पुराण का अठारह भागों में विभाजन कर दिया,
उस समय सम्पूर्ण पुराणों का संक्षिप्त स्वरूप केवल चार लाख श्लोकों
का रह गया ॥ ५८ ॥
प्रोक्तं शिवपुराणं हि
चतुर्विंशत्सहस्रकम्
श्लोकानां संख्यया सप्तसंहितं
ब्रह्मसंमितम् ॥५९
श्लोकसंख्या के अनुसार यह शिवपुराण
चौबीस हजार श्लोकोंवाला कहा गया है । यह वेदतुल्य पुराण सात संहिताओं में विभाजित
है ॥ ५९ ॥
विद्येश्वराख्या तत्राद्या रौद्री
ज्ञेया द्वितीयिका
तृतीया शतरुद्रा ख्या कोटिरुद्रा
चतुर्थिका ॥६०
पंचमी चैव मौमाख्या षष्ठी
कैलाससंज्ञिका
सप्तमी वायवीयाख्या सप्तैवं
संहितामताः ॥६१
इसकी पहली संहिताका नाम
विद्येश्वरसंहिता है, दूसरी रुद्रसंहिता
समझनी चाहिये, तीसरी का नाम शतरुद्रसंहिता, चौथी का कोटिरुद्रसंहिता, पाँचवीं का नाम उमासंहिता,
छठी का कैलाससंहिता और सातवीं का नाम वायवीयसंहिता है । इस प्रकार
ये सात संहिताएँ मानी गयी हैं ॥ ६०-६१ ॥
ससप्तसंहितं दिव्यं पुराणं
शिवसंज्ञकम्
वरीवर्ति ब्रह्मतुल्यं सर्वोपरि
गतिप्रदम् ॥६२
इन सात संहिताओं से युक्त दिव्य
शिवपुराण वेद के तुल्य प्रामाणिक तथा सबसे उत्कृष्ट गति प्रदान करनेवाला है ॥ ६२ ॥
एतच्छिवपुराणं हि सप्तसंहितमादरात्
परिपूर्णं पठेद्यस्तु स जीवन्मुक्त
उच्यते ॥६३
सात संहिताओं से समन्वित इस
सम्पूर्ण शिवपुराण को जो आद्योपान्त आदरपूर्वक पढ़ता है,
वह जीवन्मुक्त कहा जाता है ॥ ६३ ॥
श्रुतिस्मृतिपुराणेतिहासागमशतानि च
एतच्छिवपुराणस्य नार्हंत्यल्पां
कलामपि ॥६४
वेद, स्मृति, पुराण, इतिहास तथा
सैकड़ों आगम इस शिवपुराण की अल्प कला के समान भी नहीं हैं ॥ ६४ ॥
शैवं पुराणममलं शिवकीर्तितं
तद्व्यासेन शैवप्रवणेन न संगृहीतम्
संक्षेपतः सकलजीवगुणोपकारे तापत्रयघ्नमतुलं
शिवदं सतां हि ॥६५
यह निर्मल शिवपुराण भगवान् शिव के
द्वारा ही प्रतिपादित है । शैवशिरोमणि भगवान् व्यास ने इसे संक्षेपकर संकलित किया
है । यह समस्त जीवसमुदाय के लिये उपकारक, त्रिविध
तापों का नाशक, तुलनारहित एवं सत्पुरुषों को कल्याण प्रदान
करनेवाला है ॥ ६५ ॥
विकैतवो धर्म इह प्रगीतो
वेदांतविज्ञानमयः प्रधानः
अमत्सरांतर्बुधवेद्यवस्तु
सत्कॢप्तमत्रैव त्रिवर्गयुक्तम् ॥६६
इसमें वेदान्त-विज्ञानमय,
प्रधान तथा निष्कपट धर्म का प्रतिपादन किया गया है । यह पुराण ईर्ष्यारहित
अन्तःकरणवाले विद्वानों के लिये जानने की वस्तु है, इसमें
श्रेष्ठ मन्त्र-समूहों का संकलन है और यह धर्म, अर्थ तथा काम
से समन्वित है अर्थात्-इस त्रिवर्ग की प्राप्ति के साधन का भी इसमें वर्णन है ॥ ६६
॥
शैवं पुराणतिलकं खलु सत्पुराणं
वेदांतवेदविलसत्परवस्तुगीतम्
यो वै पठेच्च शृणुयात्परमादरेण
शंभुप्रियः
स हि लभेत्परमां गतिं वै ॥६७
इति श्रीशिवमहापुराणे
विद्येश्वरसंहितायां द्वितीयोऽध्यायः २
यह उत्तम शिवपुराण समस्त पुराणों
में श्रेष्ठ है । वेद-वेदान्त में वेद्यरूप से विलसित परम वस्तु-परमात्माका इसमें
गान किया गया है । जो बड़े आदर से इसे पढ़ता और सुनता है,
वह भगवान् शिव का प्रिय होकर परम गति प्राप्त कर लेता है ॥ ६७ ॥
॥ इस प्रकार श्रीशिवमहापुराणके
अन्तर्गत प्रथम विद्येश्वरसंहितामें मुनिप्रश्नोत्तर-वर्णन नामक दूसरा अध्याय
पूर्ण हुआ ॥ २ ॥
शेष जारी .............. शिवपुराणम् विश्वेश्वरसंहिता-अध्यायः ०३
Related posts
vehicles
business
health
Featured Posts
Labels
- Astrology (7)
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड (10)
- Hymn collection (38)
- Worship Method (32)
- अष्टक (54)
- उपनिषद (30)
- कथायें (127)
- कवच (61)
- कीलक (1)
- गणेश (25)
- गायत्री (1)
- गीतगोविन्द (27)
- गीता (34)
- चालीसा (7)
- ज्योतिष (32)
- ज्योतिषशास्त्र (86)
- तंत्र (182)
- दशकम (3)
- दसमहाविद्या (51)
- देवी (190)
- नामस्तोत्र (55)
- नीतिशास्त्र (21)
- पञ्चकम (10)
- पञ्जर (7)
- पूजन विधि (80)
- पूजन सामाग्री (12)
- मनुस्मृति (17)
- मन्त्रमहोदधि (26)
- मुहूर्त (6)
- रघुवंश (11)
- रहस्यम् (120)
- रामायण (48)
- रुद्रयामल तंत्र (117)
- लक्ष्मी (10)
- वनस्पतिशास्त्र (19)
- वास्तुशास्त्र (24)
- विष्णु (41)
- वेद-पुराण (691)
- व्याकरण (6)
- व्रत (23)
- शाबर मंत्र (1)
- शिव (54)
- श्राद्ध-प्रकरण (14)
- श्रीकृष्ण (22)
- श्रीराधा (2)
- श्रीराम (71)
- सप्तशती (22)
- साधना (10)
- सूक्त (30)
- सूत्रम् (4)
- स्तवन (109)
- स्तोत्र संग्रह (711)
- स्तोत्र संग्रह (6)
- हृदयस्तोत्र (10)
No comments: